हम डाक्टर लोग सलाह देते हैं कि घूमा करो. लोग घूमते भी हैं. परंतु प्राय: वे ठीक से जानते नहीं कि कैसे घूमना चाहिये? अब आप कहेंगे कि घूमना तो घूमना है साहब. आदमी घूमने की सोच ले तो घूमने निकल पड़ता है – इसमें ऐसा क्या है? पर घूमने (वॉकिंग) के भी कुछ कायदे हैं जो न माने जायें तो स्वास्थ्य को फायदे की जगह नुकसान भी पहुंच सकता है.
कथा-1
डाक्टर ने डायबिटीज बताई और कहा कि नियमित वॉकिंग करेंगे तो ब्लड शुगर ठीक रहेगी. तय कर लिया. नये वॉकिंग शूज लिये, ट्रेक सूट भी. घूमेंगे तो कायदे से घूमेंगे. रोज तेज-तेज चलने भी लगे – चालीस मिनट की ‘ब्रिस्क वॉकिंग’. चार दिनों तक ऐसा चले कि बलैंया लेने को मन हो आए. फिर सब बंद. बाद में बताने लगे कि अपने बस की चीज नहीं यह. ऐसे हाथ पांव टूटने लगते थे कि चार दिन वॉकिंग के बाद दो दिन छुट्टी लेकर बच्चों से हाथ-पांव दबवाने पड़े रहे.
हुआ यह था कि वे बेहद तेज गति से वॉकिंग को निकलते और आखिरी पल तक तेज चलते हुए ही घर वापस पहुंच जाते. करना यह था कि पहले पांच मिनट आराम से चलते-चलते धीरे-धीरे तेज गति पकड़ते, फिर तेज गति से पचीस-तीस मिनट चलकर आखिरी के पांच मिनट फिर धीमे-धीमे गति कम करते हुए घूमना बंद करते.
शिक्षा
घर से सीधे तीर की तरह न निकलें और घर इतनी तेजी से वापस न लौटें कि बंद दरवाजे से टकराकर मुंह तोड़ लें. शुरू में पांच मिनट का ‘वॉर्मिग अप’ समय और आखिरी के पांच मिनट का ‘कूलिंग ऑफ’ समय दें नहीं तो हाथ-पांव बेहद दर्द करते रहेंगे.
कथा-2
डाक्टर ने एन्जियोप्लास्टी के बाद चेताया कि रोज चालीस-पैंतालीस मिनट घूमेंगे तो ही ठीक रहेंगे. घूमे. बाद में गणित लगाया कि यदि चालीस मिनट से इतना बढ़िया चल रहा है तो अस्सी मिनट में तो दुगना बढ़िया होगा. सो रोज डेढ़-पौने दो घंटे तेज चलने लगे. बस, एक दिन उलट गए. चक्कर, थकान, पसीना, पुलिया पर लेट गए. लोग उठाकर हमारे पास भागे कि हार्ट अटैक हो गया है. उन्हें हार्ट अटैक तो नहीं हुआ था. वे जरूरत से ज्यादा व्यायाम से पस्त हो गए थे. इतना श्रम हुआ कि ब्लड शुगर बेहद कम हो गई और चकरा कर गिरते-गिरते बचे.
इसी कथा से जुड़ी एक उपकथा भी है : ये सज्जन सुबह-सुबह खाली पेट ही घूमने निकले थे. रात में ब्लड शुगर पहले ही कम हो गई थी और सुबह सुबह की ब्रिस्क वॉकिंग. घूमोगे तो मांसपेशियां ब्लड शुगर से ताकत लेंगी. चक्कर आएंगे, लेट जाओगे.
शिक्षा
पैंतालीस मिनट की ‘ब्रिस्क वॉकिंग’ पर्याप्त है. ज्यादा करेंगे तो पस्त ही होंगे. वॉकिंग को कहा है, पहलवानी को नहीं. और यदि घूमने निकलो तो आपका पेट न तो एकदम खाली हो और न ही ठसाठस भरा हुआ. चाय, बिस्कुट, दूध या कोई फल लेकर ही निकलें.
कथा-3
डाक्टर ने कहा कि रोज घूमने जाया करो तो वे बोले कि हम तो रोज ही, रात में खाने के बाद आधा-पौना घंटा घूमते हैं. सुनकर डाक्टर हंसने लगा. खाने के बाद बाइक या दोस्तों के साथ गप लगाते हुये रात में मजे लेकर टहलना शारीरिक नहीं मानसिक व्यायाम है, बस (परसाई लिख गये हैं कि खाली पेट दर्शन सूझता है और भरे पेट हरामखोरी!) यह डिनर के बाद का खरामा-खरामा टहलना जिसे हम जनवासे की चाल कहते हैं – इससे स्वास्थ्य को कुछ नहीं मिलता है.
शिक्षा
टहलने को घूमना मत मान बैठिए. इतना तेज चलिए जितना आप कोशिश करके चल सकें. तेजी इतनी हो कि न तो थकें, न ही साथ वाले से बात करने में आपकी सांस टूटे. ..हां, खाने के बाद तो तेज चलने को हम कह ही नहीं रहे. हल्के पेट पर तेज चलें.
कथा-4
कड़ाके की ठंड है पर वे चार बजे सुबह उठ जाते हैं. हर मौसम में ‘मॉर्निग वॉक’ का नियम-सा बांध रखा है. ठंडी तीखी हवा है. चिल्ला जाड़े में निकल पड़े वे घूमने. अचानक छाती में तेज दर्द हुआ. बैठ गए. दर्द बढ़ता गया. बमुश्किल घर लौटे. मेरे पास लाए गए. मैंने बताया कि यह दिल का दर्द था – एन्जाइना. हार्ट अटैक भी हो सकता था. बच गए. हुआ यह था कि तेज ठंड में एक्सपोजर से ब्लड प्रेशर भी बढ़ा, खून की नलियों में सिकुड़न आई, दिल पर दबाव पड़ा – ऐसे में हार्ट अटैक भी हो गया होता तो आश्चर्य न था.
शिक्षा
वॉकिंग का मतलब ‘मॉर्निग वॉक’ ही नहीं. और मॉर्निग वॉक का मतलब सुबह चार पांच बजे ही नहीं. तेज ठंड हो तो धूप निकलने के बाद या शाम को ही घूमने निकलें. याद रखें कि सरकार इस बात पर अभी तक तो तमगा नहीं देती है कि आप इतनी सुबह घूमने चल पड़ते हैं.