तूफान की प्रस्तावना

पिछले साल दिसंबर में देश के सबसे भयावह ईसाई विरोधी दंगो का गवाह बन चुका उड़ीसा का कंधमाल ज़िला सांप्रदायिकता के सुसुप्त ज्वालामुखी के मुहाने पर बैठा हुआ था. बीते दिनों विश्व हिंदु परिषद के वरिष्ठ नेता लक्ष्मणानंद सरस्वती और उनके तीन सहयोगियों की हत्या के बाद ये ज्वालामुखी एक बार फिर से फट पड़ा.

85 वर्षीय लक्ष्मणानंद सरस्वती उड़ीसा में ईसाई बन गए आदिवासियों को दोबारा हिंदू धर्म में लाने के अभियान की अगुवाई कर रहे थे. कंधमाल ज़िले के जलासपेटा गांव में स्थित एक बालिका आश्रम में वो मेहमान बनकर आए हुए थे. 24 अगस्त की शाम कुछ हथियारबंद लोग आश्रम में घुसे और अंधाधुंध गोलियां बरसानी शुरू कर दी. गोलीबारी में लक्ष्मणानंद के अलावा दो महिलाओं और एक बच्चे की भी घटनास्थल पर ही मौत हो गई. अटकलें लगाई जा रहीं थीं कि हत्यारे माओवादी थे—बाद में माओवादियों के एक पत्र से ये और भी साफ हो गया.

पिछले साल के दंगों के बाद से ईसाई समूह जहां विहिप को इसके लिए जिम्मेदार ठहरा रहे थे वहीं लक्ष्मणानंद स्थानीय माओवादियों को सांप्रदायिक तनाव फैलाने के लिए ज़िम्मेदार बता रहे थे.

लेकिन वीएचपी ने कंधमाल के ईसाइयों पर आरोप थोपने में तनिक भी देरी नहीं लगाई. साल 2007 के अंत में नफरत की जिस आग ने कंधमाल को अपनी गिरफ्त में ले लिया था एक बार फिर से वही सब कुछ घटने लगा. उस समय हुई हिंसा के केंद्र में भी लक्ष्मणानंद ही थे. क्रिसमस के अवसर पर उनके ऊपर हमले की अफवाह से दंगे भड़क उठे थे जिनमें चार लोगों की मौत हो गई और 800 घरों को आग के हवाले कर दिया गया. उस हिंसा में प्रभावित ज्यादातर लोग गरीबी रेखा से नीचे जीवन बिताने वाले निरीह जंगली आदिवासी थे. लक्ष्मणानंद की हत्या के बाद शुरू हुई हिंसा की ताज़ा घटनाओं में भी अब तक 20 से ज़्यादा लोगों की मौत हो चुकी है और दसियों गिरजाघरों और सैकड़ों घरों को तहस-नहस किया जा चुका है. कई सड़क और रेल मार्ग समय-समय पर अवरुद्ध किए जा रहे हैं और कंधमाल में कई दिनों से निषेधाज्ञा लागू होने के साथ-साथ पूरे उड़ीसा में हाई अलर्ट घोषित किया गया है.

विहिप की केंद्रीय सलाहकार समिति के सदस्य लक्ष्मणानंद पिछले कुछ दिनों से अपने ऊपर हमले की आशंका व्यक्त कर रहे थे. बीते शुक्रवार को तुमुदिबंधा थाने में जा कर उन्होंने अपने लिए सुरक्षा की मांग भी की थी. ये तो नहीं कहा जा सकता कि उन्हें किससे ख़तरा था लेकिन पिछले साल के दंगों के बाद से ईसाई समूह जहां विहिप को इसके लिए जिम्मेदार ठहरा रहे थे वहीं लक्ष्मणानंद स्थानीय माओवादियों को सांप्रदायिक तनाव फैलाने के लिए ज़िम्मेदार बता रहे थे. तुमुदिबंधा आने से ठीक पहले वो अमरनाथ श्राइन बोर्ड ज़मीन मसले को लेकर चल रहे राज्य व्यापी आंदोलन में बढ़ चढ़ कर हिस्सा ले रहे थे.

बुरी तरह से कंगाल कालाहांडी ज़िले से लगता कंधमाल गरीबी के मामले में पड़ोसी ज़िले से होड़ करता दिखता हैं. ज़िले की जनसंख्या 6 लाख है जिनमें से आधी से ज्यादा आबादी कंध आदिवासियों (मुख्यत: हिंदू) की है. लगभग 18 फीसदी आबादी पनोस दलितों की है जिनमें से आधे से ज़्यादा ईसाई हैं. लिहाजा इन दोनों समुदायों के बीच के सांप्रदायिक संघर्ष में आदिवासी बनाम दलित का एक और आयाम जुड़ कर आग में घी का काम करता है. दोनों ही समुदाय आरक्षण की कोख से पैदा हुई स्पर्धा में एक दूसरे को मात देने की फिराक में रहते हैं. दोनों के बीच हिंसक स्पर्धा के बीज 20 साल पहले ही पड़ गए थे. उधर विहिप का धर्मान्तरण विरोधी अभियान चार दशक पुराना है. सरस्वती का मुख्य आश्रम कंधमाल के चकपाड़ में 60 के दशक के अंत में स्थापित हुआ था. ये तभी से ईसाई विरोधी भावनाओं को सींचता आ रहा है.

आने वाले दिन सिर्फ कंधमाल ही नहीं बल्कि पूरे उड़ीसा के लिए काफी तनाव भरे रहने वाले है. राज्य के नेताओं, नौकरशाहों और पुलिस पर आरोप लग रहे हैं कि उनके कैडरों में सांप्रदायिक भावनाएं गहराई तक जड़ें जमा चुकी है. आने वाले समय में सरस्वती को एक शहीद के रूप में याद किया जाएगा जबकि राज्य के अल्पसंख्यक भय के साए में जीने को मजबूर होंगे. राज्य को विनाश की गहराइयों में जाने से रोकने के लिए मुख्यमंत्री नवीन पटनायक की इच्छाशक्ति के लिए ये अग्निपरीक्षा की घड़ी है.

विभूति पति