ऑपरेशन ब्ल्यू माउंटेन: नंदादेवी पर्वत

डिवाइस का गायब होना अमेरिका और भारत दोनों के लिए बेहद चिंता की बात थी क्योंकि ये रेडियोएक्टिव डिवाइस थी, इससे ऋषि गंगा नदी का पानी प्रदूषित होने का खतरा पैदा हो गया था 

अक्टूबर 1964 में चीन ने अपना पहला परमाणु परीक्षण कर दुनियाभर को चौंका दिया था. साम्यवादी ताकतों को दुश्मन मानने वाले अमेरिका के लिए चीन का परमाणु शक्ति बनना एक नया खतरा था. इधर 1962 में चीन से मिली पराजय के बाद भारत में भी इस घटना से बैचैनी बढ़ गई थी. इसी दौर में चीन की बढ़ती ताकत ने अमेरिका और भारत को चीन के खिलाफ सक्रिय सामरिक सहयोग के लिए मजबूर कर दिया.

1965 में भारत-अमेरिका का खुफिया अभियान ब्ल्यू माउंटेनशुरू हुआ. यह अमेरिकी खुफिया एजेंसी सीआईए और भारत की खुफिया एजेंसियों का अभियान था जिसके तहत चीन के परमाणु और मिसाइल परीक्षणों पर नजर रखी जानी थी. इस अभियान के तहत भारत के सबसे ऊंचे पर्वत शिखर नंदादेवी (23,500 फीट) पर एक न्यूक्लियर डिवाइस (एक जासूसी यंत्र जो परमाणु ऊर्जा से संचालित होता था) लगाई जानी थी ताकि चीन की निगरानी की जा सके. सितंबर 1965 में अमेरिकी और भारतीय पर्वतारोहियों, परमाणु वैज्ञानिकों, खुफिया अधिकारियों का एक दल नंदा देवी के लिए रवाना हुआ. इसी दल को नंदादेवी पर्वत चोटी पर परमाणु ऊर्जा से संचालित डिवाइस लगानी थी. लेकिन भारी हिमपात के चलते ये दल पर्वत की चोटी पर नहीं पहुंच सका. दल ने न्यूक्लियर डिवाइस को वापस लाने की बजाय पर्वत श्रेणी की एक गुफा में सुरक्षित रख दिया और तय किया गया कि अभियान अगले साल पूरा किया जाएगा.

मई 1966 में अभियान फिर शुरू हुआ. लेकिन इस बार मौसम की बजाय उनका सामना एक नई मुसीबत से हुआ. जिस गुफा में न्यूक्लियर डिवाइस को सुरक्षित रखा गया था, वह बर्फबारी में नष्ट हो गई थी और उसके साथ ही डिवाइस भी गायब हो चुकी थी. डिवाइस का गायब होना अमेरिका और भारत दोनों के लिए बेहद चिंता की बात थी क्योंकि ये रेडियोएक्टिव डिवाइस थी, इससे ऋषि गंगा नदी का पानी प्रदूषित होने का खतरा पैदा हो गया था. इस घटना के बाद डिवाइस खोजने का अभियान शुरू किया गया लेकिन काफी कोशिशों के बाद भी खोजी दल इसे ढूंढ़ने में सफल नहीं हो पाए.

हालांकि इस घटना के बाद भी भारत-अमेरिका जासूसी अभियान चलता रहा. 1966 में नंदादेवी पर्वत की चोटी की बजाय उससे 500 फीट नीचे एक निगरानी डिवाइस लगा दी गई. लेकिन कुछ ही दिनों बाद डिवाइस ने काम करना बंद कर दिया. बाद में इस डिवाइस को नंदादेवी से लाकर वापस अमेरिका भेज दिया गया. इसके साथ ही ये जासूसी अभियान भी समाप्त हो गया. इस समय तक जासूसी सैटेलाइट छोड़े जाने लगे थे इसलिए बाद में इस योजना को आगे नहीं बढ़ाया गया. इस अतिगोपनीय जासूसी अभियान पर भारत सरकार ने लंबे समय तक चुप्पी साधे रखी. लेकिन 1978 में अमेरिकी मीडिया में इस अभियान संबंधित खबरें छपने के बाद तत्कालीन भारतीय प्रधानमंत्री मोरार जी देसाई ने स्वीकार किया कि चीन के खिलाफ भारत और अमेरिका ने एक योजना पर काम किया था.

पवन वर्मा