मुझे बहुत से पाठकों ने कहा कि आप ‘हर्पीज’ पर लिखें- ‘हर्पीज’ यानी ‘हर्पीज जॉस्टर’, (जैसे गांधीजी बोलो तो लोग यह मान लेते हैं कि महात्मा गांधी.)
पर ‘हर्पीज जॉस्टर’ की बात बताऊंगा तो चिकनपॉक्स की बात भी स्वत: निकलेगी. दोनों ही बीमारियों में बदन पर दाने निकल आते हैं. चिकनपॉक्स में पूरे शरीर पर, ‘हर्पीज’ में शरीर के किसी छोटे से हिस्से पर ही. दोनों ही बीमारियां एक ही तरह के कीटाणु (वायरस) से होती हैं जिसे ‘वेरिसेल्ला-जॉस्टर वायरस’ कहा जाता है. इसे यूं समझें कि वायरस दोनों में वही चिकनपॉक्स वाला ही है पर बीमारियां अलग हैं. कभी यह न समझें कि हर्पीज जॉस्टर चिकनपॉक्स जैसा है. दोनों एकदम अलग बीमारियां हैं. हां, दाने चिकनपॉक्स जैसे ही निकलते हैं. पर दोनों यहीं से एकदम अलग हो जाते हैं. यूं समझें कि यदि आपको बचपन में कभी चिकनपॉक्स हुआ था, या मात्र उस बीमारी से आप एक्सपोज भी हुए थे- तो वर्षों बाद, बल्कि दशकों बाद, कभी आपको हर्पीज जॉस्टर नामक बीमारी हो सकती है. इस बीमारी में होता यह है कि आपके शरीर में तब प्रवेश कर गए चिकनपॉक्स वायरस (वेरिसेल्ला वायरस) चुपके से जाकर आपकी नसों की गांठों में छुप जाते हैं. वहीं वर्षों तक छुपे रहते हैं. फिर एक दिन, उस गांठ से निकलकर, त्वचा के उस पूरे टुकड़े पर छा जाते हैं जिसे यह नस, स्नायुतंत्र तथा सेंसेशनस सप्लाई करती है. त्वचा में पहुंचकर ये उस छोटे से इलाके में चिकनपॉक्स जैसे दाने, पैदा कर देते हैं. चूंकि एक नस में यह बीमारी हुई है तो बेहद दर्द भी होता है.
मरीज मूलत: यही कहता हुआ आता है कि सर देखिए, छाती (या हाथ, पांव, पीठ, नितंब, चेहरे या पांव आदि में कहीं भी) ये दाने निकल आए हैं और बड़ा तेज दर्द भी हो रहा है. मरीज प्राय: समझता है कि किसी एलर्जी की वजह से ये दाने हो गए हैं. वह बताता है कि शायद किसी कीड़े ने काट लिया है. या शायद सोते में मकड़ी दब कर कुचल गई और उसका
द्रव्य निकल कर त्वचा में लग गया, सो यह एलर्जी हो गई है.
याद रहे. यदि शरीर के एक हिस्से में अचानक चिकनपॉक्स जैसे दाने निकल आएं तो यह हर्पीज जॉस्टर हो सकता है. यदि दानों के साथ उस इलाके में तेज जलन जैसा या चमक वाला दर्द भी हो रहा है तो यह हर्पीज हो सकता है. यदि शरीर के एक ही तरफ (बाएं या दाएं दाने आए हों) पर मध्य के हिस्से को पार करके दूसरी तरफ बिल्कुल न हों तब पक्के से यह हर्पीज की बीमारी है. चिकनपॉक्स की भांति इसमें बुखार नहीं होता. फिर यह बच्चों की बीमारी भी नहीं है. प्राय: पांचवें-छठवें दशक के बाद के बुढ़ापे में कदम रखते लोगों या अधेड़ों की बीमारी है. ऐसे दानों को एलर्जी न मानें. फालतू में एलर्जी की दवाई या क्रीम पोतने न बैठ जाएं. यह एकदम अलग ही बीमारी है. इसका इलाज भी एलर्जी से एकदम अलग है. और, खराब बात यह है कि दाने सूख जाने के बाद भी उस इलाके में इतना तेज दर्द बना रह सकता है कि जिंदगी दूभर कर डाले. यदि अधिक उम्र में ‘हर्पीज जॉस्टर’ हो जाए तो इस दर्द के बने रह जाने का डर और ज्यादा रहता है इसे ‘पोस्ट हर्पीटिक न्यूरेल्सिया’ कहते हैं. इस दर्द की कुछ विशिष्ट दवाएं हैं. यह आम दर्द की दवाओं से ठीक नहीं होता. कई बार ये विशिष्ट दवाईयां भी काम नहीं करती हैं. इस न्यूरेल्सिया के कारण कभी-कभी तो लोग आत्महत्या तक कर लेते थे.
वैसे यह बीमारी किसी भी उम्र में हो सकती है सो यह न मान लें कि जवानी में हुई है तो ‘हर्पीज’ हो ही नहीं सकती. हां, प्राय: यह बाद की उम्र की बीमारी है.
यदि यह चेहरे पर हो जाए तो कभी आंख की पुतली पर दाने भी बन जाते हैं तब इससे आंख की रोशनी तक जा सकती है. जुबान तथा कान के अंदर तक दाने हो जाने पर ऐसा हो सकता है कि आधी जीभ में स्वाद का ही पता न चले. चेहरे की ‘हर्पीज’ में चेहरे की नस खराब हो जाए तो चेहरा (चांद के मुंह की तरह) टेड़ा हो सकता है.
प्राय: ये दाने आएं, दर्द उससे पूर्व ही चालू हो जाता है. आदमी दर्द से तड़प कर अस्पताल जाता है जहां उस दर्द को कुछ भी समझकर कुछ भी जांचें तथा इलाज शुरू हो सकता है. मैंने छाती की ‘हर्पीज’ के ऐसे रोगियों को देखा है जिनको ‘हार्ट अटैक’ की लाइन पर इलाज चल पड़ा और एक दो दिन में जब छाती पर दाने निकल आए तब जाकर पता चला कि असली मामला क्या है! हां, एक अलर्ट डॉक्टर दर्द के विवरण से ही जान जाता है कि शायद ‘हर्पीज’ हो रहा है.
क्या ‘हर्पीज’ वाला मरीज दूसरे को हर्पीज कर सकता है? नहीं. ‘हर्पीज’ सालों का मामला है. अलबत्ता, कमजोर बूढ़ों या जिनको चिकनपॉक्स का टीका न लगा हो और कभी चिकनपॉक्स भी न हुआ हो वे यदि हर्पीज जॉस्टर के मरीज के सघन संपर्क में रहें तो उनको इससे चिकनपॉक्स अवश्य हो सकता है. एचआईवी, बहुत ज्यादा उम्र, बहुत कमजोर लोग, कैंसर की कीमोथैरेपी ले रहे लोगों में हर्पीज बिगड़ भी सकती है- पूरे शरीर में फैल भी सकती है. वर्ना, प्राय: यह दो तीन सप्ताह में ठीक हो जाने वाली बीमारी है.
इसका इलाज क्या है डॉक्टर साहब?
इलाज है. घरेलू इलाज न लेने बैठ जाएं. न ही, केमिस्ट से लेकर एलर्जी की कोई गोली खा लें. खासकर, बहुत ज्यादा दाने हों तब तो पक्का ही इलाज लें. यदि एकदम शुरुआत में एंटी वायरल दवाइयां दी जाएं तो बाद में ठीक रहेंगे. वर्ना दाने ठीक हो जाने के बाद भी उस इलाके में बेहद तेज दर्द बना रह सकता है जिसका ठीक से इलाज किसी के पास भी नहीं. तुरंत किसी अच्छे डॉक्टर
की सलाह लें!