हरियाणा के गृहमंत्री अनिल विज के पुलिस महानिदेशक शत्रुजीत कपूर को 372 जाँच अधिकारियों को तुरन्त प्रभाव से निलंबत करने के निर्देश से विभाग में हड़कंप मचा है। निर्देश के बाद कपूर ने गृहमंत्री को अधूरी जाँच पर तर्क देकर संतुष्ट करने का प्रयास किया; लेकिन बात नहीं बनी। गृहमंत्री ने तुरन्त प्रभाव से कार्रवाई करने को कहा। महानिदेशक ने सम्बन्धित ज़िला पुलिस आयुक्तों और पुलिस अधीक्षकों पर निलंबन की कार्रवाई की संस्तुति कर दी है।
राज्य में एक साथ सामूहिक तौर पर निलंबन का यह सबसे बड़ा मामला है। जाँच अधिकारियों में हवलदार, सहायक पुलिस निरीक्षक और पुलिस निरीक्षक हैं। अब इन 372 में 14 अधिकारी निलंबित हो चुके और 358 पर तलवार लटकी है। मामले की जाँच चल रही है, जो एक माह में सामने आएगी। ऐसा न होने पर उनके ख़िलाफ़ कार्रवाई का स्पष्ट निर्देश है। विज अपने आवास पर खुले दरबार में शिकायतें सुनते हैं, जिनमें काफ़ी तादाद में लोग पहुँचते हैं। इनमें से काफ़ी मामले प्राथमिकी पर महीनों से कार्रवाई न होने से जुड़े मिले। जाँच अधूरी होने से दो दोनों पक्ष प्रभावित होते हैं; लेकिन सवाल यह कि आख़िर दर्ज प्राथमिकी की जाँच में देरी क्यों की जाती है?
कुछ तकनीकी कारणों के अलावा ज़्यादातर मामलों में जाँच अधिकारी उसे जानबूझकर लम्बा खींचते हैं। किसी एक के पक्ष में कार्रवाई करने या न करने की बात होती है। राजनीतिक दबाव के चलते भी जाँच में देरी होती है। जाँच पूरी कर अदालत में चालान पेश करने की समय-सीमा होती है। पुलिस अक्षीधक ज़िले के ऐसे मामलों की रिपोर्ट लेते हैं और अपने तौर पर कार्रवाई भी करते हैं। इसके बावजूद एक साल या इससे ज़्यादा लंबित मामलों की संख्या राज्य में 3,329 तक पहुँच गयी। यह संख्या भी गृहमंत्री विज के जल्द निपटान के निर्देश के बाद की है।
राज्य के हर ज़िले में ऐसे मामले गृहमंत्री के सामने आ रहे थे। उन्हें समझ नहीं आ रहा था कि आख़िर उनके ही विभाग में ऐसी लेट-लतीफ़ी कैसे और क्यों चल रही है? इसी वर्ष मई में उन्होंने गृह विभाग के अतिरिक्त मुख्य सचिव को पत्र लिखकर लंबित मामलों की जानकारी और उन्हें जल्द पूरी कराने को कहा था। उन्हें ऐसे 3,329 मामलों की जानकारी दी गयी, जिनकी जाँच एक वर्ष से पूरी नहीं हुई थी। सभी जाँच अधिकारियों से स्पष्टीकरण माँगा गया था। इनमें से 372 के स्पष्टीकरण को विज ने संतोषजनक नहीं माना। वह उनके तर्कों से संतुष्ट नहीं हुए और कार्रवाई की सि$फारिश की।
पुलिस से लोगों की शिकायत प्राथमिकी दर्ज न करने की होती है; लेकिन विज के स्पष्ट निर्देश हैं कि पीड़ित पक्ष की प्राथमिकी दर्ज करने में हीला-हवाली हुई, तो कार्रवाई होगी। अब मामला प्राथमिकी दर्ज न करने का नहीं, बल्कि जाँच पूरी न करने का है। इसे विज ने बहुत गम्भीरता से लिया है। भुक्तभोगी लोग ही जानते हैं कि जाँच के नाम पर पुलिस क्या कुछ करती है। बिना रिपोर्ट के केवल तहरीर पर ही पुलिस बहुत कुछ कर सकती है।
राज्य में सबसे ज़्यादा 66 लंबित मामले सिरसा ज़िले के हैं। ज़िले में नशीले पदार्थों से जुड़े मामलों की संख्या काफ़ी होती है, जिनकी जाँच में अक्सर ज़्यादा समय लगता है। लेकिन इतना भी नहीं, जितना ज़िले के जाँच अधिकारी लगा रहे हैं। जितनी ज़्यादा जाँच लम्बी चलेगी, उसमें पक्षपात और भ्रष्टाचार की गुंजाइश ज़्यादा रहती है। जाँच अधिकारी को विभिन्न प्रकार के दबावों का सामना करना पड़ता है, ऐसे में उसकी निष्पक्षता पर सवाल खड़े होते हैं।
जाँच रिपोर्ट के आधार पर ही अदालत में चालान पेश होता है। अगर अदालत में रिपोर्ट पर ही अदालत तल्ख़ टिप्पणी कर दे, तो पूरे पुलिस विभाग की छीछालेदर भी होती है। ऐसे ही निष्पक्ष और तथ्यपरक सुबूतों के आधार पर दोषियों को कड़ा दण्ड भी मिलता है। विज औचक दौरों में तुरन्त प्रभाव से निलंबन की कार्रवाई करते रहे हैं। यह पहला मौक़ा है कि उन्होंने सामूहिक तौर पर इतने जाँच अधिकारियों पर कार्रवाई का निर्देश दिया है।
ज़िलों में लंबित मामले
प्रदेश के सिरसा में 66, गुरुग्राम में 60, यमुनानगर में 57, फ़रीदाबाद में 32, रोहतक में 31, करनाल में 31, अंबाला में 30, जींद में 24, हिसार में 14, पंचकुला में 10, सोनीपत में नौ, रेवाड़ी में पाँच और पानीपत में तीन मामले लंबित हैं।
लंबित मामलों से लोगों को बेवजह भटकना पड़़ता है। यह गम्भीर मामला है। जल्द जाँच पूरी करने के निर्देश के बावजूद मामलों की संख्या इतनी होना विभाग के लिए ठीक नहीं।
अनिल विज
गृहमंत्री, हरियाणा
गृहमंत्री के निर्देशों के पालन हेतु सम्बन्धित ज़िला पुलिस आयुक्तों और पुलिस अधीक्षकों पर कार्रवाई के लिए कह दिया गया है।
शत्रुजीत कपूर
पुलिस महानिदेशक, हरियाणा