सर्वोच्च न्यायालय ने उत्तर प्रदेश लखनऊ में नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) के खिलाफ प्रदर्शन के दौरान कथित रूप से हिंसा फैलाने वालों के फोटो और नाम-पते वाले होर्डिंग लगाए जाने के मामले में गुरूवार को व्यवस्था देते हुए कहा कि वो हाई कोर्ट के आदेश पर फिलहाल रोक नही लगाएंगे और अगले हफ्ते तीन जजों की बेंच मामले की सुनवाई करेगी। योगी सरकार को इससे झटका लगा है।
याद रहे इलाहाबाद हाई कोर्ट ने पिछले हफ्ते सीएए प्रदर्शन के दौरान कथित हिंसा के आरोपियों का पोस्टर हटाने का आदेश दिया था। यूपी प्रशासन ने लखनऊ के अलग-अलग चौराहों पर वसूली के लिए ५७ कथित प्रदर्शनकारियों के करीब सौ होर्डिंग दीवारों पर लगाए हैं।
उधर सर्वोच्च न्यायालय में गुरूवार को इस मामले पर सुनवाई हुई। यूपी सरकार ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है। याचिका पर सुनवाई के दौरान सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने यूपी सरकार की तरफ से पक्ष रखते हुए कहा कि जिनके पोस्टर लगाए गए हैं वे सभी ५७ लोग हिंसा में शामिल थे। उन्होंने इलाहबाद हाई कोर्ट के फैसले के बारे में सुप्रीम कोर्ट को बताया और कहा कि निजता के अधिकार की सीमाएं हैं।
इस पर न्यायमूर्ति ललित ने कहा कि किसी ने खुलेआम अनुशासनहीनता की है। किसी ने वीडियो बना लिया। आप कह रहे हैं कि ये बात सार्वजनिक है। लेकिन सवाल यह है कि क्या आप इस तरह फोटो लगा सकते हैं ? न्यायमूर्ति ललित ने तुषार मेहता से कहा कि अभी ऐसा कोई क़ानून नहीं है, जो आपके बैनर लगाने के इस कदम का समर्थन करता हो।
सर्वोच्च अदालत ने यूपी में दंगाइयों के पोस्टर लगाने के मामले को सुप्रीम कोर्ट की बड़ी बेंच के पास भेज दिया। अब सुप्रीम कोर्ट के तीन जजों की बेंच इस मामले की सुनवाई करेगी। कोर्ट ने व्यवस्था देते हुए कहा कि कि वो हाई कोर्ट के आदेश पर फिलहाल रोक नही लगाएंगे। अगले हफ्ते उचित बेंच मामले की सुनवाई करेगी।