‘आप’सी खींचतान

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गांव-चौपालों में एक कहानी खूब प्रचलित है. कहानी एक किसान परिवार की है. किसान के चार लड़के थे. चारों बड़े मेहनती थे. सुबह से शाम तक खेत में काम करते. किसानी से बड़ी मुश्किल से इन पांचों का परिवार चलता था. सब एक-दूसरे पर भरोसा करते थे. मुश्किल से मुश्किल समय में भी साथ रहते थे. कुछ समय बाद परिवार के दिन बहुरे. गरीबी कम हुई और परिवार में समृद्धि आई. खेत में काम करने के लिए नौकर आ गए. काम कम हुआ. काम के कम होने से भाईयों को खाली बैठकर सोचने-समझने का मौका मिला. कुछ समय तक तो सब ठीक रहा लेकिन थोड़े ही दिनों बाद सब आपस में लड़ने लगे. छोटी-छोटी बातें लड़ाई का कारण बन गईं. साथ-साथ काम करनेवाले चारों भाई एक-दूसरे पर तोहमत मढ़ने लगे. थोड़े समय बाद चारों अलग हो गए. खेत-खलिहान बंट गए. गाय-बैल बंट गए. बंटवारे के बाद चारों ने अपने-अपने हिस्से के खेत में फिर खुद काम करना शुरू किया. एक भाई अपने आप को दूसरे भाई से ज्यादा समृद्ध बनाने के लिए जी-तोड़ मेहनत-मजदूरी करने लगा. इस तरह मेहनत और काम ने इनके बीच पनपी कलह को खत्म कर दिया.

यह कहानी फिलहाल दिल्ली की सत्ता पर काबिज आम आदमी पार्टी में चल रही अंतर्कलह पर सटीक बैठती है.

कहानी के पात्र अपनी मेहनत के बल पर आई समृद्धि की वजह से लड़ने लगे थे तो आम आदमी पार्टी का शीर्ष नेतृत्व दिल्ली में मिली अभूतपूर्व जीत के खुमार में आपस में भिड़ गए हैं. एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप गढ़ने के साथ से शुरू हुई और यह लड़ाई अब अपने बदसूरत स्वरूप में उस दिल्ली की जनता के सामने है जिसने महीनाभर पहले आप पर अंधविश्वास जताया था. कहानी का अंतिम हिस्सा पूरा होना अभी बाकी है जब सारे नेता अपनी-अपनी राह जाकर मेहनत-मजूरी में लग जाएंगे.

पार्टी के संस्थापक सदस्य रहे योगेंद्र यादव और प्रशांत भूषण को पार्टी की सर्वोच्च्य निर्णायक संस्था, राजनीतिक मामलों की समिति (पीएसी) से हटाया जा चुका है. यह फैसला चार मार्च को पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारणी में लिया गया. इन दोनों नेताओं पर आरोप है कि इन्होंने दिल्ली चुनाव में पार्टी को हराने के लिए काम किया और ये अरविंद केजरीवाल को पार्टी के संयोजक पद से हटाना चाहते थे. योगेंद्र यादव पर आरोप है कि उन्होंने कुछ पत्रकारों के जरिए मिलकर ऐसी खबरें प्लांट करवाईं जिससे पार्टी के संयोजक और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की छवि खराब हो. पीएसी से हटाने और अपने ऊपर पार्टी विरोधी गतिविधि चलाने के आरोपों के बाद योगेंद्र यादव और प्रशांत भूषण ने पार्टी कार्यकर्ताओं (वॉलंटियर्स) के नाम एक चिट्ठी लिखी है. चिठ्ठी में यह दावा किया गया है कि उन पर जो आरोप लगाए जा रहे हैं वो सच नहीं हैं. चिट्ठी में दोनों नेताओं ने साफ किया है कि उन्होंने दिल्ली चुनाव में उम्मीद्दवारों की चयन प्रक्रिया पर सवाल उठाए जिसकी वजह से अब उन पर ऐसे आरोप लगाए जा रहे हैं. योगेंद्र यादव और प्रशांत भूषण ने अपने ऊपर पार्टी द्वारा लगाए जा रहे हर आरोप को यह कहते हुए खारिज किया है कि उन्होंने पार्टी के हित में कुछ जरूरी सुझाव दिए थे. ये सुझाव पार्टी के उन सिद्धांतों और मूल्यों से जुड़े थे जिन पर इसकी नींव पड़ी थी. विधानसभा चुनावों से पहले पार्टी अपने इन सिद्धातों से बुरी तरह डिग चुकी थी. अपने दावों की जांच दोनों नेता पार्टी की आतंरिक लोकपाल से करवाने की मांग कर रहे हैं.

 पीएसी से हटने के बाद योगेंद्र और प्रशांत ने चुप रहने का मन बनाया है
पीएसी से हटने के बाद योगेंद्र और प्रशांत ने चुप रहने का मन बनाया है

फिलहाल आप आदमी पार्टी में दो फाड़ हो चुके हैं

जिन परिस्थितियों में आप का सारा विवाद सतह पर आया है उसे देखते हुए कहा जा सकता है कि लंबे समय से पार्टी के भीतर तलवारें खिंची हुईं थीं. 26 फरवरी को अचानक से ही लड़ाई सतह पर आ गई. राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में पार्टी नेता दिलीप पांंडे ने एक ऑडियो टेप चलाया. इसमें आप के एक नेता विभव कुमार द हिंदू अखबार की पत्रकार चंदर सुता डोगरा से बात कर रहे थे. बातचीत का लब्बोलुआब यह था कि योगेंद्र यादव ने उन्हें बताया था कि हरियाणा में पूरी यूनिट विधानसभा चुनाव लड़ना चाहती थी लेकिन अरविंद केजरीवाल ने इस पर वीटो कर दिया था. आप का एक धड़ा इसे पार्टी विरोधी गतिविधि   बता रहा है. इसे लेकर पार्टी दोफाड़ हो चुकी है. दिल्ली के उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया, पार्टी प्रवक्ता संजय सिंह, आशीष खेतान और आशुतोष एक तरफ हैं तो दूसरी तरफ योगेंद्र यादव, प्रशांत भूषण, मयंक गांधी और शांति भूषण सहित पार्टी के दूसरे वरिष्ठ नेता हैं. मजेदार यह है कि जिस अरविंद केजरीवाल के इर्द गिर्द पार्टी यह सारा बंटवारा हुआ है वह इस विवाद पर चुप हैं. अरविंद केजरीवाल की तरफ से इस संबंध में केवल एक आधिकारिक बयान ट्विटर के माध्यम से आया है. उन्होंने तीन मार्च को एक पोस्ट में कहा कि वो पार्टी में चल रही कलह से आहत हैं. वे इस लड़ाई में न पड़कर दिल्ली की जनता से मिले जनादेश का सम्मान करना चाहते हैं, जनता के लिए काम करना चाहते हैं.

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पार्टी में जैसे ही घनघोर घमासान मचना शुरू हुआ ठीक उसी समय अरविंद दस दिन की मेडिकल लीव पर बंगलुरु चले गए. वहां वे प्राकृतिक चिकित्सा पद्धति से अपनी खांसी और डाइबिटीज का इलाज करवा रहे हैं. पार्टी के कुछ नेताओं को लगता है कि अरविंद के लौटने पर इस पूरे विवाद का पटाक्षेप हो जाएगा. पर यह दूर की कौड़ी दिखती है. पार्टी के एक सूत्र गुमनामी की शर्त पर बताते हैं, ‘अरविंद लगातार पार्टी में अपने समर्थक नेताओं के संपर्क में हैं. चैट और एसएमएस के माध्यम से लगातार उनकी बात मनीष सिसोदिया आदि से हो रही है. अगर उन्हें इस विवाद को सुलझाना होता तो वो वहां से भी ऐसा कर सकते थे. पर वे ऐसा नहीं कर रहे हैं जबकि हर दिन के साथ पार्टी और नेताओं की छीछालेदर मीडिया और जनता के बीच बढ़ती जा रही है. जाहिर है इस पूरे मसले को सुलझाने को लेकर अरविंद की खुद की मंशा बेहद संदिग्ध है.’

पार्टी के अरविंद समर्थक नेता मीडिया में लगातार ऐसे बयान दिए जा रहे हैं जिससे पार्टी के भीतर योगेंद्र यादव और प्रशांत भूषण का बने रहना लगभग मुश्किल हो गया है. दूसरी तरफ खुद अरविंद केजरीवाल के ऐसे-ऐसे ऑडियो स्टिंग सामने आ रहे हैं जिनमें वे विधानसभा चुनावों से पूर्व कांग्रेस के साथ जोड़-तोड़ से अपनी सरकार बनाने की कवायद करते नजर आ रहे हैं. लेकिन पहले बात योगेंद्र और प्रशांत भूषण से शुरू हुए विवाद की. पंजाब से आम आदमी पार्टी के सांसद भगवंत मान तहलका से बातचीत में कहते हैं, ‘योगेंद्र यादव और प्रशांत भूषण का अपराध बहुत बड़ा है. जितना बड़ा उनका अपराध है उसके मुकाबले पार्टी ने उन्हें कम सजा दी है. इन दोनों नेताओं को नैतिकता के आधार पर खुद ही इस्तीफा दे देना चाहिए.’ मान के बयान से अगर कोई सूत्र पकड़ना हो तो यही बात कही जा सकती है कि अरविंद की रणनीति खुद चुप रहते हुए अपने समर्थकों के माध्यम से यादव और भूषण पर उस हद तक दबाव बनाने की है कि वे खुद ही पार्टी छोड़ दें. यह नैतिकता के आधार पर भी हो सकता है, बर्खास्तगी के रूप में भी हो सकता है और इन दोनों के चुपचाप पार्टी छोड़ देने के रूप में भी हो सकता है. लेकिन यादव और भूषण ने भी अपनी रणनीति के तहत पार्टी में बने रहने की बात बार-बार दोहराई है. जाहिर है यह स्थिति पार्टी के अरविंद धड़े के लिए बहुत असहज है. जनता के बीच छवि बनाए रखने के लिए वह इन दोनों नेताओं को बर्खास्त करने का खतरा नहीं उठाना चाहती है. जनता और वॉलंटियर की नाराजगी की एक झलक सोशल मीडिया में दिख भी चुकी है.

यादव और भूषण को पार्टी में अलग-थलग करने के लिए करावल नगर से आप विधायक कपिल मिश्रा ने हस्ताक्षर अभियान शुरू किया है. पार्टी सूत्रों के मुताबिक तीनों नेताओं को पार्टी से निकालने के प्रस्ताव पर 28 मार्च से शुरू होनेवाली राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में चर्चा हो सकती है. बैठक से पहले केजरीवाल खेमा तीनों नेताओं के खिलाफ यह मुहिम चला रहा है. हालांकि आप के ही कुछ दूसरे विधायकों ने इस हस्ताक्षर अभियान का विरोध भी किया है और इस पर हस्ताक्षर करने से मना कर दिया है. अभी तक जो दो फाड़ पार्टी के शीर्ष नेतृत्व के स्तर पर दिख रहा था, हस्ताक्षर अभियान के बाद वह पार्टी के निचले स्तर यानी विधायकों के बीच भी फैल गया है. पार्टी के विधायक भी इस मसले पर बंट चुके हैं. इस पूरे प्रकरण का अंत किस तरह से होगा इसका इंतजार सबको है लेकिन बीते दो हफ्तों में जितना कुछ बना और टूटा है वह कई बड़े सवाल खड़े करता है. सबसे पहला सवाल तो यही है कि क्या यह पार्टी बाकी राजनीतिक दलों से किसी भी मायने में अलग है, अरविंद केजरीवाल का ताजा ऑडियो टेप (देखें बॉक्स पृष्ठ 54 पर) और आशुतोष जैसे कर्कश, तथ्यहीन प्रवक्ताओं की लफ्फाजियों ने वह चोला तार-तार कर दिया है. दूसरी बात, राजनीति में बदलाव के नारे के साथ अस्तित्व में आई आम आदमी पार्टी के भीतर कई स्तर पर गंभीर बदलावों की जरुरत है. लेकिन पार्टी का मौजूदा चाल-चलन इसके विपरीत जाता दिख रहा है.

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घमासान का कालचक्र

n26 फरवरी : योगेंद्र यादव पर दिल्ली आप सचिव दिलीप पांडेय ने पहली बार राष्ट्रीय कार्यकारणी की बैठक में अरविंद के खिलाफ काम करने का आरोप लगाया. सबूत के तौर पर पांडेय ने ‘द हिंदू’ की पत्रकार चंदर सुता डोगरा से फोन पर हुई बातचीत का टेप सामने रखा. यह टेप मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के निजी सहयोगी विभव कुमार ने पत्रकार को बिना बताए रिकॉर्ड किया था. पत्रकार चंदर सुता डोगरा ने द हिंदू में ‘फेडिंग प्रॉमिस ऑफ द इंडियन स्प्रिंग’ नाम से लेख लिखा था. लेख के अनुसार, हरियाणा में आप की यूनिट ने मजबूत पकड़ बना ली थी और बहुत से स्वयंसेवी यहां से राज्य में चुनाव लड़ने के लिए उत्साहित थे. वहां आप की यूनिट की अगुवाई योगेंद्र यादव कर रहे थे. लेकिन अरविंद केजरीवाल ने वीटो कर हरियाणा में चुनाव न लड़ने की घोषणा कर दी थी. यह फैसला अलोकतांत्रिक था. विभव को फोन पर डोगरा ने बताया कि यह जानकारी उन्हें योगेंद्र यादव ने दी थी.

4 मार्च : आप की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में बहुमत से फैसला लिया गया कि योगेंद्र यादव और प्रशांत भूषण पीएसी में नहीं रहेंगे. दोनों नेताओं को बाहर करने के प्रस्ताव के पक्ष में 11 और विरोध में आठ मत पड़े.

5 मार्च : आप के वरिष्ठ नेता मयंक गांधी ने बैठक की गतिविधियों की जानकारी ब्लॉग के जरिए सार्वजनिक कर दी. अपने ब्लॉग में मंयक ने पार्टी, केजरीवाल सहित कई नेताओं पर आरोप लगाया.

7 मार्च : आप की नेता अंजली दामनिया ने प्रशांत भूषण, योगेंद्र यादव और मयंक गांधी के खिलाफ मोर्चा खोल दिया. अंजली ने अपने बयान में मयंक गांधी पर ब्लॉग के माध्यम से बैठक की बातें सार्वजनिक करने के लिए अनुशासनात्मक कार्रवाई की मांग की. अंजली ने प्रशांत भूषण पर यह आरोप लगाया कि उन्होंने पार्टी को दिल्ली चुनाव में हराने के लिए काम किया.

10 मार्च : पीएसी से योगेंद्र यादव और प्रशांत भूषण के हटाये जाने के बाद चौतरफा आलोचना झेल रही आम आदमी पार्टी ने अपनी आधिकारिक वेबसाइट पर एक पत्र जारी कर आधिकारिक रूप से योगेंद्र यादव और प्रशांत भूषण पर पार्टी विरोधी गतिविधि में शामिल होने का आरोप लगाया और पीएसी से उनके निष्काषन को सही बताया.

11 मार्च :  पार्टी द्वारा सार्वजनिक आरोप लगाने के बाद प्रशांत भूषण और योगेंद्र यादव ने संयुक्त रूप से एक पत्र लिखा. इस पत्र के माध्यम से दोनों नेताओं ने अपने ऊपर लगाए जा रहे आरोपों को निराधार बताया. दोनों नेताओं ने मांग की है कि उन पर लगाए जा रहे आरोपों की जांच पार्टी के लोकपाल से करवाई जाए.

11 मार्च : आम आदमी पार्टी पार्टी के पूर्व विधायक राजेश गर्ग और अरविंद केजरीवाल के बीच बातचीत का एक टेप सार्वजनिक हुआ है. इसमें केजरीवाल दोबारा से आप की सरकार बनाने के लिए कांग्रेसी विधायकों को तोड़ने की साजिश कर रहे हैं.

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पार्टी में आंतरिक लोकतंत्र नहीं?

यह सवाल पार्टी में कई मौकों पर, कई अलग-अलग सदस्यों के द्वारा उठाया जा चुका है. आप के पूर्व विधायक विनोद कुमार बिन्नी, शाजिया इल्मी और भारत में कम कीमत पर हवाई यातायात मुहैया करवानेवाले बड़े उद्योगपति कैप्टन जीआर गोपीनाथ तक कई नेताओं ने यह शिकायत की है. सबने पार्टी छोड़ने या पार्टी से निकाले जाने की बड़ी वजह इसी आंतरिक लोकतंत्र के अभाव को बताया था. हालांकि यह बात ध्यान देने वाली है कि पार्टी से निकाले जाने के बाद विनोद कुमार बिन्नी और पार्टी छोड़ने के बाद शाजिया इल्मी भाजपा में शामिल हो गए. शाजिया इल्मी उन नेताओं में थीं जो एक समय में अरविंद के खास माने जाते थे. पार्टी के लिए एक विधानसभा और एक लोकसभा चुनाव लड़ चुकीं शाजिया ने जब लोकसभा चुनावों के बाद मई 2014 में पार्टी के सभी पदों से इस्तीफा दिया तो पत्रकारों से बात करते हुए अरविंद केजरीवाल पर पार्टी के भीतर लोकतंत्र बहाल न करने का आरोप लगाया. अलग-अलग समय पर पार्टी से बाहर जानेवाले कई लोगों के आरोप भी कमोबेश वैसे ही थे जैसे आज योगेंद्र यादव और प्रशांत भूषण लगा रहे हैं.

यह बात भी दिल्चस्प है कि जब पार्टी से बाहर जाने वाले लोग आंतरिक लोकतंत्र के अभाव की बात कर रहे थे तब ये दोनों नेता लगभग चुप थे. अगर आज पार्टी में लोकतंत्र नहीं होने की बात कही जा रही है तो इसके लिए अरविंद केजरीवाल के साथ-साथ योगेंद्र यादव और प्रशांत भूषण की भूमिका भी कहीं न कहीं बनती है. इस बारे में वरिष्ठ पत्रकार उर्मिलेश लिखते हैं, ‘इसके लिए सिर्फ केजरीवाल या उनके खास गुट को जिम्मेवार ठहराना पूरी तरह सही नहीं होगा. इसके लिए वे भी जिम्मेवार हैं, जिन्हें हाईकमान ने पीएसी से बाहर का रास्ता दिखाया. महज दो साल पहले गठित पार्टी में इतना ताकतवर हाईकमान एक व्यक्ति के कारण पैदा नहीं हो सकता. प्रशांत हों या योगेंद्र, सबने केजरीवाल के इर्द-गिर्द खास तरह का राजनीतिक आभामंडल बुने जाने की प्रक्रिया में अपना-अपना अवदान दिया.’

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‘छह विधायक कांग्रेस से अलग होकर हमें समर्थन कर दें’

11 मार्च को एक ऑडियो टेप सामने आया है. इसमें रोहिणी से पार्टी के पूर्व विधायक राजेश गर्ग अरविंद केजरीवाल के साथ बातचीत कर रहे हैं. बातचीत में अरविंद केजरीवाल विधानसभा चुनावों से पहले जोड़तोड़ करके, कांग्रेस विधायकों को तोड़ने की बात कर रहे हैं ताकि चुनाव लड़े बिना एक बार फिर से दिल्ली में सरकार बना सकें. इस ऑडियो से नाराज होकर वरिष्ठ नेता अंजली दामनिया ने पार्टी से इस्तीफा दे दिया, लेकिन बाद में इस्तीफा वापस ले लिया.

टेप लीक होने में अपनी भूमिका से इनकार करते हुए राजेश गर्ग ने यह गंभीर आरोप लगाकर सनसनी फैला दी कि केजरीवाल तथा उनके दो विश्वस्त सहयोगी- मनीष सिसोदिया और संजय सिंह दिल्ली में सरकार बनाने के लिए जरूरी विधायकों का समर्थन जुटाने के लिए कांग्रेस विधायकों को तोड़ने की कोशिश में थे.

उन्होंने अपने आरोप के समर्थन में एक संपादित ऑडियो क्लिप भी जारी की. उन्होंने दावा किया कि ऑडियो क्लिप में जो आवाज है वह केजरीवाल की है. उनका कहना था कि इससे आप नेतृत्व की सच्चाई और पारदर्शिता के दावों की कलई खुल जाती है. गौरतलब है कि आप के ही पूर्व विधायक द्वारा जारी इस ऑडियो टेप में अरविंद केजरीवाल अपने विधायक से कह रहे हैं कि कांग्रेस तो समर्थन देगी नहीं तो इस बात के लिए कोशिश करो कि कांंग्रेस के छह विधायक एक अलग गुट बनाकर हमारा समर्थन कर दें. इसके बाद कांग्रेस के पूर्व विधायक आसिफ मुहम्मद ने दावा किया है कि उसके पास एक ऐसा वीडियो है जिसमें पार्टी नेता संजय सिंह सरकार बनवाने के बदले उन्हें मंत्री पद का लालच दे रहे हैं.

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पार्टी में अरविंद केजरीवाल के बढ़ते कद और फिर इसी वजह से उपजी समस्या के बारे में एनडीटीवी के वरिष्ठ प्रबंध संपादक ऑनिंद्यो चक्रवर्ती का मानना है कि चुनाव के वक्त पार्टी की बजाय किसी एक नेता को चेहरा बनाने का यह खतरा रहता ही है कि वो व्यक्ति पार्टी के भीतर भी ताकतवर हो जाए. अपने लेख में चक्रवर्ती लिखते हैं, ‘आम आदमी पार्टी व्यक्ति पूजा की इस राजनीति की सबसे नई और शायद और सबसे ज्यादा लाभ हासिल करनेवाली पार्टी रही है. सामाजिक कार्यकर्ताओं और आम नागरिकों का आंदोलन होने के बावजूद हाल के चुनावों में इसने खुद को एक नेता के सहारे बेचा. इसका नारा ‘पांच साल केजरीवाल’ और ‘मांगे दिल्ली दिल से, केजरीवाल फिर से’ जैसे आकर्षक कारोबारी जिंगल एक आम नायक के तौर पर केजरीवाल की सुनियोजित छवि निर्माण में महत्वपूर्ण रहे.’

चक्रवर्ती अपने लेख में आगे लिखते हैं, ‘आज जिन योगेंद्र यादव और प्रशांत भूषण ने ‘आप’ के भीतर बढ़ती केजरीवाल भक्ति को मुद्दा बनाया है, वे तब इस चुनावी रणनीति का हिस्सा थे. दरअसल, तब जब मैंने प्रशांत भूषण से पूछा कि क्या पार्टी की जगह केजरीवाल को पेश करना सही था तो उन्होंने माना कि यह चीज केवल चुनाव प्रचार के दौरान होनी चाहिए थी. मुझे प्रशांत भूषण का यह भरोसा कुछ यूटोपियाई लगा कि जब चुनावों के बाद चीजें सामान्य हो जाएंगी, तब व्यक्ति पूजा की जगह आंतरिक लोकतंत्र बहाल हो जाएगा. राजनीति में व्यक्ति पूजा का ऐसा कोई जादुई बटन नहीं होता, जिसे आप चुनाव जीतने के लिए ऑन कर दें और चुनाव बीतने के बाद जब अपनी बात चलाना चाहें तब ऑफ कर दें.’

इस सब से इतर पार्टी के कुछ नेताओं की मानें तो पार्टी में हाई कमान कल्चर कभी था ही नहीं. मनीष सिसोदिया, संजय सिंह, आशुतोष और आशीष खेतान सहित कई नेता बार-बार यह दोहराते रहे हैं कि पार्टी में आंतरिक लोकतंत्र शुरू से आज तक है. इस बारे में आम आदमी पार्टी का सोशल मीडिया देखने वाले अंकित लाल कहते हैं, ‘अगर पार्टी में लोकतंत्र नहीं होता तो आज इस मुद्दे पर देश के हर कोने से कार्यकर्ता नहीं बोल रहे होते. पार्टी के भीतर भी कई बार हम आपस में बुरी तरह से लड़े हैं. मैं खुद कई बार अरविंद के साथ कई मुद्दों पर एक मत नहीं हो पाया और हम घंटों एक-दूसरे से बहस करते रहे.’ अंकित आगे कहते हैं, ‘योगेंद्र और प्रशांत भूषण के बारे में भी जो फैसला हुआ है वो पार्टी ने लिया है. पूरी लोकतांत्रिक प्रक्रिया का पालन किया गया है.’ पार्टी के वरिष्ठ नेता प्रो. आनंद कुमार भी यह मानते हैं कि इस प्रकरण की वजह से आम आदमी पार्टी को पूरी तरह से अलोकतांत्रिक बता देना ठीक नहीं है. वो कहते हैं, ‘आज की तारीख में जितनी भी पार्टियां हैं उसमें किसी की हिम्मत नहीं है कि कोई भी व्यक्ति पार्टी के सर्वोच्च पद पर बैठे व्यक्ति पर एक सवाल उठा दे. ऐसा करने पर तुरंत सवाल उठाने वाले व्यक्ति को बाहर का रास्ता दिखा दिया जाता है.’

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