नई दिल्ली रेलवे स्टेशन, कश्मीरी गेेट बस अड्डा और सराय काले खाँ से प्रतिदिन चलने वाली उत्तर प्रदेश परिवहन (रोडवेज) की बसें, जो ग्रेटर नोएडा, नोएडा और परीचौक को जाती हैं; में कारोबारियों का सामान ढोया जाता है। इन बसों में यात्री कम, सामान ज़्यादा होता है। इसके कारण यात्रा करने वालों को काफी दिक्कत का सामना करना पड़ता है। आलम यह है कि बसों को माल ठोने के लिए इस तरीके से बना दिया गया है कि कारोबारियों का कई कुन्तल सामान बसों मेें आ जाता है। सामान रखने के लिए बसों की सीटें तक उखाड़ दी गयी हैं। तहलका संवाददाता ने सात-आठ बसों में जाकर देखा, तो पीछे की चार-चार सीटें गायब मिलीं। बता दें कि रोडवेज बसों में सभी सीटें यात्रियों के बैठने के लिए होती हैं। आलम यह है कि इन रोडवेज की बसों में बोनट से लेकर ड्राइवर के पीछे तक ठूँस-ठूँसकर सामान भरा जाता है, जिससे यात्रियों को आगे बैठने से लेकर चढऩे-उतरने में भी खासी तकलीफ होती है। वहीं पीछे की ओर चार-चार सीटें उखड़ी मिलीं, जहाँ सामान रखा हुआ था और यात्री खड़े हुए थे। इस मामले में तहलका संवाददाता ने जब बसों में बस चालक (ड्राइवर) और संवाहक (कंडक्टर) से बात की। इन लोगों ने बेखौफ होकर बताया कि बसों में सामान तो सालोंसाल से ढोया जा रहा है। संवाहक ने बताया कि सारा सिस्टम ही ऐसा है; क्या करें? दो पैसों के लालच में हम सामान ले जाते हैं। वहीं यात्रियों ने बताया कि बसों में कई बार सामान इस कदर भरा रहता है कि बुजुर्ग और गर्भवती महिलाओं को चढऩे उतरने में दिक्कत होती है। कोई शिकायत करता है, तो जवाब में कंडक्टर का दो-टूक जवाब होता है कि जो करना है, कर लो!
अब बात करते हैं बसों में कारोबारियों का सामान ढोने की; कि सामान कैसे और कहाँ से बसों में भरा जाता है और कहाँ जाता है। सामान ढोने के बदले मिलने वाले पैसे का बंदरबाँट ड्राइवर और कंडक्टर से लेकर परिवहन व्यवस्था में लगे अधिकारियों तक कैसे होता है? पड़ताल में पता चला कि हर रोज़ यात्रियों की गिनती के बहाने बसों में टिकट चैकर आकर देखता है कि आज कितना सामान है? उसी के अनुपात में कंडक्टर सभी को पैसा वितरित करता है। आपस में चोर-सिपाही का भी खेल होता है। दिखावे के तौर पर बसों की जाँच होती है और सामान ढोकर अवैध कमाई होती है, जिसका बंदरबाँट होता है।
नई दिल्ली रेलवे स्टेशन (कमला मार्केट) से चलने वाली बसें, जो सुबह 6:00 बजे से दोपहर 2:00 बजे प्रति दिन चलती हैं। ये बसें तकरीबन एक-एक घंटे के अन्तर से चलती हैं। इनमें सदर बाज़ार से नोएडा, ग्रेटर नोएडा और परी चौक के व्यापारी सामान ले जाते हैं। बसों में बड़े-बड़े गत्तों, बोरों में सामान भरा होता है। नई दिल्ली रेलवे स्टेशन से रोडवेज बसें जब दिल्ली गेट होकर लोकनायक, जीबी पंत अस्पताल के पास वाले रूट से गुज़रती हैं, तो इन अस्पतालों में नोएडा, ग्रेटर नोएडा और परीचौक तथा आसपास के गाँवों से इलाज कराने आये मरीज़, गर्भवती महिलाएँ और बच्चे वापसी के लिए इन बसों का इंतज़ार करते हैं। मगर इन बसों में बैठने के लिए सीट मिलना तो दूर की बात, कई बार खड़े रहने तक को जगह नहीं मिलती। साथ ही ऐसे लोगों को सामान भरा होने के चलते चढऩे-उतरने में काफी परेशानी होती है। यही हाल कश्मीरी गेट बस अड्डा और सराये काले खाँ से चलने वाली बसों का भी है। इन बसों में गाँधी नगर बाज़ार और लक्ष्मीनगर और लाजपत नगर मार्केट से बेचने के लिए खरीदा गया कारोबारियों सामान भरा जाता है।
सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि बस कंडक्टर मोबाइल फोन के ज़रिये कारोबारियों के सपर्क में रहते हैं और तय करते हैं कि कितना सामान है? उसी के हिसाब से पैसा तय कर लेते हैं, जिससे बिना रोकटोक के सामान बसों में चढ़ाया और उतारा जा सके। हैरत की बात यह है कि इस सामान को बस कंडक्टर और ड्राइवर चढ़ाते-उतारते हैं। इसके लिए ये लोग अलग से पैसा लेते हैं। यही नहीं सामान चढ़ाने-उतारने के दौरान यात्रियों को कितनी परेशानी होती है? उनका कितना समय खराब होता है? इससे कंडक्टरों और ड्राइवरों को कुछ लेना-देना नहीं होता है। अगर यात्री कंडक्टर और ड्राइवर से कुछ कहते हैं, तो यात्री को धमकी भरे लहज़े में कहा जाता है कि जल्दी है, तो किसी और वाहन से चले जाओ, ज़्यादा शोर करोगे, तो बस से उतार देंगे।
एक बस कंडक्टर से तहलका संवाददाता ने जब व्यापारी बनकर गाँधी नगर से परी चौक तक सामान ले जाने की बात की, तो उसने कहा कि जितना सामान हो, ले आओ; किसी प्रकार की कोई परेशानी नहीं होगी। संवाददाता ने अंजान बनकर पूछा कि किसी यात्री को कोई परेशानी तो नहीं होगी? तो संवाहक ने कहा कि यह मेरा काम है; सवारी को खड़ा कर देंगे। सारा सिस्टम आने हाथ में है। सामान ढुलाई का रेट पूछने पर उसने कहा कि एक गत्ते के 200 रुपये से लेकर 400 रुपये तक भाड़े के तौर पर लगेंगे। कंडक्टर ने बताया कि जबसे जीएसटी कानून आया है, तबसे सामान को कोई देखता ही नहीं है। त्योहारी सीजनों- होली, दीपावली और रक्षाबन्धन में भाड़ा बढ़ा देते हैं। क्योंकि त्योहारों के दौरानव्यापारी ज़्यादा सामान ले जाते हैं।
संवाददाता ने एक व्यापारी प्रदीप गुप्ता से बातचीत की। प्रदीप ने बताया कि वह प्रत्येक रविवार को गाँधी नगर (दिल्ली) से इन्हीं रोजवेज बसों में सामान ले जाते हैं। बसों में सामान का भाड़ा छोटे-छोटे माल ढुलाई के लिए बने तीन पहिया वाहनों (लोडरों) की अपेक्षा सस्ता पड़ता है, इसलिए नोएडा, गं्रेटर नोएडा और परी चौक के सारे व्यापारी उत्तर प्रदेश परिवहन की बसों मेंं ही सामान ले जाते हैं।
गाँधी नगर मार्केट के बाहर कारोबारियों का सामान ले जाने वाले लोडर चालकों- कुन्ने और बिहारी से बात की, तो उन्होंने बताया कि लोडर नोएडा, ग्रेटर नोएडा और परीचौक के कारोबारियों का सामान जब नम्बर-1 में ले जाते हैं, तो पुलिस तमाम जगह उनको रोककर वाहन के कागज़ात देखते हैं और सामान का बिल भी माँगते हैं। इसके चलते लोडर चालकों को परेशानी होती है। ऐसे में कारोबारी बसों में सामान ले जाते हैं। इन लोडर चालकों ने अपनी पीड़ी व्यक्त करते हुए कहा कि लोडर चालक बेरोज़गारों की तरह खड़े रहते हैं। जो वाहन उन्होंने बैक से कर्ज़ लेकर खरीदे हैं, उनकी िकस्त समय पर नहीं दे पा रहे हैं। शासन-प्रशासन की मिली-भगत से राजस्व को चूना लगाया जा रहा है।
परी चौक से सटे गाँव ऐचछर निवासी परमानंद ने बताया कि उनके भाई का जीबी पंत अस्पताल में हार्ट का ऑपरेशन 24 जनवरी को हुआ था। अस्पताल से छुट्टी के बाद जब वे रोडवेज बस में अपने भाई को लेकर चढ़े, तो उसमें इस कदर सामान भरा पड़ा था कि नोएडा सेक्टर-16 तक अपने मरीज़ भाई को खड़ा करके लाये। ड्राइवर-संवाहक से उन्होंने लाख विनती की, लेकिन उन्हें बस में जगह न होने का बहाना बनाकर टाल दिया गया, जबकि बस में सामान ठूँसा जाता रहा। परमानंद ने जब कंडक्टर से कहा कि ये बस तो यात्रियों के लिए है, तो उसने कहा कि जाओ, जहाँ शिकायत करना है, कर दो। दु:ख की बात यह है कि परमानंद ने इसकी शिकायत उत्तर प्रदेश में परिवहन आयुक्त से लेकर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ तक से की, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई। यही वजह है कि रोडवेज बसों के ड्राइवरों-कंडक्टरों के हौसले बुलंद हैं और वे रोडवेज की यात्री बसों को सामान ढोने वाली बसें बनाते जा रहे हैं।
उत्तर प्रदेश परिवहन व्यवस्था से जुड़े एक अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि दिल्ली से लेकर उत्तर प्रदेश की जो बसें नोएडा, ग्रेटर नोएडा, परी चौक, कासना, दादरी, अलीगढ़ और मेरठ तक जाती हैं, उन बसों में कारोबारी दिल्ली से कपड़ा, ऑटो पाट्र्स और अन्य सामान ले जाते हैं। यात्रियों के टिकट चैकर के तौर पर जो अधिकारी तैनात किये गये हैं, उनकी आपसी साँठगाँठ की वजह से बसों में कारोबारियों का सामान धड़ल्ले से आता-जाता है। सामान के कारण बसों को यात्रियों को बैठने को जगह नहीं मिलती है। कई बार तो बस का कंडक्टर यात्रियों से एक दो बैग अधिक होने पर भी अलग से पैसे वसूलता है, जो कि अवैध है।