हरियाणा में पर्ची-ख़र्ची पर सरकारी नौकरी!

हरियाणा सरकारी नौकरी के लिए पर्ची और ख़र्ची में ज़्यादा कुख्यात रहा है। अन्य राज्य भी हैं; लेकिन छोटे प्रदेश में बड़े खेल के नाम से चर्चा ज़्यादा पा जाता है। पर्ची यानी सिफ़ारिश और ख़र्ची मतलब पैसा। सरकार किसी भी पार्टी की रही हो पैसा और सिफ़ारिश के आधार पर इस छोटे से प्रदेश में नौकरियाँ लगती रही हैं। यह अलग बात है कि किसी सरकार के दौर में कम और किसी में ज़्यादा; लेकिन चलता ज़रूर रहा है।

करोड़ों के वारे-न्यारे और सिफ़ारिश के आधार पर लोगों को उपकृत करने का चलन अब भी टूटा नहीं है। यह अलग बात है कि अब उतने व्यापक स्तर पर नहीं; लेकिन चल ज़रूर रहा है। इसी सरकार के कार्यकाल में हरियाणा सिविल सेवा के अधिकारी को करोड़ों की घूस लेते हुए रंगे हाथों गिरफ़्तार किया गया था, जो चयन बोर्ड से जुड़े हुए थे।

एक दौर में अधिकारी स्तर पर होने वाली भर्तियों में तो खुला खेल इस प्रदेश में चलता रहा है। मामला नया नहीं, बल्कि दो दशक से ज़्यादा पुराना और राज्य में तत्कालीन मुख्यमंत्री ओमप्रकाश चौटाला के समय का है। हरियाणा भ्रष्टाचार निरोधक आपराधिक ब्यूरो (एसीबी) ने हिसार की अदालत में 29 लोगों के ख़िलाफ़ अरोप पत्र दाख़िल कर दिया है। मामले की सुनवाई 10 अगस्त को होगी।

एक बड़े मामले में हरियाणा लोक सेवा आयोग की पहली बार बड़े स्तर पर कारस्तानी सामने आयी है। इसे अंजाम देने वालों में आयोग के पूर्व अध्यक्ष के.सी. बांगड़ हैं, जो इस समय भाजपा सरकार में भागीदार जननायक जनता पार्टी (जजपा) के वरिष्ठ उपाध्यक्ष हैं। आयोग के सचिव रहे पूर्व आईएएस हरदीप सिंह के अलावा आयोग के छ: सदस्य, नौ पेपर चैकर (मूल्यांकनकर्ता) और चुने गये एक दर्ज़न से ज़्यादा अफ़सर भी हैं। इनमें से एक को छोडक़र बाक़ी सभी राज्य में नौकरी कर रहे हैं।

हरियाणा सिविल सेवा के कुछ अधिकारी वरिष्ठता के आधार पर अब आईएएस बनने की कतार में हैं; लेकिन मामला उजागर होने के बाद तरक़्क़ी के बजाय अब उनकी नौकरी पर ख़तरा मंडरा रहा है। हरियाणा लोक सेवा आयोग राजपत्रित स्तर के अधिकारियों के चयन के लिए अधिकृत है। जिन्हें राज्य का प्रशासन चलाना है, वे अगर येन-केन-प्रकारेण आधार पर चुने जाते हैं, तो कितने कुशल प्रशासक साबित होंगे? यह समझने की बात है। मोटी राशि देकर चुने गये ऐसे अफ़सर पहले अपना ख़र्च पूरा करेंगे, वे अच्छे प्रशासक तो बन सकते हैं; लेकिन ईमानदार बने रहेंगे, यह कहना मुश्किल है। चयन के लिए राशि करोड़ों में जाती है, जिसका हिस्सा काफ़ी लोगों में बँटता है। सफ़ेदपोशों से लेकर चयन से सीधे जुड़े हुए लोगों में बँटता है।

शिक्षक भर्ती घोटाले में हरियाणा अधीनस्थ सेवा चयन बोर्ड तो पहले ही बदनाम हो चुका है, अब हरियाणा लोक सेवा आयोग भी उसी वर्ग में आ गया है। व्यापक स्तर पर हुई गड़बडिय़ों और अनियमितताओं की बहुत-सी परतें अदालत में खुलेंगी और फ़ैसला मील का पत्थर साबित होगा; ठीक शिक्षक भर्ती घोटाले की तरह, जिसमें पूर्व मुख्यमंत्री ओमप्रकाश चौटाला और उनके विधायक बेटे अजय चौटाला को 10-10 साल की सज़ा हुई थी। इसमें 50 से ज़्यादा लोगों को सज़ा मिली थी, जिसमें दो आईएएस अधिकरी भी थे।

लोक सेवा आयोग के इस मामले में एसीबी ने ठोस साक्ष्य जुटाये हैं; फोरेंसिक जाँच में गड़बडिय़ों की पुष्टि हुई है। जाँच में पाया गया है कि कई सफल अभ्यर्थियों की उत्तर पुस्तिकाओं में नंबर बढ़ाने, परीक्षा के बाद ख़ाली छोड़े गये प्रश्नों के उत्तर लिखने, क्रम के अनुसार उत्तर न देने, साक्षात्कार में लिखित परीक्षा से काफ़ी ज़्यादा प्रतिशत नंबर देना प्रमुख है। कई अभ्यर्थियों के उतने ही नंबर विभिन्न विषयों में बढ़ाये गये, जिसके आधार पर उन्हें हरियाणा सिविल सेवा के लिए चुना जा सके। कुछेक के लिखित परीक्षा में अंक कम थे, उनके इतने ही अंक बढ़ाये गये, जिसके आधार पर वे साक्षात्कार में बैठकर अतिरिक्त सेवाओं के लिए चुने जा सके।

चयनीत अभ्यथियों में कुछ नाम सरकार से भी जुड़े थे। इनमें एक कुलधीर सिंह हरियाणा सिविल सेवा (एचसीएस) चुने गये। कुलधीर के लिखित परीक्षा में 750 में से 513 नंबर थे और साक्षात्कार में इन्हें 100 में से 88 नंबर मिले। जाँच में मिला कि इनके 33 नंबर बाद में बढ़ाये गये। कुलधीर के पिता शेरसिंह बड़शामी इनेलो के बड़े नेता रहे हैं। वह प्रदेशाध्यक्ष के अलावा मुख्यमंत्री ओमप्रकाश चौटाला के कार्यकारी अधिकारी रहे हैं। बड़शामी शिक्षक भर्ती घोटाले में दोषी साबित हो चुके हैं। इसी क्रम में सरिता मलिक के भी 11 नंबर बढ़ाये गये। वह राज्य के पूर्व पुलिस महानिदेशक एम.एस. मलिक की बेटी हैं, जो इनेलो से जुड़े रहे हैं।

अशोक कुमार के 10 नंबर बढ़ाये गये। अशोक के पिता इनेलो के पूर्व विधायक रह चुके हैं। कमलेश भादू चौटाला परिवार के क़रीबी हैं जाँच में इनके भी 12 नंबर बढ़ाये गये। भादू सरकार में भागीदार जजपा के कोटे उपमुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला के ओएसडी के तौर पर काम कर रहे हैं। इसी तरह वत्सल वरिष्ठ के 29 नंबर बढ़ाने, राकेश कुमार के छ:, पूनम नारा के पाँच, दिलबाग सिंह के 41 नंबर बढ़ाये गये। उपरोक्त सभी को साक्षात्कार में 70 से 90 नंबर मिले। इसके आधार पर ये चुने गये।

अभ्यर्थियों में जगनिवास, सुरेंद्र और जगदीप भी हैं। इसके आधार पर ये चुने गये। लिखित परीक्षा से साक्षात्कार में ज़्यादा नंबर अपवाद स्वरूप ही ज़्यादा आते हैं; लेकिन जाँच में पाये गये अभ्यर्थियों को मिलीभगत से ख़ूब नंबर दिये गये। इसी आधार पर आयोग के छ: सदस्यों के नाम आरोप पत्र में हैं। इनमें महेंद्र सिंह शास्त्री, दयाल सिंह, वी. नरेद्र, जगदीश राय और एन. यादव हैं। जाँच में इनके ख़िलाफ़ भी ठोस सुबूत पाये जाने की जानकारी है।

उत्तर पुस्तिकाओं की जाँच और नंबर देने में गड़बड़ी के आरोप में नौ लोग शामिल हैं। इनमें जोसेफ चेरियन कप्पन, महेश्वरी प्रसाद, बी. चंद्रमौली, आर.के. बोस, पुष्पेंदर कुमार, जगदीश सिंह, दर्वेश गोपाल, एस.के. वर्मा और प्रेमसागर चतुर्वेदी हैं। भ्रष्टाचार निरोधक और आपराधिक ब्यूरो ने जाँच में बहुत समय लगाया; लेकिन यह बहुत पेचीदा मामला भी रहा। सबसे पहले यह मामला कांग्रेस नेता कर्ण सिंह दलाल ने उठाया था। नतीजा घोषित होने के बाद चुने गये प्रत्याशियों के आधार पर उन्हें इसमें गड़बड़ी लगी। उन्होंने इस भर्ती को पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय में चुनौती दी। न्यायालय ने ज्वांइट रजिस्ट्रार स्तर के अधिकारी को इसकी जाँच का ज़िम्मा सौंपा। जाँच में सैकड़ों उत्तर पुस्तिकाओं में गड़बड़ी मिली।

बाद में जाँच का ज़िम्मा तब हरियाणा विजिलैंस ब्यूरो को मिली। अब इसे भ्रष्टाचार निरोधक आपराधिक ब्यूरो के नाम से जाना जाता है। ब्यूरो ने संदिग्ध उत्तर पुस्तिकाओं की जाँच फोरेंसिक लैब से करायी। जहाँ अलग लिखावट, नंबरों को कटिंग के आधार पर घटाने या बढ़ाने, परीक्षा में जो स्याही इस्तेमाल हुई, कुछ पन्नों पर उससे अलग स्याही पायी गयी। परीक्षा के दौरान ख़ाली छोड़े गये पन्नों पर लिखावट में भी अंतर मिला है। चुने जाने की सूची में शामिल अभ्यर्थियों को नंबर बढ़ाने से लेकर साक्षात्कार में खुले दिल से नंबर देने का खेल हुआ है।

आरोप पत्र में शामिल ऐसे ही एक अधिकारी कमलेश भादू की वजह से उपमुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला भी विवाद में आ गये हैं। पार्टी को इसका नुक़सान उठाना पड़ सकता है। उसकी वजह हरियाणा लोक सेवा आयोग के तत्कालीन अध्यक्ष के.सी. बांगड़ हैं। उनके समय में यह सब बड़बड़ी हुई। लिहाज़ा उनकी सबसे बड़ी जवाबदेही होगी। इस मामले में आरोपी आयोग से जुड़े लोग हैं, तो क्या माना जाए कि बिना सरकार के संरक्षण इन्होंने ही सिफ़ारिश और पैसों के लिए व्यापक स्तर पर अनियमितताएँ कीं। यह संभव नहीं है। हालाँकि आरोप पत्र में सरकार से जुड़े किसी नेता का नाम नहीं है; लेकिन न्यायालय की प्रक्रिया में अपने बचाव में आरोपी कुछ नये ख़ुलासे कर सकते हैं।

कांग्रेस नेता ने उठाया मामला

मार्च, 1999 में लोक सेवा आयोग की ओर से हरियाणा सिविल सेवा और अधिनस्थ सेवा के 66 पदों के लिए विज्ञापन दिया गया। इसमें 21,845 लोगों ने आवेदन किया। प्रारंभिक परीक्षा के बाद 3951 अभ्यर्थी मुख्य परीक्षा में बैठे। लिखित परीक्षा में मिले नंबरों के आधार पर 195 साक्षात्कार के लिए चुने गये। सन् 2001 में 22 अक्टूबर 19 नंवबर तक साक्षात्कार की प्रक्रिया चली। 3 मई, 2002 को नतीजा घोषित किया गया।

सफल अभ्यर्थियों की सूची आने के बाद प्रक्रिया पर सवाल उठने लगे थें। कांग्रेस नेता कर्ण सिंह दलाल की वजह से यह मामला उठा और आज इस मुकाम पर पहुँचा।

शिक्षक भर्ती घोटाला

हरियाणा लोक सेवा आयोग का मामला भी जेबीटी शिक्षक भर्ती घोटाले जैसा ही है। राज्य में 3,000 से ज़्यादा जेबीटी शिक्षक भर्ती में व्यापक स्तर पर अनियमितताएँ हुईं। सीबीआई ने वर्ष 2008 में 53 लोगों के ख़िलाफ़ आरोप पत्र दाख़िल किया। वर्ष 2013 में अदालत ने पूर्व मुख्यमंत्री ओमप्रकाश चौटाला, उनके बड़े बेटे अजय चौटाला को 10-10 साल की सज़ा हुई। हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट ने सज़ा कायम रखी। इस मामले में दो आईएएस तत्कालीन मुख्यमंत्री के ओएसडी विद्याधर और मामला उठाने वाले आईएएस संजीव कुमार को भी दंडित किया था।