मोदी से मुलाकात से आपकी राजनीति में क्या बदलाव आए हैं?
हमें चुनाव के नतीजों का इंतजार करना चाहिए और यह देखना चाहिए कि हमारी पार्टी का प्रदर्शन कैसा रहता है. इसी से पता चलेगा कि मोदी साहब के साथ मेरी मुलाकात फायदेमंद साबित हुई है या नुकसानदेह. मेरे समर्थक इस मुलाकात से खुश हैं. प्रधानमंत्री के साथ मेरी मुलाकात ने मुफ्ती और अब्दुल्ला को नाराज किया है. उस मुलाकात के बाद मुझे जो बराबरी का मौका मिला है उससे वे दुखी हैं. इससे पहले वे आसानी से मुझे आतंकवादी करार दे देते थे और इस बात ने प्रशासनिक और सुरक्षा मशीनरी को मेरे खिलाफ कर दिया. अब वे मेरे साथ वह सब नहीं कर सकते जो पहले करते थे. प्रधानमंत्री के साथ हुई मुलाकात ने मेरे प्रति विरोध की भावना को खत्म कर दिया है. एक वक्त था जब अपनी पत्नी के वीजा के लिए मैंने तत्कालीन गृहमंत्री पी चिदंबरम से मिलना चाहा था और मेरा अनुरोध दो साल तक लंबित रहा. नेशनल कांफ्रेंस, पीडीपी और कांग्रेस को उम्मीद नहीं थी कि अब ऐसा होगा. यह बात उनके भीतर असुरक्षा पैदा कर रही है.
अगर चुनाव में बढ़िया प्रदर्शन के बाद भाजपा आपको मुख्यमंत्री बनाने की पेशकश करती है तो आप क्या करेंगे?
मैं उनसे कहूंगा कि मैं बहुत सामान्य-सा आदमी हूं, मैं मुख्यमंत्री बनूंगा, लेकिन मैं सत्ता में आने के लिए वे सारे काम नहीं करूंगा जो अब्दुल्ला और मुफ्ती ने किया. मैं उनसे कहूंगा कि आइए मिलकर राज्य के सभी तीन क्षेत्रों के विकास के लिए काम करते हैं. लेकिन मैं राज्य के हित और अपनी राजनीति के साथ समझौता नहीं करूंगा. और जो लोग मुझ पर इल्जाम लगाते हैं कि मैं भाजपा के एजेंडे को आगे बढ़ा रहा हूं, वे पहले अपने अंदर झांककर देखें कि उन्होंने सत्ता के लिए क्या-क्या किया है.
मैं मोदी साहब से कुछ मिनट के लिए मिला और मुफ्ती साहब चेतावनी दे रहे हैं कि अनुच्छेद 370 को खतरा है. मेरी मीडिया से यही शिकायत है कि कोई भी अनुच्छेद 370 हटाने की बात नहीं कर रहा है. राज्य की राजनीति में जो गिरावट आई है उसके लिए मुफ्ती जिम्मेदार नहीं हैं? क्या उमर अब्दुल्ला का परिवार इस बर्बादी में शामिल नहीं था? तो फिर मीडिया उन्हें अनुच्छेद 370 के रक्षक के तौर पर क्यों पेश कर रही है? अगर अनुच्छेद 370 कोई 10 मंजिला इमारत थी, तो आज वह महज एक मंजिला रह गई है. ये पार्टियां केवल डर पैदा कर रही हैं. कुछ लोग भयभीत भी हैं. उनको पता ही नहीं है कि दरअसल डरने की बात है भी या नहीं. मुफ्ती और अब्दुल्ला इस हालत के लिए जिम्मेदार हैं.
आपकी राजनीति क्या है? अलगाववाद को छोड़कर मुख्यधारा की राजनीति में आने के बाद भी लोगों को साफ समझ में नहीं आ रहा है. कश्मीर समस्या के हल के लिए आपने जो ‘अचीवेबल नेशनहुड’ का फार्मूला तय किया था, उसी के हिसाब से राजनीति करेंगे?
जी हां मैं ‘अचीवेबल नेशनहुड’ से प्रभावित रहूंगा.बल्कि इसके हर शब्द से. लेकिन मुझे यह भी पता है कि उसमें लिखे शब्द ईश्वर के लिखे नहीं हैं. मेरी इच्छा है कि एक बहस शुरू हो. एक बार बहस पैदा हो जाए तो फिर हम आम सहमति से हल निकाल सकते हैं. ‘अचीवेबल नेशनहुड’ के आर्थिक पहलू एक सभ्य समाज के लिए बेहद व्यावहारिक हैं. हमें खुद को अंदर और बाहर से आर्थिक तौर पर आजाद करना होगा. मैं लोगों का आर्थिक सशक्तीकरण चाहता हूं. मेरा तात्पर्य है, केंद्र हमें आर्थिक रियायतें दे न कि खैरात. जहां तक बात राज्य के राजनीतिक सशक्तीकरण की है, तो हम केंद्र और राज्य के बीच सत्ता में साझेदारी के समझौते और राज्य की संपन्नता के बारे में बात कर रहे हैं. मेरा मानना है कि राज्य में संपन्नता और सक्षमता होनी चाहिए. मैं आंतरिक स्वायत्तता की बात नहीं कर रहा हूं.
आपकी पत्नी आस्मा जो जम्मू कश्मीर लिबरेशन फ्रंट (जेकेएलएफ) के संस्थापक अमानुल्ला खां की बेटी और एक पाकिस्तानी नागरिक हैं, मोदी के साथ आपकी मुलाकात पर उनकी क्या प्रतिक्रिया रही?
वह मुझसे क्या कहेंगी? उनके अपने प्रधानमंत्री मोदी से मिलते हैं. प्रधानमंत्री से मिलना कोई पाप नहीं है. मुफ्ती भी उनसे मिलते हैं, अब्दुल्ला भी मिलते हैं और उनको इसमें कोई शर्म नहीं है. इसका असर उनकी राजनीति पर नहीं दिखता.
इस चुनाव में आपको लेकर जो विवाद उठे हैं उन्हें देखते हुए क्या आप अपनी सुरक्षा को लेकर चिंतित हैं?
जी हां, मैं डर महसूस करता हूं. इस चुनाव से पहले कभी मुझे लेकर इतनी नकारात्मक बातचीत नहीं हुई. मैं हमेशा अपने समर्थकों के बीच रहा. कुछ भी हो सकता है. कुछ खुफिया खबरें भी हैं. यही वजह है कि मैंने कम से कम प्रचार अभियान के दिनों में जैमर लगाने का अनुरोध किया था लेकिन वह मिल नहीं सका.