ममता को अमर सिंह ने कहा

औघट घाट

घाटे पानी सब भरे औघट भरे न कोय।

औघट घाट कबीर का भरे सो निर्मल होय।।

साधो, कल मनसुखा एक अखबार लेकर आया और एक फोटू दिखाकर कहने लगा देख लो अब यह होने लगा है। ममता बनर्जी की ख़ैर नहीं है। उनकी बगल में आकर अमर सिंह बैठ गए हैं। फिर फोटू में दिखाया कि अमर सिंह कौन हैं। हमें फिर भी समझ नहीं आया तो कहा कि ये जो अमर सिंह बड़े उस्ताद हैं। इनने अमेरिका का परमाणु करार समाजवादी पार्टी के अकेले नेता मुलायम सिंह यादव को बिकवा दिया। और फिर मनमोहन सिंह और सोनिया गांधी से बात करके उनको लोकसभा का बहुमत खरिदवा दिया। जहां जाते हैं सौदेबाजी और खरीदी-बिक्री करवाते हैं। अपनी दलाली जेब में रखते हैं। और अगले सौदे के लिए निकल जाते हैं। जहं जहं पांव पड़े संतन के वहं वहं आरमपार।

हमारी नासमझी पर ध्यान मत देना साधो। हमारी समझ में फिर भी नहीं आया कि इससे बेचारी ममता की ख़ैर क्यों नहीं है। वह तो बावरी कभी भी ख़ैर की तलाश में नहीं रहती। अमन चैन के लिए जन्मी ही नहीं है वह महामाया। उसे तो हमेशा एक लड़ाई, एक आंदोलन की जरूरत रहती है। उसके बिना वह जी ही नहीं सकती। हमारा सार्वजनिक जीवन ऐसी ही आंदोलन संतोषी महिलाओं के होने के कारण गुलज़ार रहता है। नहीं तो मनमोहन सिंह सब को ग्रोथ की घुट्टी पिला कर काम में लगा देते। भूखा-नंगा भी तब मुकेश अंबानी होने के सपने में अफीम खाए पड़ा रहता और ग्रोथ रेट बारह से पंद्रह प्रतिशत हो जाती। ग्रोथ रेट भूखे नंगे को मुकेश अंबानी होने का सपना दिखा कर अफीम खाने में लगाने से बढ़ती है। ममता बनर्जी हों कि मेधा पाटकरये महादेवियां भूखों-नंगों को ग्रोथ की अफीम खाने नहीं देती। उन्हें लगातार जगाए रखकर लड़ाए रहती है। ये लड़ाई और आंदोलन से देश बनाने निकली हैं। इनका कोई क्या बिगाड़ लेगा?

मनसुखा ने तब समझाया साधो कि ये अमर सिंह मामूली प्राणी नहीं है। ये ममता को कभी भी समझा सकते हैं कि बुद्धदेव और रतन टाटा से लड़ने में क्या रखा है। बुद्धदेव, युद्धदेव क्या संग्राम सिंह भी हों जाएं तो प्रकाश करात उनको प्रधानमंत्री नहीं होने देंगे। उनकी माकपा ने ज्योति बसु को प्रधानमंत्री नहीं होने दिया जबकि विश्वनाथ प्रताप सिंह फूलों की थाली में दीया जलाए तिलक करके आरती उतारने को खड़े थे। बुद्धदेव रहेंगे तो भट्टाचार्जी ही। और रतन टाटा भले ही एक लाख की चमत्कारी नैनो बना लें वे कभी अनिल या मुकेश अंबानी को अमीरी में मात नहीं दे सकते। सिंगूर की 400 एकड़ ज़मीन के लिए रतन टाटा और बुद्धदेव भट्टाचार्जी से क्या लड़ना। सिंगूर के गरीब किसानों को गंगा-जमना के दोआब की आठ सौ एकड़ ज़मीन हम मुलायम सिंह से दिलवा देंगे।

छोड़ो ये लड़ाई और आओ उत्तर प्रदेश में। वहां मायावती गरीब किसानों पर जुल्म ढा रही हैं। उनकी उपजाऊ ज़मीन लेकर बिल्डरों और उद्योगपतियों को दे रही है। चुटकी भर मुआवजा देकर पेटी-पेटी भर के नोट ले रही हैं। खेती और किसानों की असली लड़ाई तो उत्तर प्रदेश में मायावती से है। मायावती प्रधानमंत्री हो के रहेंगी। खुद प्रकाश करात उनका राजतिलक करेंगे। तब खेती किसानी का क्या होगा। देश बिल्डरों को बिक जाएगा और बिल्डरों का पैसा नोट गिनने की मशीनों से हो कर स्विस बैंको में जमा होगा। दलित की बेटी के प्रधानमंत्री होते ही भारत धन्य हो जाएगा। न खेती की जरूरत रहेगी न उद्योग की। न लड़ाई की न आंदोलन की। उस देश में ममता दी आप कैसे जिएंगी।

इसलिए ममता दी, अमर सिंह कहेंगे सिंगूर के हर किसान को एक डीलक्स नैनो दिलवाओ। उमर भर पेट्रोल की सप्लाई मुकेश अंबानी से करवाओ। बुद्धदेव को नंदीग्राम से चुनाव जितवाओ। और आप खुद आ कर घोड़ी बछेड़ा में किसानों के लिए मायावती से संग्राम करो। ममता भर्सेज़ मायावती। मुलायम नहीं हुए तो अमर सिंह प्रधानमंत्री होंगे। साधो तुम देखते रहना।

प्रभाष जोशी

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