हिंसा में तबाह हो रहा मणिपुर

डबल इंजन की भाजपा सरकार को सर्वोच्च न्यायालय ने याद दिलाया दायित्व

शैलेंद्र कुमार ‘इंसान’

मणिपुर हिंसा थमने का नाम नहीं ले रही है। रिपोर्ट लिखे जाने तक हिंसा में 142 लोग मारे जा चुके थे। 460 से अधिक घायल हो चुके थे। लगभग 6,745 लोग हिरासत में लिये जा चुके थे। 5,995 लोगों पर एफआईआर दर्ज हो चुकी थी। आगजनी के 5,000 से अधिक मामले दर्ज हो चुके थे। कुकी तथा नगा समुदाय की जनजाति एकता रैली निकालने पर 3 मई से मैतई समुदाय के हमले से हिंसा फैली। राज्य में करोड़ों की निजी तथा सरकारी सम्पत्ति का नुक़सान हो चुका है। 9-10 जुलाई की रात को मणिपुर के पश्चिम कांगपोकपी क्षेत्र में हिंसक झड़प में एक पुलिसकर्मी शहीद हो गया तथा 10 लोग घायल हो गये। राज्य के चुराचांदपुर ज़िले की एक्सिस बैंक से हिंसक भीड़ द्वारा एक करोड़ से अधिक नक़दी तथा अन्य सामान की लूट हुई है।

हिंसा रोकने के लिए सर्वोच्च न्यायालय को दख़ल देनी पड़ी है। सर्वोच्च न्यायालय ने मणिपुर में मौज़ूद सभी पक्षों से शान्ति बनाये रखने की अपील की है। साथ ही राज्य के लोग से ऐसे भाषण देने से बचने को कहा है, जिनसे राज्य में हिंसा भडक़ सकती है। अल्पसंख्यक कुकी समुदाय वाले इलाकों में सेना और केंद्रीय सुरक्षा बलों की तैनाती की माँगों पर प्रधान न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि देश के इतिहास में पिछले 70 साल में सर्वोच्च न्यायालय ने भारतीय सेना को इस तरह का कोई निर्देश जारी नहीं किया है। सशस्त्र बलों पर असैनिक नियंत्रण को न समाप्त करें। भारत के प्रधान न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़ ने कहा कि नागरिकों की सुरक्षा करना केंद्र सरकार और राज्य सरकार का दायित्व है।

यह वास्तविकता भी है कि मणिपुर में भडक़ी हिंसा को रोकने में भाजपा की डबल इंजन की केंद्र तथा राज्य की सरकारें नाकाम हैं। इस हिंसा की चपेट में आम लोग, पुलिस, सेना, सरकारी सेवाएँ देने वाले भी हैं। सैन्य संगठनों पर हमले हो रहे हैं। लगभग 45,000 पुलिसकर्मी अपनी सुरक्षा के लिए दो धड़ों में बंटे हैं। मैतई समुदाय के पुलिसकर्मी इंफाल घाटी में जा रहे हैं, जहाँ मैतई समुदाय की संख्या अधिक है तथा कुकी-नगा समुदाय के पुलिसकर्मी कुकी-नगा समुदाय बहुल पहाड़ी क्षेत्रों की ओर जा रहे हैं। आईपीएस राजीव सिंह मणिपुर के पुलिस प्रमुख बने, तो उन्होंने पाया कि लगभग 1,200 पुलिसकर्मी ड्यूटी से ही गायब हैं। इसका मतलब पुलिस वाले भी भयभीत हैं। सरकार भी पुलिस वालों पर ही हिंसा का $गुस्सा उतारती दिख रही है। आरोप है कि पुलिस ने हिंसा को समय पर नहीं रोका। मैतई समुदाय की अनुसूचित जनजाति में शामिल होने की माँग से भडक़ी हिंसा धार्मिक हिंसा में बदल चुकी है। हिंसा के लिए कुकी समुदाय को अधिक दोषी बताने की राजनीति हो रही है। हो सकता है कि इसकी वजह मैतई समुदाय की संख्या अधिक होना हो, जो हिन्दू समुदाय है। परन्तु इंडिजिनस ट्राइबल लीडर फोरम ने कुकी समुदाय के लोगों से उन्हें गुमराह करने के लिए माफी माँगी है। इधर लोगों ने भाजपा के ख़िलाफ़ मसाल रैली निकाली है।

सैनिकों पर भी तरह-तरह के आरोप लग रहे हैं। इससे बचने तथा हिंसा रोकने के लिए सैन्य संगठनों ने इन क्षेत्रों में सेना के एक अधिकारी तथा एक मजिस्ट्रेट को तैनात करने की माँग की है। अब सुरक्षा बलों को सशस्त्र बल विशेषाधिकार अधिनियम-1958 (अफस्पा) के तहत अशान्त अधिसूचित 19 थाना क्षेत्रों में हिंसा रोकने में कठिनाई आ रही है। यह कानून सेना को संघर्ष प्रभावित क्षेत्रों में अधिकार प्रदान करता है। वास्तव में यह कानून म्यांमार से घुसपैठ रोकने तथा सीमावर्ती क्षेत्र में उग्रवादी घटनाएँ रोकने के लिए लगाया गया था। परन्तु इस कानून से आम लोगों की हत्याओं के आरोप लगते रहे हैं। इसी अफस्पा कानून को हटाने की माँग करने पर मणिपुर की आंदोलनकर्ता इरोम शर्मिला को बहुत प्रताडि़त किया गया था। कई साल के संघर्ष के बाद उनकी जान चली गयी। स्थानीय लोगों ने हमेशा अफस्पा क़ानून का विरोध किया है। अब सेना अफस्पा हटे क्षेत्रों में दोबारा अफस्पा कानून लगाने की माँग कर रही है। सेना का यह भी आरोप है कि उसके ख़िलाफ़ मीडिया तथा सोशल मीडिया पर निराधार आरोप लग रहे हैं। सैन्य अधिकारियों ने मणिपुर बार एसोसिएशन के जनता के उत्पीडऩ के साक्ष्य साझा करने तथा सेना के $िखला$फ अपनी शिकायतें दर्ज कराने के बयान पर चिन्ता जतायी है।

इधर मणिपुर उच्च न्यायालय बार एसोसिएशन ने सर्वोच्च न्यायालय से कहा है कि राज्य में भारी संख्या में रोहिंग्या मुसलमानों की घुसपैठ हिंसा की सबसे बड़ी वजह है; इसलिए घुसपैठ रोकी जाए। कुछ विशेषज्ञ भी यही मान रहे हैं कि मिजोरम तथा मणिपुर के रास्ते रोहिंग्या मुसलमान घुसपैठ कर रहे हैं, जिसके चलते हिंसा भडक़ी हुई है। केंद्र सरकार ने लोगों की जानकारी का ब्यौरा तैयार कराने के निर्देश जारी किये हैं।

हालाँकि निष्पक्षता से अगर कहें, तो मणिपुर हिंसा में अभी तक मणिपुर हिंसा में स्थानीय मुसलमानों अथवा रोहिंग्या मुसलमानों के शामिल होने के साक्ष्य नहीं हैं। परन्तु अगर मुसलमानइस हिंसा का हिस्सा बने, तो इसका रूप बदल जाएगा। कोई बड़ी बात नहीं कि मणिपुर में आरक्षण को लेकर फैली जातीय हिंसा हिन्दू-ईसाई हिंसा से होते हुए हिन्दू-मुस्लिम हिंसा का रूप ले ले। इसलिए केंद्र सरकार तथा राज्य सरकार को इसे तत्काल रोकना चाहिए। अगर हिंसा रोकना उनके वश से बाहर है अथवा संभव नहीं है, तो राज्य सरकार को बर्खास्त करके मणिपुर में राष्ट्रपति शासन लगा देना चाहिए। परन्तु सार्वजनिक रूप से मणिपुर जाने से प्रधानमंत्री मोदी कतरा रहे हैं, जाना तो दूर वह मणिपुर का नाम तक लेने से बच रहे हैं। कुछ राजनीतिक दलों की माँग है कि नैतिकता के तौर पर मणिपुर सरकार को बर्खास्त करना चाहिए तथा गृह मंत्री अमित शाह को भी इस्तीफ़ा देना चाहिए।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भी ध्यान रखना चाहिए कि अब मणिपुर हिंसा रोकने में उनकी नाकामी की चर्चा अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भी हो रही है। अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं तथा दूसरे देशों ने चिन्ता जतायी है कि बड़ी-बड़ी बातें करने वाले प्रधानमंत्री मोदी अपने ही देश के एक राज्य के हालात ठीक करने में नाकाम साबित हुए हैं। इससे पहले अमेरिकी राजदूत एरिक गार्सेटी ने कहा था कि मणिपुर हिंसा मानवीय चिन्ता का विषय है। यदि स्थिति से निपटने के लिए भारत मदद माँगे, तो अमेरिका उसकी मदद के लिए तैयार है। हास्यास्पद है कि प्रधानमंत्री मोदी द्वारा रूस-यूक्रेन युद्ध रोकने के दावे उनके मंत्री करते रहे हैं; परन्तु आज वह मणिपुर हिंसा तक नहीं रोक पा रहे हैं। क्या यह खुद प्रधानमंत्री के लिए शर्म की बात नहीं है?

अ$फसोस की बात है कि मणिपुर में हिंसा रोकने में नाकाम भाजपा नेता पश्चिम बंगाल के मुद्दे पर घडिय़ाली आँसू बहा रहे हैं। पश्चिम बंगाल में पंचायत चुनावों में हुई हिंसक झड़पों की जाँच के लिए केंद्र सरकार ने वहाँ फैक्ट फाइंडिंग कमेटी भेज दी है। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने इस पर कड़ी आपत्ति जतायी है। उन्होंने केंद्र सरकार से पूछा है कि मणिपुर के दो महीने से अधिक समय से हिंसा में जलने, असम में एनआरसी के दौरान हिंसा भडक़ने, उत्तर प्रदेश में उत्तर प्रदेश में 67 प्रतिशत सीटों पर मतदान न कराने तथा पहलवान बेटियों पर अत्याचार होने के दौरान फैक्ट फाइंडिंग कमेटी कहाँ थी? ममता बनर्जी ने कहा है कि पश्चिम बंगाल में पिछले दो साल में 154 टीमों ने दौरा किया है।

मणिपुर हिंसा की अगर बात करें तो वहाँ मैतई समुदाय को बल मिला हुआ है। राज्य की लगभग 38 लाख की आबादी में लगभग 53 प्रतिशत मैतई हैं तथा 40 प्रतिशत नगा व कुकी हैं, जो अधिकतर पहाड़ी क्षेत्रों में रहते हैं। राज्य के कुल 60 विधायकों में 40 विधायक भी मैतई समुदाय से ही हैं, बा$की 20 विधायक ही नगा तथा कुकी समुदायों के हैं। राज्य में अब तक के शासन में कुल 12 मुख्यमंत्री हुए हैं, जिनमें से दो ही अनुसूचित जनजाति से रहे हैं। वर्तमान मुख्यमंत्री बीरेन सिंह भी मैतई समुदाय से हैं। हिंसा में शामिल गुटों में मैतई गुट में कोऑर्डिनेटिंग कमेटी ऑन मणुपुर इन्टेग्रिटी, अरम्बई टेंगोल, मैतई लिपुन तथा पीपुल्स लिबरेशन आर्मी जैसे गुट शामिल हैं, वहीं कुकी गुट में कुकी नेशनल आर्मी, जोमी रिवल्यूशनरी आर्मी, कुकी रिवॉल्यूशनरी आर्मी, कुकी स्टूडेंट्स ऑर्गेनाइजेशन गुट शामिल हैं। हालाँकि जनसंख्या में अधिक होने के बावजूद मैतेई मणिपुर के 10 प्रतिशत राज्य 80 प्रतिशत जनसंख्या में हैं, जबकि राज्य का 90 प्रतिशत क्षेत्र नगा, कुकी बहुल है। बस इसी 90 प्रतिशत क्षेत्र में मैतई समुदाय अधिकार चाहता है, जहाँ आधिपत्य के लिए इस समुदाय के लोगों को जनजाति में शामिल होने का रास्ता समझ आया है, जिसके चलते हिंसा भडक़ी।

कुकी तथा नगा जनजातियों को लगता है कि अगर मैतई समुदाय को भी जनजाति का दर्जा मिल गया, तो कुकी तथा नगा समुदाय के नौकरियों के बचे हुए अवसर भी उनके हाथ से निकल जाएँगे। उनके पास ले-देकर प्राकृतिक संसाधन, विशेषकर पहाड़ बचे हैं, जो छिन जाएँगे। वर्तमान में हिंसा बहुल क्षेत्रों मे मणिपुर के तेंगनुपाल, बिष्णुपुर, चुराचांदपुर, पूर्वी इंफाल, पश्चिमी इंफाल, अमेंगलोंग, सेनापति, उखरूल, कंगपोकपी, कामजोंग, जिरिबाम, नोनी, थौबल, काकचिंग, फेरर्जों तथा चंदेल ज़िले शामिल हैं। हिंसा रोकने के लिए बीएसएफ के जवान पुलिस तथा दूसरे सैन्य संगठनों के साथ मिलकर सर्च ऑपरेशन चला रहे हैं। 40,000 से अधिक केंद्रीय सुरक्षा बल राज्य में तैनात हैं, जिसमें असम राइफल्स, बीएसएफ, भारतीय सेना, सीआरपीएफ, आईटीबीपी के जवान हैं।

हिंसा प्रभावित मणिपुर के 12,300 से अधिक लोग मिजोरम में विस्थापित हैं। इन लोगों को राहत के नाम पर मणिपुर तथा केंद्र सरकार की ओर से सहायता नहीं मिल रही है। मिजोरम सरकार में मुख्यमंत्री जोरमथांगा ने अपने राज्य में शरण पाए मणिपुर के लोगों की जरूरतें पूरी करने के लिए प्रधानमंत्री मोदी तथा गृह मंत्री अमित शाह से 10 करोड़ रुपये की माँग मई में की थी। परन्तु मिजोरम को कोई मदद नहीं मिली है। मणिपुर हिंसा कब रुकेगी, कब मिजोरम में शरण पाने वाले मणिपुर निवासी अपने घरों को लौटेंगे, इन प्रश्नों के उत्तर किसी के पास नहीं हैं।