हिंदी का वैश्विक फ़लक

आजादी से पहले से ही हिंदी भारत में जनसंचार, संवाद और संपर्क की भाषा थी और आज विश्व की संपर्क भाषा बनने की दिशा में तेजी से अग्रसर है। अपने आगाज से ही हिंदी व्यावहारिक और लचीली भाषा रही है। इसे दूसरे भाषाओं या बोलियों से शब्द लेने से कभी गुरेज नहीं रहा है। वैश्विक भाषा बनने की पहली शर्त होती है कि अधिक से अधिक लोग उस भाषा में संवाद करें, उसमें दूसरी भाषाओं के शब्दों को आत्मसात करने की क्षमता हो, उसका साहित्य समृद्ध हो आदि। इन पैमानों पर हिंदी भाषा पूरी तरह से खरी उतरती है।

हिंदी दिवस

हिंदी भाषा के वैश्विक स्तर पर प्रचार-प्रसार के लिए हर साल 10 जनवरी को दुनिया भर में “विश्व हिंदी दिवस” मनाया जाता है और 14 सितंबर को भारत में “हिंदी दिवस” मनाया जाता है। भारत में हिंदी दिवस मनाने की शुरुआत देश की आजादी के बाद हुई। 1946 को 14 सितंबर के दिन संविधान सभा ने देवनागरी लिपि में लिखी हिंदी को भारत की आधिकारिक भाषा के तौर पर स्वीकार किया था। तदुपरांत, तत्कालीन सरकार ने 14 सितंबर को “हिंदी दिवस” के तौर पर मनाने का फैसला किया और आधिकारिक तौर पर पहला “हिंदी दिवस” 14 सितंबर 1953 को मनाया गया।

 

हिंदी दिवस की प्रासंगकिता

भारत में 22 भाषाएँ और 72,507 बोलियाँ हैं। इसलिये, कुछ लोग सवाल करते हैं कि “हिंदी दिवस” क्यों मनाया जाये। इसकी जगह पर भाषा दिवस मनाया जाये और सभी भाषाओं को तरजीह दी जाये, लेकिन 22 भाषाओं में हिंदी का संपर्क भाषा के रूप में देश में सबसे ज्यादा इस्तेमाल किया जा रहा है। हिंदी दुनिया में सबसे ज्यादा बोली जाने वाली भाषाओं में तीसरे स्थान पर है। हिंदी भारत को दुनिया से जोड़ने का काम कर रही है और कमोबेश यह भारत को भी एक सूत्र में पिरोती है। इसलिए, सरकार ने इसे राजभाषा का दर्जा दिया। यह राजभाषा के रूप में संविधान के भाग 5, भाग 6 और भाग 17 में समाविष्ट है।

1947 में देश तो आजाद हो गया, लेकिन अँग्रेजी मोह से हम आजाद नहीं हो सके। आजादी मिलने के बाद भी एक लंबे समय तक सरकारी कार्यालयों और अदालतों में अँग्रेजी का बोलबाला रहा। देश के तथाकथित प्रबुद्ध और बुद्धिजीवी वर्ग तो आज भी अँग्रेजी के हिमायती हैं। लिहाजा, देश में अँग्रेजी के बढ़ते चलन और हिंदी की अनदेखी को रोकने के लिये “हिंदी दिवस” को मनाना जरूरी समझा गया। सरकार की मंशा थी कि “हिंदी दिवस” के जरिये सरकारी कार्यालयों, अदालतों और जनमानस के बीच हिंदी के महत्व को रेखांकित किया जाये और उन्हें हिंदी का अधिक से अधिक इस्तेमाल करने के लिये प्रेरित किया जाये और आज सरकार की उक्त मंशा कमोबेश पूरी होती हुई दिख रही है।

राष्ट्रभाषा बनाने की जरूरत

एक स्वाभिमानी देश की पहचान उसकी राष्ट्रभाषा से होती है। दुनिया के सभी प्रमुख देशों की अपनी एक राष्ट्रभाषा है। भारत की भी एक राष्ट्रभाषा होनी चाहिए। भारत में मौजूद 22 भाषाओं में सिर्फ हिंदी में ही राष्ट्रभाषा बनने की क्षमता है। इसलिए, महात्मा गाँधी ने हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाने के लिये कहा था। मोदी सरकार हिंदी को आगे बढ़ाने में महती भूमिका निभा रही है। माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी खुद भी हिंदी में संवाद करते हैं और उनके मंत्रिमंडल के कई दूसरे मंत्री भी। लिहाज़ा,आगामी कुछ सालों में हिंदी के राष्ट्रभाषा बनने की प्रबल संभावना है।

उत्पत्ति

आठवीं शताब्दी ईसा पूर्व तक आर्यों की भाषा संस्कृत थी। दूसरी शताब्दी ईसा पूर्व में संस्कृत भाषा की जगह पाली भाषा ने ले ली। कालांतर में पाली भाषा से प्राकृत भाषा का जन्म हुआ। हिंदी भाषा का स्रोत प्राकृत भाषा को माना जाता है। उस कालखंड में सिंधु नदी के आस-पास के इलाकों में “हिंदवी”नाम की भाषा बोली जाती थी। कालांतर में अमीर खुसरो ने इसी भाषा में साहित्य रचना की। बाद में “हिंदवी” भाषा हिंदी के नाम से जानी जाने लगी। आधुनिक भारत की लगभग सभी भाषाओं की जन्मदात्री प्राकृत भाषा मानी जाती है।

समृद्ध साहित्य

हिंदी भाषा का साहित्य बहुत ही समृद्ध है। यह वीर, भक्ति, शृंगार आदि रसों से परिपूर्ण है। इसकी तुलना विश्व के श्रेष्ठ साहित्यों से की जाती है। विगत 1500 सालों से हिंदी का साहित्य लगातार समृद्ध हो रहा है। हिंदी भाषा को विरासत में कई भाषाओं और बोलियों का समृद्ध शब्द भंडार मिला है। हिंदी ने अरबी-फारसी, उर्दू, अँग्रेजी, संस्कृत, बांग्ला, गुजराती, मराठी, उड़िया और बोलियों में अवधी, मगही, भोजपुरी, ब्रजभाषा, बुंदेलखंडी आदि के शब्दों को खुलेमन से स्वीकार किया है। देश-विदेश के लोग हिंदी के लेखकों व कवियों को पढ़ने के लिए हिंदी सीख रहे हैं। देवकी नंदन खत्री द्वारा लिखित उपन्यास “चंद्रकांतासंतति”कोपढ़नेकेलिएबहुतसारेलोगोंनेहिंदीसीखीथी.आज किसी भी भाव की भावाव्यक्ति हिंदी भाषा में की जा सकती है। हिंदी भाषा ने विश्व को कई श्रेष्ठ रचनाएँ दी है। हिंदी कविताओं का विश्व साहित्य में महत्वपूर्ण स्थान है। प्रवासी भारतीयों का भी हिंदी साहित्य को समृद्ध करने में महती योगदान है। हिंदी में उपन्यास, कवितायें, निबंध संग्रह,नाटक आदि प्रवासी भारतीय लिख रहे हैं। प्रवासी भारतीय हिंदी पर कार्यशाला, सम्मेलन, गोष्ठी, सेमिनार आदि का आयोजन भी नियमित तौर पर कर रहे हैं, जिससे हिंदी मुसलसल समृद्ध हो रही है। हिंदी के

 विकास में मीडिया की भूमिका

मीडिया हिंदी को विश्व में लोकप्रिय बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है। हिंदी के पहले अखबार का नाम उदंत मार्तंड था, जिसका प्रकाशन अब के कोलकाता में 1826 में हुआ था। आज की मीडिया, जिनमें प्रिंट और इलेक्ट्रोनिक प्रमुख हैं, मुख्य रूप से संप्रेषण की भाषा के तौर पर हिंदी का इस्तेमाल कर रही हैं।

भारत में रेडियो की शुरुआत बीसवीं सदी के तीसरे दशक में हुई, जबकि दूरदर्शन का आगाज बीसवीं सदी के छठे दशक में हुआ. निजी टीवी चैनल भी बीसवीं सदी के नब्बे के दशक में भारत आ गए थे. मीडिया के इन नये चेहरों के आने से देश एवं विदेशों में हिंदी के प्रसार में अभूतपूर्व तेजी आई. वैसे प्रदेश, जहाँ हिंदी नहीं बोली जाती थी,वहां भी,अब हिंदी को सुना व सीखा जाने लगा है. मीडिया की वजह से हिंदी विश्व के कोने-कोने तक पहुँच गई है। तमिलनाडू का कोई अंजान शहर हो या नामीबिया का, हर जगह हम हिंदी के समाचार व कार्यक्रम को सुन व देख सकते हैं।

दैनिक भास्कर, जो एक हिंदी दैनिक है, देश का सबसे अधिक सर्कुलेशन वाला अखबार है। ऑडिट ब्यूरो ऑफ सर्कुलेशन के अनुसार वर्ष 2019 में दैनिक भास्कर की कुल प्रसारित संख्या 45लाख से भी अधिक थी, जबकि दूसरे स्थान पर दैनिक जागरण था। उल्लेखनीय है कि यह संख्या तीसरे स्थान पर रहे टाइम्स ऑफ़ इंडिया से 15 लाख से भी ज्यादा है.

टीवी पर भी सबसे अधिक हिंदी के समाचार, विज्ञापन एवं कार्यक्रम प्रसारित किये जा रहे हैं। विदेशों से भी हिंदी के अखबार प्रकाशित हो रहे हैं। उदहारण के तौर पर “हमहिन्दुस्तानी”अख़बारकाप्रकाशनअमेरिकासेकिया जा रहा है. विदेशों से हिंदी की पत्रिकाएँ भी प्रकाशित हो रही हैं। कई हिंदी पोर्टलों का संचालन भी विदेशों से किया जा रहा है. जैसे, हिंदी साहित्यिक पोर्टल “सेतु”कासंचालनअमेरिका से किया जा रहा है।

अखबारों ने नई तकनीकों को अपना लिया है, जिससे भी हिंदी का का वितान विस्तृत हो रहा है। अखबारों के प्रिंट वर्जन के साथ-साथ उनके ई-पेपर अब निकाले जाने लगे हैं। ई-पेपर, इंटरनेट पर हमेशा उपलब्ध रहता है। अब लोग ऑनलाइन भी अखबार पढ़ सकते हैं। आजकल तो मोबाइल पर हिंदी अखबारों को लोग पढ़ रहे हैं। इतना ही नहीं,संपादक के नाम पत्र, लेख आदि भी मोबाइल पर लिखे जा रहे हैं। हालाँकि, इसके बाद भी छपे अखबारों की लोकप्रियता कम नहीं हुई है। कभी एक अखबारका सर्कुलेशन 50 से 100 हुआ करता था, जो आज बढ़कर लगभग 50 लाख के आसपास पहुँच गया है। मीडियाका उदेश्य सिर्फ समाचार प्रसारित करना नहीं है, बल्कि मनोरंजन, विचार-विश्लेषण, साक्षात्कार, घटना-विश्लेषण, विज्ञापन प्रसारित करना आदि भी है, जिसके कारण इसके पाठक व दर्शकों की संख्या निरंतर बढ़ रही है।

 नर्इ मीडिया से हिंदी भाषा को बल

भारत में नई मीडिया का प्रवेश हो चुका है, जो वेब मीडिया के नाम से जाना जाता है। वेबदुनिया, डेली हंट, फर्स्ट पोस्ट, इंडिया वाच, द बेटर इंडिया आदि कुछ प्रमुख वेब मीडिया भारत में सक्रिय हैं। इसके तहत,इंटरनेट के माध्यम से सूचनाओं का आदान-प्रदान किया जाता है। अधिकांश नई मीडिया के संप्रेषण का माध्यम हिंदी है।   

 तीसरी सर्वाधिक बोली जाने वाली भाषा

वर्ल्ड लैंगवेज़ डेटाबेस के 22वें संस्करण इथोनोलॉज के अनुसार विश्व में सबसे अधिक अँग्रेजी भाषा बोली जाती है, दूसरे स्थान पर चीन की भाषा मंदारिन है और तीसरे स्थान पर हिंदी भाषा है। लगभग 113 करोड़ लोग अँग्रेजी बोलते हैं, जबकि 62 करोड़ लोग हिंदी बोलते हैं। आज 3 दर्जन से अधिक देशों में हिंदी प्रमुखता से बोली व समझी जाती है। अमेरिका में अँग्रेजी के बाद दूसरी सबसे लोकप्रिय भाषा हिंदी है।

 स्वीकार्यता में आगे है हिंदी

हिंदी का वैश्विक फ़लक तभी विस्तृत हो सकता है, जब यह अपने घर में लोकप्रिय हो, जन-जन की भाषा हो। इस नजरिये से देखें तो हिंदी भारत की सबसे लोकप्रिय भाषा है। भले ही यह अभी तक राष्ट्रभाषा नहीं बन सकी है, लेकिन जनभाषा तो है ही। देश में यह सबसे अधिक बोली व समझी जाने वाली भाषा है। देश की लगभग 125 करोड़ की आबादी में से 53 करोड़ लोगों की मातृभाषा हिंदी है, जबकि 13.9 करोड़ या 11 प्रतिशत लोगों की यह दूसरी भाषा है. इस तरह से देश में 55 प्रतिशत कीमातृभाषा या दूसरी भाषा हिंदी है।

तकनीक ने बनाया हिंदी को सशक्त

प्रौद्योगिकी और अंतरजाल यानी इंटरनेट की दुनिया ने भाषा के रूप में हिंदी को नई पहचान दिलाने में मदद की है। इंटरनेट पर मौजूद हजारों-लाखों हिंदी एप्स और वेबसाइटों ने हिंदी की पहुंच को विश्वव्यापी बना दिया है। हिंदी, इंटरनेट और कंप्यूटर के अनुकूल बन गई है। हिंदी, ईमेल, सोशल मीडिया और वेब मीडिया की भाषा बन गई है। इंटरनेट, इंस्टाग्राम और फेसबुक पर हिंदी का प्रयोग निरंतर बढ़ रहा है। आज उसी भाषा को लोग आत्मसात करते हैं,जो तकनीक के अनुकूल हो साथ ही साथ कारोबार व विज्ञान के विकास में सहायक हो। हिंदी,अब विज्ञान व प्रौद्योगिकी एवं कारोबार के विकास की वाहक बनती जा रही है।

 यूनिकोड ने बढ़ाया हिंदी का दायरा

यूनिकोडकी वजह से हिंदी और भी लचीली बन गई है। लगभग 31 साल पहले अस्तित्व में आई यूनिकोड ने हिंदी को विश्वव्यापी बनाने में महती भूमिका निभाई है। इसकी वजह से कंप्यूटर, लैपटॉप, टैबलेट और मोबाइल पर आसानी से हिंदी लिखी और पढ़ी जा रही है। इसने भारतीय भाषाओं में कंप्यूटिंग को आसान बना दिया है। अब आप एक बार टाइपिंग सीखकर इंटरनेट,विंडोज,मोबाइल, टैबलेट पर एक समान रूप से काम कर सकते हैं।इसकी वजह से कंप्यूटर, इंटरनेट, सोशल एवं वेब मीडिया पर हिंदी का खूब इस्तेमाल किया जा रहा है।

 

विज्ञान और कारोबार की भाषा

हिंदी, विज्ञान व प्रौद्योगिकी एवं कारोबार के विकास की वाहक बन गई है। अब विज्ञान और कारोबार से जुड़ी किताबों का तेजी से हिंदी में अनुवाद किया जा रहा है।तकनीक और कारोबार से जुड़े विषयों पर हिंदी भाषा में किताबें, अखबार और पत्रिकाएँ बड़ी संख्या में प्रकाशित की जा रही हैं.  हिंदी में बिजनेस अखबार प्रकाशित हो रहे हैं, जिनमें बिजनेस स्टैंडर्ड, फाइनेंशियल एक्सप्रेस और इकनॉमिकटाइम्स सबसे महत्वपूर्ण है। कई बेव पोर्टलों का संचालन हिंदी में किया जा रहा है। लचीलेपन के कारण हिंदी नियमित तौर पर नये शब्दों को गढ़ रही है। मध्यप्रदेश में हाल ही में मेडिकल की पढ़ाई हिंदी भाषा में शुरू की गई है, जिसे हिंदी की स्वीकृति के संदर्भ में मील का पत्थर माना जा सकता है।

बाजार से हिंदी को मिली विस्तार

चीन के बाद भारत उपभोक्ता वस्तुओं का दूसरा सबसे बड़ा बाजार है। इसलिए,कोई भी देश हिंदी की उपेक्षा नहीं कर पा रहा है, क्योंकि हिंदी नहीं सीखने पर उन्हें सीधे तौर पर आर्थिक नुकसान हो सकता है। इसलिए, आज कोरिया, जापान,चीन आदि देश हिंदी भाषा पर काम कर रहे हैं। सभी हिंदी भाषा में ऐप और वेबसाइट के माध्यम से अपनी सेवाएं और उत्पादों को विस्तार देना चाहते हैं, ताकि हिंदी के बाजार में उनकी हिस्सेदारी बढ़ सके। अंग्रेजी का बाजार स्थिर हो चुका है। इसलिए, कंपनियां हिंदी में अपनी सेवाएं उपलब्ध करा रही हैं। देश और विदेश की कंपनियां जनमानस की भाषा में सामग्री उपलब्ध कराकर बाजार में अपनी हिस्सेदारी बढ़ाने की कोशिश कर रही है,क्योंकि हिंदी सीखकर ही भारत में या भारत से कारोबारी रिश्ते मजबूत बनाये जा सकते हैं।चूँकि,भारत की बहुसंख्यक आबादी हिंदी भाषी है। इसलिये,भारतीय बाजार पर कब्जा करने का रास्ता हिंदी भाषा के रास्ते से होकर गुजरता है। उत्पादों का विज्ञापन हो या प्रचार-प्रसार की भाषा हो, जब तक वह हिंदी में नहीं होगी, किसी उत्पाद को भारत में बेचने में मुश्किल होगी।

भारतीय बाजार का विस्तृत फ़लक होने के कारण देसी,अँग्रेजी व दूसरी विदेशी भाषाओं वाली फिल्मों को हिंदी में डब किया जा रहा है। दक्षिण भारत एवं पंजाबी फिल्मों को भी हिंदी में डब किया जा रहा है।

जब दक्षिण की फिल्मों का हिंदी में डब किया जाता है, तब दक्षिण वाले हिंदी का विरोध नहीं करते हैं, क्योंकि कोई भी आर्थिक नुकसान का सामना नहीं करना चाहता है। दक्षिण वालों की यह दोहरी मानसिकता साबित करती है कि तमिलनाडू के कुछ लोग सिर्फ राजनीतिक रोटी सेंकने के लिए हिंदी का विरोध कर रहे हैं।

 सोशल मीडिया से मिली मजबूती

सोशल मीडिया का आगाज इकीसवीं सदी के पहले दशक के उतरार्ध में हुआ, जिसका संचालन इंटरनेट के माध्यम से किया जाता है। वर्ष 2007 के दौरान ऑर्कुट जैसी सोशल मीडिया बहुत ही लोकप्रिय थी। बाद में फेसबुक आया। मौजूदा समय में इंस्टाग्राम, ट्वीटर, गूगल, व्हाट्सएप आदि लोकप्रिय सोशल मीडिया हैं। सोशल मीडिया के संवाद की सबसे प्रमुख भाषा हिंदी है। इसमें विचारों को प्रकाशित करने के लिये किसी से अनुमति लेने की जरूरत नहीं होती है। आप खुद से अपने विचारों का प्रकाशन कर सकते हैं। यह जनसंचार का एक ऐसा माध्यम है, जिसका प्रसारण रियल टाइम बेसिस पर होता है। सोशल मीडिया की मदद से फोटो, वीडियो, सूचना, दस्तावेज़ आदि को आसानी से किसी के साथ साझा किया जा सकता है। यह मनोरंजन का भी साधन है। चुट्कुले, कविता, गजल, गीत, आदि की पस्तुति फेसबुक,इंस्टाग्रामआदि के माध्यम से की जा सकती है। यूजर ब्लॉग बनाकर भी अपनी भावनाओं का प्रकाशन नियमित तौर पर कर सकता है।

हिंगलिश से समृद्ध होती हिंदी

हिंगलिश की वजह से भी हिंदी की लोकप्रियता बढ़ रही है। हालाँकि, यह दोषपूर्ण भाषा है, लेकिन  इसे हिंदी के विकास में बाधक नहीं माना जा सकता है। इससे हिंदी के प्रचार-प्रसार को बल मिल रहा है। दरअसल,हिंदी के किसी भी रूप को आत्मसात करने का गुण ही हिंदी भाषा के विकास को मुमकिन बना रहा है।

फिल्मों का योगदान

फिल्मों का हिंदी भाषा को वैश्विक स्वीकृति दिलवाने और उसे लोकप्रिय बनाने में महत्वपूर्ण योगदान रहा है। हिंदी में आज सबसे अधिक फिल्में बनाई जा रही हैं, क्योंकि फिल्म मनोरंजन और आंशिक रूप से शिक्षा प्रदान करने का सबसे लोकप्रिय माध्यम है। देसी एवं विदेशी भाषाओं की फिल्मों को हिंदी में डब करके हिंदी बोलने व समझने वाले दर्शकों को परोसा जा रहा है, जिससे इसकी लोकप्रियता में तेजी से इजाफा हो रहा है। ओटीटी प्लेटफॉर्म के आने से दुनिया के किसी भी कोने में रहकर हिंदी भाषा में बनी फिल्मों व नाटकों को देखा जा सकता है। इनकी वजह से दुनिया भर में रहने वाले भारतीयों का हिंदी से जुड़ाव पहले से बढ़ा है।

हिंदी सिनेमा के लोकप्रिय संवाद भी आमजन को हिंदी सीखने के लिए प्रेरित करते हैं। उदाहरण के तौर पर शोले फिल्म का संवाद कितने आदमी थे संवाद को अहिंदी भाषी को भी बोलते हुए सुना जा सकता है। हिंदी सिनेमा सिर्फ मुंबई या महाराष्ट्र तक सीमित नहीं है। इसमें पूरे देश की सभ्यता-संस्कृति की झलक दिखती है। इसकी मदद से लोग सिर्फ भाषा ही नहीं सीख रहे हैं, बल्कि सभ्यता-संस्कृति को भी समझ रहे हैं। हिंदी सिनेमा के 100 से भी अधिक वर्ष हो गए हैं और इन 100 वर्षों में हजारों विषयों पर हिंदी भाषा में फिल्में बनी हैं, जिससे हिंदी समृद्ध हुई है और इसके प्रसार में अकूत इजाफा हुआ है।

प्रवासी भारतीय बढ़ा रहे हैं हिंदी का मान

हिंदी के विकास में प्रवासी भारतीय महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं, क्योंकि वे जिस भी देश गये,वहाँ उन्होंने हिंदी की आवाज को बुलंद किया। वे विदेशों में भी अपनी सभ्यता-संस्कृति को नहीं भूले। आज वे विदेशों से हिंदी पत्रिका व अखबार प्रकाशित कर रहे हैं। वे नियमित रूप से सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन करते हैं। पर्व-त्योहारों में एक-दूसरे से मिलते हैं और उनकी संप्रेषण की भाषा अमूमन हिंदी होती है।

विश्व हिंदी सम्मेलन से मिल रही है हिंदी को पहचान

पहला विश्व हिंदी सम्मेलन तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी के प्रयासों से नागपुर में वर्ष 1975 में आयोजित किया गया था। मॉरीशसके तत्कालीन प्रधानमंत्री श्री शिवसागर गुलाम सहित 39 देशों के 122 प्रतिनिधियों ने उक्त सम्मेलन में शिरकत की थी। दूसरा विश्वहिंदी सम्मेलन वर्ष 1976 में मॉरीशस में आयोजित किया गया। अब तक 11 विश्व हिंदी सम्मेलन आयोजित किये जा चुके हैं। 12वां विश्व हिंदी सम्मेलन फरवरी 2023 में फिजी में होना प्रस्तावित है।पहले 4 सालों के अंतराल पर विश्व हिंदी सम्मेलन आयोजित किया जाता था, जिसे बाद में कम करके 3 साल कर दिया गया।हिंदी को संयुक्त राष्ट्र संघ की आधिकारिक भाषा बनाने की मुहिम वर्ष 1975 में नागपुर में हुए विश्व हिंदी सम्मेलन में शुरू की गई थी, जिसके कारण जून 2022 में हिंदी, मंदारिन, अरबी, अँग्रेजी, फ्रेंच, रूसी और स्पेनिश के साथ संयुक्त राष्ट्र संघ की आधिकारिक भाषा बन गई है। यह उपलब्धि निश्चित रूप से हिंदीभाषियों और हिंदी के लिए गर्व की बात है।

तीन दर्जन से अधिक देशों में हिंदी

आज मॉरीशस, फिजी, सूरीनाम, त्रिनिदाद, गुयाना, केन्या, नाइजीरिया, दक्षिण अफ्रीका, थाईलैंड, इंडोनेशिया, चेकोस्लोवाकिया, सिंगापुर, नेपाल, भूटान, पाकिस्तान, अफगानिस्तान, म्यांमार, बांग्लादेश, मालदीव, श्रीलंका, मलेशिया, चीन, मंगोलिया, कोरिया, जापान, अमेरिका, आस्ट्रेलिया,इंग्लैंड, कनाडा, जर्मनी, सयुंक्त अरब अमीरात आदि देशों में हिंदी बोली व समझी जा रही है। अमेरिका में भी अँग्रेजी के बाद दूसरी सबसे लोकप्रिय भाषाहिंदी है।

हिंदी भाषा के विकास के वाहक हैं भारतीय सभ्यता-संस्कृति

एक लंबे समय से भारतीय सभ्यता-संस्कृति विदेशियों को आकर्षित करती रही है। अध्यात्म, संगीत,सभ्यता-संस्कृति, योग आदि समझने के लिए दूसरे देशों से बड़ी संख्या में लोग भारत हर साल आते हैं। कुछ लोग तो भारत में ही बस जाते हैं। आमतौर पर इनकी संपर्क भाषा हिंदी ही होती है, जिससे हिंदी भाषा का वितान व्यापक होता है।

सरल व सहज

दुनिया में लगभग 60,000 भाषाएँ हैं, जिनमें लगभग 90 प्रतिशत भाषाओं का अस्तित्व खतरे में है। हर साल कई भाषाएँ विलुप्त हो जाती हैं। ऐसे में हिंदी न सिर्फ जिंदा है, बल्कि रोज विस्तृत  हो रही है। लगभग 1500 साल पुरानी इस भाषा में लगभग डेढ़ लाख शब्दावलियाँ हैं और रोज कई नये शब्द इससे जुड़ रहे हैं। सच कहा जाये तो अपनी सहजता व सरलता की वजह से ही यह जीवंत है और निरंतर आगे बढ़ रही है।

रोजगार की भाषा

वे दिन अब गये, जब कहा जाता था कि हिंदी की समझ रखने वालों को रोजगार से महरूम रहना पड़ेगा। आज हिंदी, बाजार,संप्रेषण,अनुवाद,तकनीक, लेखन आदि की भाषा बन चुकी है। इसमें अंतर्निहित लचीलापन इसे रोजगारपरक बना दिया है। यह कई देशों में बोली व समझी जाती है। विश्व की हजारों प्रसिद्ध कृतियों का हिंदी में अनुवाद किया जा चुका है। विश्व के 100 से अधिक देशों के शिक्षण संस्थानों में हिंदी को पढ़ा व पढ़ाया जा रहा है। इसतरह, गाइड, अनुवादक, मीडिया, शिक्षण, लेखन आदि क्षेत्रों में हिंदी जानने वालों के लिए रोजगार के अवसर बढ़े हैं। हिंदी में कार्यक्रम प्रस्तुत करने वाले कई टीवी एंकरों को आज करोड़ों रुपए का वेतन सालाना मिल रहा है। इसतरह,हिंदी के रोजगारपरक बनने से हिंदी के प्रचार-प्रसार में तेजी आ रही है।

लचीली होने से बढ़ रहा है हिंदी का वितान

मौजूदा समय में हिंदी का कंप्यूटरीकरण अन्य भारतीय भाषाओं की तुलना में सबसे तेज गति से  हो रहा है। हिंदी की बहुत सारी सामग्रियाँ ऑनलाइन एवं ऑफलाइन उपलब्ध हैं। हिंदी में सबसे अधिक फिल्में बनाई जा रही हैं, क्योंकि फिल्म मनोरंजन और आंशिक रूप से शिक्षा का अत्यंत लोकप्रिय माध्यम है। देसी एवं विदेशी भाषाओं की फिल्मों को हिंदी में डब करके हिंदी बोलने व समझने वाले दर्शकों को परोसा जा रहा है। नई−नई तकनीक, तरीके व विधा अपनाने की योग्यता होने की वजह से अंतर्राष्टीय स्तर पर हिंदी का तेजी से विकास हो रहा है।

नई प्रौद्योगिकी ने हिंदी भाषा के स्वरूप में सकारात्मक बदलाव किया है, जिससे इसकी लोकप्रियता में तेजी से इजाफा हो रहा है।

निष्कर्ष

वैश्विक भाषा बनने की पहली शर्त होती है कि अधिक से अधिक लोग उस भाषा में संवाद करें, उसमें दूसरी भाषाओं के शब्दों को आत्मसात करने की क्षमता हो, उसका साहित्य समृद्ध हो आदि। देखा जाये तो इन सभी कसौटियों पर हिंदी खरी उतरती है। गूगल की एक ताजा रिपोर्ट के मुताबिक हिंदी में सामग्री पढ़ने वाले हर वर्ष 94 प्रतिशत की दर से बढ़ रहे हैं, जबकि अंग्रेजी में सामग्री पढ़ने वालों की संख्या 17 प्रतिशत की दर से आगे बढ़ रही है।