इन दिनों दिल्ली विश्वविद्यालय (डीयू) कैम्पस के हंसराज कॉलेज में दिनों गौशाला बनाने को लेकर बड़ा विवाद मचा हुआ है। कॉलेज प्रशासन का कहना है कि कॉलेज में एक गाय है और उसका बछड़ा है। इन्हें शोध करने के लिए गुजरात से लाया गया था। अब यहाँ गौशाला बनाने को लेकर छिड़ गयी है। इसके बाद डीयू कैम्पस में विरोध और समर्थन को लेकर छात्र-छात्राओं और अध्यापकों के बीच मतभेद हो गये हैं, जो राजनीतिक मोड़ लेते जा रहे हैं।
कॉलेज की प्राचार्य डॉक्टर रमा, कुछ अध्यापकों और कुछ छात्र-छात्राओं ने ‘तहलका’ संवाददाता को बताया कि इस मामले को बेवजह तूल दिया जा रहा है। कॉलेज में मौज़ूद गाय तो शोध के लिए लायी गयी है, ताकि गाय पर शोध हो सके और उसके महत्त्व के बारे में लोग जान सकें। वहीं कुछ छात्र-छात्राओं और कुछ अध्यापकों का कहना है कि देश के शहरों और गाँवों की गली-गली में गायें भूखी-प्यासी घूमती रहती हैं। उस ओर न तो सरकार का कोई ध्यान है और न ही गौशाला चलाने वालों का। इन छात्र-छात्राओं और अध्यापकों के भी अपने तर्क हैं। उनका कहना है कि गौपालन के लिए देश में बड़ी-बड़ी गौशालाएँ बड़ी संख्या में स्थापित की गयी हैं, जहाँ पर गायों का पालन-पोषण के साथ शोध भी हो सकता है। लेकिन कॉलेज के प्रांगण में गौशाला को स्थापित करना ज़रूर कोई सियासी चाल है।
दिल्ली विश्वविद्यालय कैम्पस के अध्यापकों का कहना है कि हंसराज कॉलेज में सभी धर्म के छात्र-छात्राएँ पढऩे को आते हैं। किसी के लिए गाय माता के सामान है और पूजनीय है; जबकि कोई गाय को माता नहीं मानता है। ऐसे में गाय के चक्कर में छात्रों-छात्रों, छात्रों-अध्यापकों और अध्यापकों-अध्यापकों के बीच में आस्था को लेकर टकराव होने की सम्भावना है। कुछ अध्यापकों का कहना है कि गाय को लेकर आज किसी की आस्था है, तो कल किसी की अन्य पर आस्था होगी। ऐसे तो आने वाले दिनों में कॉलेजों में धार्मिक लड़ाई होने की सम्भावना बढ़ सकती है।
हंसराज कॉलेज के एक अध्यापक ने बताया कि सियासत कहाँ नहीं होती है? कॉलेज में भी सियासत हो रही है। क्योंकि हंसराज कॉलेज एक ट्रस्ट का कॉलेज है और यूजीसी से ग्रांट पर चलता है। उनका का कहना है कि जबसे कॉलेज के बारे में उनको जानकारी है, तबसे कॉलेज पर बड़े धार्मिक अवसरों पर यज्ञ और धार्मिक अनुष्ठान बग़ैरह होते रहे हैं। इसको लेकर किसी भी अध्यापक और छात्र-छात्रा ने कभी कोई विरोध नहीं किया है। लेकिन कॉलेज परिसर में गौशाला बनाये जाने पर अध्यापकों और छात्र-छात्राओं का विरोध जायज़ है। कॉलेज के कुछ अध्यापकों का कहना है कि जिस जगह पर गौशाला बनायी जा रही है, वो जगह सही मायने में छात्रों के छात्रावास की जगह है। लेकिन छात्रावास न बन पाने और कोरोना-काल के चलते कॉलेजों के बन्द होने के कारण अब इस जगह पर गौशाला का बनाया जाना ठीक नहीं है।
इस बारे में दिल्ली विश्वविद्यालय की असिस्टेंट प्रो. शुचि वर्मा का कहना है कि एक दौर में गाय हमारी अर्थ-व्यवस्था की अहम् कड़ी रही है। क्योंकि तब हम गाय, बैल पर निर्भर थे। उस समय गाय से दूध, दही, छाछ, मक्खन, घी आदि मिलता था; जो हमारे पालन-पोषण के लिए पर्याप्त आहार था। बैल के ज़रिये हम खेती करते थे। पुराने जमाने में हमारी मुद्राओं में गाय, बैल और खेती के चिह्न अंकित होते थे। ऐसे में अगर किसी भी कॉलेज में गाय पर शोध हो रहा है, तो उसका विरोध करना ठीक नहीं है। आम आदमी पार्टी से जुड़े एक प्रोफेसर ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि दिल्ली विश्वविद्यालय के अशोक विहार स्थित लक्ष्मीबाई कॉलेज में भी कई गायें हैं। वहाँ पर भी उन्हें लेकर विरोध हो रहा है। प्रोफेसर का कहना है कि केंद्र सरकार और दिल्ली सरकार इस बारे में चुप हैं। इसलिए यह सब कॉलेजों में चल रहा है। समझने की बात यह है कि किसी कॉलेज में आज गाय का पालन हो रहा है, तो कल किसी अन्य जानवर का पालन होने लगेगा। ऐसे में विवाद होना तो निश्चित है। कल अगर किसी ने कॉलेजों में किसी की मूर्ति लगवानी चाही, तो फिर बवाल मच सकता है।
हंसराज कॉलेज की प्राचार्य डॉक्टर रमा का कहना है कि कॉलेज में कोई गौशाला नहीं है। एक गाय और एक बछड़ा है। इन्हें गुजरात से मँगाया गया है। गाय गुजरात की गिर प्रजाति की है। इसका दूध काफ़ी पौष्टिक माना जाता है। उनका कहना है कि गौशाला बनने से हंसराज कॉलेज के अलावा देश के किसी भी कॉलेज के अध्यापक और छात्र-छात्राएँ यहाँ आकर गाय पर शोध कर सकते हैं। उनका कहना है कि गाय के गोबर के बारे जानकारी हासिल करने के साथ गोबर गैस प्लांट की जानकारी प्राप्त कर सकते हैं। डॉक्टर रमा का कहना है कि गाय को लेकर जो लोग हो-हल्ला कर रहे हैं, वे यह भी जान लें कि गौ-धन को लेकर पूरे विश्व में बड़ा काम चल रहा और उसको महत्त्व भी मिल रहा है। यहाँ पर आकर कोई भी अपना स्टार्टअप शुरू कर सकता है। उनका कहना है कि कोरोना-काल में गाय के मिल्क से लोगों को काफ़ी लाभ हुआ है।
सामाजिक कार्यकर्ता सचिन सिंह का कहना है कि गाय, बैल हमारी अर्थ-व्यवस्था की रीढ़ रहे हैं। अब कॉलेजों में गाय के बारे में पढ़ाया जाएगा और उस पर शोध होगा, तो देश को काफ़ी लाभ होगा। उनका कहना है कि इससे अब पढऩे वाले छात्रों में अहम् जानकारी हासिल होगी।
इस बारे में दिल्ली विश्वविद्यालय के वाइस चांसलर प्रो. योगेश सिंह ने अनभिज्ञता ज़ाहिर करते हुए कहा कि उनको इस बारे में कोई जानकारी नहीं है।
दिल्ली विश्वविद्यालय शिक्षक संघ (डूटा) के पूर्व पदाधिकारी एस. कुमार ने इस बारे में कहा कि शैक्षणिक संस्थानों, ख़ासकर जब देश में माहौल ज़रा-ज़रा सी बात पर सियासी रंग लेने लगता है; तब किसी विशेष धर्म और आस्था से जुड़े मामले पर रोक लगनी चाहिए। क्योंकि यह देश धर्म-निरपेक्ष है। शैक्षणिक संस्थानों में यह सब कुछ हो रहा है फिर भी कोई सियासी दल कुछ भी बोलने को तैयार नहीं है। अगर कोई कुछ कहने को तैयार है, तो सियासत करने के इंतज़ार में बैठा है। इसलिए समय रहते कॉलेज प्रशासन को इस मामले में कोई बीच का रास्ता निकालना चाहिए और शोध के लिए गौशाला को अन्य किसी जगह स्थापित करना चाहिए, ताकि गाय पर रार ने हो सके। बताते चलें, हंसराज कॉलेज दिल्ली विश्वविद्यालय के टॉप कॉलेजों में शुमार है। यहाँ देश के कोने-कोने से छात्र-छात्राएँ पढऩे को आते हैं।