हाल ही में डाटा (विवरण) गोपनीयता का मुद्दा सोशल मीडिया दिग्गज ट्विटर और केंद्र सरकार के बीच आमने-सामने का मुक़ाबला बन गया, जिसके फलस्वरूप मीडिया प्लेटफॉर्म ने सरकार के नये दिशा-निर्देशों को ‘मुक्त और खुले संवाद को बाधित करने का प्रयास बताया। नये नियम अधिकारियों द्वारा माँग करने पर सोशल मीडिया कम्पनियों को सूचना के जनक का नाम उजागर करने के लिए मजबूर करते हैं। केंद्र सरकार का कहना है कि ‘अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार निरंकुश होने की सीमा तक नहीं हो सकता और न इतना व्यापक कि क़ानूनी व्यवस्था को ही कमज़ोर कर दे।
यह झगड़ा उस समय चरम पर पहुँच गया, जब केंद्रीय सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री रविशंकर प्रसाद ने आरोप लगाया कि ट्विटर ने कॉपीराइट (प्रतिलिप्याधिकार) क़ानून के उल्लंघन की शिकायत के आधार पर लगभग एक घंटे तक उन्हें उनके खाते तक पहुँच से वंचित कर दिया, जो वस्तुत: एक म्यूजिक कम्पनी के इस आधार पर किये गये दावे से उपजा था कि ‘यह संयुक्त राज्य अमेरिका के डिजिटल मिलेनियम कॉपीराइट एक्ट का उल्लंघन था। प्रसाद ने कहा कि बाद में उन्होंने खाते तक पहुँच की अनुमति दे दी।
इस विवाद के दौरान ही केंद्र सरकार एक विधेयक लायी, जो गम्भीर परिणामों से अटा पड़ा है; लेकिन कमोवेश सभी सोशल मीडिया कम्पनियों का इस पर ध्यान नहीं गया। सिनेमैटोग्राफ (संशोधन) विधेयक-2021 के मसौदे में किसीफ़िल्म के प्रमाणन को वापस लेने या बदलने के प्रस्ताव जैसे हस्तक्षेप का रास्ता खोलता है। यह ‘सुपर सेंसरशिप और रचनात्मक स्वतंत्रता पर एक अंकुश के समान है। क्योंकि केंद्रीयफ़िल्म प्रमाणन बोर्ड से प्रमाण-पत्र प्राप्त करने के बाद भी, सरकार सीबीएफसी प्रमाणन को वापस बुला सकती है या उलट सकती है। सरकार द्वारा अपीलीय निकाय,फ़िल्म प्रमाणन अपीलीय न्यायाधिकरण (एफसीएटी) को समाप्त करने के मद्देनज़र यह क़दम आशंकाएँ पैदा करता है। ट्रिब्यूनल, सूचना और प्रसारण मंत्रालय के तहत एक वैधानिक निकाय, ट्रिब्यूनल रिफॉम्र्स (रेशनलाइजेशन एंड कंडीशंस ऑफ सर्विस) ऑर्डिनेंस, 2021 के माध्यम से समाप्त कर दिया गया था, जो 4 अप्रैल से प्रभावी हुआ था। विधेयक में दर्शकों की शिकायतों की प्राप्ति के बाद पहले से प्रमाणितफ़िल्म के पुन: प्रमाणन का आदेश देने के लिए सरकार को सशक्त बनाने का प्रस्ताव है, जो केंद्रीयफ़िल्म प्रमाणन बोर्ड से इतर सेंसरशिप से कम नहीं लगता है।
सरकार ने एक नोट में इस क़दम को सही ठहराया, जिसमें कहा गया था- ‘कभी-कभी किसी फ़िल्म के ख़िलाफ़ शिकायतें प्राप्त होती हैं, जो फ़िल्म प्रमाणित होने के बाद सिनेमैटोग्राफ अधिनियम की धारा-5 बी(1) के उल्लंघन का संकेत देती है।
सवाल यह है कि क्या सरकार को सेंसर करने वाली बॉडी पर सुपर सेंसर के रूप में काम करना चाहिए? या किसीफ़िल्म की जाँच और प्रदर्शन के लिए मंज़ूरी मिलने के बाद सेंसरिंग बॉडी द्वारा दिये गये प्रमाणन को वापस लेना चाहिए? या उसमें बदलाव करना चाहिए? या उसमें काट-छाँट करनी चाहिए? मंत्रालय ने एक अधिसूचना के माध्यम से आम जनता को 2 जुलाई तक ‘बदले हुए समय के अनुरूप, प्रदर्शन के लिएफ़िल्मों को मंज़ूरी देने की प्रक्रिया को और अधिक प्रभावी बनाने और चोरी के ख़तरे को रोकने के लिए मसौदा विधेयक पर टिप्पणी भेजने के लिए कहा है। कोई केवल यह आशा कर सकता है कि प्रतिक्रिया माँगना एक दिखावा भर नहीं है और केवल भविष्य के लिए आगे बढऩे के लिए है; न कि सेंसरशिप के दिनों की तरफ़ लौटने के लिए।
चरणजीत आहुजा