हाथरस की घटना को लेकर जो सियासी खेल खेला जा रहा है, वो कतई स्वस्थ लोकतंत्र के हित में नहीं है। लेकिन इतना ज़रूर है कि हाथरस में युवती से सामूहिक दुष्कर्म और हत्या ने 2012 के दिल्ली के निर्भया केस और 2019 के तमिलनाडु के पशु चिकित्सक केस की याद दिला दी है और बता दिया है कि महिला सुरक्षा के नाम पर देश में धरातल पर कुछ भी नहीं बदला है। मौज़ूदा शासन-प्रशासन के सिस्टम में तामाम खामियाँ हैं। ऐसे में दोषी और निर्दोष को बचाने और फँसाने की जुगत में कुछ लोग माहिर होते हैं, जो सारे मामले को कहीं-से-कहीं तक ले जाते हैं; जैसे कि अब हो रहा है। दलित युवती से कथित रूप से सामूहिक दुष्कर्म और हत्या का मामला दबता जा रहा है। पीडि़त परिवार को न्याय दिलाने पर अब मानो शासन-प्रशासन गौर ही नहीं कर रहा है। हाथरस के लोगों ने तहलका संवाददाता को बताया कि जिस प्रकार दलित युवती किशोरी कुमारी (बदला हुआ नाम) को न्याय दिलाने की जगह सियासत हो रही है, गाँव में होने वाला आगामी प्रधान का चुनाव है। प्रधान के चुनाव को लेकर हाथरस के चंदपा क्षेत्र में राजनीति और जातीय समीकरण का गुणा-भाग लगाया जाता है और जातिवाद के हिसाब से काफी लॉबिंग होती है। हाथरस के निवासी रूपकुमार का कहना है कि यह मामला सोची-समझी राजनीति का हिस्सा है, जिसके तहत मामले को तूल दिया गया है। अगर रात्रि के समय शव का दाह संस्कार वो भी पुलिस प्रशासन द्वारा नहीं किया गया होता, तो इतना हो-हल्ला नहीं होता। वहीं कुछ लोग कह रहे हैं कि दलित उत्पीडऩ को दबाने के कारण यह बवाल हुआ है। वहीं प्रदेश सरकार कह रही है कि आपसी सौहार्द को बिगाडऩे व दंगा भडक़ाने की साजिश की जा रही है, जिसके लिए विदेशों से फंडिंग भी हो रही है। कुछ भी हो, लेकिन मौज़ूदा सिस्टम पर कई प्रश्नचिह्न लगे हैं।
बताते चलें जब 16 दिसंबर, 2012 को दिल्ली के द्वारका-मुनिरका रोड पर निर्भया मामले से नाराज़ होकर पूरा देश निर्भया के दोषियों को फाँसी की सज़ा को दिलाने के लिए सडक़ों पर उतरा था, जिसकी गूँज से संसद तक हिल गयी थी। तब निर्भया कानून और निर्भया फंड का प्रावधान भी किया गया था, जिसका 2013 का केंद्रीय बजट 100 करोड़ रुपये था, अब यह राशि बढक़र 300 करोड़ रुपये हो गयी है। निर्भया के दोषियों को जब फाँसी हुई,तब लगा था कि दुष्कर्म जैसी घटनाएँ अब शायद कम होंगी; लेकिन ऐसा नहीं हुआ। सन् 2019 में तेलंगाना की राजधानी हैदराबाद की पशु चिकित्सक की सामूहिक दुष्कर्म के बाद जलाकर हत्या कर देने की घटना ने भी सभी को अंदर तक झकझोर दिया। तब पुलिस एन्काउंटर में सभी अपराधियों के मारे जाने पर लोगों को उम्मीद जगी कि अपराधियों में खौफ पैदा होगा, पर कम से कम उत्तर प्रदेश में तो अपराधियों के हौसले बढ़े ही हैं।
देश का मौज़ूदा सिस्टम पूरी तरह से लचर होता जा रहा है कि हाथरस जैसी घटनाएँ केवल चर्चा का विषय बनने के कारण अपराधियों में खौफ नहीं है। वीभत्स घटनाओं में पर सियासत किस कदर हावी हो जाती है, इसका बहुत बड़ा उदाहरण हाथरस की यह घटना है। अब हाल यह है कि दलित युवती के साथ जो भी हुआ, उसे पूरी तरह से विवादों के घेरे लाकर खड़ा कर दिया है। क्योंकि पुलिस का कहना है कि फोरेंसिक जाँच में दुष्कर्म की पुष्टि नहीं हुई है। इस मामले आरोपी संदीप ने हाथरस के पुलिस अधीक्षक (एसपी) को पत्र लिखकर अपने आपको बेकुसूर बताते हुए कहा है कि यह सारा मामला ऑनरकिलिंग का है। पुलिस गिरफ्त में मेरे चाचा रवि, रामू लवकुश निर्दोष हैं। उनका इस घटना से दूर-दूर तक कोई वास्ता नहीं है। संदीप ने लिखा है कि घटना के दिन मैं खेत पर था। युवती से मेरी दोस्ती थी, जो मृतक के परिजनों को पसंद नहीं थी। उसने पत्र में लिखा है कि युवती को उसकी माँ और भाई ने मारा है। संदीप ने यह भी माना है कि युवती से उसकी मोबाइल से बातचीत होती थी, जिसकी कॉल डिटेल पुलिस के पास है। हाथरस में पीडि़त पक्ष और आरोपी पक्ष के समर्थन और विरोध में दो विचारधाराओं को लेकर जो हंगामा हुआ है, वो पूरी तरह से साजिश का हिस्सा है। क्योंकि पीडि़त का परिवार तो आज भी अपने घर में पुलिस की निगरानी में है। फिर वे लोग कौन हैं, जो इस मामले को हवा दे रहे हैं। अचानक विदेशी फंडिंग की बात कहाँ से, क्यों और कैसे आ गयी? हाथरस मामला ठाकुर बनाम बाल्मीकि समाज बनता जा रहा है।
कांग्रेस नेता राहुल गाँधी इस घटना को अपने लिए बड़ी ट्रेजडी बता रहे हैं। उन्होंने कहा है कि सच छिपाने के लिए उत्तर प्रदेश प्रशासन दरिंदगी पर उतर आया है। पीडि़त के परिजनों को किसी से मिलने नहीं दिया जा रहा है, उनके साथ मारपीट और बर्बरता की जा रही है। कांग्रेस महासचिव प्रियंका गाँधी का कहना है कि उत्तर प्रदेश सरकार हर मोर्चे पर असफल है, क्योंकि प्रदेश में अपराध बढ़ रहे हैं। कोई सुरक्षित नहीं है। उन्होंने भाजपा पर निशाना साधते हुए कहा कि अपराधियों की दरिंदगी के चलते पीडि़त दलित की बेटी अपनी जान गँवा चुकी है और उसे ही बदनाम करने की साजिश रची जा रही है। जबकि वह न्याय की हकदार है। कांग्रेस प्रवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी का कहना है कि हाथरस मामले में हर रोज़ साजिश हो रही है। आरोपियों को बचाये जाने के लिए अन्य लोगों पर मुकदमे दर्ज किये जा रहे हैं। उन्होंने आरोप लगाया कि प्रदेश सरकार ने एफिडेविट के माध्यम से सार्वजनिक जाँच को भटकाकर अदालत को गुमराह किया है। योगी सरकार जनता के साथ-साथ देश की न्यायपालिका को गुमराह कर रही है। तरह-तरह के षड्यंत्र रचे जा रहे हैं।
वहीं बसपा सुप्रीमो मायावती का कहना है कि हाथरस मामले में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का साम्प्रदायिक दंगा भडक़ाने की साजिश वाला आरोप सही है? या चुनावी चाल है? यह तो आने वाला समय ही बतायेगा। लेकिन सरकार को इस समय पीडि़त परिवार को न्याय दिलाने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए। इस मामले में हाथरस से लौटकर सचिन सिंह गौर ने बताया कि अगर सही तरीके से पड़ताल की जाए तो यह मामला गरीबी, अशिक्षा, और आपसी खुन्नस का ही निकलेगा। पर इस मामले में जो तूल दिया गया है, उसकी रूपरेखा दिल्ली में सियासतदानों और तथा कथित वुद्धिजीवियों ने तैयार करके माहौल को हिंसक रूप में बदल दिया है।
मृतक युवती के माँ-बाप का कहना है कि आधी रात को जिस तरह अंतिम संस्कार किया गया है, वह पूरी तरह धर्म और संस्कृति के खिलाफ है। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का कहना है कि प्रदेश में अराजक तत्त्व उपद्रव करके सरकार को बदनाम कर रहे हैं। लेकिन हम उनकी साजिश को सफल नहीं होने देंगे। कुछ लोग समाज को जाति, धर्म और क्षेत्र के आधार पर विभाजित करते रहे हैं। वे षड्यंत्र करके प्रदेश में हो रहे विकास कार्यों को अवरुद्ध करना चाहते हैं। उनका कहा कि इस मामले में दोषियों को बख्शा नहीं जाएगा। स्थानीय प्रशासन से लेकर तमाम एजेंसियाँ जाँच पड़ताल में लगी हुई हैं। सच जल्द ही सामने आ जाएगा। दाह संस्कार को लेकर एससी-एसटी आयोग के पूर्व अध्यक्ष बृजलाल का कहना है कि इस मामले में भीम आर्मी के चंद्रशेखर, आम आदमी पार्टी की नेता राखी विड़लान और कांग्रेस के नेता उदित राज सहित सैकड़ों लोगों ने शव को 10 घंटे तक रोकेे रखा, जिसके कारण मामला तनावपूर्ण होता जा रहा था। आगजनी और हिंसा की प्रबल सम्भावना के चलते मृतक के माँ-बाप से पूछकर ही रात्रि को अंतिम संस्कार किया गया। इस बारे में हाथरस निवासी राजकुमार का कहना है कि ज़रा-सी चूक के कारण यह मामला सियासी बवाल का कारण बन गया है। 14 सितंबर को जब किशोरी के साथ जो कथित मारपीट तथा दुष्कर्म की घटना घटी, अगर तभी स्थानीय पुलिस प्रशासन गम्भीरता से मामले में कार्रवाई करता तो मामला इतना बड़ा नहीं होता। लेकिन परिजन हाथरस अस्पताल से अलीगढ़ अस्पताल फिर दिल्ली के एम्स में ले आये, जहाँ उसे भर्ती नहीं किया गया। फिर सफदरजंग अस्पताल में भर्ती कराया गया, जहाँ उसकी मौत हो जाती है। राजकुमार का दावा है कि यह सब पीडि़त और आरोपी परिवार की पुरानी रंजिश का नतीजा ही है। देर-सबेर सब सामने आ जाएगा।