मां ने कहा था

 

मां ने कहा था

चार साल का होने पर

रोटी का कौर

मुंह में रखा ही था

मां कह उठी

अजी सुनते हो

देखो तो इस जितिया को

पूरा एकलखोर है

इसकी चट्टी अंगुली

कैसे उठ रही है

मेरी तरफ

नासपीटा बड़ा होकर

कौन देस जाकर रहेगा

अपनी जैसी जोरू के साथ

तिरालीस की उमर में

अपने हाथ से बेली-सिकी

रोटी खाते हुए

चट्टी अंगुली को

अपनी ओर देख

पांच सौ मील दूर गांव में

मां के अंतिम स्थान को

याद करते हुए

आंसुओं से भीग जाता हूं

भरी बरसात में

पिता के दिए घर में

निपट अकेला.

 

मां तो यही समझती है

मां अब भी यही समझती है

मैं अंगुली पकड़कर

स्कूल जाता हुआ बच्चा हूं

मां को नहीं दिखते

मेरी कनपटी के सफेद बाल

चेहरे पर बढ़ते हुए सल

जब भी आता है गांव से

मां का पत्र

हिदायतों की बरसात कर जाता है

मुझ पर

मैं

तरबतर

हो जाता हूं

उसकी हिदायतों से 

जितेन्द्र चौहान 

                                                     

 

 

 

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