‘हां… यह सच है कि मुझे विश्व हिंदू परिषद की ओर से अयोध्या के विवादित स्थल में भगवान श्रीराम के जन्म को प्रमाणित करने की जिम्मेदारी सौंपी गई थी. चूंकि मैं राम मंदिर की तलाश में काफी समय से लगा हुआ था, सो खुदाई के दौरान मिले हुए 84 खंबों, शिलालेखों तथा अन्य दस्तावेजों के आधार पर मैंने इलाहाबाद के सक्षम न्यायालय को यह अवगत कराया कि अयोध्या में एक नहीं तीन मंदिर थे. अब मैं पिछले कुछ समय से छत्तीसगढ़ में मंदिरों की खोजबीन में लगा हुआ हूं.’
छत्तीसगढ़ के संस्कृति एवं पुरातत्व विभाग में वर्ष 2005 से बतौर सलाहकार नियुक्त किए गए अरुण कुमार शर्मा बेबाकी से आगे कहते हैं, ‘सब जानते हैं कि बैतलपुर के मदकूदीप इलाके में ईसाई समुदाय की अच्छी-खासी मौजूदगी है, यहां हर साल एक बड़ा मेला भी लगता है, लेकिन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के एक वरिष्ठ प्रचारक चाहते थे कि मैं मंदिरों को खोज निकालूं. उनकी इच्छा का सम्मान करते हुए मैंने वहां भी 19 मंदिरों को खोज निकाला है.’ तहलका से चर्चा में शर्मा बेहिचक मानते हैं कि वे छात्र जीवन में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कार्यक्रमों में हिस्सेदारी दर्ज करते थे इसलिए अब भी राष्ट्रवादी विचारधारा को आगे बढ़ाने के लिए वे प्रयत्नशील हैं.12 नवंबर, 1933 को रायपुर जिले के चंदखुरी इलाके के मोंहदी गांव में जन्मे शर्मा इसी साल 80 साल की देहरी छू लेंगे. छत्तीसगढ़ में वे अकेले बुजुर्ग सलाहकार नहीं हैं. यहां कई वयोवृद्ध और सेवानिवृत्त अफसर हैं जिन पर संघ और सरकार की कृपा बरस रही है. और जिन पर नहीं बरस रही है वे भी जुगाड़ की अपनी योग्यता के चलते सलाहकार बन बैठे हैं.
अब यह अलग बात है कि एक बड़ी सीमा तक उनकी सलाह का कोई फायदा होता नजर नहीं आ रहा. जोड़-तोड़ और जुगाड़ का बेहतर उपयोग करने के मामले में सबसे पहला नाम भारतीय प्रशासनिक सेवा 1973 बैच के अफसर शिवराज सिंह का लिया जाता है. 13 जुलाई, 1948 को जन्मे सिंह यूं तो प्रदेश के दो अफसरों बीकेएस रे और विजय कुमार कपूर से जूनियर थे, लेकिन वे न केवल मुख्य सचिव बने बल्कि सेवानिवृत होने के बाद उन्हें निर्वाचन आयुक्त भी बनाया गया. एक जून, 2010 से वे राज्य योजना आयोग में उपाध्यक्ष हैं और इसी तारीख से मुख्यमंत्री डॉक्टर रमन सिंह के सलाहकार भी. वैसे तो शिवराज सिंह का संघ से कोई सीधा नाता नहीं रहा है लेकिन प्रशासनिक हलकों में यह चर्चा आम है कि वे जोड़-जुगाड़, ब्रह्मांड- अध्यात्म और ग्रह-नक्षत्रों से होने वाले नफे-नुकसान के अपने ज्ञान के कारण मुख्यमंत्री की नजदीकी हासिल करने में सफल रहे हैं.शिवराज सिंह के अलावा प्रदेश में मुख्यमंत्री के संसदीय सलाहकार के तौर पर एक जून, 2006 से अशोक चतुर्वेदी भी कार्यरत हैं. उन्हें 65 हजार रु के वेतनमान पर रखा गया है. मध्य प्रदेश विधानसभा में श्रीनिवास तिवारी के अध्यक्षीय कार्यकाल के दौरान अशोक चतुर्वेदी सचिव थे और उन्हें संघ से नजदीकी रिश्ते रखने की वजह से ही अपने पद से हाथ भी धोना पड़ा था. कुछ समय तक वे एक मंत्री कैलाश विजयवर्गीय के प्रमुख सहयोगी के रूप में भी कार्य करते रहे. वैसे तो उन्होंने ‘संसदीय लोकतंत्र और पत्रकारिता’ जैसे विषय पर किताब भी लिखी है, लेकिन संघ के कार्यक्रमों में अपनी मौजूदगी को लेकर वे कई बार चर्चा में रहे हैं.
‘विभागों में सलाहकारों की नियुक्ति से यह संदेश जाता है कि सलाहकारों की सलाह विभाग के अफसरों की सलाह से ज्यादा महत्वपूर्ण और तगड़ी है’
कई सलाहकार ऐसे भी हैं जिन्हें वरिष्ठ अफसरों के निकटतम होने का फायदा मिलता रहा है. अविभाजित मध्य प्रदेश में चीफ इंजीनियर के पद से सेवानिवृत्त हुए बीएस गुप्ता को ही लीजिए. जब छत्तीसगढ़ अविभाजित मध्य प्रदेश का हिस्सा था तब बिलासपुर मार्ग पर नांदघाट में एक पुल गुप्ता ने अपनी देखरेख में बनवाया था. यह पुल उनकी सेवानिवृत्ति से कुछ पहले ही टूट गया. तब विभागीय तौर पर यह माना गया था कि पुल में घटिया निर्माण सामग्री का इस्तेमाल किया गया था. लेकिन गजब देखिए कि यही गुप्ता छत्तीसगढ़ बनने के ठीक दो साल बाद 16 अप्रैल, 2002 को राज्य में निर्माण संबंधी गुणवत्ता जांच के लिए सलाहकार बना दिए गए. प्रदेश में जब भाजपा की सरकार बनी तो गुप्ता तत्कालीन लोकनिर्माण मंत्री राजेश मूणत और भारतीय प्रशासनिक सेवा के अफसर विवेक ढांड के करीबी बन बैठे. इस बीच 2004 में प्रदेश की सड़कों में ठेकेदारों द्वारा घटिया डामर इस्तेमाल किए जाने का एक सनसनीखेज मामला उजागर हुआ. इसकी गूंज विधानसभा तक पहुंची तो उन्हें सलाहकार के पद से हाथ धोना पड़ा. विवादों से घिरे रहने वाले 82 वर्षीय गुप्ता जोड़-तोड़ और जुगाड़ के चलते 30 जून, 2009 को एक बार फिर पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग के तहत बनने वाली प्रधानमंत्री ग्राम सड़क का कामकाज देखने वाले सलाहकार बना दिए गए हैं. चूंकि इस विभाग के अपर मुख्य सचिव भी विवेक ढांड ही हैं, इसलिए माना जा रहा है कि इस बार भी उनकी पारी थोड़ी लंबी हो सकती है.
आबादी के लिहाज से संतुलन बनाए रखने के लिए गठित की गई न्यू रायपुर डेवलपमेंट अथॉरिटी (नारडा) में भी सलाहकारों का बोलबाला है. छत्तीसगढ़ राज्य विद्युत मंडल में कार्यपालन अभियंता रहे एके बोस नई राजधानी की विद्युत संबंधी गतिविधियों के सुचारू ढंग से संचालन के लिए सलाहकार नियुक्त किए गए हैं, तो लोकनिर्माण विभाग में सहायक अभियंता के पद से रिटायर हुए एसके नाग को सड़क निर्माण क्षेत्र का सलाहकार बनाया गया है. रायपुर के कलेक्टर कार्यालय में जमीन का कामकाज देख चुके डीसी पांडेय किसानों की जमीन अधिगृहीत करने के दौरान होने वाली अड़चनों को दूर करने के लिए उपाय बताने वाले सलाहकार बनाए गए हैं तो फैयाज हुसैन को सीमांकन का सलाहकार बनाया गया है. वैसे तो नारडा से जुड़े एक अफसर इन सभी नामों को काबिल बताते हैं लेकिन अपना नाम न छापने की शर्त पर यह भी कहने से नहीं चूकते कि अफसरों ने काबिलियत की चमड़ी पर चमचागिरी का लेप मल रखा है. इन अफसरों को सलाहकार बनाने के अलावा नारडा ने 2005 से नवी मुंबई की शहरी नियोजन संस्था सिडको को भी अपना सलाहकार नियुक्त कर रखा है. विधिक सेवा से जुड़े लोग भी पीछे नहीं हैं. एक सितंबर, 2012 को सरकार ने एक सेवानिवृत्त न्यायाधीश टीसी यदु को लोकसेवा आयोग में विधिक सलाहकार नियुक्त किया है. उनका वेतनमान है 76 हजार 450 रु . मध्य प्रदेश में एक महिला कर्मचारी के साथ विवाद के चलते सुर्खियों में रहे बीएल शर्मा को 29 जून, 2012 को राज्य योजना आयोग में सलाहकार बनाया गया है. शर्मा राज्य योजना आयोग में निदेशक पद से रिटायर हुए हैं.
मंत्रालय के एक वरिष्ठ अफसर नाम न छापने की शर्त पर कहते हैं, ‘बोर्ड, मंडलों और विभागों में सलाहकारों की नियुक्ति से यह संदेश जाता है कि सलाहकारों की सलाह विभागीय अफसरों की सलाह से ज्यादा महत्वपूर्ण और तगड़ी है. लेकिन सच्चाई यह है कि आज तक किसी भी अफसर की सलाह से कभी कोई फायदा होते नहीं दिखा है.’ इस बात में दम इसलिए भी नजर आता है कि राज्य की पावर कंपनी में कई सलाहकार नियुक्त होते रहे हैं लेकिन किसी भी सलाहकार ने अब तक यह नहीं बताया कि कंपनी को घाटे से कैसे उबारा जा सकता है. 2007 में यानी अपने विखंडन से पहले विद्युत मंडल 355 करोड़ रु. के फायदे में था. लेकिन 2008 में उत्पादन, होल्डिंग, वितरण, पारेषण और ट्रेडिंग कंपनियों के बन जाने से कंपनी का घाटा 740 करोड़ रु. तक जा पहुंचा है. बिजली महकमे से जुड़े एक प्रमुख कर्मचारी नेता पीएन सिंह प्रदेश में हाल ही में चर्चित ओपन एक्सेस घोटाले का हवाला देते हुए कहते हैं, ‘राज्य में निजी बिजली कंपनियों श्रेयस सहला और बागबहरा की जिंदल इलेक्ट्रिक पावर ने छत्तीसगढ़ राज्य पावर कंपनी से बिजली चोरी करके उसे अन्य निजी उत्पादकों को बेचने का खेल किया था.
‘यदि किसी भी सलाहकार की सलाह का कोई ब्योरा मौजूद नहीं है तो संदेश साफ है कि अफसरों को उपकृत किया जा रहा है’
ये कंपनियां अफसरों की मिली-भगत से चोरी की बिजली को प्रदेश के बाहर बेचा करती थीं.’ पीएन सिंह बताते हैं कि दो निजी उत्पादकों को लाभ पहुंचाने के मामले में मुख्य अभियंता एके राय और सलाहकार एसआर सिंह को प्रमुख रूप से जिम्मेदार माना गया था. निलंबन की गाज दोनों पर साथ ही गिरी थी. बिजली कर्मचारी महासंघ के अध्यक्ष अरुण देवांगन भी मानते हैं कि पावर कंपनी में तैनात सलाहकार कंपनी को नुकसान ही पहुंचा रहे हैं. वे कहते हैं, ‘अब तक किसी भी सलाहकार ने छत्तीसगढ़ पावर कंपनी को घाटे से उबारने की सलाह नहीं दी है, इसलिए सीधे तौर पर यह तो कहा जा सकता है कि पावर कंपनियां रिटायर्ड अफसरों को सलाहकार बनाकर उपकृत कर रही हैं या फिर ढो रही हैं.’
वैसे तो पावर कंपनी बनने से पहले विद्युत मंडल में कई सलाहकार कार्यरत रहे हैं लेकिन फिलहाल तीन सलाहकारों की नियुक्ति विवादों के घेरे में है. आयकर विभाग में 30 जुलाई, 2010 तक चीफ कमिश्नर रहे जमील अहमद सेवानिवृत्ति के कुछ दिनों बाद ही होल्डिंग कंपनी के सलाहकार बना दिए गए थे. उनकी नियुक्ति को लेकर सबसे बड़ा सवाल यही उठता रहा है कि चूंकि वे बिजली विभाग से जुड़े हुए नहीं हैं इसलिए बिजली की एबीसीडी से भी वाकिफ नहीं हैं. बहरहाल जब वे आयकर विभाग से सेवानिवृत्त हुए थे तब उन्हें एक लाख तीन हजार 66 रु. वेतन हासिल होता था. सेवानिवृत्ति के पश्चात उन्हें 51 हजार पांच सौ तैतीस रु. पेंशन पाने की पात्रता हासिल हुई. इधर पावर कंपनी भी उन्हें सलाहकार के तौर पर 51 हजार रु. दे रही है. इस तरह उन्हें फिर से उतनी ही तनख्वाह मिल जाती है जितनी आयकर महकमे में मिलती थी.
छत्तीसगढ़ विद्युत मंडल से बतौर सचिव सेवानिवृत्त हुए एपी नामदेव ने तो सलाहकार के तौर पर एक्सटेंशन हासिल करने का रिकॉर्ड ही तोड़ डाला है. 31 जुलाई, 2006 को सेवानिवृत्त होने के बाद नामदेव पहली बार 28 अगस्त, 2006 को महज डेढ़ माह के लिए सलाहकार बनाए गए थे, लेकिन 10 अक्टूबर, 2006 को उन्हें एक्सटेंशन दे दिया गया. एक मार्च व 1 सितंबर , 2007 को उन्हें फिर एक्सटेंशन मिला. 29 अगस्त, 2008 के बाद उन्हें 19 जनवरी और 30 जुलाई, 2009 को एक्सटेंशन दिया गया. 2010, 2011 और 2012 में उन्हें तीन बार और एक्सटेंशन मिला. इस तरह से बीते 72 महीने में वे कुल दस मर्तबा पावर वितरण कंपनी में सलाहकार नियुक्त किए गए. कंपनी का रिकॉर्ड यह बताता है कि इस दौरान उन पर कुल 85 लाख 77 हजार पांच सौ ( वेतन-वाहन-टेलीफोन व्यय के साथ ) का खर्च किया गया. बिजली के अनाप-शनाप बिल से परेशान आरटीआई कार्यकर्ता एवं राज्य निर्माण सेनानी संघ के प्रांताध्यक्ष ललित मिश्रा ने हाल ही में जब सूचना के अधिकार के तहत नामदेव की तरफ से बोर्ड को दी गई सलाह और फायदों की जानकारी मांगी तो जवाब मिला कि किसी भी सलाहकार की सलाह को लेखे में संधारित नहीं किया जाता है. पॉवर कंपनी के इस जवाब को ललित मिश्रा मनमानी की पराकाष्ठा मानते हैं. वे कहते हैं, ‘ यदि पावर कंपनी के पास किसी भी सलाहकार की महत्वपूर्ण सलाह का कोई ब्योरा मौजूद नहीं है तो साफ तौर पर यह स्पष्ट है कि कंपनी चमचागिरी में लिप्त अफसरों को उपकृत करने के गोरखधंधे में लगी हुई है.’
पावर कंपनी में तीसरे सलाहकार सीसी एंथोनी की नियुक्ति भी हाल-फिलहाल हुई है. 31 अगस्त, 2012 को सेवानिवृत्त हुए एंथोनी को कंपनी में ही कार्यरत एक अफसर जीएस कलसी का करीबी माना जाता है. कर्मचारी एवं अफसर दबी जबान में उनका विरोध कर रहे हैं. उनका तर्क है कि अब तक मुख्य अभियंता को ही सलाहकार बनाया जाता था लेकिन पहली बार एक अतिरिक्त मुख्य अभियंता ( एंथोनी पावर कंपनी से इसी पद पर रहते हुए सेवानिवृत्त हुए हैं ) को सलाहकार बना दिया गया है. जोड़-तोड़ के अलावा एक खास विचारधारा से जुड़े लोगों को ही सलाहकार के तौर पर नियुक्त किए जाने के मामले को पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी एक गंभीर मसला मानते हैं. वे कहते हैं, ‘सरकार अपने गुप्त एजेंडे के तहत सलाहकारों की आड़ में चुनाव वैतरणी को पार लगाने वाले कलाकारों की फौज तैयार करने में जुटी हुई है.’