हॉकी के एक युग का अंत

बलबीर सिंह सीनियर चले गए। अपने पीछे छोड़ गए एक लंबा इतिहास। एक एहसास जीने का। उनका पूरा जीवन, जीवन की एक मिसाल है। उनके जाने से हॉकी के उस युग का खात्मा हो गया जिस में हम आज भी जी रहे हैं।

बलबीर सिंह सीनियर ने न केवल देश को तीन ओलंपिक के स्वर्ण पदक दिलवाए बल्कि 1956 के अपने अंतिम ओलंपिक के बाद 2020 तक के 64 सालों में अपने व्यक्तित्व और शब्दों से हर उस खिलाड़ी का मार्गदर्शन भी किया जो निराशा के गहरे साए में डूबा उनके पास आया। बलबीर सिंह सीनियर एक व्यक्ति नहीं एक संस्था थे। वे केवल हॉकी तक सीमित नहीं रहे बल्कि उन्हों ने देश में खेल संस्कृति को विकसित करने की भरपूर कोशिश की।

1975 के विश्व कप को जितने वाली भारतीय हॉकी टीम के वे मैनेजर थे। वे चंडीगढ़ में आयोजित कैंप से ही कप जीतने का मजबूत इरादा ले कर मलेशिया के कुआलालंपुर गए थे। वे हमेशा टीम के साथ रहते। उसका पूरा ध्यान रखते।

मुझे याद है जब 1976 के मोंट्रियल ओलंपिक में पहली बार एस्ट्रो टर्फ का इस्तेमाल हुआ और भारत की टीम विश्व कप जीतने के एक साल के भीतर ऑस्ट्रेलिया और अर्जेंटीना जैसी टीमों से हार गई। ओलंपिक में भारत पहली बार बिना पदक के लौटा। इस पर देश में एक हंगामा हो गया। देश की हॉकी फैडरेशन ने इस हार के लिए एस्ट्रो टर्फ को विलेन बना दिया। किसी ने इस पर ध्यान नहीं दिया कि हॉकी में गिरावट तो १९६० के रोम ओलंपिक से दिखानी शुरू हो गई थी जब हमने पहली बार अपना स्वर्ण पदक खोया था। इसके बाद 1968 मैक्सिको और 1972 के म्यूनिख ओलंपिक खेलों में भी हमें केवल ब्रोंज़ मेडल हासिल हुए। 1976 के मंट्रायल ओलंपिक के प्रदर्शन और भारत के हॉकी जानकारों के बयान देखने के बाद मैंने एक दिन चंडीगढ़ प्रेस क्लब में बलबीर सिंह सीनियर से इस पर सवाल किया, “अगर आप के टाईम में एस्ट्रो टर्फ होती तो परिणाम क्या होते”? उन्हों ने पूरे आत्मविशवास और ठेठ पंजाबी अंदाज़ में कहा, “जे उदों एस्ट्रो टर्फ हुंदी ता में उस्तों दुगने गोल कर्दा जिन्ने मै ओलंपिक बीच कीते” (यदि उस समय एस्ट्रो टर्फ होती तो मैं उससे दुगने गोल करता जीतने मैंने ओलम्पिक में किए)। ध्यान रहे उन्हों ने तीन ओलंपिक खेलों में कुल आठ मैच खेले और 22 गोल किए। उनका कहना था कि एस्ट्रो ट्रफ पर गेंद को काबू करना आसान है। घास पर वह नियंत्रण नहीं रहता।

साफ कहूं तो ध्यान चंद के बाद आज देश ने हॉकी का दूसरा जादूगर खो दिया। जब तक हॉकी ज़िंदा है तब तक ज़िंदा रहेगा बलबीर सिंह सीनियर।