केएम नानावटी मुकदमा

यह भारत की उन चुनिंदा घटनाओं में से एक है जिसने कई किताबों और उस दौर की कुछ हिंदी फिल्मों के लिए प्रेरणा का काम किया. 1959 की यह घटना 37 साल के एक खूबसूरत सैन्य अधिकारी कवास मानेकशा नानावटी से जुड़ी है. नौसेना में कमांडर नानावटी पारसी थे जिन्होंने प्रेम आहूजा नाम के एक व्यक्ति की गोली मारकर हत्या कर दी थी. ऐसा उन्होंने यह पता चलने के बाद किया था कि उनकी ब्रिटिश मूल की पत्नी सिल्विया के आहूजा के साथ प्रेमसंबंध हैं. सिंधी समुदाय से ताल्लुक रखने वाला आहूजा नानावटी का दोस्त था.

प्रेम संबंधों और हत्या से जुड़ा यह दिलचस्प मामला तुरंत ही सुर्खियों का विषय बन गया. मुंबई के अखबार ब्लिट्ज (इसके मालिक रूसी करंजिया पारसी थे) में हर दिन इस घटना से संबंधित खबरें प्रमुखता से छापी जाने लगीं. कहा जाता है कि ब्लिट्ज ने नानावटी के  पक्ष में एक तरह से अभियान छेड़ दिया था. इन खबरों का असर यह हुआ कि नानावटी के पक्ष में मुंबई का प्रभावशाली पारसी समुदाय रैलियां और सार्वजनिक सभाएं आयोजित करने लगा. नानावटी पर मुंबई की सत्र अदालत में मुकदमा चला जिसमें उन्हें आश्चर्यजनक रूप से हत्या के आरोप से बरी कर दिया गया. इसके बाद मामला बंबई उच्च न्यायालय में गया जहां नानावटी को हत्या का दोषी माना गया. उन्हें उम्रकैद की सजा सुनाई गई. लेकिन पारसी समुदाय ने कथित तौर पर अपने प्रभाव का इस्तेमाल करते हुए तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और महाराष्ट्र की राज्यपाल विजयलक्ष्मी पंडित पर मामले में दखल देने का दबाव डाला.

अब तक यह मामला दो समुदायों के बीच टकराव का मुद्दा बनने लगा था क्योंकि नानावटी की सजा माफी के खिलाफ मुंबई का सिंधी समुदाय एकजुट हो रहा था. आखिरकार तीन साल की सजा काटने के बाद महाराष्ट्र की राज्यपाल पंडित ने नानावटी की दया याचिका स्वीकार करते हुए सजा माफ कर दी. इसके बाद नानावटी अपनी पत्नी के साथ भारत छोड़कर कनाडा चले गए.

इस घटना से प्रेरित होकर बाद में कई किताबें लिखी गईं. प्रसिद्ध लेखिका इंदिरा सिन्हा की द डेथ ऑफ मिस्टर लव नाम से लिखी किताब इनमें सबसे ज्यादा चर्चित रही. इसके अलावा 1963 में सुनील दत्त अभिनीत फिल्म ये रास्ते हैं प्यार के  और 1973 में बनी गुलजार द्वारा निर्देशित फिल्म अचानक भी इसी घटना से प्रेरित मानी जाती हैं.

पवन वर्मा