एक लंबे अरसे से शिवसेना और बीजेपी के बीच गठबंधन को लेकर जमी हुई बर्फ, बीजेपी ने अपनी तरफ से पहल कर पिघलाने की कोशिश की है वह भी हिंदुत्व के नाम पर ।खबरों की माने तो बीजेपी के नेशनल चीफ अमित शाह ने शिवसेना चीफ उद्धव ठाकरे को फोन कर हिंदुत्व के खातिर जल्दी से फैसला लेने की रिक्वैस्ट की है। चूंकि इस दफा कोशिश बीजेपी के टॉप लीडर की तरफ से हुई है और फोन भी शिवसेना के टॉप के लीडर को किया गया है इसलिए माना जा रहा है कोई रास्ता निकल आएगा ।हालांकि आधिकारिक तौर इस मामले में पर दोनों ही पार्टियों ने मुंह में बर्फ जमा रखी है ।गौरतलब है कि समय-समय पर दोनों ही पार्टियां एक दूसरे को आड़े हाथ लेती रही हैं और यही दर्शाती रही हैं कि दोनों ही पार्टियों को एक दूसरे की जरूरत नहीं है और न ही मिलकर चुनाव लड़ना चाहते हैं। शिवसेना इस मामले में ज्यादा प्रखर रही है ।मोदी सरकार के फैसलों और प्राइम मिनिस्टर मोदी पर शिवसेना लगातार वार करती आ रही है। किसानों का लोकल मुद्दा हो या राम मंदिर निर्माण का नेशनल मामला शिवसेना अपोजिशन पार्टी की तरह रवैया अख़्तियार किए रही है। हालांकि शिवसेना की इन हरकतों की जवाबी कार्रवाई में बीजेपी की स्टेट इकाई ने कोताही नहीं बरती।
हिंदुत्व के नाम पर शिवसेना से गुहार, बीजेपी की मजबूरी या राजनीतिक पैंतरा
पिछले दिनों शिवसेना के राज्य सभा सांसद और स्पोक पर्सन संजय राऊत ने सार्वजनिक तौर पर जाहिर किया कि महाराष्ट्र में शिवसेना पिछले 25 सालों से बड़े भाई की भूमिका में है और वह बड़ा भाई बन कर ही रहेगी । शिवसेना के इस स्टेटमेंट ने महाराष्ट्र में बीजेपी- शिवसेना अलायंस में शिवसेना का स्टैंड साफ कर दिया था। इतना ही नहीं राऊत ने अपने सांसदों से कहा कि उन्हें बीजेपी की तरफ से अलायन्स का कोई प्रपोजल नहीं मिला है और वे अफवाहों पर ध्यान न दें।
शिवसेना के इस स्टेटमेंट के तुरंत बाद महाराष्ट्र के चीफ मिनिस्टर देवेंद्र फडणवीस ने पलटवार करते हुए कहा कि बीजेपी कोई लाचार पार्टी नहीं है हिंदुत्व के मुद्दे पर जो उनके साथ आना चाहता है वह आए जो नहीं आना चाहता है वह न आए उन्हें किसी की ज़रूरत नहीं है। ऐन लोकसभा चुनाव के पहले अलायन्स को लेकर शिवसेना के आक्रमक रवैया से बीजेपी के आला लीडरान ने महसूस किया कि इस मसले को हल करने के लिए उन्हें ही अपनी ओर से पहल करनी पड़ेगी ।बीजेपी कहीं ना कहीं यह मान चुकी है कि उनकी स्थिति इस वक्त 2014 जैसी नहीं रही है। वह अपने मित्र पक्षों से अलग रहकर कोई खतरा मोल नहीं लेना चाहती।
हालांकि अमित शाह के उद्धव को किए फोन को लेकर बीजेपी के एक धड़े में बेचैनी है नाराज़गी है यह वे लोग हैं जो शिवसेना को सबक सिखाना चाहते हैं लेकिन बोलने से कतरा रहे हैं दूसरा धड़ा इस बात पर सहमत है कि जब तक चुनाव नहीं हो जाते तब तक इसी पॉलिसी पर काम किया जाए ताकि नतीजों पर कोई असर ना पड़े।
शिवसेना ने भी मसले पर अभी तक कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है हालांकि वहां भी इसी तरह के 2 धड़े हो गये हैं। एक धड़ा बीजेपी को सबक सिखाना चाहती है और दूसरा सत्ता का सुख पाना चाहती है।
शिवसेना की छीछालेदर इस बात को लेकर होती रही है कि वह सत्ता की भागीदारी कर सत्ता का सुख भोग रही है और बीजेपी की समय-समय पर बुराई कर यह भी जताने की कोशिश करती है कि उसे सत्ता के सुख से ज्यादा आम जनता की परेशानियों का ख्याल है।
भले ही शिवसेना यह दावा करे कि वह गठबंधन तोड़ सकती है और अकेले दम पर चुनाव लड़ सकती है लेकिन उसके लिए उसे अपने उन भीतर के लोगों से भी लड़ना पड़ेगा जो बिल्कुल नहीं चाहते कि उनके हाथ से सत्ता का सुख से फिसल जाए।
हालांकि इसमें कोई दो राय नहीं कि बीजेप हिंदुत्व का कार्ड लेकर शिवसेना को रिझाने की कोशिश कर रही है लेकिन यह बात दीगर है कि अब शिवसेना भी बार-बार खुद को हिंदुत्व का पुरोधा मनवाने में जुट गई है। राम मंदिर निर्माण के मामले में शिवसेना का अयोध्या जाकर हिंदू हार्ट लैंड यूपी में बीजेपी को चुनौती देना उसकी मंशा साबित करने के लिए काफी है। वैसे भी शिवसेना के संस्थापक बाल ठाकरे खुद को हिंदुत्व झंडाबरदार मानते रहे थे। बाबरी मस्जिद ढहाए जाने की जिम्मेदारी लेते हुए उन्होंने खुद को प्रखर हिंदुत्ववादी बताया था।
अमित शाह के फोन के बाद अब शिवसेना के पास हाथ बढ़ाने के लिए एक तर्क है कि वह झुकी नहीं बल्कि बीजेपी ने उससे मदद की गुहार की है और वह मौके पर अपना मित्र धरम निभाने के लिए मजबूर है। हालांकि वह बीजेपी की इस मजबूरी का जमकर दोहन करने से पीछे नहीं हटेगी। बीजेपी द्वारा हिंदुत्व के मुद्दे पर मांगी मदद को ठुकरा कर शिवसेना
कतई नहीं चाहेगी कि उसकी हिंदुत्ववादी छवि को ठेस पहुंचे। यह देखना वाकई दिलचस्प होगा कि बीजेपी के चाणक्य माने जाने वाले वाले शाह एक कदम पीछे हटकर कौन सी चाल चल चुके हैं जिसमें शिवसेना फंस कर अपना दर्प बनाए हुए वह कर बैठेगी जिसके लिए वह लगातार मना करती रही है।
बीजेपी पर निर्भर करता है कि वह आपने मजबूरी का फायदा शिवसेना को उठाने दे या खुद को मजबूर दिखा राजनीति के खेल में खुद को राजनीति में मजबूत करें