आज भारत की नामचीन शख्सियतों की सूची में झारखंड के महेंद्र सिंह धोनी पहले पायदान पर हैं. ऐसा होने के पीछे की वजहें जानने का प्रयास कर रहे हैं. कुणाल मजूमदार
‘वे न तो बिल्कुल अलग राह चलने वालों में ही हैं और न ही बहुत चटकीले-भड़कीले हैं. बल्कि वे कहीं ज्यादा टिकाऊ और वास्तविक हैं, और यही चीज उन्हें सबका चहेता बना देती है’
इसी साल जनवरी की सर्दियों के दौरान झारखंड में राष्ट्रपति शासन लागू होने से कुछ ही दिन पहले तत्कालीन मुख्यमंत्री मधु कोड़ा ने अपने शिक्षामंत्री बंधु तिर्की को धोनी से एक प्रचार अभियान शूट कराने के लिए कहा. जब उन्हें यह बताया गया कि धोनी का कार्यक्रम पहले से ही तय है और उनके पास अतिरिक्त समय नहीं है तो कोड़ा ने तिर्की को आदेश दिया कि वे खुद ही एक कैमरामैन को लेकर धोनी के पास चले जाएं. ‘उनसे कैमरे में देख कर प्रदेश के छात्रों के लिए कुछ भी संदेश देने के लिए कहिए,’ जानकारों के मुताबिक कोड़ा ने तिर्की से कहा, ‘झारखंड में धोनी के अलावा कोई भी नहीं चलेगा.’ कोड़ा के कहे मुताबिक तिर्की सीधे धोनी के घर पहुंचे और तीन मिनट के अंदर शूट पूरा हो गया जो कि आज तक टीवी पर दिखाया जाता है. कई मायनों में यह घटना देश की इस सर्वसुलभ शख्सियत के व्यक्तित्व को काफी-कुछ परिभाषित कर देती है.
उनकी यही पहचान अब उनके लिए सोने का अंडा देने वाली मुर्गी साबित हो रही है. परसेप्ट टैलेंट मैनेजमेंट और हंसा रिसर्च द्वारा करवाए गए एक हालिया सर्वेक्षण में धोनी को देश की सबसे बड़ी सेलिब्रिटी घोषित किया गया है. इस स्थान और सम्मान के लिए उनका मुकाबला शाहरुख खान, ऐश्वर्या राय, अमिताभ बान और सचिन तेंदुलकर जैसे दिग्गजों से था. सर्वेक्षण में नामचीन हस्तियों का आकलन उनकी लोगों को प्रभावित कर पाने की क्षमता, सुंदरता, छवि, लोकप्रियता और मीडिया में उपस्थिति जैसे मानकों के आधार पर किया गया था और इन शख्सियतों में तमाम बड़े अभिनेता, संगीतकार और खिलाड़ी शामिल थे.
ज्यादातर लोग धोनी को अपने ही आस-पास का महसूस करते हैं. ‘वह एक आदर्श हिंदुस्तानी हैं’ ओगिल्वी एंड माथेर इंडिया के क्रिएटिव हेड पीयूष पांडे कहते हैं, ‘छोटे-से शहर के एक लड़के ने कठिन मेहनत से खुद को साबित कर दिया है जो कि भारत के हर मध्यवर्गीय परिवार का सपना होता है.’ ऐसा प्रतीत होता है कि धोनी की सहजता ही उनकी लोकप्रियता के मूल में है. उन्होंने साबित कर दिया है कि अब मध्यवर्ग को औसत दर्जे का मानकर नजरअंदाज नहीं किया जा सकता. फ्युचर ब्रांड के प्रमुख संतोष देसाई धोनी को उभरते भारत के मूल्यों का प्रतिनिधित्व करने वाला मानते हैं. वे कपिल देव के ‘माटी का लाल’ वाली छवि से कहीं ज्यादा का प्रतिनिधित्व करते हैं’ देसाई कहते हैं. ‘मेरा मानना है कि धोनी के सिर पर पुरानी यादों का कोई बोझ नहीं है’ इतिहासकार मुकुल केसवन कहते हैं, ‘अगर वे इतने लोकप्रिय नहीं होते तो मुझे आश्चर्य होता. वे सुंदर हैं, असंयमित हुए बिना भी आक्रामक बने रहते हैं और हर स्थिति में स्थिर रहते हैं. भारतीय टीम के कप्तान के रूप में भी वे सफल हैं. भारत को उनके जैसे कप्तान की ही जरूरत थी.’ एक ऊर्जावान टीम की अगुवाई करने के अलावा झारखंड के इस खिलाड़ी ने क्रिकेट से इतर भी कई ऊंचाइयों को छुआ है. 1986 में बूस्ट ने कपिल देव को ‘बूस्ट इज़ द सीक्रेट ऑफ माइ एनर्जी’ कहने के लिए 1.75 लाख रूपए दिए थे. एक दशक से भी कम समय में बूस्ट ने कपिल की जगह सचिन की उंगली पकड़ ली जिसकी कीमत थी 5 करोड़ रुपए. मार्च 2008 में कंपनी ने इस कैंपेन के लिए धोनी को चुन लिया.
‘लोग धोनी के उदय को गलत ढंग से ले रहे हैं. मुझे नहीं लगता कि उनकी लोकप्रियता के पीछे उनकी क्षेत्रीय पृष्ठभूमि की कोई भूमिका है. सहवाग और युवराज भी इसी तरह की पृष्ठभूमि से आते हैं. उन्हें इन सबसे अलग खड़ा करती है उनकी क्षेत्रीय लहजे से मुक्त स्पष्ट अंग्रेजी’ दिलचस्प बात यह है कि लोकप्रियता के इस शीर्ष पर भी सारा जोर उनकी सहजता पर ही केंद्रित करने की कोशिश रहती है. ‘उन्हें कभी भी सचिन तेंदुलकर जैसा चमत्कारिक खिलाड़ी नहीं माना गया’ कपिल देव के बूस्ट अभियान से जुड़े रहे बिजनेस कंसल्टेंट प्रभात सिन्हा कहते हैं. ‘वे न तो बिल्कुल अलग राह चलने वालों में ही हैं और न ही बहुत चटकीले-भड़कीले हैं. बल्कि वे कहीं ज्यादा टिकाऊ और वास्तविक हैं, और यही चीज उन्हें सबका चहेता बना देती है’ एयरसेल की शालिनी सेठी बताती हैं, ‘धोनी को चुनने की वजह यह थी कि वे भी हमारी तरह सरल, रचनात्मक और विश्वसनीय हैं. वे बड़े पैमाने पर लोगों को आकर्षित करते हैं. बच्चों से लेकर बूढ़े तक उन्हें पसंद करते हैं.’ केशवन धोनी की लोकप्रियता से जुड़े भाषागत पहलू की ओर इशारा करते हुए कहते हैं, ‘लोग धोनी के उदय को गलत ढंग से ले रहे हैं. मुझे नहीं लगता कि उनकी लोकप्रियता के पीछे उनकी क्षेत्रीय पृष्ठभूमि की कोई भूमिका है. सहवाग और युवराज भी इसी तरह की पृष्ठभूमि से आते हैं. उन्हें इन सबसे अलग खड़ा करती है उनकी क्षेत्रीय लहजे से मुक्त स्पष्ट अंग्रेजी. वे अपनी क्षेत्रीय छवि को पीछे छोड़ कर एक महानगरीय चोला धारण कर चुके हैं. उनकी यह खासियत उस मध्यवर्ग को लुभाती है जो या तो अंग्रेजी बोलता है या फिर बोलने की इच्छा रखता है.’
पीढियों के बदलाव ने भी इसमें अहम भूमिका निभाई है. अकेले धोनी ही तेंदुलकर, कुंबले, द्रविड़ और गांगुली द्वारा खाली की गई जगह को भर पाने में सक्षम साबित हुए हैं. और इस वक्त वे अपनी किस्मत को भुना रहे हैं- सीमेंट से लेकर पेन तक, मोटरसाइकल से लेकर चिप्स तक और शीतल पेय से लेकर जूते तक हर जगह धोनी ही अपनी अजीब सादी सी मुस्कान बिखेरते नजर आ रहे हैं.
ब्रांड विशेषज्ञ ऊंचे और छोटे ब्रांड के बीच भेदभाव न करने की उनकी आदत से चिंतित नजर आते हैं. एड गुरू प्रहलाद कक्कड़ कहते हैं, ‘कुछ ही ब्रांड ऐसे हैं जो उनके व्यक्तित्व से मेल खाते हैं. यही वजह है कि वे जिन ब्रांड्स का प्रचार करते हैं वे ज्यादा दिनों तक लोगों को याद नहीं रहते.’ तमाम सवालों का शायद यही सबसे सरल और सटीक जवाब है- एक खिलाड़ी के तौर पर धोनी सिर्फ अपने लिए खेलते हैं.’