झारखण्ड के रांची ज़िले का एक सरकारी स्कूल कक्षा आठ का एक लडक़ा। आँख लाल और दिमाग़ क़ाबू में नहीं। बातचीत का लहज़ा अजीब-ओ-ग़रीब। पूछे जा रहे सवालों और उसके जवाबों में भी कोई तालमेल नहीं। कक्षा के एक दूसरे छात्र ने बताया कि अमुक लडक़ा नशा करता है। वह दिन भर रुमाल में कुछ सूँघता रहता है। पॉकेट की जाँच की गयी तो, उससे एक गंदा-सा रुमाल निकला। उस रुमाल से बहुत-ही विचित्र बदबू आ रही थी।
दूसरे मामले में रांची शहर के बाहरी रिंग रोड क्षेत्र पर सडक़ किनारे तीन युवा लडक़े (किसी कॉलेज के पढऩे वाले) बाइक लगाकर बैठे थे। उनमें से एक सिगरेट से तम्बाकू निकालकर उसमें कुछ भर रहा था। पूछने पर उसने बदतमीजी से जवाब देकर भागने को बोला। मोबाइल से फोटो खींचने का प्रयास करते देख, तीनों लडक़े मारपीट पर उतारू हो जाते हैं। यहाँ स्कूल या बच्चों का नाम लिखा जाना या तस्वीर देना उचित नहीं है। निश्चित रूप से अमुक स्कूल के शिक्षकों ने बच्चे को लेकर उचित क़दम उठाया होगा। पर इस पर गम्भीरता से सोचने की ज़रूरत है। क्योंकि यह एक-दो मामला नहीं है।
इस तरह के सैकड़ों मामले झारखण्ड में अपने आसपास नज़र दौराते ही देखने को मिल जाते हैं। क्योंकि आजकल युवा वर्ग सस्ते नशे के मकडज़ाल में फँसते जा रहे हैं। झारखण्ड में सस्ते नशे का प्रचलन लगातार बढ़ रहा है। यह युवाओं को देखकर तो महसूस किया ही जा सकता है, साथ ही पुलिस-प्रशासन की कार्रवाई के दौरान नशे से सम्बन्धित सामान की बरामदगी भी एक सुबूत है।
हडिय़ा-दारू है आम नशा
झारखण्ड में हडिय़ा एक आम नशा है। इसका पहले नशा से अधिक अच्छे स्वास्थ्य और शरीर में बीमारी से लडऩे के लिए प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के लिए उपयोग होता था। कई बीमारियों से यह बचाता और इलाज भी करता था। धीरे-धीरे हडिय़ा ने विकृत रूप ले लिया। जिस वजह से इसके साथ दारू शब्द जुड़ गया। अब लोग ‘हडिय़ा-दारू’ शब्द ही उपयोग करते हैं।
‘हडिय़ा-दारू’ बिक्री पर क़ानूनी प्रतिबंध है; लेकिन ‘हडिय़ा’ पारंपरिक पेय होने के कारण इस पर पाबंदी नहीं है। नतीजतन विकृत रूप से ‘हडिय़ा-दारू’ खुलेआम बिकता है। लोग खुलेआम पीते हैं। यह एक सस्ता नशा है, जिसे राज्य में कहीं भी लोगों को बेचते और पीते हुए देखा जा सकता है।
अफ़ीम की खेती का हब
इसी तरह झारखण्ड में अफ़ीम की खेती आम बात है। राज्य के 24 में से लगभग 17 ज़िलों में अवैध रूप से अफ़ीम की खेती होती है। हालाँकि इस पर प्रतिबंध है। अफ़ीम की खेती नक्सल इलाक़े में ज़्यादा होती है। इसकी खेती को नक्सलियों का समर्थन और खेती में हाथ भी है। क्योंकि इससे नक्सलियों का आर्थिक तंत्र मज़बूत होता है। रांची, खूंटी, चतरा, पलामू आदि क्षेत्र में पहाडिय़ों, घने जंगलों में इसकी खेती बड़े पैमाने पर होती है। पिछले कुछ समय से झारखण्ड अफ़ीम की खेती का हब बनता जा रहा है। इसका उपयोग केवल झारखण्ड में ही नहीं, राज्य के बाहर और विदेश तक हो रहा है। सूत्रों की मानें, तो यहाँ तैयार हुए अफ़ीम पंजाब, उत्तर प्रदेश और अन्य राज्यों तक जाते हैं। वहाँ हेरोइन बनाने के बाद पाकिस्तान, अफ़ग़ानिस्तान और यूरोपीय देशों तक भेजे जाते हैं।
हालाँकि समय-समय पर पुलिस कार्रवाई भी करती है और अफ़ीम की खेती को नष्ट भी किया जाता है। पुलिस के आँकड़े बताते हैं कि पिछले एक साल में विभिन्न ज़िलों में 2885 एकड़ से अधिक भूमि पर लगे अफ़ीम के पौधे नष्ट किये गये। वहीं, 425 मामले दर्ज किये गये और 205 लोगों को गिरफ़्तार किया गया है। हालाँकि झारखण्ड की भौगोलिक स्थिति और नक्सल प्रभाव के कारण कई दुर्गम इलाक़ों तक सुरक्षा बलों का पहुँच पाना सम्भव नहीं होता। नतीजतन खेती के बाद अफ़ीम की खेप तस्करी के समय भी कई बार पकड़ में आते हैं। चूँकि राज्य में अफ़ीम की खेती होती है, इसलिए यहाँ के युवाओं का अफ़ीम तक पहुँच आसान है और उपलब्धता भी आसानी से है।
दवाओं से नशा लेने की कोशिश
हेरोइन, ब्राउन शुगर, स्मैक जैसे अन्य ड्रग्स की उपलब्धता आसानी से नहीं है। साथ ही इसकी क़ीमत भी काफ़ी अधिक होती है। नतीजतन मध्यम और ग़रीब तबक़े के युवा सस्ते नशे की ओर आकृष्ट हो रहे हैं। यही कारण है कि झारखण्ड में महँगे ड्रग्स की जगह सस्ते नशे के लिए दवाई, सिरप, इंजेक्शन आदि की खपत बढ़ गयी है। सरकारी स्कूल के जिस बच्चे का ज़िक्र आलेख के शुरू में किया गया था, जब उसके द्वारा नशे के लिए उपयोग में लाये जाने वाले सामान की जानकारी ली गयी, तो सुनकर हैरानी हुई। वह लडक़ा व्हाइटनर (काग़ज़ पर कलम से लिखे चीज़ को मिटाने के उपयोग में लाने वाला) को रूमाल पर लगा कर सूँघता था। उस व्हाइटनर के ट्यूब की क़ीमत केवल 30 रुपये है, जो किसी भी स्टेशनरी की दुकान पर आसानी से उपलब्ध है। लगातार सारा दिन सूँघते रहने से उसे नशा महसूस होता था। पुलिस के आँकड़े भी सस्ते नशे के बढऩे की बात की पुष्टि करती है। पिछले एक साल में जितने ड्रग्स पकड़ाये उससे कई गुना अधिक नशे के उपयोग में लाये जाने वाली दवाई, सिरप और इंजेक्शन के अवैध खेप पकड़ाये हैं। इनमें ऑनरेक्स, विनकोरेक्श, कूका, आरसी, कोफिन, रैक्सिस आदि नाम के सिरप हैं।
इसी तरह नाइट्रोजन, नाइट्रो हैप, डायलेक्ट आदि दवाइयाँ और पेंटाजोसिन, फायरमैन मैलेट आदि इंजेक्शन मिले। इन सिरप, दवा या इंजेक्शन को केवल डॉक्टर की पर्ची पर ही बेचा जा सकता है, लेकिन झारखण्ड में ब$गैर पर्ची के आसानी से अवैध रूप से उपलब्ध है। पुलिस ने इन दवाओं और सिरप को पिछले एक साल में भारी मात्रा में पकड़ा है। आँकड़ों बताते हैं कि पिछले एक साल में 32,000 से अधिक सिरप की बोतलें, जो लगभग 650 लीटर है और 72 हजार पीस टैबलेट पकड़े गये हैं। इन दवाओं का न ही कोई थोक विक्रेता का नाम-ओ-निशान मिला और न ही खुदरा विक्रेता।
कुछ दवाएँ तो अवैध कारोबार करने वाले राज्य के बाहर से लेकर आ रहे थे। सूत्रों का कहना है कि इनका उपयोग नशे के लिए होता है। इससे थोड़ा महँगा नशा गाँजा, डोडा और भाँग जैसे चीज़ों का है। पिछले एक साल में गाँजा 19,000 किलो, डोडा 96,000 और भाँग 12,000 किलो बरामद हुए। इसके विपरीत ब्राउन शुगर 117 किलो, हेरोइन सात किलो और स्मैक 75 ग्राम बरामद हुए।
बर्बाद हो रहे युवा
फ़िल्म अभिनेता संजय दत्त के जीवन पर बनी फ़िल्म संजू में नशे की लत को दिखाया गया है। किस तरह से नशे की लत लगती है और क्या हश्र होता है। इसके अलावा भी कई फ़िल्मों में नशे या ड्रग्स की आदत और इसके नतीजे को दिखाया गया है। यह केवल फ़िल्म की ही बात नहीं है; हक़ीक़त में भी ऐसा होता है। राज्य में प्रवर्तन निदेशालय (इडी) की अवैध माइनिंग और मनी लॉड्रिंग की जाँच चल रही है।
इस क्रम में मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के विधायक प्रतिनिधि पंकज मिश्रा को इडी ने गिरफ़्त में लिया। हिरासत में पंकज मिश्रा की तबीयत ख़राब हुई। रिम्स अस्पताल के डॉक्टरों ने इलाज के बाद उन्हें मानोचिकित्सक के पास भेजने की सलाह दी। सूत्रों की मानें, तो पंकज मिश्रा को नशे की आदत थी। वह नशे के लिए इंजेक्शन लेते थे। उन्हें सीआइपी के नशा मुक्ति केंद्र में भर्ती कराया गया है। मनोवैज्ञानिकों का कहना है कि ज़्यादातर मामलों में शुरू में नासमझी और स्टाइल के चक्कर में युवा नशे को अपनाते हैं, बाद में यह लत में तब्दील हो जाता है। जब आर्थिक कारणों से महँगा नशा नहीं कर पाते, तो सस्ता की ओर भागते हैं।
नशा एक ऐसी बुरी आदत है, जो किसी इंसान को पड़ जाए तो उसे दीमक की तरह अंदर से खोखला बना देती है। नशा से पीडि़त व्यक्ति मानसिक,आर्थिक एवं शारीरिक रूप से बर्बाद हो जाता है। भारत युवाओं का देश है। इस पर हम गर्व कर रहे हैं। ऐसे में अधिक संख्या में नशे में डूबते युवा चिन्ता का विषय है। इसके निदान के लिए सभी को मिल कर आगे आना होगा। तभी इस गिरफ़्त से समाज निकल सकेगा।