1) माधुरी लौटी है वापस, ग्लिसरीन लगा कर रो रही है.. हॉल के लोग अँधेरे में भी जगे हुए हैं… सुनते हैं ये वही लोग हैं, जो हर साल बिहार की बाढ़ या विदर्भ की आत्महत्याओं का दौर वापस आने पर भी, रिमोट से चैनल बदल कर, देखते हैं सा-रे-गा-मा-पा देश में अँधेरा पसरा है… माहौल के अँधेरे में भी लोग नही जग पाते…. मुझे "टीस" होती है…
2) दोस्तो से उधार लेकर चल जाते हैं महीने के आखिरी दिन, तुमने एक हंसी उधार दी थी, आज तलक साबुत पड़ी है काश! जिन्दगी का आख़िरी वक़्त जल्दी से आ धमके…
3) पत्नी ने ऑफिस से घर आते ही , मांज दिए हैं सभी बरतन, पति अभी घर में घुसा ही है, झल्ला रहा है पत्नी पर…
4) वो चार साल से दिल्ली में है, बारह बजे सो कर उठता है… मैं एक साल से दिल्ली आया हूँ, उठ जाता हूँ अहले सुबह… एक ही कमरे में सूरज दोगला हो गया है…
5) सड़क पर जल उठी लाल बत्ती, एक भूखा, मासूम हाथ काले शीशे के भीतर घुसा, भीतर बैठे कुत्ते ने काट खाया हाथ, कब, कैसे पेश आना है, ख़ूब समझते हैं संभ्रांत कुत्ते…
6) जिन्दगी में कुछ भी नया नहीं घटता, फिर भी जीते हैं रोज़, अखबार में भी रोज़ होता है वही सब, मैं भी हो रहा हूँ इकठ्ठा, रद्दी की तरह…
7) खचाखच भरी बस, बुर्के के भीतर पसीने से तर लड़की, मैं सोचता हूँ- ग्लोबल वार्मिंग पर बहस ज़रूरी है…
8) लैंप-पोस्ट की रौशनी में भी, बहुत काली है आज की रात… वो तारा, जिसमें मैं तुम्हे देखता था, आज टूट कर गिरा है…
9) नेता विकास की बात करता है, आम आदमी मुग्ध होता है, वो इस बार फसलें बोता है, और सपने भी… फसलें उग आती हैं, सपने मुरझा जाते हैं… आम आदमी आत्महत्या करता है, नेता अब भी विकास की बात करता है, किसी और गाँव में…
10) भीषण नरसंहार के बाद, जब सान्तवना की बारी आई, देश के कोने-कोने से, नेताओं की गाड़ी आई…
11) नेता चिल्लाता है, सोचता है सच बोल रहा है… जनता बहरी होकर सुनती है… तालियाँ बजती हैं… नेता बोलता जाता है तालियों के लालच में… लालची नेताओं के लिए जनता जिम्मेदार है…
12) मैंने शब्द रच डाले, लोगों ने अपने-अपने अर्थ निकाले, वाह-वाह कर उठे, तुम्हारी दी हुई "टीस" मेरी सबसे बहुमूल्य निधि…
13) झुक कर पाँव छूता हूँ, तो लोग मजहबी समझते हैं… अल्पसंख्यकों की राजनीति में मशगूल देश में, कौन समझता है, बहुसंख्यक होने की टीस…
14) वह बिहार से एम.ए पास है… बड़े बाप का बेटा है, उसे एक ही टीस है… कि उसने अगर दिल्ली से दसवीं तक भी पढ़ा होता…. बोल पाता बाजारू भाषा फर्राटे से, कर पाता कॉल सेंटर में इज्ज़त से चौकीदारी…
15) साल का आख़िरी दिन है, आओ हिसाब कर लें, तुम्हारी कितनी मुस्कुराहटें मेरे पास हैं, एक छुअन भी है… एक वादा भी (कि तुम कभी नही भुलोगी मुझे) सब रख लो…वादा मेरे पास ही रहने दो… नए साल का तोहफा जानकर…
निखिल आनंद गिरि |
निखिल आनंद गिरि, एक निजी न्यूज़ चैनल में पत्रकार हैं.
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