63 वर्षीय थांगजम खुमानलीमा ने अपनी बेटी की मौत के चार सालों बाद, अब जाकर उसके अंतिम संस्कार की रस्में पूरी की हैं. इंफाल की रहने वालीं खुमानलीमा की बेटी थांगजम मनोरमा को 10 जुलाई 2004 को असम राइफल्स के कुछ जवान घर से उठा कर ले गए थे. अगले दिन 32 वर्षीय मनोरमा का गोलियों से छत-विक्षत शव, उनके घर के पास ही पड़ा मिला था. इसके बाद राज्य की तमाम जनता और राजनैतिक-सामाजिक संगठन, सशस्त्र बल विशेषाधिकार अधिनियम को हटाने की मांग को लेकर सड़कों पर उतर आए थे. इसे लेकर मणिपुर कई महीनों तक हिंसा की आग में जलता रहा. लोगों में इतना रोष था कि असम राइफल्स के मुख्यालय, कांगला फोर्ट के सामने इसे लेकर 12 महिलाओं ने पूरी तरह नग्न होकर प्रदर्शन किया था.
आज भी खुमानलीमा अचानक ही रातों को उठकर चिल्लाने लगती हैं- मोनो आ रही है! मोनो आ रही है! अपनी लाड़ली बेटी थांगजम मनोरमा को वो लाड़ से मोनो ही बुलाती थीं.
अंतिम संस्कार में देरी की वजह पूछने पर वो सिर्फ इतना कहती हैं कि इस मसले पर कुछ भी कहना बहुत दर्द देता है. मनोरमा के भाई थांगजम दोरेन्द्र बताते हैं, “मेरी मां को लगता है कि वो अब बेहद कमजोर और बूढ़ी हो गई है इसलिए वो मरने से पहले अंतिम संस्कार की सारी रस्में पूरी करना चाहती थीं.” इसलिए, इस 11 जुलाई को मनोरमा के बड़े भाई थांगजम मोडन ने अपनी बहन की आत्मा की शांति के लिए उसकी सांकेतिक चिता को मुखाग्नि दी.
“मनोरमा अक्सर मेरे सपनों में आती है. उसके बाल बिखरे होते हैं. वो मुझसे खाना और पानी मांगती है. ऐसा लगता है कि जैसे वो एक अर्से से सोई नहीं है.”
दोरेन्द्र को आज भी वो रात अच्छे से याद है जब उसकी बहन को असम राइफल्स के जवान उठा कर ले गए थे, वो कहते हैं, “वो शनिवार की रात थी. करीब आधी रात को वो लोग आए और मेरी बहन के बारे में पूछने लगे. उनके पास उसका अरेस्ट वारंट भी था. उन्होंने कहा कि वो उसे सुबह तक छोड़ देंगे. लेकिन जब अगले दिन घर के पास से उसकी लाश मिली तो एफआईआर दर्ज करने के बाद पुलिस ने उसे पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया. मां ने उसके शव को तब तक लेने से मना कर दिया जब तक कि उसके गुनाहगारों को सजा नहीं दे दी जाती. इसके बाद पुलिस ने शव को लावारिस घोषित कर उसका अंतिम संस्कार कर दिया.
बेटी की फोटो के पास उकड़ू बैठीं खुमानलीमा कहती हैं, “मनोरमा अक्सर मेरे सपनों में आती है. उसके बाल बिखरे होते हैं. वो मुझसे खाना और पानी मांगती है. ऐसा लगता है कि जैसे वो एक अर्से से सोई नहीं है.”
शायद यही वजह थी कि न्याय न मिलने पर भी खुमानलीमा ने अपनी बेटी की अंतिम रस्मों को पूरा कर दिया. आखिर कब तक एक मां अपनी बेटी को इस हालत में देख सकती है! फिर चाहे ऐसा सपने में ही क्यों न हो!
टैरेसा रहमान