मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव

किस तरफ़ जाएँगे आदिवासी?

देश अभी सर्द मौसम के आग़ोश में आने लगा है; लेकिन देश के पाँच राज्यों- मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़, तेलंगाना और मिजोरम में चुनावी सरगर्मी ज़ोरों पर है। बीते 9 अक्टूबर को मुख्य चुनाव आयुक्त ने इन पाँचों राज्यों में चुनाव के तारीख़ों की घोषणा कर दी। छत्तीसगढ़ में  07 नवंबर और 17 नवंबर को दो चरणों में मतदान होगा, जबकि अन्य चार राज्यों में एक-एक चरण में ही मतदान होगा। मध्य प्रदेश में 17 नवंबर को, राजस्थान में 25 नवंबर को, तेलंगाना में 30 नवंबर को और मिजोरम में 07 नवंबर को मतदान होगा। जबकि पाँचों राज्यों में मतगणना 03 दिसंबर को होगी।

यह पाँचों राज्य आदिवासी बाहुल्य हैं और संविधान के विशेष क़ानून पाँचवीं और छठवीं अनुसूची के अंतर्गत आते हैं। यही कारण है कि पाँचों राज्यों में आदिवासियों को लुभाने के लिए सभी पार्टियाँ, चाहे वह केंद्र में सत्तासीन भाजपा हो या फिर विपक्षी दलों का इंडिया गठबंधन; सभी तरह-तरह की घोषणाएँ कर रही हैं। इसकी एक वजह यह भी है कि अगले वर्ष लोकसभा चुनाव होने हैं और यह लगभग तय माना जा रहा है कि इस बार के चुनाव में जिसका पलड़ा भारी होगा, देश का अगला शासक वही होगा।

इन सभी राज्यों में मध्य प्रदेश का चुनाव का$फी महत्त्वपूर्ण माना जाता है, क्योंकि जनसंख्या के लिहाज़ से इन पाँचों राज्यों में मध्य प्रदेश सबसे बड़ा राज्य है और क्षेत्रफल के लिहाज़ से दूसरा सबसे बड़ा राज्य है। मध्य प्रदेश में देश की सबसे अधिक आदिवासी आबादी निवास करती है, जो राज्य की कुल आबादी की 22 प्रतिशत है। मध्य प्रदेश में अब तक का यह चलन रहा है कि आदिवासियों के लिए आरक्षित सीटों को जो पार्टी सबसे ज़्यादा जीतने में कामयाब होती है, उसकी सरकार बनती है। राज्य के पिछले पाँच विधानसभा चुनावों के आँकड़े देखें, तो यही बात सामने आती है। सन् 1998 और सन् 2018 के विधानसभा चुनाव में आदिवासी आरक्षित अधिक सीटों को कांग्रेस पार्टी जीतने में कामयाब हुई थी, तो उसकी सरकार बनी; जबकि सन् 2003, सन् 2008 और सन् 2013 में भाजपा ने अधिक सीटें जीतीं, तो उसकी सरकार बनी। 47 विधानसभा सीटें आदिवासी समुदाय के लिए आरक्षित हैं। आदिवासी मतदाता आरक्षित 47 सीटों के अलावा 35 अन्य विधानसभा सीटों पर निर्णायक भूमिका निभाते हैं; क्योंकि इन 35 सीटों पर आदिवासी मतदाताओं की संख्या 50,000 से 1,00,000 तक है। इसके अलावा अन्य सभी सीटों पर भी लगभग 5,000 से 35,000 तक आदिवासी मतदाता हैं। इसलिए मध्य प्रदेश में भाजपा और कांग्रेस नेता आदिवासियों को लुभाने के लिए तरह-तरह के हथकंडे अपना रहे हैं।

प्रधानमंत्री मोदी से लेकर राहुल गाँधी, प्रियंका गाँधी, अमित शाह जैसे नेताओं ने भी आदिवासी क्षेत्रों में सभाएँ कर आदिवासियों को लुभाने की कोशिश कर रहे हैं। भाजपा पेसा एक्ट और चरण पादुका योजना के तहत साड़ी-सैंडल-चप्पल बाँटकर आदिवासियों को अपने पक्ष में करने की कोशिश की है। वहीं कांग्रेस पार्टी ने मध्य प्रदेश के आदिवासी जनता को लुभाने के लिए कई प्रकार की घोषणाएँ की हैं, जिसमें मुख्य रूप से 50 प्रतिशत से अधिक आदिवासी आबादी वाले क्षेत्रों में संविधान की छठवीं अनुसूची लागू करना, पेसा क़ानून का मूल नियम लागू करना, आदिवासियों को वन अधिकार पत्र देना, भगोरिया उत्सव को राजकीय मान्यता, एससी-एसटी श्रमिकों को सुनिश्चित रोज़गार, एक करोड़ के ठेके में एससी-एसटी को 25 प्रतिशत आरक्षण, सरकारी ख़रीदी में एससी-एसटी को 25 प्रतिशत आरक्षण, जातिगत जनगणना कराना, 4,000 रुपये में प्रति बोरा तेंदूपत्ता ख़रीदना, चयन समिति में एससी-एसटी सदस्य, बैकलॉग भर्ती अभियान इत्यादि शामिल है।

हालाँकि मध्य प्रदेश के आदिवासी क्षेत्रों में कांग्रेस और भाजपा के लिए सबसे बड़ी चुनौती जय आदिवासी युवा शक्ति (जयस) संगठन और गोंडवाना गणतंत्र पार्टी (गोंगपा) हैं। गोंगपा का विंध्य और महाकौशल क्षेत्र में 21 आरक्षित विधानसभा सीटों पर प्रभाव है। वहीं जयस संगठन का प्रभाव मालवा-निमाड़ के साथ-साथ मध्य, विंध्य और महाकौशल क्षेत्र में भी है। इसके अलावा कुछ अन्य राजनीतिक दल जैसे- भारतीय आदिवासी पार्टी, भारतीय ट्राइबल पार्टी, बहुजन समाज पार्टी (बसपा), समाजवादी पार्टी (सपा) और आम आदमी पार्टी भी हैं, जो कुछ चुनौती देंगी। इसमें गोंगपा का बसपा से गठबंधन हो चुका है। ऐसे में कांग्रेस और भाजपा के समीकरणों का प्रभावित होना लाज़िमी है।

हालाँकि कांग्रेस पार्टी ने जयस संगठन के साथ गठबंधन करके आदिवासी वोटरों के बीच पैठ बनाने की कोशिश की है; लेकिन भाजपा के लिए मध्य प्रदेश की राह आसान नहीं होगी। क्योंकि विगत तीन वर्षों में मध्य प्रदेश में आदिवासियों पर जिस तरह की घोर अत्याचार की घटनाएँ हुईं और साथ ही आदिवासियों के लिए आरक्षित पदों को भी जिस तरह से अनारक्षित में बदलकर उसमें भ्रष्टाचार किया गया, उससे पूरा आदिवासी समाज नाराज़ है। जयस के राष्ट्रीय संरक्षक डॉ. हिरालाल अलावा ने भाजपा के पेसा एक्ट और चरण पादुका योजना पर सवाल उठाये हैं। उनका कहना है कि आदिवासियों को बाँटी जाने वाली वनोपज की राशि 1,040 करोड़ रुपये का बंदरबाँट कर भाजपा सरकार ने चरण पादुका योजना के तहत आदिवासियों को 261 करोड़ रुपये के साड़ी, सैंडल और चप्पल बाँट दिये। उन्होंने पेसा एक्ट के शिथिल प्रावधानों पर भी सवाल उठाये।

(लेखक पत्रकार एवं सामाजिक कार्यकर्ता हैं।)