इस वर्ष बिहार में आयी प्रलयंकारी बाढ ने लाखों लोगों को अपनी बसी बसायी दुनिया को उजडता छोड पलायन करने पर मजबूर कर दिया है. हजारों लोग कोसी की धार में डूब गये मगर सरकारी आंकडे 100 से भी कम लोगों के ही मरने की पुष्टि करते हैं. अनगिनत लोग भूख और जल संक्रमण की वजह से मौत के कगार पर हैं लेकिन राज्य सरकार का आपदा प्रबंधन विभाग, आंकड़ों में आपदा प्रबंधन करने में लगा हुआ है.
भारत-नेपाल सीमा पर स्थित वीरपुर में कोसी तटबंध के सुरक्षार्थ पदस्थापित बिहार सरकार के अधिकारी और मुख्य अभियंता ई सत्यनारायण ने खुलासा किया है कि कुशहा स्थित तटबंध में कटाव के बारे में उन्होंने राज्य सरकार के महत्वपूर्ण अधिकारियों और काठमांडु में कार्यरत लायजनिंग पदाधिकारी अरूण कुमार सिंह को दिनांक 6 अगस्त 2008 और दिनांक 9 अगस्त 2008 को पत्र संख्या 2942 द्वारा सूचित किया था. अपने पत्र में श्री सत्यनारायण ने इस बात का जिक्र किया था कि कोसी में बढ रहे जल आवेग के कारण कटाव जारी हो गया है. उन्होंने पत्र में ये भी लिखा था कि नेपाली मजदूरों द्वारा मनमाने ढंग से मजदूरी मांगे जाने एवं उनके द्वारा भारतीय मजदूरों एवं अभियंताओं को भगाये जाने के चलते तटबंध पर सुरक्षात्मक कार्य प्रभावित हो रहे हैं. उन्होंने यह भी गुहार लगाई थी कि नेपाल सरकार द्वारा आवश्यक सुरक्षा उपलब्ध करवाये जाने का इंतज़ाम किया जाए ताकि तटबंध पर सुरक्षा कार्य संपन्न कराया जा सके. इस त्राहिमाम संदेश को भेजे जाने के बाद भी सरकारी तंत्र कुंभकर्णी निद्रा में सोता रहा.
संदेश पर अमल करना तो दूर राज्य सरकार ने उल्टे इस अनुभवी अभियंता को ही बिना किसी कारण 17 अगस्त 2008 को स्थानांतरित कर दिया. यानी कि ऐन उस वक्त जब वे इस समस्या से जुझने का प्रयास कर रहे थे रहे थे.
इसके बाद दिनांक 14 एवं 15 अगस्त 2008 को भी श्री सत्यनारायण ने पुन: ये संदेश टेलीग्राम के ज़रिए मुख्य अभियंता, जल संसाधन विभाग, बिहार सरकार, बाढ पर्यवेक्षक(पटना), बाढ पर्यवेक्षक(वीरपुर), सरहसा कमिश्नर, जिला समाहर्ता, सुपौल, अधीक्षण अभियंता(बाढ नियंत्रण एवं निगरानी), अधीक्षण अभियंता(वीरपुर), कार्यपालक अभियंता(पूर्वी तटबंध, वीरपुर), समन्वयक(बाढ कार्य, वीरपुर) और नेपाल के विराटनगर में पदस्थापित लायजनिंग आफिसर को भेजा. परंतु इतने महत्वपूर्ण और अति संवेदनशील मुद्दे पर इनमें से किसी ने भी ध्यान नहीं किया. अपने एसओएस संदेश में उन्होंने लिखा ‘कोसी में तीव्र गति से बढ रहे जल आवेग के कारण, 12.10 और 12.90 किमी के मध्य तटबंध में बुरी तरह कटाव जारी है. जो बाढ नियंत्रण कार्य किये जा रहे हैं वे अप्रभावी हैं और ऐसी आशंका है कि यदि जल्द ही कुछ न किया गया तो नदी तटबंध को तोड देगी. अत: आवश्यक कदम उठाये जायें, अन्यथा कोसी के इस भयंकर रूप को देखते हुए महाप्रलय की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता.’
श्री सत्यनारायण द्वारा भेजे संदेश पर अमल करना तो दूर राज्य सरकार ने उल्टे इस अनुभवी अभियंता को ही बिना किसी कारण 17 अगस्त 2008 को स्थानांतरित कर दिया. यानी कि ऐन उस वक्त जब वे इस समस्या से जुझने का प्रयास कर रहे थे रहे थे. ठीक अगले ही दिन श्री सत्यनारायण ने जिन बिंदुओं पर कटाव की बात कही थी, वहां 400 मीटर लंबा तटबंध टूट गया. यही नहीं, ठीक 18 अगस्त 2008 को ही वीरपुर में पदस्थापित एसडीओ की सेवानिवृति के कारण घटनास्थल के निरीक्षण की खानापूर्ति महज़ एक कनिष्ठ अभियंता द्वारा पूरी कर दी गई.
अपनी गलती मानने के बजाय जल संसाधन विभाग के मंत्री श्री बिजेन्द्र प्रसाद यादव का कहना है कि उन्हें इस संबंध में कोई पत्र ही प्राप्त नहीं हुआ. उन्हें इस संबंध में जानकारी दिनांक 17 अगस्त को हुई और उसी दिन स्थिति की भयावहता को देखते हुए दिल्ली गये और वहां विदेश मंत्री श्री प्रणब मुखर्जी से मिलकर नेपाल सरकार के सहयोग के लिए ज़रूरी कदम उठाए जाने की मांग की. मगर वास्तविकता यह है कि तटबंद में कटाव कोई आकस्मिक घटना नहीं बल्कि उसे लेकर पहले से ही आशंका जताई जा रही थी. इस आशंका के पीछे सबसे मुख्य कारण था वहां का रखरखाव. इस संबंध में जीएफसीसी और कोशी उच्च स्तरीय कमेटी द्वारा की गई अनुशंसा पर 1 लाख 20 हजार रूपये की राशि जारी भी की गयी, लेकिन कोई भी कार्य नहीं कराया गया. न तो बोल्डर(पानी के बडे-बडे पत्थर), लोहे के क्रेट और न ही तटबंध के किनारों पर बालू से भरे बोरे ही डाले गये. अब ऐसे में यदि तटबंध टूटा तो इसके लिए कौन जिम्मेवार है, यह ई सत्यनाराण के इस खुलासे से स्पष्ट हो जाता है.
वर्ष 2005 में पारित आपदा प्रबंधन अधिनियम में यह स्पष्ट वर्णित है कि बाढ जैसी आपदाओं के लिए तैयारी पहले ही की जानी चाहिए. मसलन ईधन का संग्रह, खाद्यान्न का भंडारण, आवश्यक दवाइयों का संग्रहण और बाढ से लोगों को निकालने के लिए पर्याप्त संख्या में नावों का इंतजाम. मगर इनमें से एक भी कार्य बिहार सरकार के आपदा प्रबंधन विभाग ने समय पर नहीं किए. बहुतेरे मल्लाह जो बाढ प्रभावित इलाके में रहते हैं तथा जिन्हें भौगोलिक स्थिति का पूर्ण ज्ञान है, उनसे भी समय रहते कोई संपर्क नहीं किया गया. जब बाढ आ गयी तो प्रशासन ने पहले तो उन्हें ढूंढ़ने में वक्त ज़ाया किया और फिर उन्हें जबरन पकड कर, मुफ्त में ही राहत कार्यों में लगाया जा रहा है. सरकार ने राहत कार्य में दिये जाने वाले सत्तू और चिउडा की खरीद भी पहले से नहीं कर रखी थी फलत: खुले बाजार में मिलने वाले हर प्रकार के खाद्यान्न की खरीद की जा रही है, जो कि मंहगा तो है ही साथ ही इसके खराब होने की शिकायतें भी आ रही हैं. हद तो यह है कि जो हेलीकॉप्टर बाढ राहत कार्य में लगे हैं, उन्हें ईंधन के लिए या तो पटना जाना पडता है या फिर कोलकाता. इस प्रकार बाढ राहत कार्य से ज्यादा ईंधन तो ईंधन भरवाने की यात्रा में ही खर्च हो जाता है.
नवल किशोर कुमार
पटना के रहने वाले नवल किशोर, तहलका के पाठक हैं और विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में समय-समय पर इनके लेख प्रकाशित होते रहते हैं.