भारत और पाकिस्तान, दोनों देश कश्मीर मसले पर ज्यादा कठोर रुख अपनाने की नीति पर चलते रहे हैं. सूबे में भ्रष्टाचार, विकास, बिजली या रोजगार से जुड़ी दिक्कतों को दूर करने की बजाय आप कश्मीर पर कड़ा रुख बनाए रखना चाहते हैं. लेकिन ऐसा करके हमने जनता को आंदोलन के लिए मजबूर कर दिया है. यह वक्त इस तरफ ध्यान देने का है कि जम्मू और कश्मीर में क्या होना चाहिए. यदि हम आगे बढ़ने को तैयार हैं तो देश की राजनीतिक व्यवस्था में इस बात की पूरी गुंजाइश है कि कश्मीरी लोगों की जरूरतों और उनकी इच्छाओं को पूरा किया जा सके. पीपल्स डेमोक्रेटिक पार्टी चाहती है कि भारत-पाक सरहद को बेमानी बनाते हुए दोनों कश्मीर एक कर दिए जाएं. साथ ही अन्य बाध्यताएं भी दूर की जाएं. मसलन हम यहां भारत और पाकिस्तान दोनों देश की मुद्रा चला सकते हैं.
हम एक संयुक्त विधान परिषद का गठन कर सकते हैं जिसमें दोनों तरफ के सदस्य हों. नई दिल्ली अपनी तरफ से पांच सदस्यों को नामांकित कर सकती है, पाकिस्तान अपनी तरफ वाले कश्मीर से
हम एक ऐसा संयुक्त तंत्र बना सकते हैं जहां दोनों तरफ के प्रतिनिधि मिलकर एक सलाहकार परिषद की तरह काम कर सकें. भले वे कानूनी मसलों पर बात न करें पर आम कश्मीरियों की दोनों ओर के कश्मीरियों को साथ देखने की इच्छा तो पूरी हो ही जाएगी. हमें दोनों तरफ के कश्मीर को जोड़ने वाले रास्तों को भी खोलना चाहिए. कश्मीर की भौगोलिक स्थिति काफी अच्छी है. पहले कश्मीर से गुजरने वाले रास्ते मध्य एशिया, दक्षिण एशिया सहित चीन तक जाते थे, लेकिन सेना के आने के बाद ये सारे बंद कर दिए गए. सड़क मार्ग से हम सिर्फ नई दिल्ली से जुड़े हुए हैं लेकिन सर्दियों में वह भी बंद हो जाता है. कश्मीर की जनता चाहती है कि ये सारे रास्ते खोले जाएं.
हम सरहद पार के कश्मीर को भी देश का हिस्सा कहते हैं और इसलिए हमारी विधान सभा में उनके लिए कई सीटें आरक्षित हैं. तो हम एक संयुक्त विधान परिषद का गठन कर सकते हैं जिसमें दोनों तरफ के सदस्य हों. नई दिल्ली अपनी तरफ से पांच सदस्यों को नामांकित कर सकती है, पाकिस्तान अपनी तरफ वाले कश्मीर से. इस परिषद को सलाहकार की भूमिका अदा करने दी जाए, यह प्रतीकात्मक रूप से कश्मीर का एकीकरण होगा. इससे हमारी संप्रभुता पर कोई असर नही पड़ेगा क्योंकि हम पाकिस्तान प्रशासित कश्मीर को अपना ही हिस्सा मानते रहे हैं. इस तरह जम्मू और कश्मीर सार्क सहयोग की एक मिसाल बन जाएगा. और यह सब भारतीय संविधान के दायरे में ही होगा. इसके बाद आपको सिर्फ एक ही काम करना है, कश्मीर के लिए सारी दुनिया को खोल देना. यहां वीजा कार्यालय खोले जा सकते हैं ताकि अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा होने पर हम यहां से सीधे ही कहीं भी जा सकें. इन उपायों से कश्मीरी आवाम एक तरह की आजादी महसूस करेगी.
आप उन्हें तकनीकी रूप से आजादी नहीं दे सकते, लेकिन देश की संप्रभुता से समझौता किए बगैर हम जो कर सकते हैं वह तो करना चाहिए. दूसरी जरूरी बात है आर्थिक आत्मनिर्भरता. हमें लगता है कि सिंधु जल संधि में हमारे साथ भेदभाव बरता गया है. हम इसे रद्द नहीं कर सकते क्योंकि हमारे देश और पाकिस्तान दोनों को इससे फायदा हो रहा है. लेकिन हमारे देश को हमें हो रहे नुकसान की भरपाई करनी चाहिए. हमारे पास संसाधनों के नाम पर सिर्फ जलस्रोत हैं और इनका उपयोग न कर पाने की वजह से हर साल हमें 50 हजार करोड़ रुपए का नुकसान होता है. स्वशासन का मतलब सत्ता का विकेंद्रीकरण भी है, हम चाहते हैं कि जम्मू, लद्दाख और लेह को भी बराबर का फायदा मिले. हम जम्मू और कश्मीर का एकीकरण चाहते हैं. यदि प्रदेश का राज्यपाल जम्मू से होगा तो वहां के लोगों को सत्ता की भागीदारी का एहसास होगा.
संविधान की धारा 356 को हटाया जाना चाहिए. यदि जनता सरकार चुनती है तो आपातकालीन स्थितियों के अलावा सरकार हटाने का हक भी जनता को ही होना चाहिए. अगर हम ये कदम उठाते हैं तो महीनों की ढलान को काबू में किया जा सकता है. आज कश्मीरियों के पास बंदूकें नहीं हैं. लेकिन अब वे ज्यादा मजबूती से एकजुट हैं. आप बंदूकों की लड़ाई तो और ज्यादा बंदूकें जुटाकर लड़ सकते हैं लेकिन जब लोगों की भावनाएं एक होने लगती हैं तब ऐसा करना मुश्किल होता है.
कश्मीर मसले पर राजनीतिक प्रक्रिया फिर से शुरु हो इसके लिए जरूरी है कि संवाद शुरु हो. इसके लिए सशस्त्र बल विशेषाधिकार अधिनियम को हटाया जाए और चरणबद्ध तरीके से सेना की वापसी सुनिश्चित की जाए. यदि आप लोगों को लोकतंत्र की बुनियादी आजादी देने से मना करते हैं तो यह आप खुद अपनी चुनावी प्रक्रिया का अपमान करते हैं. विरोध की आवाज तेजी से बढ़ती है, यह लोगों को एकजुट करती है और इससे असुरक्षा बढ़ती है. देश और कश्मीर के बीच बिगड़ते संबंधों की यही वजह है.