चुनाव का सामना करने से भाजपा इतना हिचक क्यों रही थी. क्या अरविंद केजरीवाल से पार्टी में किसी तरह का डर था?
हमारे मन में चुनाव को लेकर कोई हिचक नहीं है. भाजपा कभी भी दिल्ली में गलत तरीके से सरकार बनाने की पक्षधर नहीं थी. हमारे मन में यह कभी नहीं था कि हमें गलत तरीके से, जोड़-तोड़ करके या खरीद फरोख्त करके दिल्ली में सरकार बनानी है. अगर हमारी ऐसी मंशा होती तो उस समय ही करते जब हमारे पास 32 विधायक थे. लेकिन तब भी हमने इन चीजों से दूरी बनाए रखी.
दिल्ली में भाजपा का इतिहास रहा है कि वह मुख्यमंत्री पद का एक चेहरा घोषित करके चुनाव में उतरती आई है. ऐसा पहली बार हो रहा है कि भाजपा बिना किसी चेहरे के चुनाव में उतर रही है.
हरियाणा और महाराष्ट्र में सबने देखा कि कैसे पार्टी बिना किसी चेहरे के भी जीत हासिल कर सकती है. हम इस बार किसी चेहरे की बजाय विचारधारा के ऊपर चुनाव लड़ने जा रहे हैं. पर दिल्ली में हमारे पास पर्याप्त बड़ी संख्या में नेता हैं. हमारा चेहरा इस बार पार्टी का चुनाव चिन्ह, विचारधारा और केंद्र सरकार का कामकाज होगा. मोदी जी के आने के बाद जो विश्वास जनता के मन में पैदा हुआ है वह इस चुनाव में हमारा चेहरा बनेगा. और निश्चित रूप से मोदी जी का नेतृत्व भी इसमें हमारी मदद करेगा.
सवाल वही है कि नरेंद्र मोदी के चेहरे पर देश ने भाजपा को इतना बड़ा जनादेश दिया तो फिर दिल्ली में एक चेहरे से परहेज क्यों कर रही है भाजपा. अगर भाजपा अपने पिछले रुख से पीछे हट रही है तो इसके पीछे कोई तो वजह होगी. अगर मोदी से देश में फायदा हुआ तो क्या दिल्ली में सतीश उपाध्याय या किसी और चेहरे के साथ जाने में नुकसान होता?
हम पीछे नहीं हट रहे हैं. ये कोई नई बात नहीं है. हमने महाराष्ट्र और हरियाणा में इसी रणनीति पर चुनाव जीता है. रणनीति तो पार्टियां बदलती रहती हैं और यह हमारा अधिकार है कि हम चुनाव दर चुनाव उत्पन्न स्थितियों के मुताबिक अपनी रणनीति तैयार करें. हमने साथ मिलकर यह तय किया है कि चुनाव में हमें किस तरह से उतरना है. हमारा विधायक दल तय करेगा कि कौन नेता बनेगा.
पिछले विधानसभा चुनावों में हमने देखा कि आम आदमी पार्टी रणनीति के मामले में भाजपा से इक्कीस सिद्ध हुई थी. इस बार भी हम ऐसा ही कुछ देख रहे हैं. उन्हें अपनी वेबसाइट तक पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की फोटो इस्तेमाल करने में गुरेज नहीं होता है. कुछ लोगों का आकलन था कि आप को हल्के में लेने का खामियाजा भी भाजपा को पिछले चुनाव में भुगतना पड़ा था. तो इस बार आप से निपटने की क्या कोई अलग रणनीति होगी आपकी?
ऐसा है कि जिस अभियान की बात आप कर रहे हैं तब की स्थितियां बिल्कुल अलग थीं. आज की स्थितियां एकदम बदली हुई हैं. तब दिल्ली में मनमोहन सिंह की सरकार थी, तब भाजपा की सरकार नहीं थी. तब अरविंद केजरीवाल भी दिल्ली में कुछ नहीं थे. उनकी कोई राजनीतिक पहचान नहीं थी. अनजाने में दिल्ली के लोगों ने उनसे एक उम्मीद लगा ली थी कि शायद वे कुछ अलग और नया करेंगे. लोगों को उनसे आशाएं थीं. उन्होंने इतने बड़े-बड़े वादे कर डाले थे जिससे जनता भुलावे में आ गई. फिर दिल्ली और पूरे देश की जनता ने उनकी सत्ता लोलुपता भी देखी. वे दिल्ली की सरकार से 49 दिनों में ही भाग गए और देश के प्रधानमंत्री बनने का सपना देखने लगे थे. अपने लालच के चक्कर में उन्होंने दिल्ली की जनता से किए गए वादे तक नहीं निभाए. उनकी घोषणाएं खोखली सिद्ध हुईं. मुफ्त पानी की घोषणा की और सिर्फ तीन महीने तक के लिए ऐसा करके भूल गए. उसका फायदा भी ऐसे लोगों को हुआ जिनके पास पानी के मीटर थे. गरीब और कमजोर आदमी को इसका कोई लाभ नहीं मिला. ऐसे तमाम कारण हैं जिनकी वजह से आज अरविंद केजरीवाल की विश्वसनीयता दिल्ली की जनता के बीच खत्म हो चुकी है.
पिछले चुनाव के दौरान ही कुछ वादे भाजपा ने भी किए थे मसलन बिजली की कीमतें 30 फीसदी तक कम करने की, लोगों को मुफ्त पानी देने की आदि. इन चुनावों में भाजपा उन लोकलुभावन वादों पर कायम रहेगी?
जो वादे हमने जनता के से किए थे उन्हें पूरा करने की कोशिश हम आगे भी करेंगे. चाहे वह बिजली की कीमतें घटाने का मामला हो, चाहे बिजली चोरी रोकने का मामला हो, गैरकानूनी कॉलोनियों को नियमित करने की बात हो, पानी का मुद्दा हो या फिर महिला सुरक्षा का मुद्दा, इन सभी वादों को हम पूरा करंेगे. बिजली पर हमने पहले ही केंद्र सरकार की तरफ से सब्सिडी दिलवाई है.
आज के दौर में चुनाव निर्वाचन क्षेत्रों के अलावा सोशल मीडिया के प्लेटफॉर्म पर भी लड़े जाते हैं. इस मामले में अरविंद केजरीवाल हमेशा बहुत तेज सिद्ध हुए हैं. उनकी तुलना में देखें तो सोशल मीडिया पर आपकी पहुंच बहुत सीमित दिखती है. यह सोची-समझी रणनीति है या फिर आप उनका मुकाबला नहीं कर पा रहे?
सोशल मीडिया, डिजिटल मीडिया, वेबसाइट आदि बहुत जरूरी तकनीकें हैं और इनका हर स्तर पर इस्तेमाल होना चाहिए. अब तक हमारी कोशिश यह थी कि पहले अपने संगठन को अच्छी तरह से मजबूत कर लिया जाय. इसके आगे की रणनीति हमने बना ली है. इसके तहत हम अपनी इंटरैक्टिव वेबसाइट को अगले एक या दो दिनों में शुरू करने वाले हैं. जहां तक आप अरविंद केजरीवाल के अभियान का जिक्र कर रहे हैं तो कई बार हमने देखा कि वे सिर्फ मीडिया का अटेंशन पाने के लिए गलत-सही ट्वीट करते रहते हैं, ऐसी-ऐसी बातें जिनका कोई सिर-पैर नहीं होता. उदाहरण के लिए वे खुद लिख रहे हैं कि मोदीजी फॉर पीएम, केजरीवाल फॉर सीएम. यह किस मानसिकता की राजनीति है. इसी तरह एक दिन उन्होंने ट्वीट कर दिया कि आज साढ़े ग्यारह बजे दिल्ली के उपराज्यपाल भाजपा को सरकार बनाने के लिए आमंत्रित कर रहे हैं. मुझे लगता है कि सोशल मीडिया का इस तरह ओछा इस्तेमाल करना गलत है. अगर इसका इस्तेमाल उसके सही अर्थों में हो तो बात ठीक है और मैं हमेशा यही कोशिश करता हूं.
पिछले दिनों स्वच्छ भारत अभियान के दौरान आपके साथ एक बड़ा विवाद जुड़ गया. जिस तरह से कचरा फैलाकर उसे साफ करने की रस्म निभाई गई उससे यह पूरा अभियान ही बेमायने लगने लगा है.
इंडिया इस्लामिक सेंटर में जो घटना हुई उस कार्यक्रम के बारे में लोगों को ठीक से जानकारी नहीं है. लोगों को उसे समझना होगा. दो-ढाई सौ लोगों ने मिलकर वह कार्यक्रम आयोजित किया था. उसमें सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज थे, तमाम वकील थे, दूसरी पार्टियों के नेता भी थे, मीनाक्षी लेखी भी थीं वहां. उन्हीं लोगों की तरह से मैं भी एक आमंत्रित सदस्य था. उसी कार्यक्रम में अपने संबोधन के दौरान मैंने कहा कि प्रधानमंत्रीजी का यह अभियान सिर्फ फोटो खिंचवाने का अवसर नहीं बनना चाहिए. इतने सारे आमंत्रित लोगों के बीच सिर्फ मुझे ही निशाना क्यों बनाया जा रहा है. जैसे तमाम मेहमान उस कार्यक्रम में झाड़ू लेकर पहुंचे थे वैसे ही मैं भी था. जब आप किसी सामाजिक कार्यक्रम में हिस्सा लेते हैं तो आप आयोजक के प्रति कोई अविश्वास लेकर नहीं जाते, आप यह सोचकर नहीं जाते की कोई आपके साथ वहां गड़बड़ी की जाएगी. पता नहीं यह कोई इंसानी गड़बड़ी थी या जानबूझकर किसी ने किया, मैं इस विवाद में नहीं पड़ना चाहता.
आपको लगता है कि किसी ने जानबूझकर आपको फंसाया है?
मैं इस मामले में कुछ भी नहीं कह सकता. हो सकता है कि किसी ने बदनाम करने के लिए ही ऐसा किया हो तभी वो सारी फोटो खिंचवाई गई हों. पर मुझे कुछ भी नहीं पता. आप यह देखिए कि इस कार्यक्रम में मेरी भूमिका क्या थी, मैं कोई आयोजक तो था नहीं इसके बावजूद मीडिया में सिर्फ मेरा ही नाम उछाला गया. यह बहुत दुखद है.
पिछले कुछ दिनों से देखा जा रहा है कि दिल्ली में सांप्रदायिक तनाव की घटनाएं बढ़ रही हैं. पिछले 15-20 सालों में इस तरह की चीजें दिल्ली में देखने-सुनने को नहीं मिलती थीं. बवाना में ताजिये को लेकर हुआ विवाद हो या त्रिलोकपुरी में हुआ दंगा. कुछ जगहों पर भाजपा नेताओं के नाम भी सामने आए हैं. चुनावों से पहले ही अचानक से ये तनाव क्यों बढ़ गए हैं?
देखिए त्रिलोकपुरी की जो घटना थी वह दुकान में शॉर्टसर्किट से लगी आग के बाद हुई. मैं दिल्ली पुलिस को बधाई देता हूं कि उन्होंने दो दिन के भीतर उसे काबू कर लिया. अब अगर इस पर राजनीति करनी हो तो वहां के विधायक तो आम आदमी पार्टी के हैं वे क्या कर रहे थे, उनकी क्या भूमिका थी. पर हम इस तरह की राजनीति में नहीं पड़ते. बवाना में हमारे विधायक हैं गुगन सिंह. मैंने उन्हें फोन करके कहा कि आप ताजिए को सही-सलामत निकलवाने में मदद कीजिए. दोनों पक्षों की सहमति और सद्भावना के साथ ताजिया निकलवाने की व्यवस्था हमने की. हमारी भूमिका दोनों ही मामलों में एकदम साफ थी कि किसी तरह मामलों को बढ़ने न दिया जाय और उसे समय रहते सुलझा लिया जाय.
आपकी व्यक्तिगत राजनीति की बात करते हैं. लंबे समय से आप संगठन में थे. पहली बार आप पार्षद बने थे. और अब राज्य के मुखिया की जिम्मेदारी भी आपके ऊपर आ गई है. संगठन और चुनावी राजनीति के बीच तालमेल कैसे बिठाते हैं. कहीं आपकी प्रदेश अध्यक्ष की जिम्मेदारी के पीछे पार्षद की जिम्मेदारियां नजरअंदाज तो नहीं हो रहीं.
मेरी जो पार्षद की जिम्मेदारियां हैं वो बखूबी पूरी हो रही हैं. कल ही मैं अपने इलाके की सभी आरडब्लूए अधिकारियों से मिला हूं. उनके साथ दो घंटे लंबा कार्यक्रम रहा मेरा. वो जिम्मेदारियां भी बखूबी पूरी हो रही हैं. आरडब्लूए के एक भी सदस्य ने अपने इलाके में किसी तरह की गड़बड़ी की शिकायत नहीं की. नियमित अंतराल पर उनके साथ मेरा संवाद होता रहता है. अपने चुनाव के दौरान मैंने लोगों से कहा था कि मैं आप लोगों को काम करने के लिए अपने घर नहीं बुलाऊंगा बल्कि मैं खुद आपके यहां आऊंगा. अंतिम बात यह है कि लोगों के काम हो जाने चाहिए बिना परेशान हुए. जहां तक मेरी जिम्मेदारी का सवाल है तो यह मल्टीटास्किंग का मामला है, और जिम्मेदारियां इन्हीं चीजों को ध्यान में रखकर दी जाती हैं. अगर हम यह भी नहीं कर सकते तो फिर इतनी बड़ी दिल्ली को कैसे संभालेंगे.
इसी जिम्मेदारी से जुड़ा एक सवाल है. आपके एक कार्यकर्ता हैं, वे एक एमसीडी इंस्पेक्टर को भद्दी भाषा में धमकी देते हुए सुने जा रहे हैं. ऐसे लोगों से आप कैसे निपटेंगे. अगर ऐसे कार्यकर्ता होंगे तो फिर भ्रष्टाचार जैसे मुद्दे पर पार्टी की बात का भरोसा कैसे करेगी जनता.
जिस ऑडियो की बात आप कर रहे हैं उसे मैंने सुना है. उसमें दो चीजें हैं. एक तो वे इस बात का विरोध कर रहे हैं कि अधिकारी वैध चीजों पर एक्शन ले रहे थे जबकि अवैध के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं कर रहे थे. इससे वे आपे के बाहर हो गए. दूसरा पक्ष है उनकी भाषा. जिस तरह की भाषा वे इस्तेमाल कर रहे थे उसकी मैं कड़े शब्दों में निंदा करता हूं. किसी भी सरकारी कर्मचारी के खिलाफ इस तरह की भाषा का इस्तेमाल नहीं होना चाहिए. हमारे कार्यकर्ता ने पार्टी के कड़े संदेश के बाद अपनी गलती के लिए सार्वजनिक रूप से माफी मांगी है और आगे से इस तरह का व्यवहार न करने की बात कही है. पार्टी इस तरह की चीजों का कतई समर्थन नहीं करती है.
चुनाव के बाद सतीष उपाध्याय के मुख्यमंत्री बनने की क्या संभावना है.
इस सवाल की आवश्यकता नहीं है. यह गैर जरूरी है. हमारा विधायक दल तय करेगा कि कौन उसका नेतृत्व करेगा.