गुजरात में साँपों के काटने के मामले थमने का नाम नहीं ले रहे हैं। अभी पिछले कुछ महीनों में ही अहमदाबाद ज़िले में साँपों के काटने के कई मामले सामने आये हैं। इंटीग्रेटेड हेल्थ इंफॉर्मेशन प्लेटफॉर्म (आईएचआईपी) पोर्टल की इस साल की एक रिपोर्ट के मुताबिक, इस साल 01 जनवरी से 30 अप्रैल तक गुजरात में मानव-पशु संघर्ष के 91,000 से ज़्यादा मामले सामने आये थे, जिनमें साँपों के काटने के मामले 18 प्रतिशत से ज़्यादा थे। इसे देखते हुए केंद्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण विभाग ने राज्य के मेडिकल कॉलेजों, सामान्य अस्पतालों और ज़िला और नागरिक निकायों के स्वास्थ्य के चिकित्सा अधिकारियों को एक नोटिस जारी कर दैनिक आधार पर जानवरों के काटने के मामलों से सम्बन्धित जानकारी राष्ट्रीय पोर्टल पर अपडेट करने को कहा था। नोटिस में कहा गया है कि अस्पताल और स्वास्थ्य निकाय जानवरों के काटने के दैनिक आँकड़े देने के सम्बन्ध में नियमों का पालन करने में सफल नहीं रहे हैं। भारत के राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन की निगरानी, पर्यवेक्षण और लॉजिस्टिक कार्यक्रमों के तहत अस्पतालों से जानवरों के काटने के दैनिक मामलों को ऑनलाइन अपडेट करने के लिए आईएचआईपी पोर्टल पर एस और पी फॉर्म भरने की उम्मीद की जाती है। हालाँकि देखा गया है कि (रिपोर्ट जारी होने तक) कोई भी अस्पताल इस कार्य को पूरा नहीं कर रहा है। नोटिस में कहा गया है कि राष्ट्रीय रेबीज नियंत्रण कार्यक्रम (एनआरसीपी) और राष्ट्रीय रोग नियंत्रण केंद्र (एनसीडीसी) के साँप काटने के ज़हर की रोकथाम और नियंत्रण कार्यक्रम (पीपीसीएसबीई) के तहत, सरकार के लिए रोगियों का विवरण प्रदान करना महत्त्वपूर्ण है।
हालाँकि भारत में पाये जाने वाले 343 प्रकार के साँपों में से अधिकांश साँपों के ज़हर से लोग नहीं मरते; लेकिन इनमें से 20 प्रतिशत साँप ज़हरीले हैं। इनमें भी सिर्फ़ कोबरा (गेहुअन), पद्म नाग, रसेल वाइपर, करैत और सॉ स्केल वाइपर जैसे पाँच साँप ही ऐसे हैं, जिनके डसने से 90 प्रतिशत से ज़्यादा मामलों में मौत होती है। हालाँकि कुछ रिपोर्ट्स का दावा है कि भारत में 276 प्रकार के साँप पाये जाते हैं। लेकिन सिर्फ़ पाँच प्रकार के साँपों के काटने पर 90 प्रतिशत से ज़्यादा मौतें होने के बाद भी भारत में साँपों के काटने से हर साल 40,000 से ज़्यादा मौतें हो जाती हैं, जिनमें 36,000 से 37,000 मौतें इन सबसे ज़हरीले पाँच साँपों के काटने से होती हैं। ये इतने ज़हरीले साँप हैं कि कुछ के काटने पर तो मौत आने में एक-दो मिनट या ज़्यादा-से-ज़्यादा पाँच मिनट भी नहीं लगते। वहीं अजगर के निगलने से एक से दो प्रतिशत मौतें इंसानों की होती हैं। रिपोर्ट्स के मुताबिक, पिछले 20 साल में भारत में 12,00,000 से ज़्यादा मौतें सिर्फ़ साँप के काटने से हुईं, जिनमें सबसे ज़्यादा 97 प्रतिशत मौतें गाँवों के इलाक़ों में हुईं। रिपोर्ट्स के मुताबिक, साँपों के काटने से महिलाओं की अपेक्षा पुरुषों की मौतों की दर ज़्यादा है।
उत्तर प्रदेश सरकार ने पिछले दिनों घोषणा की थी कि उत्तर प्रदेश में साँप के काटने से मौत होने पर मृतक के परिवार को 4,00,000 रुपये की आर्थिक मदद मिलेगी। कहा जा रहा है कि उत्तर प्रदेश सरकार ने ये घोषणा राज्य में साँपों के काटने से हर साल होने वाली हज़ारों मौतों को देखते हुए की है। लेकिन इसके लिए मृतक की पोस्टमार्टम रिपोर्ट ज़रूरी है, जिस पर लेखपाल क़ानूनगो, तहसीलदार और उपज़िलाधिकारी अपनी रिपोर्ट ज़िलाधिकारी को देंगे। उसके बाद ही मृतक के परिवार को मुआवज़ा मिलेगा। यह मुआवज़ा एडीएम फाइनेंस के ज़रिये आपदा राहत कोष से तत्काल मिलने के निर्देश हैं।
वहीं राजस्थान में जून, 2014 में साँप काटने से हुए एक व्यक्ति की मौत मामले में राज्य उपभोक्ता आयोग की ओर से साँप काटने से मौत होने पर मृतक के परिवार को 10 लाख रुपये नौ प्रतिशत ब्याज के साथ देने का आदेश दिया गया। हालाँकि यहाँ मरने वाले व्यक्ति ने एक निजी कम्पनी से बीमा कराया हुआ था, जिसे देने से कम्पनी मना कर रही थी। कम्पनी का कहना था कि ये प्राकृतिक मौत नहीं है। इस पर राज्य उपभोक्ता आयोग ने यह फ़ैसला सुनाया। वहीं बिहार सरकार ने मार्च, 2020 में साँप काटने से मौत पर 5,00,000 मुआवज़े की घोषणा की थी। इससे पहले बिहार में आपदा प्रबंधन विभाग ही बाढ़ के दौरान साँप के डसने के शिकार होने वाले लोगों को मुआवज़ा देता था। हालाँकि मुआवज़ा उसी को मिलेगा, जिसके नाम ज़मीन नहीं है और उसकी सालाना आमदनी 75,000 रुपये से कम हो, जिसका आय प्रमाण-पत्र भी होना चाहिए। इसके साथ ही मृतक की आयु 18 से 60 साल के बीच ही होनी चाहिए। वहीं झारखण्ड में जंगली जानवरों के हमले से जान-माल का नुक़सान होने पर मुआवज़े की राशि वन विभाग अधिसूचना निकालता है। अंतिम अधिसूचना 25 अगस्त, 2014 को निकाली गयी। इसके मुताबिक, किसी बालिग़ की मौत होने पर 2,50,000 रुपये, नाबालिग़ की मौत होने पर 1,50,000 रुपये, गम्भीर घायल व्यक्ति को 50,000 रुपये और साधारण रूप से घायल व्यक्ति को 10,000 रुपये देने का प्रावधान है। वहीं उत्तराखण्ड में कांग्रेस सरकार में हरीश रावत ने अपने मुख्यमंत्रित्व-काल में अब वन्य जीवों के हमले में मृत्यु पर मुआवज़ा 3 लाख रुपये से बढ़ाकर 6,00,000 रुपये कर दिया था। इसी प्रकार गम्भीर घायल व अपंग होने की दशा में भी अनुमान्य मुआवज़ा भी दोगुना हो चुका है।
स्नेक मैन के नाम से मशहूर सर्प वैज्ञानिक रोमुलस व्हिटेकर की पब्लिक लाइब्रेरी ऑफ साइंस नाम के द जर्नल में सन 2011 में छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में हर साल जून से सितंबर के बीच 45,900 से 50,900 लोगों की मौत साँपों के काटने से ही हो जाती है। वहीं जर्नल ऑफ द एसोसिएशन ऑफ फिजीशियन ऑफ इंडिया की एक रिपोर्ट के मुताबिक, दुनिया में साँपों के काटने से सबसे ज़्यादा मौतें भारत में होती हैं, जिसमें उत्तर प्रदेश पहले नंबर पर आता है। साँपों के काटने से दूसरा सबसे ज़्यादा मौतों वाला राज्य आंध्र प्रदेश और तीसरा सबसे ज़्यादा मौतों वाला राज्य बिहार है।
डब्ल्यूएचओ की एक रिपोर्ट के मुताबिक, दुनिया में हर साल क़रीब 54,00,000 लोगों को साँप काटते हैं, जिनमें क़रीब 18,00,000 से 27,00,000 मामले ज़हरीले साँपों के काटने के होते हैं। इस रिपोर्ट के मुताबिक, दुनिया में हर साल क़रीब 81,410 से 1,37,8 80 लोगों की मौत साँपों के काटने से होती है। डब्ल्यूएचओ की इस रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में सन् 2009 से सन् 2019 तक क़रीब 12,00,000 लोगों की मौत साँपों के काटने से हुई थी। हालाँकि केंद्र सरकार ने इस दौरान साँपों के काटने से होने वाली मौतों के आँकड़े डब्ल्यूएचओ से 30 गुना कम बताये थे। डब्ल्यूएचओ के मुताबिक, सन् 2005 में भारत में 45,900 लोगों की मौत साँपों के काटने से हुई थी।
जानकार बताते हैं कि साँपों के काटने को राष्ट्रीय आपदा के तहत माना गया है। वन्य प्राणी सुरक्षा अधिनियम-1972 की धारा-2(36) के मुताबिक, इस अधिनियम की अनुसूची-1 से 4 में जंगली जानवर शामिल हैं। इसमें साँप भी शामिल हैं। इस अधिनियम के मुताबिक, जंगली जानवरों के आघात से होने वाली मौत पर सरकार द्वारा तय मुआवज़ा मृतक के परिवार को मिलना चाहिए। इस अधिनियम के मुताबिक, घातक साँपों की अनुसूची में कोबरा, नाग, नाग प्रजाति की सभी उप प्रजातियाँ, रसल्स वाइपर, धामन, चेकर्ड कीलबैक, ओसिबेसियस कीलबैक और अजगर आदि शामिल हैं।
इस आधार पर भारत में साँपों के काटने पर मुआवज़ा मिलना चाहिए। क्योंकि इसे क़ानूनी तौर पर आपदा माना गया है और यह ठीक वैसे ही है, जैसे दूसरे जंगली जानवरों के हमले से हुई मौत। गुजरात में कई लोग और संगठन गुजरात सरकार से साँपों के काटने पर मौत होने पर मुआवज़े की माँग करते रहे हैं। लेकिन गुजरात सरकार की तरफ़ से साँपों के काटने पर मौत मामले में मुआवज़े को लेकर कोई ख़ास पहल नज़र नहीं आती। पिछले एक साल में गुजरात में जितने लोगों की मौत हुई है, उनमें से कईयों के परिवारों ने मुआवज़े की इच्छा जतायी है। गुजरात सरकार को इस पर विचार करना चाहिए।