मद्धम पड़ती दहाड़

अगर चीन ने बाघ के अंगों की अपनी भूख पर लगाम नहीं लगाई तो यह शानदार जीव जल्द ही इतिहास का हिस्सा बन जाएगा

भारत में बाघों की लगातार कम हो रही संख्या की मुख्य वजह है चीन में इस जीव के अंगों की लगातार बढ़ रही मांग. 22 अक्टूबर को ब्रिटेन के एक गैर सरकारी संगठन एन्वायरमेंटल इन्वेस्टिगेशन एजेंसी (ईआईए) ने एक बेहद निराशाजनक रिपोर्ट जारी की. इससे पता चलता है कि चीन में बाघ की खाल और हड्डियों का व्यापार कितने व्यापक पैमाने पर हो रहा है.

दुनिया भर के जंगलों में बाघों की संख्या सिमटकर 3,100 रह गई है. इनमें 1,400 के करीब भारत में और 30 से 50 के करीब चीन में हैं. इस शानदार जीव को बचाने की तमाम कोशिशों के बावजूद विशेषज्ञ मानते हैं कि जंगलों में आजादी से घूमने वाले बाघों का अंत निकट है. 

दुनिया में किसी भी दूसरे जीव ने संस्कृति, इतिहास और धर्म पर उतना प्रभाव नहीं डाला है जितना बाघ ने. यह भारत समेत छह देशों का राष्ट्रीय पशु है. शायद ही कोई बच्चा होगा जो बाघ से अपरिचित हो. संभवत: इस धरती पर कोई भी दूसरा जीव इससे ज्यादा सम्मान और संरक्षण का अधिकारी नहीं होगा.

वाइल्डलाइफ प्रोटेक्शन सोसाइटी ऑफ इंडिया (डब्ल्यूपीएसआई), ईआईए के साथ मिलकर काम कर रही है. यह लगातार छठवां साल है जब ईआईए ने चीन में बाघ से जुड़े व्यापार की जांच की है. हर साल इस जांच के नतीजे चीनी सरकार को सौंपे जाते हैं. हालांकि चीन में बाघ के अंगों का व्यापार 1993 से ही प्रतिबंधित है. बावजूद इसके कानून-व्यवस्था के लिए जिम्मेदार संस्थाएं इस व्यापार की तरफ से आंखें मूंदे हैं. समृद्धि की बाढ़ आने के साथ ही इसकी कीमतें भी आसमान छूने लगी हैं. चीन में बाघ की खाल 11,660 डॉलर से 21,860 डॉलर के बीच बिकती है जबकि हड्डियों का दाम 1,250 डॉलर प्रति किलो है.

इसी साल जुलाई और अगस्त के दौरान सिर्फ तीन हफ्तों में ईआईए की खुफिया टीम को बाघ की चार, तेंदुए की 12, बर्फीले तेंदुए की 11 और क्लाउडेड तेंदुए की दो खालों के साथ तमाम दूसरे जीवों की खालें, हड्डियां और खोपड़ियां खरीदने के प्रस्ताव मिले. तिब्बत में घोड़ों के एक मेले के दौरान 9 लोगों को बाघ और 25 लोगों को तेंदुए की खाल पहने देखा गया, वह भी स्थानीय प्रशासन की आंखों के सामने. पूछने पर दुकानदारों ने बताया कि ज्यादातर बड़ी बिल्लियों की खालें और हड्डियां भारत से तस्करी करके लाई जाती हैं.

अपने यहां होने वाली अनदेखी, घटिया प्रबंधन, ढुलमुल प्रशासन, शिकार, आपसी खींचतान और बाघ के खाने लायक शिकारों और पर्यावासों का विनाश जैसे विषयों पर मैं पहाड़ भर कागज बर्बाद कर सकती हूं. हालांकि फिलहाल भारत बाघों के संरक्षण में अहम भूमिका निभाने के लिए प्रतिबद्ध दिख रहा है. सरकार बाघ संरक्षण के उपायों पर पैसा खर्च कर रही है, मसलन उन्हें सुरक्षा देना और उनके प्राकृतिक पर्यावासों का संरक्षण करना ताकि वे उन्मुक्त रूप से पनप सकें. इसका लक्ष्य सिर्फ बाड़ से घिरे अभ्यारण्यों में इन्हें सुरक्षित रखना भर ही नहीं है बल्कि उस संपूर्ण वन्यजीवन के जटिल ताने-बाने को बचाने के साथ-साथ उसे और अधिक समृद्ध करना भी है जिसका प्रतिनिधित्व यह प्रजाति करती आई है.

14 फरवरी, 2010 से चीन में बाघ वर्षकी शुरुआत हो रही है. अहम सवाल यह है कि क्या चीन इन बातों पर ध्यान देने की जहमत उठाएगा:

1.बड़ी बिल्लियों की खालों के अवैध कारोबार को जड़ से मिटाने के लिए भारत और नेपाल के साथ सहयोग

2.दुनिया और चीन में मौजूद उपभोक्ताओं को कठोर संदेश देना कि चीन 1993 में बाघ और तेंदुए की खालों पर लगाए गए प्रतिबंध पर कायम है

3.प्रशासन में सुधार के साथ ही इंटेलिजेंस आधारित एक वन्यजीव टीम का गठन

4.बाघ प्रजनन केंद्रों को खत्म करने के फैसले पर अमल

5.दुनिया के सामने खुद को अवध व्यापार के खिलाफ साबित करने के लिए बाघ के अंगों के भंडार को नष्ट करना

इस साल अगस्त महीने में पर्यावरण मंत्री जयराम रमेश ने इस मसले को चीन के सामने उठाकर एक साहसिक पहल की है. लेकिन उनकी मांगों को दुनिया भर से समर्थन मिलने के बावजूद चीन का असहयोग जारी है. अगर चीन इस बढ़ते अंतरराष्ट्रीय दबाव की अनदेखी करना जारी रखता है तो फिर हमें यह मानना पड़ेगा कि हम बाघ संरक्षण की लड़ाई हारने वाले हैं.

बेलिंडा राइट

(बाघ संरक्षण से जुड़ी बेलिंडा वाइल्डलाइफ प्रोटेक्शन सोसाइटी ऑफ इंडिया (डब्ल्युपीएसआई) की कार्यकारी निदेशक हैं)