पाठकों, मैं वह हरिशंकर नहीं हूं, जो व्यंग्य वगैरह लिखा करता था. मेरे नाम, काम, धाम सब बदल गए हैं. मैं राजनीति में शिफ्ट हो गया हूं. बिहार में घूम रहा हूं और मध्यावधि चुनाव लड़ने की तैयारी कर रहा हूं.
अब मेरा नाम है- बाबू हरिशंकर नारायण प्रसाद सिंह
याद रखियेगा- नहि ना भूलियेगा
हंसियेगा नहीं. हम नया आदमी है न. अभी सुद्ध भासा सीख रहे हैं. जैसा बनता है न, वैसा कोहते हैं.
मैं बिहार की जनता की पुकार पर ही बिहार आया हूं. जनता की पुकार राजनीतिज्ञों को कैसे सुनाई पड़ जाती है, यह एक रहस्य है धंधे का, नहीं बताऊंगा.
जनता की पुकार कभी-कभी मेमने की पुकार जैसी होती है. वह पुकारता है मां को और आ जाता है भेड़िया. मेमना चुप रहे तो भी कभी भेड़िया पहुंचकर कहता है-तूने मुझे पुकारा था. मेमना कहता है मैंने तो मुंह ही नहीं खोला, भेड़िया कहता है तो मैंने तेरे हृदय की पुकार
सुनी होगी.
बिहार की जनता कह सकती है हमने तुम्हें नहीं पुकारा. हमें तुम्हारे द्वारा अपना उद्धार नहीं करवाना. तुम क्यों हमारा भला करने पर उतारू हो?
मैं कहूंगा मैंने दूर मध्य प्रदेश में तुम्हारे हृदय की पुकार सुन ली थी. वहां मध्यावधि चुनाव नहीं हो रहे हैं इसलिए वहां की जनता की सेवा नहीं कर सकता और बिना सेवा किए जीवित नहीं रह सकता. तुम राजी नहीं होओगे तो बलात सेवा कर लूंगा. सेवा का बलात्कार! समझे?
अकेला मैं नहीं, भगवान श्रीकृष्ण भी बिहार की जनता का उद्धार करने आ पहुंचे हैं. बिहार की बाढ़, सूखा और महामारी सी पीडि़त जनता! अकाल से पीडि़त जनता!
एक दिन मेरी कृष्ण भगवान से भेंट हो गई. मैंने पहचान लिया, वही मोर मुकुट, पीतांबर और मुरली!
मैंने कहा, ‘भगवान कृष्ण हैं न.’
वे बोले, हां वहीं हूं पर मेरा नाम अब भगवान बाबू कृष्णनारायण प्रसाद सिंह हो गया है. कृष्ण बाबू भी कह सकते हैं.
मैंने कहा, भगवान क्या गोरक्षा आंदोलन का नेतृत्व करने पधारे हैं? चुनाव आ रहा है, तो गोरक्षा होगी ही. आप गोरक्षा आंदोलन के जरिए पाॅलिटिक्स में
घुस जाएंगे.
कृष्ण ने कहा, नहीं उस हेतु नहीं आया. गोरक्षा आंदोलन आम चुनाव के काम का है. मध्यावधि छोटे चुनाव में तो मूषक रक्षा आंदोलन से भी काम चल जाएगा. मूषक रक्षा में गणेश जी की रुचि हो सकती है, अपनी नहीं.
मैंने कहा, तो फिर आपको रामसेवक यादव ने बुलाया होगा यादवों के वोट संसोपा को दिलवाने के लिए.
कृष्ण खीज पडे़. बोले मुझे भी तो बताने दो. मैं बिहार की जनता की पुकार पर आया हूं.
मैंने कहा, आपको भ्रम हो गया, भगवन. वे तो कृष्णवल्लभ सहाय के समर्थक थे, जो उन्हें टिकट देने के लिए ऐसी जोर की आवाज लगा रहे थे कि दिल्ली में कांग्रेस हाईकमान को सुनाई पड़ जाए. वे कृष्णवल्लभ बाबू का नाम ले रहे थे, आप समझे जनता आपको पुकार रही है.
कृष्ण ने कहा, नहीं मैंने खुद सुना, जनता कह रही थी, हे भगवान अब तो तेरा ही सहारा है. तू ही उद्धार कर सकता है. इसी पुकार को सुनकर मैं यहां आ गया.
ऐसा हो सकता है. बात यह है कि चौथे चुनाव के बाद सिर्फ भगवान की सत्ता ही स्थिर है. बिहार के मुसीबतजदा लोग पटना में एक सरकार से अपनी कहते, तब तक दूसरी सरकार आ जाती. हो सकता है, उन्होंने ईश्वर की एक मात्र सरकार से गुहार
की हो.
मैंने कहा, ठीक किया जो आप आ गए. अब इरादा क्या करने का है?
उन्होंने कहा, मेरा तो घोषित कार्यक्रम है, त्रिसूची साधुओं का परित्राण, दुष्कर्मियों का नाश और धर्म की संस्थापना.
मैंने पूछा, कोई आर्थिक कार्यक्रम वगैरह?
वे बोले, नहीं बस वही त्रिसूची कार्यक्रम है.
मैंने पूछा यहां राजनीतिज्ञों में कोई साधु मिले?
एक भी नहीं.
और असाधु?
एक भी नहीं. हर एक अपने को साधु और दूसरों को असाधु कहता है. किसका नाश कर दूं समझ में नहीं आता?
इसी वक्त मुझे ख्याल आया कि इनके हाथ में सुदर्शन चक्र तो है नहीं नाश कैसे करेंगे. मैंने पूछा तो कृष्ण ने बताया, चक्र घर में रखा है क्योंकि उसका लाइसेंस नहीं है. फिर इधर अभी से धारा 144 लगी हुई है.
मैंने उन्हें समझाया, भगवान अगर सुदर्शन चक्र का लाइसेंस मिल जाए तो भी किसी को मारने पर दफा 302 में फंस जाएंगे.
कृष्ण पसोपेश में थे. कहने लगे फिर धर्म की संस्थापना कैसे होगी?
मैंने कहा, धर्म की संस्थापना तो सांप्रदायिक दंगों से हो रही है. आप एक हड्डी का टुकड़ा उठाकर मंदिर में डाल दीजिए और हिंदू धर्म के नाम पर दंगा करवा दीजिए. धर्म का उपयोग तो अब दंगा करने के लिए ही रह गया है. आप के विचार काफी पुराने पड़ गए हैं. हम लोग तो दुष्कर्मियों का परित्राण करने के लिए यह व्यवस्था चला रहे हैं. सबसे असुरक्षित तो साधु ही हैं.
भगवान कृष्ण को मैंने समझाया, आप संसदीय लोकतंत्र में घुसे बिना जन का उद्धार नहीं कर सकते. आप चुनाव लडि़ए और इस राज्य के मुख्यमंत्री बन जाइए. रुक्मिणी जी को बुला लीजिए. जिस टूर्नामेंट का आप उद्घाटन करेंगे, उसमें वे पुरस्कार वितरण करेंगी. घर के ही एक जोड़ी से कर कमलों में दोनों का काम हो जाएंगे.
बड़ी मुश्किल से उनके सामंती संस्कारों के गले में लोकतंत्र उतरा. इससे ज्यादा आसानी से तो दरभंगा नरेश बाबू कामाख्या नारायण सिंह लोकतंत्री हो गए थे. कृष्ण को चुनाव के मैदान में उतारने में मेरा स्वार्थ था. राजनीति में नया-नया आया हूं. पहले किसी बड़ी हस्ती का चमचा बनना जरूरी है. दादा को चमचा चाहिए और चमचे को दादा. दादा मुख्यमंत्री, तो चमचा गृहमंत्री. मैंने सोचा, लोग शंकराचार्य को अपनी तरफ ले रहे हैं, मैं साक्षात भगवान कृष्ण के साथ हो जाऊं.
हम लोगों ने तय किया कि पहले अपने पक्ष में जनमत बनाएं और फिर राजनीतिक पार्टियों से तालमेल बिठाएं. हम लोगों से मिलने निकल पडे़. मैं तो चमचा था. भगवान का परिचय देकर चुप हो जाता. जिन्होंने बहस कर करके अर्जुन को अनचाहे लड़वा दिया था, वे तर्क से लोगों को ठीक कर देंगे- ऐसा मुझे विश्वास था. पर धीरे-धीरे मेरी चिंता बढ़ने लगी. कृष्ण की बात जम नही रही थी.
कुछ राजनीति करने वालों से बातें हुईं. कृष्ण ने बताया कि चुनाव लड़ रहा हूं.
वे बोले हां, हां आप क्यों न लडि़येगा. आप भगवान हैं. आपका नाम है. आपका भजन होता है. आपका आरती होता है. आपका कथा होता है. आपका फोटू बिकता है. आप नहीं लडि़एगा तो कौन लडे़गा, आप यादव हैं न?
कृष्ण ने कहा, मैं ईश्वर हूं. मेरी कोई जाति
नहीं है.
उन्होंने कहा देखिए न, इधर भगवान होने से तो काम नहीं न चलेगा. आपको कोई वोट नहीं देगा. जात नहीं रखिएगा तो कैसे जीतिएगा?
जाति के इस चक्कर से हम परेशान हो उठे भूमिहार, कायस्थ, क्षत्रिय, यादव होने के बाद ही कोई कांग्रेसी, समाजवादी या साम्यवादी हो सकता है. कृष्ण को पहले यादव होना पडे़गा, फिर चाहे वे मार्क्सवादी हो जाएं.
कृष्ण इस जातिवाद से तंग आ गए. कहने लगे, ये सब पिछडे़ लोग हैं. चलो विश्वविद्यालय चलें. हमें प्रबुद्ध लोगों का समर्थन लेकर इस जातिवाद की जडें़ काट देनी चाहिए.
विश्वविद्यालय में राजनीति के प्रोफेसर से हम बातें कर रहे थे. उन्होंने साफ कह दिया, मैं कायस्थ होने के नाते कायस्थों का ही समर्थन करूंगा.
कृष्ण ने कहा, आप विद्वान होकर भी इतने संकीर्ण हैं?
प्रोफसर ने समझाया, देखिए न, विद्या से मनुष्य अपने सच्चे रूप को पहचानता है. हमने विद्या प्राप्त की, तो हम पहचान गए कि हम कायस्थ हैं.
कृष्ण घबड़ाकर एक पेड़ की छांह में लेट गए. कहने लगे, सोचते हैं लौट जाएं. जहां भगवान को भगवान होने के कारण एक भी वोट न मिले, वहां अपने राजनीति नहीं बनेगी.
उधर, कृष्ण के राजनीति में उतरने की बात खूब फैल गई थी और राजनीतिक दल सतर्क हो गए थे. जनसंघ का ख्याल था कि गोपाल होने के कारण बहुत करके कृष्ण अपना साथ देंगे पर अगर विरोध हुआ तो उसकी तैयारी कर लेनी चाहिए, उन्होंने कथावाचकों को बैठा दिया था कि पोथियां देखकर कृष्ण की पोल खोजो. गड़बड़ करेंगे तो चरित्र हनन कर देंगे.
चरित्र हनन शुरू हो गया था. कानाफूसी चलने लगी थी. कृष्ण शीतल छांह में सो गए थे. मैं बैठा था. तभी एक आदमी आया. मेरे कान में बोला-
यह भगवान श्रीकृष्ण हैं न?
मैंने कहां, हां. देखो क्या रूप है.
उसने कहा एक बात बताऊं. किसी से कहिएगा नहीं. इनकी डब्ल्यू का मामला बड़ा गड़बड़ है. भगाई हुई है. रुक्मिणी नाम है. बड़ा दंगा हुआ था, जब उन्होंने रुक्मिणी को भगाया था. सबूत मिल गए हैं. पोथी में सब लिखा हुआ है. जो किसी की लड़की को भगा लाया, वह अगर शासन में आ गया तो हमारी बहू-बेटियों की इज्जत का क्या होगा?
कृष्ण उठे, तो मैंने कहां, प्रभु आपका करेक्टर एसेसिनेशन शुरू हो गया. अब या तो आप चुनाव में हिम्मत से कूदिए ये मुझे छोडि़ये. मैं कहीं अपना तालमेल बिठा लूंगा. आपके साथ रहने से मेरा भी राजनीतिक भविष्य खतरे में पड़ जाएगा.
कृष्ण का दिमाग सो लेने के लिए खुल गया था. वे बडे़ विश्वास से बोले, एक बात अभी सूझी है. यहां मेरे कई हजार पक्के समर्थक हैं जिन्हें मैं भूल ही गया था. मेरे हजारों मंदिर हैं. उनके पुजारी तो मेरे पक्के समर्थक हैं ही. मैं उन हजारों पुजारियों के दम पर सारी सीटें जीत सकता हूं. चलो, पुजारियों से बात कर लें.
हम एक मंदिर में पहुंचे. पुजारी ने कृष्ण को देखा तो खुशी से पागल हो गया. नाचने लगा, बोला धन्यभाग! जीवन भर की पूजा हो गई. भगवान को साक्षात देख रहा हूं.
कृष्ण ने पुजारी को बताया कि वे चुनाव लड़ने वाले हैं. वोट दिलाने की जिम्मेदारी पुजारी की होगी.
पुजारी ने कहा, आप प्रभु हैं, वोट की आपको कौनो कमी है.
कृष्ण ने कहा, फिर भी पक्की तो करनी पडे़गी, तुम तो वोट मुझे ही दोगे न?
पुजारी ने हाथ मलते हुए कहा आप मेरे आराध्य हैं प्रभु, पर वोट का ऐसा है कि वह जात वाले का ही जाएगा. जात से कोई खड़ा न होता तो हम जरूर आपको ही वोट देते.
कृष्ण की इतनी दीन हालत तब भी नहीं हुई होगी जब शिकारी का तीर उन्हें लगा था. कहने लगे, अब सिवा भूदान आंदोलन में शामिल होने के कोई रास्ता नहीं है. जिसका अपना पुजारी धोखा दे जाए, ऐसे पिटे हुए राजनीतिज्ञ के लिए या तो भारत सेवक समाज है या सर्वोदय. चलो बाबा के पास.
मैंने कहा, अभी वह स्टेज नहीं आई. अभी तो हम एक भी चुनाव नहीं हारे. पांच-पांच बार चुनाव हारकर भी लोग सर्वोदय में नहीं गए. चलिए, राजनीतिक दलों से बातचीत करें.
पहले हम कांग्रेस के दफ्तर गए. वहां बताया गया कि यहां कांग्रेस है ही नहीं. मंत्री ने कहा, इधर तो कृष्णवल्लभ बाबू हैं, महेश बाबू हैं, रामखिलावन बाबू हैं, मिसरा बाबू हैं, कांग्रेस तो कोई नहीं है और फिर कांग्रेस से मिलकर क्या करियेगा. जो गुट सरकार में चला जाता है, वह कांग्रेस रह जाता है. जो सत्ता में नहीं रहता वह कांग्रेस का भी नहीं रहता. कांग्रेस कौन है, यह चुनाव के बाद ही मालूम होगा. कांग्रेस अब सरकार नहीं बनाती, सरकार गिराती है. आप चुनाव लडि़ए. अगर आपके साथ चार-पांच विधायक भी हों तो हमारे पास आइए. आपकी मेजोरिटी बनाकर आपकी सरकार बनवा देंगे. हमने मंडल की सरकार बनवाई थी न.
हम संसोपा के पास गए. उन लोगों ने पहले परीक्षा ली. जब हमने कहा कि जवाहरलाल जो गुलाब का फूल शेरवानी में लगाते थे, वह कागज का होता था, तो वे लोग बहुत खुश हुए. कहने लगे, बड़े क्रांतिकारी विचार हैं आपके. देखो यह नेहरू देश को कितना बड़ा धोखा देता रहा.
मैंने कहा, हम लोग समाजवादी होना चाहते हैं.
वे बोले, समाजवादी होना उतना भी जरूरी नहीं है जितना गैर कांग्रेसी होना. डाकू भी अगर कांग्रेस विरोधी हैं तो बडे़ से बडे़ समाजवादी से श्रेष्ठ हैं.
कृष्ण ने कहा लेकिन कोई आइडियोलॉजी तो
है ही.
संसोपाई बोले, गैर कांग्रेसवाद एक आइडियोलॉजी तो है ही. इस आइडियोलॉजी के कारण सबसे तालमेल बैठ जाता है, गोरक्षा में जनसंघ के साथ पूंजी की रक्षा में स्वतंत्र पार्टी के साथ, जनतांत्रिक समाजवाद में प्रसोपा के साथ, जनक्रांति में कम्युनिस्टों के साथ.
मैंने पूछा, डॉक्टर लोहिया ने कहा था कि जनता का विश्वास प्राप्त करने के लिए गैर कांग्रेसी सरकार छह महीने के भीतर कोई चमत्कारी काम करके बताएं. ऐसा हुआ था क्या?
उन्होंने कहा, हां एक नहीं कितने चमत्कारी काम हो गए. हमारे मंडल बाबू ने ही कितना बड़ा चमत्कारी काम किया.
हम दोनों साम्यवादी दलों के पास गए. दक्षिणपंथी साम्यवादी दल ने कहा, तो कॉमरेड कृष्ण आपका हिस्ट्री हमने पढ़ा है. आप में वामपंथी दुस्साहसिकता और वामपंथी भटकाव दोनों हैं. आपने इस तरह के काम किए थे. आप मार्क्सवादियों के पास जाइए.
मार्क्सवादियों ने कह दिया, तुम तो संशोधनवादी हो तुम्हारा सारा वर्गचरित्र प्रतिक्रियावादी है.
जनसंघ ने खुले दिल से स्वागत किया. कहा आप तो द्वापर से हमारी पार्टी के सदस्य थे. आइए आपका बौद्धिक हो जाए.
उन्होंने कागज की एक पर्ची पर लिखा हिंदू राष्ट्र, गोरक्षा, भारतीय संस्कृति. पर्ची को एक छपे हुए कागज में रखा. फिर अलमारी से ताला चाबी निकाले.
वे एक औजार से कृष्ण का सिर खोलने लगे. कृष्ण चौंककर हट गए. बोले यह क्या कर रहे हो?
उन्होंने समझाया, आपका बौद्धिक संस्कार कर रहे हैं. सिर खोलकर ये विचार आपके दिमाग में रखकर ताला लगा देंगे और चाबी नागपुर गुरुजी के पास भेज देंगे. न चाबी आएगी, न दिमाग खुलेगा, न परकीय और अराष्ट्रीय विचार आपके दिमाग
में घुसेंगे.
कृष्ण आतंकित हो गए. वे एक झटके से उठे और बाहर भागे. पीछे से वह आदमी चिल्लाया, रुकिए रुकिए, हमारे स्वयंसेवकों को एक-एक सुदर्शन चक्र तो देते जाइए.
हम भागे तो सीधे शोषित दल वालों के पास पहुंचे. उन्होंने कहा, अभी से आप शोषित कैसे हो सकते हैं? शोषित तब होता है जब विधायक हो जाए, पर आप मंत्री न हो. आप मंत्री नहीं बन सके तभी तो शोषित होंगे. तब हमारे साथ हो जाइए.
क्रांतिदल के महामाया बाबू से मिलने का भी इरादा था, पर सुना कि जब से उन्होंने कामाख्या बाबू के खिलाफ दायर 218 मुकदमे उठाए, तब से उनकी खदान में ही गुप्त वास कर रहे हैं.
खदान के बाहर ही राजा कामाख्या नारायण सिंह मिल गए. उन्होंने कहा, मेरे साथ होने से आप लोगों को राजनीति की दुनिया की पूरी सैर करनी पड़ेगी. आप थक जाएंगे. हर आदमी में मेरे जैसी फुर्ती नहीं है. देखिए न मैंने जनता पार्टी बनाई. फिर स्वतंत्र पार्टी में चला गया. फिर कांग्रेस में लौट आया. फिर भारतीय क्रांतिदल में चला गया. फिर भारतीय क्रांतिदल से निकलकर जनता पार्टी बना ली. मेरे लिए राजनीतिक दल अंडरवियर है, ज्यादा दिन एक ही को नहीं पहनता क्योंकि बदबू आने लगती है. अपने पास कुल सत्रह विधायक होते हैं, पर कोई भी सरकार मेरे बिना चल नहीं सकती. आप लोग तो अपनी अलग पार्टी बनाइए, अपने कुछ लोगों को विधानसभा में ले आइए और फिर सिंहासन पर बैठकर कांग्रेसवाद, संघवाद, क्रांतिवाद, समाजवाद, साम्यवाद सबसे चरण दबवाइए. सिद्धांत पर अड़ेंगे तो मिटेंगे. सबसे बड़ा सिद्धांत सौदा है.
हमें भी बोध हुआ कि किसी दल से अपनी पटरी पूरी तरह बैठेगी नहीं. अपना अलग दल होना चाहिए. अगर अपने चार पांच विधायक भी रहे, तो जोड़ तोड़ उठापटक और उखाड़ पछाड़ के द्वारा प्रदेश की सरकार हमेशा अपने कब्जे में रहेगी.
हमने एक नई पार्टी बना ली है, अभी यह पार्टी सिर्फ बिहार में कार्य करेगी. यदि मध्यावधि चुनाव में इसे जनता का समर्थन अच्छा मिला, तो अखिल भारतीय पार्टी बना देंगे.
इस पार्टी का संक्षिप्त मेनिफेस्टो यहां दे रहे हैं ः
भारतीय राजनीति में व्याप्त अवसरवाद, मूल्यहीनता और अस्थिरता को देखकर हर सच्चे जनसेवक का हृदय फटने लगता है. राजनीतिक भ्रष्टाचार के कारण आज देश के करोड़ाें मानव भूखे हैं, नंगे हैं बेकार हैं. वे अकाल, बाढ़, सूखा और महामारी के शिकार हो रहे हैं. असंख्य कंठों से पुकार उठ रही है. हे भगवान आओ और नई राजनीतिक पार्टी बनाकर सत्ता पर कब्जा करो और हमारी रक्षा करो. जनता के आर्त्तनाद को सुनकर भगवान कृष्ण बिहार में अवतरित हो गए हैं और उन्होंने हरिशंकर नारायण प्रसाद सिंह नाम के विश्वविख्यात जनसेवक के साथ मिलकर एक पार्टी की स्थापना कर ली है.
पार्टी का नाम भारतीय जनमंगल कांग्रेस होगा.
नाम में जन या जनता या लोक रखने का आधुनिक राजनीति में फैशन पड़ गया है. इसलिए हमनें भी जन शब्द रख दिया है. जनता से प्रार्थना है कि जन को गंभीरता से न लें, इसे वर्तमान राजनीति का एक मजाक समझें.
पार्टी के नाम पर भारतीय इसलिए रखा है कि आगे जरूरत हो तो भारतीय जनसंघ के सथ मिलकर सत्ता में हिस्सा बंटा सकें.
कांग्रेस इसलिए रखा है कि अगर इंदिरा जी वाली कांग्रेस को अल्पमत सरकार बनाने की जरूरत पडे़ तो पहले हमें मौका दे.
जनता शब्द की व्याख्या किसी दल ने नहीं की है. हम पहला बार ऐसा कर रहे हैं. जनता उन मनुष्यों को कहते हैं जो वोटर हैं और जिनके वोट से विधायक तथा मंत्री बनते हैं. इस पृथ्वी पर जनता की उपयोगिता कुल इतनी है कि उसके वोट से मंत्रिमंडल बनते हैं. अगर जनता के बिना सरकार बन सकती है, तो जनता की कोई जरूरत नहीं है.
जनता कच्चा माल है. इससे पक्का माल विधायक, मंत्री आदि बनते हैं. पक्का माल बनने के लिए कच्चे माल को मिटना ही पड़ता है.
हम जनता को विश्वास दिलाते हैं कि उसे मिटाकर हम ऊंची क्वालिटी की सरकार बनाएंगे. हमारा न्यूनतम कार्यक्रम सरकार में रहना है. हम इस नीति को मानते हैं यथा राजा, तथा प्रजा. राजा अगर ठाठ से ऐशो आराम में रहेगा तो प्रजा भी वैसी ही रहेगी. राजा अगर सुखी होगा तो प्रजा भी सुखी होगी. इसलिए हमारी पार्टी के मंत्री ऐशो आराम से रहेंगे. जनता को समझना चाहिए कि हमें मजबूर होकर सुखी जीवन बिताना होगा, जिससे जनता भी सुखी हो सके. यथा राजा तथा प्रजा.
हमारे उम्मीदवार विधायक होने के लिए चुनाव नहीं लड़ेंगे वे मंत्री बनने के लिए वोट मांगेंगे. हमारी पार्टी के उम्मीदवार को जब जनता वोट देगी, तो मंत्री को वोट देगी. हम अपनी पार्टी के हर विधायक को मंत्रिमंडल में लेंगे, जिससे कोई दल न छोड़े.
यदि हमारे किसी मंत्री को दल छोड़ना है तो उसे पहले हमसे पूछना होगा. वह तभी दल छोड़ सकेगा, जब हम उसकी मांग पूरी न कर सकेंगे.
सरकार का काम राज करना है, रोजी रोटी की समस्या का हल
करना नहीं है.
सरकार का काम राज करना है, इसलिए वह अन्न उत्पादन नहीं करेगी.
जिस कंपनी को अन्न उत्पादन करना हो, उसे बिहार की जमीन दे दी जाएगी.
हम जाति के हिसाब से अलग-अलग जिला बना देंगे. ब्राह्मणों के जिले में क्षत्रिय नहीं रहेगा. जिलाधीश की नियुक्ति जाति पंचायत करेगी.
बिहार में भूख और महामारी से बहुत लोग मरते हैं. पर काशी बिहार में नहीं है. गया यहां श्राद्ध के लिए है. हम आंदोलन करके काशी को बिहार में शामिल करेंगे, जिससे बिहार का आदमी यहीं काशी में मरकर गया में पिंडदान करवा ले.
हम जनता को वचन देते हैं कि जिस सरकार में हम नहीं होंगे, उस सरकार को गिरा देंगे. अगर हमारा बहुमत नहीं हुआ, तो हम हर महीने जनता को नई सरकार का मजा देंगे.
घोषणा पत्र की यह रूपरेखा है. विस्तार से आगे बताएंगे.
जनता हमारी पार्टी की विजय के लिए प्रार्थना करे.
ठेकेदार, उद्योगपति, दंगा करने वाले शर्तें तय करने के लिए अभी संपर्क करें.
हमारे भाई, भतीजे, मामा, मौसा, फूफा, साले बहनोई जो जहां भी हों, बिहार में आकर बस जाएं और रिश्तेदारी के सबूत समेत जीवन सुधारने की दरख्वास्त अभी से दे दें. देर करने से नक्काल फायदा उठा लेंगे.