सड़कों पर पड़ी पान मसाले की लाल पीक पर कब पैर पड़ जाए, नहीं कहा जा सकता। यह गंदगी हर जगह बहुतायत में देखने को मिल जाती है। लेकिन यह गंदगी अलग-अलग नामों से बाज़ार में मौज़ूद पान मसाला खाने वालों को हैरान-परेशान नहीं करती है। इसके बावजूद कि पान मसाला और तंबाकू से कैंसर से लेकर कई गम्भीर बीमारियाँ होती हैं। पान मसाला और धुआँ रहित अन्य तंबाकू आदि से होने वाले घातक नुक़सान के बारे में जानते हुए भी इनके खाने वालों की संख्या भारत में तेज़ी से बढ़ रही है। पान मसाला खाने वालों में एशियाई लोगों की संख्या ज़्यादा है; लेकिन धुआँ रहित तंबाकू उत्पादों से नशा लेने वाले अब सिर्फ़ एशिया में ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया में हैं।
पिछले कई वर्षों से पान मसाला की विषाक्तता को निर्धारित करने के लिए दुनिया भर में कई रिसर्च की गयी हैं। वयस्क नर चूहों पर क़रीब तीन सप्ताह तक की गयी एक रिसर्च में पता चला कि उन्हें रोज़ाना निकोटीन घोल और मौखिक म्यूकोसा के माध्यम से लियोफिलाइज्ड पान मसाले का घोल देने पर उनका वज़न, उनके लीवर और दिल का वज़न घट गया है। इसके साथ ही उनका सीरम टेस्टोस्टेरोन का स्तर भी कम हो गया। इससे पता चला कि पान मसाला और तंबाकू खाना शारीरिक विकास और टेस्टोस्टेरोन का स्तर ख़राब करता है।
क़रीब-क़रीब सभी लोग जानते हैं कि पान मसाला कैंसर पैदा करता है और पान मसाले के पैकेटों पर साफ़-साफ़ चेतावनी लिखी होती है कि पान मसाला स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है। तंबाकू स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है। लेकिन इसके बावजूद लोग पान मसाला और तंबाकू खाते हैं। हालाँकि पान मसाला और तंबाकू खाने से सिर्फ़ कैंसर ही नहीं होता, बल्कि इससे मुँह छोटा होता है। पेट में कई गड़बडिय़ाँ आती हैं। साँस के रोग हो सकते हैं। मुँह सिकुडऩे लगता है। पथरी होने का ख़तरा बढ़ जाता है। लेकिन इसकी लत जिन्हें लग जाती है, वे फिर इसे छोडऩा नहीं चाहते। लोगों की यह बुरी लत छुड़ाने के लिए और उनमें जागरूकता लाने के लिए केंद्र सरकार और कई एनजीओ पूरे देश में काम कर रहे हैं; लेकिन फिर भी पान मसाला और तंबाकू खाने वालों की तादाद लगातार बढ़ती ही जा रही है।
पान मसाला और तंबाकू खाने वाले कभी नहीं सोचते कि वे जिन पान मसाले और तंबाकू के पाउच को फाडक़र उसमें उस नशीली तंबाकू और पान मसाला आदि को कितना महँगा ख़रीद रहे हैं। एक पाँच से 20 रुपये या उससे भी महँगे पाउच में तीन से 10 ग्राम पान मसाला भी नहीं होता है, जो कि क़रीब 4,000 रुपये से 10,000 रुपये किलो या इससे भी ज़्यादा कीमत पर बिक रहा है। पान मसाला और तंबाकू खाने के आदी लोग इसे चबाते हैं और अपना स्वास्थ्य ख़राब करते रहते हैं।
पान मसाला चबाने वालों की दीवानगी पान मसाला और तंबाकू के प्रति इतनी ज़्यादा है कि जब देश में कोरोना महामारी में तालाबंदी हुई, तो उस समय पान मसाला और तंबाकू के शौक़ीनों ने इनके पाउच ख़रीदने के लिए कई गुना पैसे दिये। उस समय पाँच रुपये का पान मसाला 15 से 25 रुपये तक में ब्लैक में बिका। इसी तरह तंबाकू का पाउच भी कई गुना महँगा बिका। इस आधार पर देखा जाए, तो स्वास्थ्यवर्धक चीज़ें पर भारी पान मसाला महँगा है। पाँच रुपये का बीड़ी का बंडल 15 से 20 रुपये में बिकने लगा था। यही हाल तब होता है, जब पान मसाले की बिक्री पर रोक लगती है। इसे खाने के शौक़ीन लोग इसे ब्लैक में ख़रीदने के लिए तक तैयार रहते हैं और वे पान मसाले के एक के पाउच को 3 से 10 गुना महँगा ख़रीदने तक को तैयार रहते हैं। पान मसाला खाने वालों की इस दीवानगी की कई वजह हैं, जिनमें से फ़िल्मी हस्तियों द्वारा पान मसाले का विज्ञापन करना भी एक बड़ी वजह है। हालाँकि पान मसाले का विज्ञापन करने वाली फ़िल्मी हस्तियों को इसके लिए एक वर्ग का ग़ुस्सा भी झेलना पड़ता है।
भारत में तंबाकू, पान मसाला का क़रीब 42,000 करोड़ रुपये का सालाना कारोबार होता है। साल 2027 में यह कारोबार बढक़र 53,000 करोड़ रुपये से ऊपर जा सकता है। मार्केट रिसर्च फर्म की एक रिपोर्ट के मुताबिक, साल 2021 में भारत में पान मसाला और पान मसाले का कारोबार 41,82 करोड़ रुपये से ज़्यादा का रहा। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के मुताबिक, भारत में 27 करोड़ से ज़्यादा लोग पान मसाला और तंबाकू चबाते हैं। चिन्ता की बात यह है कि यह संख्या हर साल बढ़ती जा रही है। गुज़रात जैसे राज्य में पुरुष ही नहीं, बड़ी संख्या में महिलाएँ भी पान मसाला और तंबाकू चबाती हैं, जिनमें ज़्यादातर फैक्ट्रियों में काम करने वाली महिलाएँ शामिल हैं। दुनिया में पान मसाला और तंबाकू खाने वालों के लिहाज़ से भारत दूसरे नंबर का देश है।
स्वास्थ्य मंत्रालय की एक रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में हर दिन तंबाकू और सिगरेट की वजह से 3,500 लोगों की मौत होती है। नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे-5 (एनएफएचएस-5) के मुताबिक, भारत में ग्रामीण इलाक़ों में 11 प्रतिशत महिलाएँ और 43 प्रतिशत पुरुष तंबाकू या पान मसाला या दोनों चबाते हैं, तो वहीं शहरी इलाक़ों में पाँच प्रतिशत महिलाएँ और 29 प्रतिशत पुरुष इसके आदी हैं। डब्ल्यूएचओ के ग्लोबल एडल्ट टोबैको सर्वे के आँकड़ों के मुताबिक, भारत में पान मसाला या तंबाकू चबाने वालों में ज़्यादातर लोग 17 साल की उम्र तक पान मसाला और तंबाकू चबाना शुरू कर देते हैं। भारत में हर साल 10 लाख लोगों की मौत मुँह के कैंसर से होती है, जिनमें एक बड़ी संख्या पान मसाला चबाने वालों की है।
दरअसल पहले गुटखा चला करता था, जिसमें सुपारी, मसाले, तम्बाकू, चूना, केमिकल और पिसा हुआ शीशा होता था। जब गुटखे पर प्रतिबंध लगा, तो कम्पनियों ने उसकी जगह पान मसाला बनाना शुरू कर दिया और तंबाकू के अलग से पाउच बना दिये। इस प्रकार तंबाकू प्रतिबंधित नहीं था और पान मसाला प्रतिबंध से बाहर हो गया। गुटखा खाने वाले इन दोनों को मिलाकर खाने लगे, जो एक तरह से गुटखे का ही रूप है। पान मसाला और तंबाकू खाने से बना यह कसैले स्वाद वाला मिश्रण कैंसर को बढ़ावा देता है। यह मिश्रण मुँह में जाते ही एक अजीब-से स्वाद के साथ भभका मारता है, जिससे इसे चबाने वाले के दिमाग़ में एक तरह का नशा और झटका क्रिएट होता है।
इसके अलावा पान मसाला और तंबाकू चबाने वालों का मुँह कट जाता है, जिसकी वजह से उन्हें इस अजीब और कसैले स्वाद की लत लग जाती है। पान मसाला और तंबाकू चबाते-चबाते वे इसकी लत के शिकार हो जाते हैं और जब वे इस आदत से बाहर आना चाहते हैं, तो भी आसानी से नहीं आ पाते हैं। भारत में पान मसाले और तंबाकू के अलग-अलग नामों से पाउच बनाने वाली कम्पनियों की भरमार है। दुनिया के 30 से ज़्यादा देशों में भारत से पान मसाला और तंबाकू की सप्लाई होती है। पान मसाले और तंबाकू का कारोबार इतने मुनाफ़े का है कि इसके कारोबार से बड़े-बड़े रसूख़दार परिवार जुड़े हुए हैं।
प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने कानपुर के पीयूष जैन नाम के जिस इत्र कारोबारी के यहाँ छापेमारी करके 177 करोड़ रुपये की नक़दी बरामद की थी, उस पीयूष जैन का इत्र (परफ्यूम) के अलावा पान मसाला और तंबाकू का कारोबार भी था। पान मसाला बनाने वाले जेएमजे ग्रुप के प्रमोटर जेएम जोशी के बेटे अभिनेता और निर्माता सचिन जोशी की 410 करोड़ रुपये की सम्पत्ति साल 2022 में ज़ब्त की गयी थी। साल 2021 में शिखर पान मसाला बनाने वाली कानपुर की कम्पनी त्रिमूर्ति फ्रेगरेंस में छापेमारी में 150 करोड़ रुपये की नक़दी ज़ब्त की गयी थी। पान मसाला और तंबाकू कारोबार से कितनी कमायी होती है? इस बात का अंदाज़ा इससे लगाया जा सकता है कि अंडरवल्र्ड डॉन दाऊद इब्राहिम का इस कारोबार से गहरा नाता रहा है। इससे सम्बन्धित एक मामला सीबीआई कोर्ट में भी कई साल चला था।
खाद्य सुरक्षा और मानक (बिक्री पर निषेध और प्रतिबंध) विनियमन-2, 3 और 4 के मुताबिक, पान मसाला और चबाने वाले दूसरे तंबाकू उत्पादों को राज्य सरकारों द्वारा प्रतिबंधित किया जाना अनिवार्य है। कई बार राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में पान मसाला और तंबाकू की बिक्री पर रोक लगी है; लेकिन यह रोक आज तक स्थायी नहीं हो सकी है। इसके पीछे पान मसाला और तंबाकू कम्पनियों के पास करोड़ों की सालाना कमायी है, जिसके चलते कम्पनी मालिक रोक लगाने वाली सरकारों और अफ़सरों को इस कारोबार को चलने देने के लिए मजबूर कर देते हैं। कई बार पान मसाला और तंबाकू उत्पादों पर प्रतिबंध का मामला हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट तक पहुँचा है; लेकिन इस कैंसर पैदा करने वाले इन नशीले पदार्थों पर आज तक रोक नहीं लग सकी है।
सार्वजनिक इलाक़ों में तंबाकू उत्पादों के इस्तेमाल पर रोक लगाने के लिए साल 2003 में केंद्र सरकार सिगरेट और अन्य तंबाकू उत्पाद (विज्ञापन का निषेध और व्यापार और वाणिज्य उत्पादन, आपूर्ति और वितरण का विनियमन) अधिनियम लायी थी, जिसे कोटपा कहा गया। लेकिन यह अधिनियम आज ठंडे बस्ते में पड़ा है। देश के हर शहर में कई तंबाकू फ्री जोन बने हुए हैं। सरकारी दफ़्तरों में भी कई जगह पर तंबाकू फ्री जोन बने हुए होते हैं; लेकिन इसके बावजूद लोग इन तंबाकू निषेध वाली जगहों पर बेधडक़ पान मसाला खाकर थूकते हैं और सिगरेट-बीड़ी का धुआँ उड़ाते हैं।
भारत में पान मसाला पर पूरी तरह से रोक न लग पाने की वजह यह भी है कि खाद्य सुरक्षा और मानक अधिनियम (एफएसएसए) में पान मसाला उत्पादन और उसकी बिक्री पर पूर्ण प्रतिबंध लगाने का प्रावधान ही नहीं है। कुछ आपात स्थितियों में ही पान मसाले पर यह अधिनियम अस्थायी प्रतिबंध लगाने के लिए अधिकारियों और सरकारों को एक सीमित शक्ति प्रदान करता है। इसके अलावा पान मसाला और अन्य तंबाकू उत्पादों पर रोक न लगने की वजह इस कारोबार से जुड़ी कम्पनियों के ज़रिये करोड़ों रुपये का टैक्स मिलना भी है। दावे तो यहाँ तक किये जाते हैं कि इस कारोबार से जुड़े लोग रिश्वत और फंडिंग के रूप में करोड़ों रुपये अपना कारोबार बचाये रखने के लिए ख़र्च करते हैं।
इस कारोबार में कमायी का अंदाज़ा विज्ञापन पर ख़र्च होने वाले करोड़ों रुपये के सालाना ख़र्च से भी लगाया जा सकता है। लेकिन दूसरी ओर पान मसाला, जर्दा और तंबाकू के चलते देश के युवाओं की ज़िन्दगी बर्बाद हो रही है, जिस तरफ़ सरकारों का ध्यान नहीं है। केंद्र सरकार के साथ-साथ राज्य सरकारों और ज़िम्मेदार संस्थाओं को ऐसी चीज़ें पर प्रतिबंध के लिए बिना किसी लालच के पूरी ईमानदारी से आगे आना चाहिए; क्योंकि ज़रूरत कमायी से ज़्यादा युवा पीढ़ी को बचाने की है।