'कभी-कभार जाति, क्षेत्र, विचारधारा आदि के समीकरणों में उलझ कर बेमतलब की रचनाएं चर्चित हो जाती हैं'

फिलहाल क्या लिख-पढ़ रहे हैं?

अपनी उपन्यासत्रयी का तीसरा हिस्सा पूरा करने में लगा हूं. दो नाटकों पर भी काम चल रहा है. पहला तुलसीदास, अब्दुर्रहीम खानखाना और अकबर पर लिखा जा रहा है. इसमें कला और राज्य के अंर्तसंबंध को दर्शाने की कोशिश है. दूसरा गांधीजी  पर आधारित है. जहां तक पढ़ने का सवाल है तो महान कृतियों को बार-बार पढ़ता रहता हूं. इन दिनों रूसो की ऑटोबॉयोग्राफी फिर से पढ़ रहा हूं.

किस विधा में लिखना पसंद है?

मैं फिक्शन ही लिखता हूं. ज्यादातर जोर कहानी और उपन्यास पर ही होता है.

रचना या लेखक जो आपके बेहद करीब हों?

किसी एक रचना का जिक्र तो मुश्किल है. मुझे इस्मद चुगताई  की कहानियां अच्छी लगती हैं, मंटो और निर्मल वर्मा का लेखन भी बढ़िया लगता है. फणीश्वरनाथ रेणु के लेखन से भी मैं बहुत निकटता महसूस करता हूं. 

कोई रचना जो अलक्षित रह गई.

हाल ही में मधुकर उपाध्याय का कविता संग्रह बात नदी बन आए आया है जो मेरे ख्याल से अलक्षित रह गया. पर मेरा मानना है कि रचनाएं कभी-न-कभी चर्चा अवश्य पाती हैं. जैसे 1952 में एक किताब आई थी शिवालिक की घाटियों में, मेरे ख्याल से वन्यजीवन और पर्यावरण के ऊपर हिंदी में इतना बढ़िया शायद ही कभी लिखा गया हो. अब मैं इसे पुन: प्रकाशित करवा रहा हूं.

रचना जिसे बेमतलब की शोहरत मिली.

मैं किसी किताब या लेखक का नाम नहीं लूंगा. असल में कभी-कभार जाति, क्षेत्र, विचारधारा आदि के समीकरणों में उलझ कर बेमतलब की रचनाएं चर्चित हो जाती हैं.

पुरस्कार कितने महत्वपूर्ण हैं?

पुरस्कारों का सरलीकरण हो गया है. महज आर्थिक पहलू तक ही ये सीमित हो गए हैं. इसमें सुधार की गुंजाइश है.

हाल में खरीदी गई पुस्तक?

जसवंत सिंह की किताब जिन्ना : भारत विभाजन के आइने से खरीदी है.

अतुल चौरसिया