समाचार चैनल एनडीटीवी की मैनेजिंग एडिटर बरखा दत्ता तो ट्विटर पर हैं ही साथ ही उनके नाम पर एक फर्जी प्रोफाइल भी चल रहा है और इस सदस्य ने पूरी ईमानदारी दिखाते हुए अपना नाम फेक बरखा दत्ता यानी नकली बरखा दत्त रखा है
किसी के लिए ये बेकार का शोर है तो कोई इसे गागर में सागर भरना सिखाने वाला माध्यम करार दे रहा है. चर्चित वेबसाइट ट्विटर के प्रभावों और इसकी संभावनाओं की थाह ले रही हैं मंजुला नारायण
यूं तो विदेश राज्य मंत्री शशि थरूर की विवादास्पद टिप्पणी से पहले भी भारत में ट्विटर का जिक्र कई बार हो चुका था. मसलन पिछले साल नवंबर में मुंबई हमले के दौरान अखबारों और समाचार चैनलों पर इसकी चर्चा हुई, फिर इस साल अप्रैल में खबरें आईं कि सोशल नेटवर्किंग वेबसाइट फेसबुक ने 50 करोड़ डॉलर में ट्विटर को खरीदने की कोशिश की मगर सौदा नहीं पट सका और अब गूगल इसकी कोशिश कर रहा है. 14 जुलाई को जानी-मानी अभिनेत्री मल्लिका शेरावत को ट्विटर के हेडक्वार्टर में आमंत्रित किया गया जो अमेरिका के कैलिफोर्निया में है. इसके कुछ ही दिन बाद प्रीतिश नंदी ने कमबख्त इश्क को लेकर करीना पर आलोचना के तीर छोड़े तो फिर ट्विटर शब्द सुनाई दिया. फिर पिछले महीने मशहूर हीरोइन कैटरीना कैफ की तरफ से एक बयान जारी किया गया कि वे ट्विटर का इस्तेमाल नहीं करतीं और कोई शख्स उनके नाम से इस पर अकाउंट बनाकर लोगों से बात कर रहा है. पर तब तक भी अपने यहां ट्विटर का जिक्र अखबारों में पीछे के पन्नों और समाचार चैनलों पर इक्का-दुक्का चर्चाओं तक सीमित था. थरूर की टिप्पणी ने इसे अखबारों के मुख्यपृष्ठ और चैनलों की मुख्यचर्चा का विषय बना दिया.
सवाल उठता है कि आखिर ये ट्विटर है क्या? दरअसल ये एक वेबसाइट है, एक माध्यम जिसके जरिए आप किसी को छोटे-छोटे संदेश भेज सकते हैं और उनका जवाब पढ़ सकते हैं. मगर इन संदेशों के अक्षरों की सीमा बंधी हुई है. ये है अधिकतम 140 अक्षर. यही वजह है कि इसे माइक्रोब्लॉगिंग सर्विस कहा जाता है. यानी ब्लॉग मगर बहुत छोटा. ट्विटर की खासियत ये है कि इससे भेजा गया संदेश जिसे ट्वीट भी कहते हैं, फौरन ही हजारों लोगों तक पहुंच जाता है. वहीं ये आपको प्राइवेसी की सुविधा भी देता है. यानी ऐसा नहीं हो सकता कि कोई आपकी मर्जी के बिना आपसे कुछ भी कह जाए.
इस तरह से देखा जाए तो ट्विटर, ऑरकुट या फेसबुक जैसी सोशल नेटवर्किंग वेबसाइट्स और मोबाइल से भेजे जाने वाले संदेश के बीच की चीज है. शायद इसीलिए इसे इंटरनेट का एसएमएस भी कहा जाता है. इसकी शुरुआत जैक डॉर्सी ने 2006 में अमेरिका में की थी और सिर्फ दो ही साल में ये दुनिया की 13वीं सबसे लोकप्रिय वेबसाइट बन गई है. मगर ट्विटर सिर्फ संदेश भेजने का जरिया ही नहीं बल्कि एक असरदार राजनीतिक हथियार भी हो सकता है, इसका अहसास दुनिया को इस साल जून में तब हुआ जब राष्ट्रपति चुनावों के बाद ईरान में उथल-पुथल मची. ये ट्विटर का ही कमाल था कि ईरान में अंतर्राष्ट्रीय मीडिया के जाने पर रोक के बावजूद सरकार विरोधी प्रदर्शनों और इसके बाद पुलिस की बर्बरता की खबरें दुनियाभर को मिलती रहीं. ईरान में रह रहा ट्विटर का कोई सदस्य किसी घटना के बारे में ट्वीट भेजता और वह फौरन ही सैकड़ों दूसरे सदस्यों तक पहुंच जाता. ये सैकड़ों लोग इसे हजारों और फिर लाखों लोगों तक पहुंचा देते.
कुछ समय बाद जब भारत में ट्विटर की प्रगति पर बात होगी तो थरूर को उन पहली शख्सियतों में से एक के तौर पर याद किया जाएगा जिन्होंने अनजाने ही देश में इसकी पहुंच को कई गुना बढ़ा दिया. उनकी कैटल क्लास वाली टिप्पणी से पहले ट्विटर की पहुंच फेसबुक जैसी सोशल नेटवर्किंग साइट्स के मुकाबले बहुत कम थी और इनका इस्तेमाल करने वाले लोगों में इसके इस्तेमाल की कोई खास ललक भी नहीं थी. इंटरनेट मार्केट रिसर्च कंपनी कॉमस्कोर के मुताबिक इस साल फरवरी तक भारत में ट्विटर का इस्तेमाल करने वाले लोगों का आंकड़ा 1.19 लाख था. ये संख्या भले ही बहुत बड़ी लगती हो मगर तब ये बहुत छोटी लगने लगती है जब एक जानी-मानी बिजनेस पत्रिका द्वारा हाल ही में करवाया गया एक अध्ययन बताता है कि भारत में इंटरनेट सोशल नेटवर्क्स का नियमित इस्तेमाल करने वाले लगभग 1.7 करोड़ लोग हैं. यही अध्ययन ये भी बताता है कि हर वर्ग में 30 फीसदी लोग ऐसे हैं जो सोशल नेटवर्किंग वेबसाइट्स से ऊब चुके हैं.
‘मैंने इसे शर्म करार दिया तो ऐसा करते ही कुछ लोग मुझ पर टूट पड़े. ऐसा लग रहा था जैसे वो मेरा खून पीने पर उतारू हों. मैंने उनसे कहा कि मैं नरेंद्र मोदी से सहमति नहीं रखता और मुझे वो पसंद नहीं. वो लोग अब भी मेरे संपर्क में हैं ’
ऐसे लोगों के लिए बनिबस्त सीधा विकल्प है ट्विटर. बस एक संदेश भेजिए और काम खत्म. नियम सीधे हैं कोई सेलिब्रिटी खोजिए और उसे फॉलो करने का विकल्प चुनिए. बस, आप बन गए उसके अनुयायी यानी कि फॉलोअर. इसके बाद वो शख्सियत जब भी कोई संदेश लिखेगी यानी ट्वीट करेगी तो वो न सिर्फ फौरन आप तक पहुंच जाएगा बल्कि आप अगले ही पल उसका जवाब भी दे सकेंगे.
हार्वर्ड विश्वविद्यालय द्वारा किया गया एक हालिया अध्ययन बताता है कि ट्विटर पर 90 फीसदी ट्वीट्स इस पर सबसे सक्रिय दस फीसदी सदस्यों के होते हैं. हॉलीवुड स्टार एश्टन कचर और उनकी पत्नी डेमी मूर के कुल 5.8 लाख फॉलोअर्स हैं. भारत में भी इसके दीवानों की संख्या तेजी से रफ्तार पकड़ रही है और शशि थरूर इस मामले में सबसे आगे लगते हैं जिनके फॉलोअर्स का आंकड़ा 2.92 लाख है. भारत में ट्विटर पर होने आवाजाही में पहला बड़ा इजाफा मार्च में हुआ. इस दौरान पत्रकार और फिल्म निर्माता प्रीतिश नंदी और टीवी पत्रकार बरखा दत्त इसके सदस्य बने. जैसा कि नंदी बताते हैं, ‘मैंने पढ़ा था कि किस तरह ईरान की महिलाएं ट्विटर के जरिए अपने राजनैतिक विचार लोगों के सामने रख रही हैं. मैंने ये भी पढ़ा था कि ओबामा की टीम भी ट्विटर पर मौजूद रहती है ताकि सरकार के कामकाज में पारदर्शिता में मदद मिल सके. मेरी जिज्ञासा बढ़ी. इसलिए मैं इस वेबसाइट पर गया और मुझे ये अच्छी लगी.’
आज प्रीतिश नंदी के कुल 5208 फॉलोअर्स हैं जिनमें आईटी प्रोफेशनल्स, नई पीढ़ी के फिल्मकार और मीडिया पर निगाह रखने वाले लोग भी शामिल हैं. नंदी कहते हैं, ‘फेसबुक में आपकी निजता का कुछ ज्यादा ही अतिक्रमण हो जाता है जबकि ट्विटर एक ऐसा सार्वजनिक माध्यम है जहां अगर आप किसी ऐसे व्यक्ति की उपेक्षा करते हैं जो कहता है कि वो एक असाधारण अभिनेता है और आपकी फिल्म में रोल चाहता है, तो वो इतना शर्मिंदा हो जाता है कि वो आपको अकेला छोड़ देगा. ट्विटर आप पर किसी किस्म का दबाव नहीं डालता.’
नंदी का ये भी मानना है कि ट्विटर जैसी वेबसाइट बोलचाल की कला का ही एक विस्तार है. वे कहते हैं, ‘आपको लोगों के साथ संवाद करना होता है नहीं तो कोई भी आपको फॉलो नहीं करेगा. फिल्मस्टार्स को फॉलो करने वाले बहुत से लोगों को 15 दिन तक ऐसा करना बहुत अच्छा लगता है, उसके बाद वे छिटकना शुरू हो जाते हैं. स्टार्स के फॉलोअर्स की लिस्ट लंबी जरूर हो सकती है मगर संवाद के आदान-प्रदान के मामले में वहां न के बराबर वाली स्थिति होती है. इसकी तुलना में हम जैसे लोग भी हैं जो बातचीत करते रहते हैं और आप देखेंगे कि हमारे पेज पर ट्वीट्स का ढेर है.’
नंदी के मुताबिक ट्विटर की ताकत इस बात में छिपी है कि इस माध्यम के जरिए आप किसी मुद्दे पर सार्वजनिक रूप अपना पक्ष रख सकते हैं और फिर जब चाहें तुरंत उसका बचाव भी कर सकते हैं. वे इशरत जहां फर्जी मुठभेड़ का उदाहरण देते हुए कहते हैं, ‘मैंने इसे शर्म करार दिया तो ऐसा करते ही कुछ लोग मुझ पर टूट पड़े. ऐसा लग रहा था जैसे वो मेरा खून पीने पर उतारू हों. मैंने उनसे कहा कि मैं नरेंद्र मोदी से सहमति नहीं रखता और मुझे वो पसंद नहीं. वो लोग अब भी मेरे संपर्क में हैं.’ नंदी ये भी मानते हैं कि ट्विटर सार्वजनिक बहस के स्तर को समृद्ध कर रहा है क्योंकि अखबार जैसे माध्यम के उलट ये लोगों को सीधे और कई स्तरों पर आपस में जुड़ने का मौका देता है.
साइकोथेरेपिस्ट नीतू सरीन कहती हैं, ‘ट्विटर आत्मअभिव्यक्ति का पर्याय बन चुका है. फेसबुक या माइस्पेस की तरह इसका इस्तेमाल अपनी खोई जड़ें तलाशने के लिए नहीं हो रहा. बल्कि ये अपनी राय देने और उसे दुनिया तक पहुंचाने के लिए इस्तेमाल हो रहा है.’जैसा कि किसी भी जीवंत माध्यम की विशेषता होती है, ट्विटर भी कई तरह के काम कर सकता है. ये किसी भड़काऊ राजनैतिक बयान के लिए इस्तेमाल हो सकता है, इससे उपयोगी जानकारी आपस में बांटी जा सकती है या फिर इसे छोटी-छोटी बातों पर शोर मचाने के लिए भी इस्तेमाल किया जा सकता है. लोकप्रिय वेबसाइट प्लग्ड डॉट इन के संस्थापक और देश में ट्विटर के विकास पर निगाह रखने वाले आशीष सिन्हा का मानना है कि ट्विटर पर होने वाली बेकार की बातचीत में से ज्यादातर वक्त के साथ खत्म हो जाएगी, ठीक ऐसे ही जैसा ब्लॉग जगत में हुआ जहां अब धुरंधर और समर्पित लिखाड़ ही बचे हुए हैं. सिन्हा कहते हैं, ‘यहां पर कई सोशल मीडिया कंसल्टेंट्स से लेकर स्वनामधन्य गुरुओं तक कई लोग हैं जो बेकार के शोर में शामिल हैं. मगर साथ ही जब बात दिलचस्प लोगों से मिलने और बातचीत में झिझक को खत्म करने की हो तो ट्विटर संभावनाओं के नए द्वार खोलता है. ट्विटर से शशि थरूर पर बात करना श्री शशि थरूर से सीधे बात करने से कहीं आसान है.’
सिन्हा के मुताबिक एक हालिया अध्ययन में उन्होंने पाया कि भारत में इंटरनेट का इस्तेमाल करने वाले लोगों में से ज्यादातर अब भी ट्विटर के बारे में नहीं जानते. हालांकि करण जौहर और प्रियंका चोपड़ा जैसे सितारों द्वारा अपनी फिल्मों कुर्बान और व्हाट्ज योर राशि के प्रचार के लिए इसका इस्तेमाल बताता है कि ये भारत में धीरे-धीरे अपनी मजबूत पैठ बनाता जा रहा है. समाचार चैनल एनडीटीवी की मैनेजिंग एडिटर बरखा दत्ता तो ट्विटर पर हैं ही साथ ही उनके नाम पर एक फर्जी प्रोफाइल भी चल रहा है और इस सदस्य ने पूरी ईमानदारी दिखाते हुए अपना नाम फेक बरखा दत्ता यानी नकली बरखा दत्त रखा है. ये सदस्य कभी-कभी बरखा पर तंज भी कसता है और इसके 100 से भी ज्यादा फॉलोअर्स हैं.
बरखा ट्विटर को अपने टीवी कार्यक्रमों का ही एक हिस्सा मानती हैं. इसमें उन्हें दर्शकों को परदे के पीछे होने वाली घटनाओं के बारे में बताना आसान हो जाता है. जसा कि उन्होंने संजना जॉन की उस रूखी प्रतिक्रिया पर किया जो संजना ने 59 साल कैद की सजा काट रहे अपने डिजाइनर भाई आनंद जॉन पर बने चैनल के कार्यक्रम पर दी थी. जैसा कि बरखा कहती हैं, ‘ट्विटर बातचीत का एक ऐसा माध्यम है जिसमें आप तुरंत ही बहुत से लोगों से एक साथ बात कर सकते हैं. मैं इसे टीवी और दर्शक के बीच एक संपर्क की तरह इस्तेमाल करती हूं, काफी कुछ एसएमएस और ईमेल की तरह. मैं इसे ये जानने के लिए उपयोग करती हूं कि लोग क्या सोच रहे हैं.’
मगर क्या इसमें बातचीत के एक समंदर में डूब जाने का खतरा नहीं है, ये पूछने पर बरखा कहती हैं, ‘ये इस पर निर्भर करता है कि आप क्या खोज रहे हैं. ट्विटर का मतलब पत्रकारिता या विश्लेषण नहीं है. ये बात करने का एक अवसर है. मगर मैं इसे उथला नहीं कहूंगी. भारतीयों को राय देने का शौक होता है और जब मैं कोई टिप्पणी करती हूं तो इसके जवाब में ढेर सारी प्रतिक्रियाएं आती हैं.’ कोलंबिया ग्रेजुएट स्कूल ऑफ जर्नलिज्म के प्रोफेसर श्री श्रीनिवासन बरखा की बात का समर्थन करते हुए कहते हैं, ‘ट्विटर नए आइडियाज, ट्रेंड्स और सूत्र खोजने में पत्रकारों की मदद कर सकता है. इसकी मदद से वे पाठकों और दर्शकों से नई तरह से जुड़ सकते हैं और नए दर्शकों तक अपना काम पहुंचा सकते हैं. वैसे ये बात हर क्षेत्र के लिए लागू होती है.’
जैसा कि किसी भी मंच पर होता है, ट्विटर यूजर्स को अपने फॉलोअर्स से कई तरह की प्रतिक्रियाएं मिल सकती हैं. असहमति के सुर को मर्यादा की सीमा पार करते देर नहीं लगती. बरखा ऐसी किसी भी चीज को फौरन ब्लॉक कर देती हैं. वे कहती हैं, ‘इंटरनेट लोगों को आपसे सीधे बात करने की सहूलियत देता है. लोगों के साथ मजाक भी होता है मगर मुझे अभी तक बहुत ज्यादा बदतमीजी नहीं झेलनी पड़ी है.’
श्रीनिवासन कहते हैं, ‘ट्विटर का मतलब है एक नई तरह का शिष्टाचार सीखना. मगर वास्तविक जीवन में जो कॉमन सेंस है वही यहां पर भी कॉमन सेंस है. आप जो कहते हैं वह लंबे समय तक मौजूद रहता है. इसलिए मेरा नियम ये है कि ट्विटर को अपनी और दूसरों की मदद के लिए इस्तेमाल करिए न कि अपना भोंपू बजाने के लिए.’ जैसा कि आम जिंदगी में भी होता है, बदतमीज, बेकार की बातें करने वाले और असभ्य लोगों को ज्यादातर लोग ब्लॉक कर देते हैं. बरखा कहती हैं, ‘आपको सावधान रहते हुए सार्वजनिक शिष्टाचार के नियमों के हिसाब से चलना पड़ता है. याद रखना पड़ता है कि एक तरह से इंटरनेट की दुनिया प्रकाशन की दुनिया है.’ और इस दुनिया भी असल दुनिया की तरह उन लोगों से बचा जाता है जो आत्ममुग्धता से ग्रस्त होते हैं और उन लोगों से मिलने-जुलने को प्रोत्साहन दिया जाता है जो काम के होते हैं.
जैसा कि नंदी कहते हैं, ‘आपमें ये क्षमता होनी चाहिए कि आप किसी विचार को 140 अक्षरों में पूरी तरह से व्यक्त कर सकें. कभी-कभी मैं ऐसा करता हूं कि छह बिंदु लेता हूं और उन्हें बुन देता हूं. ये माध्यम आपको भाषा को असरदार तरीके से इस्तेमाल करना सिखाता है.’ नंदी मानते हैं कि एक ऐसे माहौल में जहां चापलूसी को प्रोत्साहन मिल रहा है, ट्विटर आपको बहस के लिए जगह देता है. वे कहते हैं, ‘सभी नए मंचों की तरह ये व्यवस्था विरोधी और तर्कवादी है. इसमें कई बेकार की बातें भी हो रही हैं मगर वहीं इस पर कई गूढ़ विचारक भी हैं. कई मंच इस तरह की सुविधा नहीं देते भले ही वे कितने भी व्यापक क्यों न हों.’ नंदी का मानना है कि अगले आठ महीनों के दौरान इस माध्यम की लोकप्रियता में विस्फोट होगा.
हालांकि इसकी सफलता एक बड़ी हद तक इस बात पर भी निर्भर करेगी कि ये कितनी आसानी से प्रचार और मार्केटिंग के लिए इस्तेमाल हो सकता है. सिन्हा कहते हैं, ‘प्रियंका चोपड़ा आसानी से अपनी आने वाली फिल्मों का प्रचार ट्विटर पर कर रही हैं. कई ब्रांड्स भी ग्राहकों से फीडबैक पाने के लिए ट्वीट्स की मदद ले रहे हैं. टीवी चैनल्स भी अपनी ट्विटर आईडीज प्रोमोट कर रहे हैं. ब्लॉगिंग के साथ ऐसा कभी नहीं हुआ था.’ हालांकि ये बात भी सही है कि जसा अधिकांश तकनीकों के साथ होता है, इसके नए और अप्रत्याशित उपयोगों के बारे में तो सिर्फ आने वाला समय ही कुछ बता सकेगा. चेन्नई के डा वेंकटचलम ट्विटर पर इस साल जुलाई में किए गए घुटने के एक ऑपरेशन के बारे में बताते हैं तो हाल ही में इंफोसिस द्वारा एक सौदा पक्का करने की खबर बताती है कि देश में माइक्रोब्लॉगिंग का भविष्य संभावनाओं से भरा हुआ है.
मगर ऐसा नहीं है कि हर कोई इसे लेकर इतना ही उत्साहित हो. कुछ लोग ऐसे भी हैं जो खुद को इस तेजरफ्तार दुनिया से परे कर रहे हैं. जैसा कि लीगल रिसर्चर लॉरेंस लियांग कहते हैं, ‘मोबाइल्स, एसएमएस और ईमेल के इस जमाने में हम पहले से ही तेज रफ्तार के पीड़ित हैं. हर चीज की तुरंत प्रतिक्रिया देने की जरूरत होती है, हर चीज को तुरंत जानने की जरूरत होती है. ऐसे लोग जरूर हैं जो इसे रचनात्मक तरीके से इस्तेमाल कर सकते हैं और जिनके लिए तात्कालिकता एक जरूरत है मगर मैं धीमी रफ्तार में यकीन रखता हूं. और ये ट्विटर के संसार में अजनबी सी चीज है जहां चौबीसों घंटे मुझसे कुछ न कुछ कहने की अपेक्षा की जाती है.’ लियांग मानते हैं कि इंटरनेट की दुनिया में सांस लेने में उन्हें अब थोड़ी-थोड़ी दिक्कत होने लगी है. मगर जिंदगी की रफ्तार को सुस्त करने की ये कोशिश सबके लिए नहीं है. खासकर उनके लिए जो जिंदगी तेज रफ्तार में जीना चाहते हैं और जी भी रहे हैं. शशि थरूर को छोड़ दिया जाए तो ट्विटर का इस्तेमाल करने वाली बड़ी शख्सियतों में से ज्यादातर फिल्म और मीडिया से जुड़ी हुई हैं. जैसा कि साइकोथेरेपिस्ट नीतू सरीन कहती हैं, ‘ट्विटर आत्मअभिव्यक्ति का पर्याय बन चुका है. फेसबुक या माइस्पेस की तरह इसका इस्तेमाल अपनी खोई जड़ें तलाशने के लिए नहीं हो रहा. बल्कि ये अपनी राय देने और उसे दुनिया तक पहुंचाने के लिए इस्तेमाल हो रहा है.’
सरीन मानती हैं कि इन शख्सियतों की ट्वीट्स उनके एक ऐसे हिस्से को दर्शाती हैं जो छिपा हुआ होता है. वे कहती हैं, ‘आप चाहें पत्रकार हों या अभिनेता, आपके भीतर एक कोना ऐसा होता है जो सबके सामने आना चाहता है. एक दूसरा हिस्सा होता है जो छिपे रहना चाहता है. ट्विटर आपको ऐसा करने की सुविधा देता है. हालांकि यहां पर ऐसा दुर्लभता से ही होता है कि कोई सनसनी मचाने वाली नितांत निजी जानकारियां सार्वजनिक करे. तो एक तरह से ये किसी व्यक्ति को किसी दूसरे की जिंदगी में झांकने का मौका तो देता है मगर ऐसा करते हुए एक साफ लकीर भी खिंची होती है जिसके आगे नहीं बढ़ा जा सकता.’ इस तरह देखा जाए तो आप इसके बारे में अपनी राय कायम करने के लिए आजाद हैं. सवाल कई हो सकते हैं. मसलन क्या इसके आने का मतलब ये है कि मुद्दों पर होने वाले विमर्श का बौद्धिक स्तर गिर जाएगा? क्या बड़ी से बड़ी लड़ाइयां और विरोध 140 अक्षरों के ट्वीट तक सिमट कर रह जाएंगे? या फिर इससे गहरे जमी हुईं कई धारणाएं टूटेंगी?
ट्विटर के प्रति इस असहजता की एक वजह शायद इसकी आजादख्याली के प्रति डर भी है. ये इसका एक ऐसा गुण है जिसे बाहर से लोकतंत्र का चोला ओढ़े मगर भीतर काफी हद तक सामंती मानसिकता में डूबे इस समाज में तारीफ भी मिली है और आलोचना भी. सवाल ये भी है कि क्या ट्विटर भारतीयों के सोचने का तरीका बदलेगा? क्या इससे बौद्धिकता का स्तर बढ़ेगा या फिर घटेगा? शायद आपको ये सवाल ट्वीट करने चाहिए. हो सकता है आपको कोई जवाब मिल जाए, वो भी सिर्फ 140 अक्षरों में.