आज ‘हिस्टीरिया’ की कथाएं हो जाएं.
कुछ कथाएं बस मजा देती हैं और बताती हैं कि जीवन कितना बहुरंगी है. मानव मन के विचित्र पहलुओं से आपको परिचित कराती ‘हिस्टीरिया’ की ये कथाएं भी ऐसी ही हैं. हिस्टीरिया हमारे अवचेतन मन का बड़ा पेंचदार खेल है – ‘ट्रेजिकॉमेडी’ कह लें. ऐसा समझें कि डॉक्टर के पास ऐसा मरीज आता है जिसे वास्तव में कोई बीमारी नहीं है परंतु वह फिर भी या तो बेहोश पड़ा है या पेट दर्द से तड़प रहा है. पति चिंतित खड़ा है कि इसे क्या हो गया डॉक्टर सा’ब? डॉक्टर प्राय: ठीक से बता ही नहीं पाता कि कोई बीमारी नहीं, बस हिस्टीरिया है. वह प्राय: आधा अधूरा सा कुछ कहता है जिसका अर्थ कई बार घर वाले यह निकाल लेते हैं कि बीमारी-फीमारी तो कुछ है ही नहीं, बस, नाटक कर रही है! याद रखें. यह ऐसा विचित्र मरीज है जो बेहोश लाया गया है, बेहोश दिख रहा है परंतु बेहोश नहीं है, और वह नाटक भी नहीं कर रहा, न ही बहाना बनाकर बेहोश बना पड़ा है. वास्तव में उसे कोई बीमारी नहीं परंतु उसका अवचेतन मन उसे विश्वास दिला रहा है कि तू बेहोश है. उसे लग रहा है कि वह बेहोश है जबकि नाटक करके बेहोश हुआ आदमी जानता है कि वह बेहोश न होकर बेहोशी का नाटक कर रहा है. नाटकबाजी चेतन मन का खेल है जबकि हिस्टीरिया अवचेतन मन का. क्यों कर रहा है अवचेतन मन ऐसा खेल? क्योंकि वह ध्यान अपनी किसी समस्या की तरफ खींचना चाहता है. हिस्टीरिया ध्यान खींचने की (अटेंशन सीकिंग) विधि है, अवचेतन मन की. हमारी तरफ अन्यथा ध्यान देने का समय तुम्हारे पास नहीं तो यूं सही – बेहोश हो जाऊं तब तो मेरे लिए दौड़ते फिरोगे न?
मेरा उद्देश्य यह सिखाना है कि यदि कोई डॉक्टर मरीज के बारे में कहे कि ‘इसे कोई बीमारी नहीं है, ‘हिस्टीरिया’ है, बस’ तो मरीज से सहानुभूति से पेश आएं. जानने की कोशिश करें कि क्या मानसिक परेशानी है उसकी? उस कारण को तलाश कर ठीक करें जिसकी तरफ ध्यान खींचने के लिए वह बारबार बेहोश हो जाता है? उसे डांटें मत. यह न कहें कि तेरे को है कुछ नहीं और तू फालतू ही परेशान करती(ता) है सबको. हिस्टीरिया के मरीज को डॉक्टर की नहीं आपकी और आपकी सहानुभूति की जरूरत होती है.
कथा-1
मुझे बताया गया कि एक बेहद इंटरेस्टिंग ‘न्यूरोलोजिक केस’ बच्चा वार्ड में भर्ती हुआ है. मैं गया. देखा. आठ साल का इकलौता बेटा. बेहद होशियार है, हमेशा टॉप करता है – बाप ने बताया. मां बदहवास सी बोली कि पिछले पंद्रह दिनों से इसकी खोपड़ी की त्वचा इतनी सेंसिटिव हो गई है कि कंघी तो दूर सिर पर उंगली भी छू जाए तो दर्द के मारे बिलबिलाता है, स्कूल नहीं भेज पा रहे. 15 दिनों में कितना पीछे रह गया है स्टडीज में – बाप ने चिंता जताई. इतनी जांचें हो चुकीं. ब्लड टेस्ट, सीटी स्केन, एक्स-रे. पता नहीं क्या हो गया मेरे बेटे को? मैंने पहले पांच मिनट तक बच्चे से बीमारी की बात ही नहीं की. मैंने उससे पूछा कि तुमको कौन सा खेल पसंद है? कौन सा वीडियो गेम? ऐसी ही बातें. बच्चा जब बातों में तल्लीन था और बता रहा था कि कैसे उसने दोस्त की बॉल पर छक्का मारा था, तभी मैंने शाबाशी देते हुए उसकी पीठ पर हाथ रखा और बातें करते हुए हाथ को उसके सिर पर ले आया. कोई दर्द नहीं हुआ उसे. बातों में लगाकर मैं उसकी खोपड़ी को यहां-वहां दबाता भी रहा. कुछ नहीं कहा उसने. बीमारी सामने थी – हिस्टीरिया. कुछ नहीं था बच्चे को. वह तो अपने पिता से परेशान था जो अपने सपनों को उसके जरिए साकार करने की जिद में उसका बचपन छुड़ाने पर तुला था. वह उसे हर चीज में फर्स्ट देखना चाहता था. पढ़ो. इस सब्जेक्ट में आधा नंबर कम कैसे? म्यूजिक सीखो. मैथ्स की कोचिंग चलो. परेशान हो गया था बच्चा. उसी का नतीजा था ‘वह बीमारी.’ मैंने मां बाप को समझाया कि डॉक्टरों में न भटकें. बाप ठीक हो जाए तो बेटा खुद ठीक हो जाएगा. बाद में वही हुआ भी.
कथा-2
वे चाहे जब पत्नी को उठाए अस्पताल ले आते हैं. शिकायत करते हैं कि ये तो फिर से बेहोश होकर गिर पड़ी डॉक्टर साहब. चाहे जब, चाहे जहां बेहोश हो जाती हैं. हर बार वे अस्पताल भागते हैं. गिरकर कभी चोट नहीं लगती. ऐसा गिरती हैं कि सीधे पलंग या सोफे पर गिरें . सौ जांचें करा चुके, दो सौ तरह के डॉक्टरों को दिखा चुके. उनको बताया जाता है कि हिस्टीरिया वाली ‘बेहोशी’ है साहब- अस्पताल न लाएं. कुछ देर में खुद उठ जाएंगी. पर वे मानते नहीं. पत्नी की ठुकाई भी करते रहते हैं कि तू नाटक करके परेशान न किया कर. पत्नी का ध्यान रखते नहीं. वह बेहोश होकर उनका ध्यान खींचती रहती है. अस्पताल में पति महोदय झक मारकर उसके आस-पास रहते हैं. दोनों की नासमझी में ‘हिस्टीरिया’ बढ़ता जाता है और डॉक्टर परेशान रहता है.
पुनश्च:
फिर कहूंगा कि ‘हिस्टीरिया’ नाटकबाजी नहीं है. मरीज पर नाराज न हों और न ही उसे लेकर डॉक्टरों के पास भटकें. मरीज के मन को समझें. मानसिक तनाव का कारण खोजें और दूर करें. याद रखें ठुकाई करना इलाज नहीं है, बल्कि कारण है.