फिल्म: लंदन ड्रीम्ज
निर्देशक: विपुल शाह
कलाकार: सलमान खान, अजय देवगन, असिन
उम्मीद का कुछ हो तो बहुत अच्छा लगता है. ट्रेलर और पोस्टर देखकर जैसी लगती है, यह ठीक वैसी ही फ़ॉर्मूला फ़िल्म है, जिसके लिए बॉलीवुड विख्यात और कुख्यात है. अजी वही फ़ॉर्मूला, जिसमें बचपन का सपना, घर से भाग जाना, दोस्ती और उसमें बलिदान, दो लड़के-एक लड़की और हर पन्द्रह मिनट बाद बेवज़ह गाने होते हैं. गानों की शूटिंग पर अच्छा खासा धन और मेहनत खर्च की जाती है, इसलिए अक्सर ऐसी फ़िल्मों में चित्रहार अच्छा लगता है. आधी फ़िल्म के बाद आप भी एक निश्चित समयांतराल पर गाना देखने के आदी हो जाते हैं, इसलिए बेसब्री से प्रतीक्षा करते हैं.
‘नमस्ते लन्दन’ वाले विपुल शाह इस बार नाम और कहानी में लन्दन को पहले ले आए हैं. ऐसा लगता है कि किसी समझौते के तहत हर बड़े बैनर ने विदेशी शूटिंग के लिए एक शहर या देश चुन लिया है. जैसे यशराज ने न्यूयॉर्क और विपुल शाह जी ने लन्दन. मगर इम्तियाज़ अली से लेकर विपुल शाह तक भारत में सबका ठिकाना वही तय है, अपना पंजाब, जहाँ बिना किसी कारण के मस्त होकर नाचा जा सके और कुछ मीठी गालियाँ दी जा सकें. वैसे ऐसे गिने चुने विदेशी ही होंगे, जो भारत को जाने बिना दो-चार हिट हिन्दी फ़िल्में देख चुके होंगे मगर सोचिए कि बेचारे ऐसे लोग तो इस बात पर हज़ारों की शर्त लगाने को भी तैयार होंगे कि भारत हरे भरे सरसों के खेतों में नाचने वाले लोगों का ख़ुश देश है. शर्त के बयान में वे यह भी जोड़ देते होंगे कि सब भारतीय जीवन के किसी न किसी पड़ाव पर विदेश यात्रा ज़रूर करते हैं.
पूरी फ़िल्म में असहज लग रहे अजय देवगन के चेहरे पर वही भाव है, जिसे वे ‘दीवानगी’ आदि फ़िल्मों के समय से ढोते चले आ रहे हैं. इसी तरह शंकर-अहसान-लॉय ने भी बहुत बेमन से संगीत दिया है, जिसने प्रसून के अच्छे गीतों का भी कबाड़ा कर दिया है. सलमान सिद्ध करते हैं कि स्टार होने के लिए अच्छा अभिनेता होने से ज़्यादा अच्छा एंटरटेनर होना ज़रूरी है. चौंकाने वाली बात यह है कि वे अभिनय में भी अजय पर हावी रहे हैं.
बहरहाल यदि आप उस दर्शक-समूह से ताल्लुक रखते हैं, जिसे ‘रॉक ऑन’ पिछले साल की सबसे अच्छी फ़िल्मों में से एक लगी थी तो आपको ‘लन्दन ड्रीम्स’ ज़रूर देखनी चाहिए. यह उसी दर्शन की कुछ अधिक साधारण फ़िल्म है. मगर यदि आप उस समूह के हैं, जो ‘रॉक ऑन’ की मसाले में लिपटी भावुकता बर्दाश्त नहीं कर पाता तो आप कृपया एकाध हफ़्ते इंतज़ार कर लें. शायद समय बदले और कोई अच्छी फ़िल्म आए. हम भी इंतज़ार ही कर रहे हैं.
गौरव सोलंकी