सर्वोच्च न्यायालय ने शुक्रवार को तीस्ता सीतलवाड़ को जमानत दे दी। जमानत देते हुए सर्वोच्च अदालत ने कहा कि याचिकाकर्ता एक महिला है जो दो महीने से हिरासत में है। जो मामला है वो 2002-2010 के बीच के दस्तावेज का है।
जमानत याचिका पर सुनवाई करते हुए प्रधान न्यायाधीश यूयू ललित, जस्टिस एस रवींद्र भट और जस्टिस सुधांशु भट की बेंच ने कहा कि जांच मशीनरी को सात दिन तक उनसे हिरासत में पूछताछ का मौका मिला होगा। रिकॉर्ड में मौजूद परिस्थितियों को देखते हुए हमारा विचार है कि हाईकोर्ट को मामले के लंबित रहते समय अंतरिम जमानत पर विचार करना चाहिए था।
गुजरात सरकार की तरफ से एसजी तुषार मेहता ने कहा कि कल सुप्रीम कोर्ट ने सही तौर पर मामला उठाया कि हाईकोर्ट ने इतना समय क्यों लगाया। मैंने सरकारी वकील से विस्तार से बात की। हाईकोर्ट ने इस मामले में वही किया जो आम तौर पर मामलों में करता है। उन्होंने कहा कि तीन अगस्त को हाईकोर्ट के पास 168 केस लगे थे। एक हफ्ते पहले 124 मामले थे जबकि इस आदेश की तारीख को 168 मामले थे।
सीजेआई ने कहा कि, आपने जो दिया उसमें मुझे एक भी महिला से जुड़ा मामला नहीं मिला। तुषार ने कहा, तीस्ता के लिए मेरे पास कम से कम 28 मामलों की सूची है जहां इसी जज ने दो दिनों के भीतर जमानत दे दी। सीजेआई ने कहा कि इस समय इस अदालत के समक्ष खुद को तथ्यों तक सीमित रखें। तुषार मेहता ने कहा, मुझे यह कहने का निर्देश है कि जज ने 30-40 मामलों का निपटारा किया है।
बेंच ने मजिस्ट्रेट के सामने गवाह के बयान रखने पर गुजरात सरकार पर सवाल उठाया और कहा कि ये बयान सीलकवर में होते हैं। ये मजिस्ट्रेट के पास होने चाहिए। आपको ये बयान कैसे मिले। ये मजिस्ट्रेट कोर्ट की कस्टडी में होने चाहिए। ये कोर्ट से कोर्ट आने चाहिएं। तुषार मेहता ने कहा, हमने कोर्ट से आग्रह किया था और इसके बाद कोर्ट ने जांच अफसर को दिए हैं, ताकि सुप्रीम कोर्ट में रखे जा सकें।
तीस्ता सीतलवाड की ओर से कपिल सिब्बल ने कहा कि, 124 लोगों को उम्रकैद हुई है। ये कैसे कह सकते हैं कि गुजरात में कुछ नहीं हुआ। ये सब एक उद्देश्य के लिए है। ये चाहते हैं कि तीस्ता ताउम्र जेल से बाहर न आए। सिब्बल ने कहा कि, 20 साल से सरकार क्या करती रही। ये हलफनामे 2002-2003 के हैं। तो ये जालसाजी कैसे हो गए? ये हलफनामे इस केस में दाखिल नहीं किए गए। ये पहले के केसों में फाइल किए गए थे।