देश के चुनाव आयोग ने 16 अक्तूबर को हिमाचल प्रदेश के मतदान की घोषणा की लेकिन गुजरात के चुनावों की घोषणा अर्से बाद की। इस दौरान भाजपा ने पंद्रह दिन की गौरव यात्रा निकाली इसमें राज्य के 182 निर्वाचन क्षेत्रों में 149 निर्वाचन क्षेत्रों में यह यात्रा गई। इन गौरव यात्राओं में हल्ला-हंगामा काफी रहा। अगस्त महीने में कांग्रेस के अहमद पटेल ने जीत हासिल की। यह गुजरात के लोगों को याद है। सूरत के व्यापारियों को जीएसटी के कारण खासी मुसीबतें झेलनी पड़ी, इसलिए वे सड़क पर उतरे। उधर पार्टी अध्यक्ष के पुत्र की कमाई से भी विपक्ष को अपनी बात जनता के बीच रखने का मौका मिला।
भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष ने 150 से 180 सीट हासिल करने का लक्ष्य रखा है। नरेंद्र मोदी राज्य में मुख्यमंत्री नहीं है अब भाजपा के नेताओं व कार्यकर्ताओं के सामने खासी बड़ी चुनौती है। पूरी ताकत से अमित शाह पार्टी कार्यकर्ताओं में जान फूंक रहे हैं। राज्य में 1985 में जब माधव सिंह सोलंकी मुख्यमंत्री थे तब कांग्रेस को 149 सीट मिली थी। इस बार अमित का ध्यान राज्य में डेढ़ सौ सीट जीत लेने का है।
भाजपा गुजरात में 1995 से बिना रुके जीतती ज़रूर रही लेकिन कभी 127 सीट से ज्य़ादा नहीं पा सकी। जब 2002 में दंगे हुए तो गुजरात में 127 सीट मिली। पिछली बार 2012 में जब मोदी ने आखिरी बार बतौर मुख्यमंत्री चुनाव लड़ा तो पार्टी को 115 सीटें हासिल हुई। हार के बाद भी कांग्रेस ने कभी अपना 38 फीसद का वोट बैंक नहीं छोड़ा भले ही नरेंद्र मोदी सत्ता प्रमुख रहे हों।
गुजरात के वर्तमान मुख्यमंत्री विजय रूपानी औसतन हर महीने एक परियोजना घोषित करते रहे हैं। अपनी दो दिनों की वडनगर और भड़ौच की यात्रा के दौरान प्रधानमंत्री ने भी 10,800 करोड़ की योजनाओं की घोषणा की। जनवरी में औसतन हर महीने राज्य में बड़े और भाजपा के नेता लगातार यात्राएं करते रहें हैं। इनमें केंद्रीय मंत्री राजनाथ सिंह, स्मृति ईरानी, उमा भारती और मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे, योगी आदित्यनाथ शामिल हैं।
गुजरात को जीतना भाजपा के लिए गौरव की बात है। इस मकसद को कामयाब करने के लिए 2010 में केंद्रीय नेता सुषमा स्वराज, अरूण जेटली, नीतिन गडकरी ने भी नरेंद्र मोदी का साथ दिया और इन सबने म्यूनिसपल कॉरपोरेशन के लिए प्रचार किया। इन लोगों ने 2012 में विधानसभा चुनाव में जीत के लिए भी खासा प्रचार किया।
इधर अमित शाह के विश्वस्त सहयोगी भूपेंद्र यादव, प्रदीप सिंह जडेजा और जीतू वघानी (राज्य भाजपा प्रमुख) मोदी ने केंद्रीय मंत्री अरूण जेटली और निर्मला सीतारमण के नेतृत्व में वार रूम बनाया है।
भाजपा ने राज्य में बुलेट ट्रेन की घोषणा करके और जापान के प्रधानमंत्री शिंजोआबे के साथ गुजरात की धरती पर सारे समझौते और घोषणाएं करके राज्य की जनता को रिझाया। तब भाजपा को यह यकीन हुआ कि गुजरात निवासियों के लिए यह खास उपयोगी होगा। जनता में खासी व्यग्रता भी नज़र आई।
तभी विकास गाडो थायो छे का प्रचार भी शुरू हुआ। युवाओं की ओर से आए इस नारे पर अमित शाह खासे नाराज भी दिखे। उन्होंने एक बैठक में कहा कि नौजवानों को अपने दिमाग से भी सोचना चाहिए। सब कुछ वाट्स एप से नहीं सीखना चाहिए। पहली बार पार्टी को भी लगा कि राज्य में बुलेट ट्रेन लाने का फैसला चुनाव प्रचार में मुफीद नहीं जान पड़ रहा है।
पाटीदार आंदोलन समिति (पीएएस) के मीडिया संयोजक वरूण पटेल ने कहा विकास गाडो थायो छे की बात सागर सांवलिया (एक पाटीदार युवा) की थी। इसे आंदोलनकारी पाटीदारों ने उठा लिया। बाद में यह कांग्रेस को भी उचित जान पड़ा। वीडियो और फोटो से जीएसटी (गुड्स एंड सर्विसेज टैक्स)और विमुद्रीकरण पर नाराज़गी दिखाई देने लगी। वस्त्र व्यवसायियों ने पूरे एक महीने तक हड़ताल की। लगभग डेढ़ हजार करोड़ रुपए का नुकसान हुआ। इसमें बड़ी तादाद में उत्तर भारतीय भी थे। इस हड़ताल से यह भ्रम भी टूटा कि पारंपरिक तौर पर व्यापारी भाजपा समर्थक रहता है। नरेंद्र मोदी ने इस नाराजगी को दूर करने के लिए सूरत से बिहार तक के लिए एक साप्ताहिक ट्रेन भी चलवाई। इसके बाद भी व्यापारियों का गुस्सा थमा नहीं। उन्होंने मांग की, जीएसटी का फिर संशोधन किया जाए। केंद्र सरकार ने वह भी किया लेकिन मसला ज्य़ादा शांत नहीं हुआ।
पार्टी ने उन जिलों में जीत की संभावना की तलाश की जहां नर्मदा का पानी जाता है। नरेंद्र मोदी ने सरदार सरोवर बांध का बहुप्रचारित उद्घाटन कर दिया। लेकिन इतने साल बाद भी नर्मदा का पानी जि़ले-जि़ले में पहुंचाने के लिए नहरों का जाल ही नहीं बन सका है। इसके चलते गुजरात के किसान भी बहुत उत्साहित नहीं दिखे।
अभी पिछले महीनों से सरकार ने घोषित किया कि स्थायी कर्मचारियों को सातवें वेतन आयोग के तहत भत्ते, सुविधाएं दी जाएंगी। भाजपा के राज्य सचिव भूपेंद्र यादव ने कहा कि राज्य में कांग्रेसी और भाजपाई राज का तुलनात्मक अध्ययन करके यह जानकारी जनता को दी जाएगी कि कृषि, उद्योग, शिक्षा और कानून व्यवस्था में कितनी उपलब्धि हुई।
हालांकि जीएसटी से व्यापारियों के हाथ निराशा लगी है जो भाजपा का समर्थक तबका रहा है। फिर भी पार्टी नेतृत्व का मानना है कि इसका कोई खास असर नहीं पड़ेगा। जल्दी ही कुछ नई योजनाएं जारी की जाएंगी। पार्टी नेता यह बताते हैं कि अमित शाह को पूरा भरोसा है कि पार्टी को लाभ ही होगा। हालांकि भाजपा कार्यकर्त्ताओं और नेताओं में बेचैनी ज़रूर है। उन्हें यकीन है कि भाजपा कार्यकर्ताओं की तैयारी अच्छी है और इसका असर भी ठीक ही पड़ेगा।
गुजरात भाजपा प्रमुख जीतू वघानी यह नहीं मानते कि भाजपा कार्यकर्ताओं और नेताओं पर मोदी की यात्राओं से निराशा बढ़ी है। वे कहते हैं नरेंद्र मोदी गुजरात के ही बेटे हैं वे जब भी राज्य में आते हैं तो लाभ लाते हैं। पूरे राज्य के लिए कल्याण की बात करते हैं। इसलिए हम हमेशा उनकी यात्राओं के पक्ष में रहते हैं।
विकास पर भाजपा की खासी खिंचाई होती रहती है। जाति समीकरणों का जो हाल है उसे लेकर भी भारतीय जनता पार्टी के स्थानीय बड़े नेता खासे चिंतित हैं। गुजरात में तकरीबन बारह फीसद मताधिकार की वोट हिस्सेदारी पाटीदारों की है जो आरक्षण में हिस्सेदारी चाहते हैं और सामाजिक हिस्सेदारी के अनुरूप भागीदारी के पक्ष में है।
जब 1980 के दशक में पाटीदारों ने कांग्रेस की बजाए भाजपा से संबंध बनाने शुरू किए, तो माधव सिंह सोलंकी के राज को ग्रहण लगना शुरू हो गया था। सोलंकी ने तब ओबीसी को आरक्षण और बाद में केएचएएम (क्षत्रिय-हरिजन-आदिवासी- मुसलिम) का खाम नामक वोट बैंक तैयार किया।
युवा नेता हार्दिक पटेल ने जुलाई 2015 में राजनीतिक शुरूआत की और पाटीदारों के लिए आरक्षण की मांग की। भाजपा ने काफी समय तक अनसुनी की फिर बातचीत में उलझाया जिसके चलते हुए दंगा फसाद में दस लोग मारे गए। हार्दिक गिरफ्तार किए गए। अदालत ने हार्दिक पर छह माह की निषेधाज्ञा लगा दी लेकिन मामला सुलझा नहीं। पार्टी के प्रति पाटीदारों में सहयोग घट रहा है। यह समुदाय मोदी के पुराने प्रतिद्वदी केशुभाई पटेल की गुजरात परिवर्तन पार्टी (जीपीपी) की 2012 में समर्थक था। हालांकि इसे सिर्फ दो सीटें ही मिली। उसके बाद जीपीपी का विलय भाजपा में ही हो गया।
हार्दिक अभी पच्चीस साल के भी नहीं हैं। इसलिए वे चुनाव नहीं लड़ सकते लेकिन सौराष्ट्र, सूरत, और उत्तर गुजरात के मेहसाणा और पाटण में उनका पाटीदारों में खासा प्रभाव है। वे पूरे राज्य का दौरा करते हैं। उन्हें सुनने के लिए खासा बड़ा समुदाय एकजुट होता है।
अब भाजपा ने पीएएएस के खिलाफ लगे मुकदमे उठाने शुरू कर दिए हैं। गृह राज्यमंत्री प्रदीप सिंह जडेजा ने अभी हाल में यह कहा भी कि इस समुदाय के प्रति उनकी यह एक राजनीति है। राज्य सरकार ने एक निगम बना दिया है जो अनारक्षित श्रेणियों के मामलों की छानबीन करेगा। एक आयोग भी बना है जो पीएएएस पर हुई पुलिस ज्य़ादातियों की पड़ताल करेगा। अभी हाल में मोदी ने हरिद्वार में एक आश्रम का उद्घाटन किया जहां कडवा पाटीदार समुदाय के तीर्थयात्री जाकर रह सकेंगे।
गुजरात की राजनीति में अकेले हार्दिक ही युवा, नेता नहीं है। इनके अलावा दलित नेता जिग्नेश मेवाणी और ओबीसी के युवा नेता अल्पेश ठाकोर भी हैं। मेवाणी ने जबसे दलितों के लिए आत्म सम्मान आंदोलन छेड़ा तब से वे चर्चा के केंद्र में हैं। पिछले साल ऊना में दलितों की पिटाई के खिलाफ उन्होंने यह आंदोलन छेड़ा था। ठाकोर ओएसएस (ओ बीसी, एससी और एसटी) के संस्थापक भी हैं। उन्होंने खुद को दबे-कुचले समुदायों की आवाज बनाया जब राज्य में पाटीदारों के आरक्षण की मांग ने जोर पकड़ा।
हार्दिक से जिस तरह राज्य सरकार डरती दिखती हैं उतना उसे मेवाणी से डर नहीं लगता। क्योंकि राज्य की जनसंख्या में दलित सिर्फ सात या आठ फीसद ही है और इन्होंने कभी संगठित तौर पर बतौर ब्लाक या एकजुट होकर एक नेता का साथ नहीं दिया।
राज्य में ओबीसी ज़रूर महत्वपूर्ण है वे तकरीबन चालीस फीसद हैं। भाजपा की इन पर नज़र है। पिछले महीने शाह ने ओबीसी के साथ अपनी बैठक रद्द कर दी थी क्योंकि जब वह बैठक होनी थी तभी उन्हें बतौर गवाह पूर्व- मंत्री माया कोडनानी के एक अदालती मामले में पेश होना था। माया 2002 के नरोदा गाम मामले में फंसी थी। पार्टी ने तब राज्य में भारी बारिश होने के तर्क को आधार बनाकर बैठक के न हो पाने का तर्क दिया। सरकार को अभी किसानों के बीच अपनी पैठ जमानी है।
उधर कांग्रेस की नज़र राज्य को राजनीतिक गुणा भाग पर है। एक सूत्र के अनुसार हार्दिक के साथ कांग्रेस की रजामंदी हो गई है। यह कराने में दूसरे बड़े पाटीदार नेताओं ने भूमिका निभाई। वैसे भी इस आंदोलन को चलाए रखने वाली समिति में छह लोग युवा कांग्रेसी हैं और अन्य कांग्रेस के ही हैं। वरूण पटेल और रेशमा पटेल जैसे लोग भाजपा में जरूर चले गए पर वह रणनीती भी हो सकती है। ये भी आने वाले चुनावों में दस सीटों पर चुनाव भी लड़ते दिखेंगे। एक कांग्रेसी नेता ने नाम न देते हुए बताया।
मेवाणी से भी बातचीत हो रही है जो खुद को ठाकुर-ब्राहमण विरोधी बताते हैं। हालांकि ठाकोर में मेल-मिलाप की संभावना मेवाणी की तुलना में ज्य़ादा है। ठाकोर ने अपनी ओर से एक मांगपत्र भी दे रखा है।
भाजपा हार्दिक, मेवाणी और ठाकोर को अवसरवादी कहती है साथ इनके पीछे कांग्रेस को जिम्मेदार ठहराती है। मेवाणी और ठाकोर को वह अवसरवादी कहती है। इसे ओबीसी का भरोसा है। गुजरात में कोली- तकरीबन सोलह फीसद हैं। ओबीसी में सबसे बड़ी उपजाति यह मानी जाती है। इन्ही कोली ने रामनाथ कोविंद के राष्ट्रपति होने पर उल्लास जताया था।
इसके अलावा भाजपा आदिवासियों को साथ लेने की कोशिश में है जिनकी 14 फीसद तादाद है। ‘आदिवासी विकास गौरव यात्रा में उनके गौरव और विकास पर फोकस भी था। भूपेंद्र यादव का कहना था कि उप चुनाव में भाजपा को छह में कामयाबी मिली। स्थानीय निकायों में भी यह कामयाब नही। कांग्रेस ने जन विरोध किया है। कांग्रेस ने ही नेशनल कमीशन फार बैकबर्ड क्लासेज विधेयक रोका। अन्यथा इसका लाभ गुजरात के लोगों को मिलता।
राहुल की नवसृजन यात्रा का पहला दौर गुजरात के त्यौहार नवरात्रि के दौरान हुआ। जिसमें युवक और युवतियां आपस में मिलते हैं। राहुल ने अपने व्यवहार, मिलनसारिता से यह जता दिया है कि वे आलोचना, असंतोष पर भी काफी सहज हैं। हालांकि भाजपा उन्हें नीचा दिखाने का कोई मौका नहीं गंवाती। राहुल का यह कहना है कि उन्होंने किसी महिला को आरएसएस की शाखा में जाते नहीं देखा। उनकी इस आलोचना पर मतदाताओं में निराशा जनक प्रतिक्रिया नहीं हुई।
गुजरात के पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष अर्जुन मोधवाडिया ने कहा कि राहुल की शैली बहुत बदली हुई है। भाजपा को धु्रवीकरण का मौका नहीं मिल रहा है। राहुल जमीनी मुद्दों मसलन रोज़गार, भ्रष्टाचार ही उठा रहे हैं। यदि कांग्रेस अपना चुनाव प्रचार ऐसे ही सतर्कता से करती रही और किसान, युवाओं और महिलाओं पर केंद्रित रही तो नतीजा अच्छा होगा। कांग्रेस ने किसानों का मांग पत्र अभियान भी छेड़ रखा है। बेरोज़गारी भत्ते की बात कही है।
पर कांग्रेस में आंतरिक कलह बहुत है। स्थानीय नेता मीडिया की ही तरह भाजपा सरकार और उसके मंत्रियों के खिलाफ बोलने से बचते हैं।