नौ नवम्बर के विधानसभा चुनाव के लिए हिमाचल में चुनावी रणक्षेत्र सज गया है। प्रदेश के चुनावी इतिहास में यह पहला मौका है जब मुख्यमंत्री पद के दोनों प्रमुख संभावित उम्मीदवार प्रेम कुमार धूमल और वीरभद्र सिंह नए हलकों से चुनाव लड़ रहे हैं। 68 सीटों वाली विधानसभा में प्रवेश के लिए 338 प्रत्याशी मैदान में डटे हैं। मुख्य मुकाबला भाजपा और कांग्रेस के बीच है जबकि कुछ सीटों पर माक्र्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) और निर्दलीय भी उपस्थिति दर्ज करवाते दिख रहे हैं। कांग्रेस और भाजपा के लिए चिंता बागियों से है जिनके कुल जमा 13 (सात और छह) नेता मैदान में जमे हैं।
कांग्रेस मुख्यमंत्री पद के लिए वीरभद्र सिंह को ही अपना उम्मीदवार घोषित कर चुकी है जबकि भाजपा ने इस पद के लिए देरी से ही सही पूर्व मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल का नाम सीएम पद के लिए घोषित कर दिया। केंद्रीय मंत्री जगत प्रकाश नड्डा, पूर्व प्रदेश अध्यक्ष जय राम ठाकुर और संघ-संगठन के अजय जम्बाल के नाम भी चर्चा में था। फिलहाल मोदी और उनकी सरकार के कामकाज के मुद्दे पर ही भाजपा चुनाव में है।
मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह ने पिछले चुनाव कांग्रेस के टिकट पर शिमला ग्रामीण हलके से लड़ा जबकि इस बार यह सीट उन्होंने अपने बेटे और प्रदेश युवा कांग्रेस के अध्यक्ष विक्रमादित्य सिंह के लिए छोड़ दी है और खुद नए हलके सोलन जिले के अर्की से लड़ रहे हैं। इसी तरह प्रदेश भाजपा के सबसे बड़े नेता प्रेम कुमार धूमल जो पिछली बार हमीरपुर से लड़े थे इस बार पार्टी आलाकमान ने उन्हें रणनीति के तहत सुजानपुर हलके से मैदान में उतारा है।
कांग्रेस पिछले पांच साल में अपनी सरकार के कामकाज और विकास को मुद्द्दा बनाकर चुनाव मैदान में है। हमेशा की तरह मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह ही उसका सबसे बड़ा चेहरा हैं। भाजपा मोदी सरकार की उपलब्धियों का बखान कर रही है और उसका मुख्य चेहरा प्रेम कुमार धूमल हैं जबकि जगत प्रकाश नड्डा भी पूरी ताकत से मैदान में डटे हैं। दोनों ही दलों का दावा है कि उनकी ही सरकार बनेगी। वैसे प्रदेश का इतिहास रहा है यहां हर बार सरकार बदल जाती है। देखना है इस बार यह परम्परा जारी रहती है या नहीं।
दोनों दलों के राष्ट्रीय नेताओं का आना शुरू हो गया है जिनमें पूर्व मुख्यमंत्री या मुख्यमंत्री या दोनों दलों के बड़े ओहदेदार शामिल हैं। कांग्रेस के लिए सोनिया गांधी और राहुल गांधी नवम्बर के पहले हफ्ते आएंगे। पार्टी के कुछ बड़े नेता पहले से हिमाचल में डटे हैं। उधर धूमल के मुताबिक नवंबर के पहले सप्ताह ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की प्रदेश के हर संसदीय क्षेत्र में एक-एक रैली होगी। उन्होंने कहा कि पीएम की पहली रैली ऊना जि़ले में होगी। भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह और 17 भाजपा संगठन हमीरपुर में शिरकत करेंगे।
किसी दल की कोई हवा फिलहाल नहीं दिखती हो सकता है मतदान से एक हफ्ता पहले परिस्थितियां कोई करवट लें। चुनाव आयोग का कहना है कि मतदान के लिए तमाम तैयारियां की जा रही हैं और संवेदनशील हलकों में सुरक्षा के चैकस प्रबंध किये जा रहे हैं। प्रदेश से लगती दूसरे प्रदेशों की सीमाओं को सील कर दिया गया है।
दोनों दलों के लिए इस चुनाव में कई बार असुखद परिस्थितियां बनीं। कांग्रेस के मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार वीरभद्र सिंह ने पहले ऐलान किया कि शिमला जिले के ठियोग से चुनाव लड़ेंगे। उनके लिए आठ बार की विधायक और वरिष्ठ मंत्री विद्या स्टोक्स ने अपनी सीट भी छोड़ दी। लेकिन बाद में कांग्रेस की जब सूची आई तो आलाकमान ने उन्हें सोलन जिले के अर्की से लडऩे का फरमान सुना दिया। ठियोग के लिए कांग्रेस ने नया उम्मीदवार घोषित कर दिया जो स्टोक्स की पसंद के विपरीत था लिहाजा उन्होंने विरोध स्वरुप खुद भी नामांकन भर दिया जो रद्द हो गया। इसके खिलाफ वे कोर्ट में चली गईं हालांकि बाद में याचिका वापस ले ली। इस सीट पर अब माकपा के राकेश सिंघा मजबूत हो गए हैं। माना जा रहा है की कांग्रेस के बागियों के वोट भी माकपा के खाते में जाएंगे। सिंघा पहले भी शिमला सीट से विधायक रह चुके हैं। भाजपा ने वहां से ताकतवर राकेश वर्मा को मैदान में उतारा है।
उधर भाजपा में भी अजीब स्थिति तब बनी जब आलाकमान ने पूर्व मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल का हलका बदल दिया। उन्होंने पिछले सभी चुनाव हमीरपुर से लड़े हैं जबकि इस बार उन्हें इसी जिले के सुजानपुर से मैदान में उतारा गया है। कहते हैं हलका बदले जाने से धूमल प्रसन्न नहीं थे। वैसे माना जाता है कि सुजानपुर से भाजपा विधायक नरेंद्र ठाकुर को कांग्रेस के राजिंद्र राणा के मुकाबले कमजोर मानते हुए वहां से धूमल को उतारा गया और नरेंद्र को हमीरपुर से ताकि दोनों सीटें भाजपा की झोली में आ सकें।
जहाँ तक खास हलकों की बात है अर्की, सुजानपुर और ठियोग के अलावा नादौन, ऊना और मंडी इनमें शामिल हैं। नादौन से प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष सुखविंदर सिंह सुक्खू मैदान में हैं। पिछले बार कांग्रेस की जीत के बावजूद वे इस सीट से हार गए थे। उन्हें वीरभद्र सिंह विरोधी नेता माना जाता है लिहाजा मुख्यमंत्री के समर्थकों पर आरोप लगता रहा है कि वे खुल कर सुक्खू के समर्थन में नहीं उतरते।
ऊना प्रदेश भाजपा अध्यक्ष सतपाल सिंह सत्ती का हल्का जहाँ से वे पिछले चुनाव भी जीते थे।
मंडी में पूर्व केंद्रीय मंत्री सुख राम, जो भ्रष्टाचार के मामलों के कारण सक्रिय राजनीति से कमोवेश बाहर रहे हैं, कुछ रोज पहले अपने बेटे अनिल शर्मा के साथ भाजपा में शामिल हो गए। अनिल शर्मा उस समय वीरभद्र सिंह सरकार में मंत्री थे। इससे भाजपा नेताओं में नाराजगी भी रही और उन्होंने अनिल शर्मा को मंडी से पार्टी उम्मीदवार बनाने का विरोध किया। इन नेताओं की भूमिका अनिल की हार जीत में अहम रोल अदा करेगी। दूसरा उनका मुकाबला कांग्रेस की जिस चंपा ठाकुर के साथ है वह नगर परिषद् की अध्यक्ष होने के अलावा प्रदेश सरकार में वरिष्ठ मंत्री कौल सिंह की बेटी हैं।
इस बार कांग्रेस में नेताओं के बच्चों को टिकट का मसला भी काफी गरम रहा। पार्टी उपाध्यक्ष राहुल गांधी इस बात के विरोध में थे कि परिवार के दो सदस्यों को टिकट दिए जाएँ। लेकिन मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह के पुत्र विक्रमादित्य सिंह और कौल सिंह की बेटी चंपा ठाकुर को टिकट दिए गए। पालमपुर से बीबी बुटेल के पुत्र आशीष बुटेल को टिकट मिला हालाँकि पूर्व विधानसभा अध्यक्ष बीबी बुटेल खुद चुनाव नहीं लड़ रहे।
जहाँ तक बागियों की बात है कांग्रेस के सात बागी मैदान में हैं। वे शिमला शहरी, नालागढ़, द्रंग, ऊना सदर, कुल्लू, लाहुल स्पीति और रामपुर में पार्टी उम्मीदवारों का खेल बिगाड़ सकते हैं। भाजपा में छह बागी मैदान में हैं और वे पालमपुर, फतेहपुर, चम्बा, रेणुका, हरोली और भरमौर में पार्टी को हानि कर सकते हैं।
चुनाव में उम्मीदवारों के बच्चे, पत्नियां, पति और दूसरे परिजन भी मैदान में डटे हैं। अर्की में मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह के लिए उनकी पत्नी पूर्व सांसद प्रतिभा सिंह प्रचार कर रही हैं तो शिमला ग्रामीण सीट पर विक्रमादित्य सिंह के लिए उनकी बहन मैदान में हैं। भाजपा यहाँ विक्रमादित्य की सम्पति को लेकर सवाल उठा रही है। सुजानपुर में प्रेम कुमार धूमल के लिए उनके सांसद बेटे अनुराग ठाकुर और छोटे बेटे अरुण धूमल अपने पिता की जीत सुनिश्चित करने में लगे हैं। धर्मशाला में पूर्व मंत्री और भाजपा प्रत्याशी किशन कपूर की बेटी प्रगति कपूर ने टिकट मिलने से लेकर चुनाव प्रचार तक सोशल मीडिया पर सघन अभियान चलाया। वे भी प्रचार में जुटी हैं। इसी तरह दूसरे हलकों में भी परिजन प्रचार में रोल अदा कर रहे हैं।
चुनाव में माकपा भी मैदान में है। शिमला नगर निगम के मेयर रहे संजय चौहान उसका चेहरा हैं जबकि ठियोग में अनुभवी राकेश सिंघा मैदान में हैं। उनकी स्थिति मजबूत मानी जा रही है क्योंकि कांग्रेस में जंग है। पिछले चुनाव में राकेश सिंघा ठियोग में 18.74 प्रतिशत मतों के साथ 10,388वोट लेकर तीसरे स्थान पर रहे थे। 2012 में ही कसुम्पटी से कुलदीप तंवर 4798 वोट लेकर चौथे स्थान पर रहे थे। वे फिर मैदान में हैं। हो सकता है कुछ सीटों पर निर्दलीय भी बाजी मार लें।
वीरभद्र सिंह का नाम मुख्यमंत्री पद के लिए राहुल गाँधी ने मंडी की रैली में घोषित किया और इसने मानों कांग्रेस में जान फूंक दी। महीने के शुरू तक जो भीतरी जंग थी उसपर बर्फ पड़ती दिख रही है। अभी दोनों प्रमुख दलों के बड़े नेताओं की रैलियां शुरू होनी हैं लिहाजा काफी कुछ ऊपर नीचे होगा। चुनाव अभियान के मारक मुद्दे अभी उछाले जाने हैं। लिहाजा चुनाव की दिशा भी बदलनी है। गुजरात के चुनाव में क्या हवा बन रही है इस पर भी इस पहाड़ी सूबे के मतदाताओं की नजर टिकी है।
भाजपा ने प्रेम कुमार धूमल के नेतृत्व में पिछले पांच साल में वीरभद्र सिंह के नेतृत्व की कांग्रेस सरकार पर जम कर हमले किये। विधानसभा के भीतर भी और बाहर भी। धूमल ही भाजपा की राजनीति का इन पांच सालों में चेहरा रहे। और अब जब चुनाव आये तो इस पर सवाल खड़े हो गए। कारण भाजपा आलाकमान के नजदीकी स्वास्थ्य मंत्री जगत प्रकाश नड्डा का नाम सामने आना है। संघ के खास और संगठन के नेता मंडी के अजय जम्वाल और जय राम ठाकुर का नाम भी चर्चा में है।
भाजपा क्या चुनाव से पहले किसी का नाम आगे करेगी, यह बड़ा सवाल इस पहाड़ी सूबे में पूछा जा रहा है। भाजपा बिना कोई चेहरा आगे किए उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में चुनाव लड़ चुकी है हालांकि हिमाचल में यह दांव उल्टा पड़ सकता है। धूमल का नाम खारिज नहीं कर सकती पार्टी क्योंकि इसके नतीजे उसके लिए विपरीत हो सकते हैं। धूमल फिलहाल भाजपा के इस सूबे में सबसे बड़ा और चुनावी राजनीति के
लिहाज से सबसे सशक्त चेहरा हैं। मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह के बाद वे प्रदेश के सबसे बड़े राजनीतिक नेता हैं।
पिछले पांच साल में जिस तरह वीरभद्र सिंह की सरकार ने उनके और उनके पुत्र सांसद अनुराग ठाकुर के खिलाफ हिमाचल प्रदेश क्रिकेट एसोसिएशन (एचपीसीए) को जमीन देने के मामले बनाये और आधी रात को धर्मशाला के स्टेडियम पर ताले जड़े उसकी धूमल और भाजपा को सहानुभूति भी मिली। सभी को लग रहा था कि धूमल ही भाजपा का चुनाव में चेहरा होंगे। पर आलाकमान की चुप्पी से भाजपा ही नहीं,आम लोगों में भी सुगबुगाहट है। कुछ को यह भी लगता है कि भाजपा आलाकमान धूमल के नाम का चुनाव में फायदा उठा कर उन्हें किनारे कर देगी और राज्यपाल का ओहदा देकर सूबे से बाहर कर देगी। लेकिन क्या धूमल के बिना वह सत्ता की देहरी तक पहुँच भी पाएगी यह बड़ा सवाल है?
हिमाचल कांग्रेस में वीरभद्र सिंह हैं के लिए 84 साल की उम्र में भी कोई मजबूत चुनौती पार्टी के भीतर नहीं दिखती। वीरभद्र सिंह अपनी तबीयत के नेता हैं और बिना रोक टोक काम करना पसंद करते हैं। इस उम्र में भी राहुल गाँधी ने उन पर भरोसा किया तो सिर्फ इसलिए कि वे जानते हैं कि देश में पार्टी के सामने संकट की जो स्थिति है और उसे जीत की जो खुराक इस समय दरकार है, उसे हिमाचल में वीरभद्र सिंह ही मुहैया करवा सकते हैं। राजा विधानसभा की 68 सीटों में से 42 पर फोकस करने की रणनीति पर काम कर रहे हैं और इन्हीं पर पूरी ताकत झोंकेंगे। 2012 के विधानसभा चुनाव में उन्होंने दो महीने में पूरी बाजी पलट कर सत्ता कांग्रेस की झोली में डाल दी थी जबकि उस समय धूमल की लीडरशिप में भाजपा दुबारा सत्ता में आती दिख रही थी।
वीरभद्र सिंह समर्थक इस बार के चुनाव को ‘वीरभद्र का आखिरी चुनावÓ बताकर लोगों से सहानुभूति हासिल करना चाहते हैं। वैसे ही जैसे2012 के विधानसभा चुनाव में पंजाब में प्रकाश सिंह बादल के लिए अकाली दाल ने किया था और लगातार दूसरी बार सत्ता झटक ली थी। जरूरी नहीं, हिमाचल के मतदाता पंजाब का अनुसरण करें, लेकिन कांग्रेस के लोग तो कोशिश करेंगे ही। भाजपा ने 2007 में प्रेम कुमार धूमल का नाम आगे करके चुनाव में 43 सीटें जीत ली थीं और पंजाब में इसी साल कैप्टेन
अमरिंदर सिंह को आगे कर 76 सीटें जीत ली कांग्रेस उम्मीद कर रही है कि हिमाचल में भी उसे लाभ मिलेगा।
कांग्रेस का दावा है कि उसके सामने सत्त्ता संकट नहीं क्योंकि उसने पूरे पांच साल जमकर काम किया है। भाजपा का कहना है कि मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह भ्रष्टाचार के गंभीर मामले झेल रहे हैं और पिछले पांच साल सूबे में माफिया का राज रहा है। तीसरी राजनीतिक शक्ति नाम की कोई चीज सामने नहीं दिख रही इस चुनाव में। दोनों बड़े दलों के सामने भीतरघात की चुनौती है। यह चर्चा है कि भाजपा लोक सभा के चुनाव 2018 में ही करवा सकती है, लिहाजा गुजरात ही नहीं जैसा देश की राजनीति के लिहाज से छोटा सूबा हिमाचल भी अहम हो गया है। चुनाव के नतीजे क्या रहेंगे यह तो 18 दिसंबर को ही जाहिर होगा जब मतों की गिनती होगी। फिलहाल भाजपा परिवर्तन का दावा कर रही है।