शैलेंद्र कुमार ‘इंसान’
सियासी पत्ते आसानी से नहीं खुलते। इसके चलते तमाम अनुमान और कयास लगते हैं। राजस्थान के सियासी पत्ते भी खुले नहीं हैं, परन्तु राज्य के विधानसभा सदस्य सचिन पायलट की मंशा पर संदेह के बादल मंडरा रहे हैं। कयास लग रहे हैं कि सचिन पायलट राजस्थान का ताज चाहते हैं, जिसके लिए वह कांग्रेस की सबसे बड़ी दुश्मन पार्टी भाजपा के पहलू में जाकर भी बैठने को तैयार हैं। बहाना है राजस्थान के मुख्यमंत्री का भाजपा की वसुंधरा राजे सरकार में हुए घोटालों की जाँच न करने का। हो सकता है कि सचिन पायलट वास्तव में इसी मुद्दे को लेकर विरोध पर उतरे हों, परन्तु कुछ संकेत इस पर विश्वास नहीं होने दे रहे हैं।
कुछ ही महीने पहले की बात है, जब राजस्थान के विधायक सचिन पायलट ने अपनी ही सरकार को ठिकाने लगाने की पहली कोशिश की थी और अपने कुछ समर्थक विधायकों के साथ फ़रीदाबाद के एक होटल में चले गये थे। परन्तु सियासत के खिलाड़ी राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने सारे पत्ते खोल दिये और इस साज़िश का पर्दा$फाश करते हुए सचिन पायलट को बैकफुट पर ला दिया। उस समय सचिन पायलट से राजस्थान के उप मुख्यमंत्री का पद भी छिन गया और राज्य कांग्रेस अध्यक्ष का पद भी छिन गया। तब भी यही आरोप लगे थे कि सचिन पायलट भाजपा से मिले हुए हैं और अपनी सरकार गिराकर भाजपा के साथ मिलकर सरकार बनाना चाहते हैं, क्योंकि वह राज्य का मुख्यमंत्री बनना चाहते हैं, जिसके लिए वह शुरू से ही अपने वरिष्ठ अशोक गहलोत से टकराव करते आ रहे हैं। माना जा रहा है कि सचिन पायलट भाजपा के बड़े-बड़े नेताओं के इशारे पर ऐसा कर रहे हैं, क्योंकि वे सचिन को मुख्यमंत्री बनाने की शर्त मंजूर कर चुके हैं, बिलकुल महाराष्ट्र के एकनाथ शिंदे की तरह।
पहली बार असफल रहने के बाद अब दूसरी बार सचिन पायलट मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की बग़ावत पर उतरे, तो उन्होंने एक दिन की अनशन भी की। परन्तु इस अनशन में गाँधी परिवार का विरोध दिखा, क्योंकि जिस बैनर के नीचे पायलट अनशन पर बैठे, उस बैनर में महात्मा गाँधी की तस्वीर तो थी, परन्तु गाँधी परिवार के किसी सदस्य की तस्वीर तक नहीं थी। इस तरह बैनर से गाँधी परिवार को ग़ायब कर देने से कयास लगने लगे कि सचिन गाँधी परिवार की ही बग़ावत कर रहे हैं।
कहा जा रहा है कि इस बग़ावत में कांग्रेस के कुछ विधायक खुलकर तो कुछ दबी ज़ुबान से पायलट के समर्थन में खड़े हैं। वहीं अलवर ज़िले के बहरोड से निर्दलीय विधायक बलजीत यादव खुलकर पायलट के समर्थन में आ खड़े हुए हैं। यह वही विधायक हैं, जो पेपर लीक, बेरोज़गारी, वादे करके उन्हें पूरा न करने, निजी क्षेत्र में 75 प्रतिशत रिक्तियों पर स्थानीय युवाओं को आरक्षण देने, छ: महीने में पाँच लाख सरकारी नौकरियाँ देने, प्रश्न पत्रों का लेवल सेट करने, शिक्षा की गुणवत्ता सुधारने, भ्रष्टाचार रोकने और किसानों के साथ न्याय करने जैसे कई मुद्दों को लेकर काले कपड़े पहनकर लम्बे समय से गहलोत सरकार का विरोध कर रहे हैं। हालाँकि इससे अशोक गहलोत सरकार को कोई $खतरा नहीं है, क्योंकि अभी भी उनके साथ संख्याबल ज़्यादा है। वहीं सचिन पायलट इतने भी कमज़ोर नहीं हैं कि उनकी आवाज़ का राजस्थान में असर न हो। वह इकलौते क़द्दावर गुर्जर नेता हैं। यही वजह है कि कांग्रेस ने उनकी नकेल कसी तो, परन्तु उनके ख़िलाफ़ कोई बड़ी कार्यवाही नहीं कर सकी है; भले ही पार्टी आलाकमान सचिन से काफ़ी नाराज़ बतायी जा रही हैं।
वास्तव में सचिन अशोक गहलोत और वसुंधरा राजे की मिलीभगत को लेकर सवाल उठा रहे हैं, जो भाजपा के लिए एक तीर से दो निशाने जैसा है। क्योंकि वसुंधरा राजे से प्रधानमंत्री मोदी और गृह मंत्री अमित शाह की बनती नहीं है, जिसके चलते उन्हें राजस्थान की भाजपा इकाई से अलग-थलग सा कर दिया गया है। वहीं भाजपा किसी भी हाल में राजस्थान में अपनी सरकार चाहती है। ऐसे में वसुंधरा के बहाने गहलोत के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाकर पायलट ने भाजपा की राज्य में सत्ता की भूख की आग में आहूतियाँ डालनी शुरू कर दी हैं। हालाँकि सभी जानते हैं कि वसुंधरा राजे और अशोक गहलोत के सियासी रिश्ते खटास भरे नहीं हैं। वहीं सचिन पायलट और अशोक गहलोत के सियासी रिश्तों में हमेशा तकरार रही है। हालाँकि ऐसा नहीं कि सचिन पायलट अशोक गहलोत का विरोध हर मामले में करते हैं, परन्तु वह ऐसे मुद्दे खोजते रहे हैं, जिनका बहाना लेकर उन्हें विरोध का मौ$का मिले। प्रश्न उठ रहा है कि क्या पायलट आगामी विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के ख़िलाफ़ जाकर भाजपा के साथ जाएँगे? क्योंकि राजस्थान के पूर्व उप मुख्यमंत्री 2020 में अपनी प्रतिष्ठा और पद खोने के चलते तिलमिलाये हुए तो हैं, परन्तु भाजपा की जीत के आसार भी राजस्थान में नज़र नहीं आ रहे हैं। यही वजह है कि सचिन अभी खुलकर भाजपा ख़ेमे में कूद भी नहीं सकते। हो सकता है कि बग़ावत करके वह अपने समर्थकों की नब्ज़ टटोल रहे हों और भाजपा को यह दिखा रहे हों कि देखिए मेरे दम पर ही राजस्थान में आप सरकार बना सकते हैं।
फ़िलहाल तो सचिन पायलट ने अपना विरोध पत्र कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खडग़े और राजस्थान कांग्रेस प्रभारी सुखजिंदर सिंह रंधावा को मिलकर सौंप चुके हैं। लेकिन रंधावा बोल चुके हैं कि सचिन पायलट के ऊपर कार्रवाई होगी। उन्होंने कहा कि वह राजस्थान को पंजाब नहीं बनने देंगे। हालाँकि उन्होंने सचिन पायलट द्वारा उठाये गये मुद्दों को सही बताया, परन्तु उनके तरीक़े को ग़लत बताया। अब सचिन पायलट ने सीधे कांग्रेस को ही धमकी दे दी है कि अगर उन्हें नज़रअंदाज़ किया गया, तो वह पार्टी विरोधी गतिविधि चलाएँगे।
पायलट की इस बग़ावत के बीच राजस्थान को वंदे भारत एक्सप्रेस ट्रेन की सौगात दी मिली, जिसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वर्चुअल तरीक़े से हरी झंडी दी, जिसमें जयपुर प्लेटफॉर्म पर अशोक गहलोत मौज़ूद थे। इस दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राजस्थान सियासी माहौल को लेकर गहलोत पर चुटकी लेते हुए कहा कि गहलोत जी का मैं विशेष रूप से आभार व्यक्त करता हूँ कि इन दिनों वह राजनीतिक आपाधापी में हैं। अनेक संकटों से गुज़र रहे हैं। बावजूद इसके वह विकास के काम के लिए समय निकालकर आये, रेलवे के कार्यक्रम में हिस्सा लिया। मैं उनका स्वागत भी करता हूँ। अभिनंदन भी करता हूँ। मैं गहलोत जी से कहना चाहता हूँ कि आपके तो दोनों हाथों में लड्डू हैं। रेल मंत्री राजस्थान के हैं और रेलवे बोर्ड के चेयरमैन भी राजस्थान के हैं।
प्रधानमंत्री की इस चुटकी पर राजस्थान के मुख्यमंत्री ने सचिन को लेकर सीधे-सीधे भाजपा और गृह मंत्री अमित शाह पर निशाना साधा है। उन्होंने पायलट पर निशाना साधते हुए कहा कि एक ग़द्दार मुख्यमंत्री नहीं बन सकता। हाईकमान सचिन पायलट को मुख्यमंत्री नहीं बना सकता। एक ऐसा शख्स, जिसके पास 10 विधायक भी नहीं हैं। ऐसा शख़्स, जिसने विद्रोह किया, उन्होंने पार्टी को धोखा दिया, वह ग़द्दार हैं। इस बग़ावत को भाजपा ने फंड किया था और इसके पीछे केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह सहित भाजपा के वरिष्ठ नेता शामिल थे।
देखना यह है कि राजस्थान में सियासी खिलाड़ी अशोक गहलोत को चंद विधायकों के समर्थन और भाजपा की विपक्षी सरकार गिराओ, अपनी सरकार बनाओ नीति कितनी दिक़्क़त आएगी? क्या वह अपनी सरकार बचाने और दोबारा राजस्थान जीतने में सफल रह सकेंगे?