थोड़े से सिर-पैर वाला मजा फुल्टू

सबसे पहले मुद्दे की बात..अगर आप मौज मस्ती के शौकीन हैं और ज्यादा दिमाग न लगाना चाहते हुए भी थोड़े सिर-पैर वाली फिल्म देखना चाहते हैं तो हैलो देखें. फिल्म देखने के बाद कई लोगों के चेहरे टटोले, कइयों की छुप कर बातें सुनीं मगर कहीं भी डेढ़ सौ रुपये जाया होने का गम नजर नहीं आया.

हैलो, इंजीनियर, इनवेस्टमेंट बैंकर और आख़िर में राईटर चेतन भगत के बहुचर्चित उपन्यास वन नाइट @ द कॉल सेंटर पर आधारित है. चेतन ने खुद ही फिल्म के संवाद और पटकथा लिखी है, जो कि फिल्म में हास्य पैदा करने वाली मजेदार परिस्थितियों-जिसके लिए चेतन मशहूर हैं – में स्पष्ट नजर भी आता है.

फिल्म का निर्देशन सलमान खान के बहनोई और किसी जमाने में आयीं सर और आतिश जैसी इक्का-दुक्का फिल्मों में अभिनय कर चुके अतुल अग्निहोत्री का है और हालिया वक्त में फिल्म रॉक ऑन के निर्देशक अभिषेक कपूर के बाद वे दूसरे ऐसे असफल अभिनेता नजर आते हैं जिनमें निर्देशन की बड़ी संभावनाएं देखी जा सकती हैं.

फिल्म का सबसे उजला पक्ष है इसकी कसावट. फिल्म में हर वक्त कुछ न कुछ ऐसा घटता है जो दर्शकों को बांधे रहता है. यहां तक कि शर्मन जोशी और गुल पनाग के अन्तरंग पलों का फिल्मांकन भी लोगों के चेहरों पर मुस्कराहट लाये बिना नहीं रहता. फिल्म में नकारात्मक बिन्दुओं के नाम पर शायद कुछ भी नहीं. हां अंग्रेजी का काफी इस्तेमाल किए जाने की वजह से हो सकता है छोटे शहरों की जनता फिल्म का पूरा मजा न ले पाये मगर पृष्ठभूमि में कॉल सेंटर होने से इसे कैसे भी अन्यायोचित नहीं ठहराया जा सकता.

फिल्म में अभिनय सभी का ठीक-ठाक है मगर सोहेल और शर्मन को इसकी जान कहा जा सकता है. हां एक बात और! फिल्म के पोस्टरों में सलमान और कैटरीना का आकार फिल्म में उनकी भूमिकाओं के आकार से कतई मेल नहीं खाता मगर इसे भी फिल्म की खासियत ही कहा जाएगा कि इसे देखते वक्त आपको किसी भी तरह की धोखाधड़ी का शिकार होने का जरा भी एहसास नहीं होता.

संजय दुबे