यह मुश्किल रहा होगा कि मैच फिक्सिंग जैसे गंभीर मुद्दे पर सच्ची घटनाओं के हवाले से एक थ्रिलर फिल्म बनाई जाए और वह अपराध-कथा न होकर एक अच्छी कॉमेडी बने. विदेश से आई राज-कृष्णा की निर्देशक जोड़ी इसमें कामयाब रही है. फिल्म में 1999 से मार्च, 2000 तक की कहानी है, जब भारत-दक्षिण अफ्रीका की पूरी श्रंखला फिक्स थी और बाद में उसका पर्दाफाश कई दिग्गजों को ले डूबा था. फिल्म न तो उन दिग्गजों की है और न ही फिक्सिंग के सूत्नधार की. निर्देशकों को यह जिम्मेदारी भी बखूबी याद है कि वे दर्शकों को कहानी के समय का अहसास सिर्फ स्क्रीन पर तारीखें लिखकर नहीं, उस समय की महत्वपूर्ण घटनाओं में शामिल करके करवाएं.
मोबाइल फोन तब नए थे और उनसे होने वाले नुक्सान की खबरें भी. बॉलीवुड अपनी जड़ें भूल रहा था और भोजपुरी सिनेमा उसे पकड़ रहा था. भारतीय क्रिकेट टीम खराब खेलती थी और एक किरदार कहता भी है कि हमारे खिलाड़ियों के लिए पचास ओवर ओवरडोज हो जाते हैं इनके लिए बीस ओवर के मैच शुरु किए जाने चाहिए. इसी तरह फिल्म कई चीजों पर व्यंग्य करती है. जैसे कुणाल और सायरस दिल्ली नहीं आना चाहते क्योंकि वहां मार्च में सर्दी और अक्टूबर में गर्मी पड़ती है, लोग कारों के शीशे खोलकर भांगड़ा रीमिक्स बजाते हैं, लड़कियों के दो ही नाम होते हैं- पूजा और नेहा, और दिल्ली में सब चोर हैं. वे एक और सीख देते हैं कि पीछा कर रही पुलिस से बचकर भागो तो पीछे नोट बिखेर जाओ, कभी नहीं पकड़े जाओगे.
छायांकन कहीं कहीं कार्टून फिल्मों जैसा है और वह कॉमेडी के प्रभाव को बढ़ाता है. दृश्य वहां खत्म होते हैं, जहां आप इनके खत्म होने की सबसे कम उम्मीद कर रहे होते हैं. कुदरत के इशारों में सट्टे की किस्मत ढूंढ़ते बोमन ईरानी और उनसे अपने पैसे की उगाही के लिए भटकते अमित मिस्त्नी नि:संदेह सारा श्रेय ले जाते हैं. अमित का अभिनय शानदार है. बोमन सूक्ष्मताओं पर मेहनत करते हैं इसलिए स्थूल प्रभाव छोड़ते हैं. कुणाल और सोहा की प्रेम कहानी फिल्म की कमजोरी है लेकिन बोमन-सिमोन का परतदार रिश्ता काफी हद तक उस पर पर्दा डालता है. कुणाल ठीक अभिनय करते हैं लेकिन कहीं कुछ कमी है कि उनकी फिल्म देखने के बाद वे याद नहीं रहते. आखिर में सौ बात की एक बात. ट्रक और कार की भिड़ंत या गोली से घायल होने के दृश्य में कोई फिल्म आपको हंसा सकती है तो वह जरूर देखी जानी चाहिए. सुना है कि मल्टीप्लेक्स वाले टिकट सस्ती करने वाले हैं. ऐसा हो तो बधाई.
गौरव सोलंकी