दादाजी को जब रिटायरमेंट के बाद नगर पालिका से अपना हिसाब-किताब निपटाने के लिए अपनी दो-तीन चप्पलें-सैंडिल कम पड़ रही थीं तो वे अक्सर कहा करते थे कि हमारा तंत्न ही कुछ ऐसा है कि यह ईमानदार को झिला-झिलाकर परेशान-बेईमान होने और बेईमान को अपनी बेईमानी में चार-चांद लगाने के अवसर छप्पर फाड़ कर दिया करता है. बाद में बिजली का बिल हजारों में आने पर कुछ साल पहले पिताजी को भी कुछ-कुछ ऐसी ही पंक्तियां भुनभुनाते सुना है. चूंकि पिताजी और दादाजी की बातें केवल कानों से सुना करते थे इसलिए कभी ज्यादा समझ नहीं आईं. मगर हाल ही में जब रांची के मुकेश कुमार वल्द सियाशरण प्रसाद (कृपया इस नाम और नाम के पिता के नाम को कंठस्थ करें अन्यथा मेरी तरह आप भी अनंत में चक्कर लगाते रहेंगे) ने अपनी दुखभरी दास्तां सचित्न हमें लिख भेजी तो दादाजी का कहना सजीव हो उठा. हुआ दरअसल यह कि हाल ही में निर्वाचन आयोग ने उन्हें और उनकी पत्नी को मतदाता पहचान पत्न जारी किए हैं. पहले श्रीमान कुमार की बात करें तो उनके मतदाता पहचान पत्न में उनका नाम हिंदी में मुकेश कुमार है मगर अंग्रेजी वाले स्थान पर लिख दिया गया है राजेश कुमार. इसके अलावा उनके पिता के नाम को भी इसी प्रकार किसी अंग्रेजी के प्रकांड विद्वान ने हिंदी और अंग्रेजी में दो प्रकार से- सियाशरण प्रसाद और सिया प्रसाद- लिखा है. यानी कि पिता के नामों के आलोक में अब श्रीमान कुमार (उनके सभी नामों में बस एक यही स्थायी तत्व है) एक से चार हो चुके हैं.
अब श्रीमती कुमार (असली नाम आशा) के पहचान पत्न को लें तो हिंदी में उनका नाम कुमारी आशा लिखा गया है और अंग्रेजी में मधु देवी तथा उनके पति भी हिंदी में मुकेश कुमार और अंग्रेजी में राजेश कुमार हैं. यानी कि पति के आलोक में देखा जाए तो वे भी चतुर्नामधारी और केवल हिंदी वाले नाम को देखने पर दो पतियों वाली कुमारी यानी कि अविवाहिता बन चुकी हैं. मुकेश कुमार ने अपने पत्न में जो सबसे पहली पंक्ति लिखी है वो है – ‘यह क्या नौटंकी है?’ जाहिर सी बात है जिस व्यक्ति के दो पिता बना दिए गए हों, जिसकी बीबी को पहले कुमारी बनाया गया हो और फिर उसके पति के स्थान पर किसी दूसरे व्यक्ति का नाम लिख दिया गया वह इतना झल्लाने का अधिकार तो रखता ही है. श्रीमान कुमार परेशान हैं और पिछले काफी समय से इन गलतियों को सुधरवाने की कोशिश करते-करते खुद निर्वाचन आयोग पर बिगड़ते घूम रहे है.
मगर इसी प्रकार के पहचान पत्न यदि किसी उल्हासनगर के माल मार्का नकली आदमी के पल्ले पड़ जाते तो वह श्रीमान कुमार की तरह परेशान होकर दर-दर की खाक छानने की बजाय वोट से लेकर लोन और बिजली का कनेक्शन आदि पहले अपने चार-चार नामों से और फिर बाद में अपनी बीवी के चार-चार नामों से लेने-देने की कोशिश कर सकता था. ऐसा करने में पहचान पत्र की कचहरी के बाहर पांच मिनट में दावे के साथ खींची जाने वाली तस्वीरों से भी बढ़िया तसवीर उसका दिल खोलकर साथ देने वाली थी.
भैया श्रीमान कुमारजी, कोई ईमानदार होने को कहकर मंगल ग्रह चला गया है क्या? दादाजी और पिताजी (मेरे) की बात गांठ बांधो, यदि धोती कुर्ता पहनते हो तो या फिर रूमाल में ही सही और सुखमय जीवन का गारंटीशुदा सरकारी आशीर्वाद प्राप्त करो.
संजय दुबे