हमारे समाज में सिर का बड़ा महत्व है। सिर है तो हम हैं। हम हैं तो फिर सिर फुटैल भी कर सकते हैं। राजनीति में तो सिर फुटैल और टांग सिंचाई आम बात है। इतनी आम कि यदि कुछ दिन किसी राजनीतिक दल से ऐसी खबर न आए तो लोगों को लगता है कि वह पार्टी आखिर कर क्या रही है। कोई काम नहीं हो रहा। संसद और विधानसभाओं में कुर्सियों चलाना माईक उखाड़ कर मारना, एक दूजे पर झपटना हमारे लोकतंत्र में कोई नई बात नहीं। यही वजह है कि हमारे दल उसी को टिकट देने लगे हैं जिसके खिलाफ हत्या, मारपीट वगैरा के दो-चार मुकदमे तो दर्ज हों। कहने का मतलब यह है कि शारीरिक तौर पर मजबूत व्यक्ति ही पार्टियों की पहली पसंद बनता जा रहा है। आखिर सदन में पता नहीं कब किसको पीटना पड़े या कब पिटना पड़े। पहला ज़माना था जब सदनों में गंभीर बहस हुआ करती थी। आज भी उनकी बहस को लाइबे्ररी में पड़ा जाए तो यकीन ही नहीं होता कि बहस ऐसी सार्थक भी हो सकती है जिसमें कोई गाली गलौग न हो और सही आंकडे पेश किए जाएं। उस समय संसद में सिर बचाने की ज़रूरत नहीं थी। आज है। इसलिए यदि वहां अपनी सुरक्षा के लिए हैलमेट पहन लिया जाए तो क्या हर्ज है। खैर हैलमेट तो सिर को बचाता है फिर वह संसद में हो या सडक़ पर।
पिछले दिनों एक राज्य के दो प्रमुख पदों पर बैठे नेताओं में हैलमेट को लेकर सिर फुटैल की नौबत आ गई। एक महिला उपराज्यपाल नेआदेश दिए कि जो आदमी बिना हैलमेट पहने स्कूटर या मोटरसाइकिल चलाए उसका चलान मोटर व्हीकल एकट के तहत किया जाए। दूसरे नेता अड़ गए। बोले हम तो हैलमेट नहीं पहनेगे। वह बोली पहनना पड़ेगा, पर ये बोले मैं न पहनू। सरकार हमारी है पुलिस हमारी है तो अगर हमने और जुलूस में शामिल हमारे समर्थकों ने हैलमेट पहन लिए तो हमारी तो इज्ज़त ही तार-तार हो जाएगी। राज्य के प्रशासन में इतने बड़े पद पर बैठने के बाद भी हमने हैलमेट पहन लिया तो हमारे बच्चे हम पर हंसेंगे। यहां तो जिस नौजवान का बाप पुलिस में हवलदार हो वह हैलमेट पहना अपनी शान के खिलाफ समझता है तो जिसके मताहत पूरी पुलिस हो वह कैसे हैलमेट पहन ले। कानून तो आम आदमी के लिए होता है। विशेष दर्जा प्राप्त लोग तो इससे ऊपर होते हैं। खास लोग वही होते हैं जो कानून को नहीं मानते। लाल बत्ती पर न रुकना, गति की निर्धारित सीमा से अधिक स्पीड पर वाहन दौडऩा उनकी शान है। कार में सीट बैल्ट लगा कर बैठना इनकी व्यक्तिगत आज़ादी पर बड़ा प्रहार है और व्यक्तिगत आज़ादी हर भारतीय नागरिक का मौलिक अधिकार है तो वे सीट बैल्ट लगाना उने शोभा नहीं देता।
तो साहिब, दोनों बड़े लोगों में ठन गई। मैडम अड़ी हैं चालान करने पर। उनके पास हथियार हैं मोटर व्हीकल एकट, हाईकोर्ट और सुप्रीमकोर्ट के इस विषय में दिय गए आदेश और निर्देश। जबकि राज्य के मालिक क्या कमाल का तर्क देते है, कहते हैं – भाई अगर में हैलमेट लगा कर स्कूटर की सवारी करूंगा तो मुझे कौन पहचानेगा। उनका तर्क वाजिब है भई हैलमेट लगाने से चेहरा तो ढकता ही है, और इसे ढकने के लिए ही तो हैलमेट पहना जाता है। क्रिकेट के खिलाड़ी भी हैलमेट पहन कर ही बल्लेबाज़ी करते हैं, पर फिर भी स्टेडियम में बैठे हर दर्शक को बल्लेबाज़ की पहचान होती है। पर खिलाड़ी तो आम आदमी होते हैं इसलिए हैलमेट में भी पहचान लिए जाते हैं, पर राज्य का मुख्यमंत्री तो बहुत खास होता है, उसे लोग क्यों नहीं पहचान सकते यह बात हमारी छोटी सी समझ में वहीं आती। वैसे यह सही है कि जो दिखता है वह बिकता है। पर साहब बिकता बिकता तो ईमान है बिकता तो जमीर है, जो बाहर से नज़र नहीं आता।
खैर हमने क्या लेना है कोई कानून माने या न माने उस पर चले यह न चले, हैलमेट पहने या न पहने मर्जी है आप की आखिर सिर है आपका