देश में व्यापक चर्चा में रहे पेगासस जासूसी मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने बुधवार को इसकी जांच के आदेश दिए हैं। सर्वोच्च अदालत ने साथ ही एक विशेषज्ञ समिति का भी गठन किया है, जिसमें सर्वोच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त जज जस्टिस आरवी रविंद्रन को अध्यक्ष बनाया गया है जबकि आईपीएस अधिकारी रॉ के पूर्व प्रमुख आलोक जोशी को भी इसमें शामिल किया गया। आज मामले में फैसला सुनाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र को कटघरे में खड़ा किया। सर्वोच्च अदालत ने अपने फैसले में सख्त टिप्पणी की कि अदालत मूकदर्शक बनी नहीं रह सकती।
अदालत ने सर्वोच्च न्यायालय के पूर्व जज जस्टिस आरवी रविंद्रन कमेटी का अध्यक्ष नियुक्त किया है जबकि इसमें रॉ के पूर्व प्रमुख आईपीएस अधिकारी आलोक जोशी और संदीप ओबेराय को शामिल किया है।
इनके अलावा तीन तकनीकी सदस्यों का बी पैनल भी गठित किया गया है। इनमें राष्ट्रीय फोरेंसिक विज्ञान विश्वविद्यालय, गांधीनगर के साइबर सुरक्षा और डिजिटल फोरेंसिक विभाग के प्रोफेसर और डीन नवीन कुमार चौधरी के अलावा अमृता विश्व विद्यापीठम, अमृतापुरी, केरल के इंजीनियरिंग स्कूल के प्रोफेसर डॉ प्रबहारन पी और भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, बॉम्बे के कंप्यूटर विज्ञान इंजीनियरिंग के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ अश्विन अनिल गुमस्ते शामिल किये गए हैं।
अदालत ने कहा कि केंद्र को यहां अपने रुख को सही ठहराना चाहिए था। केंद्र को बार-बार मौके देने के बावजूद उन्होंने सीमित हलफनामा दिया जो स्पष्ट नहीं था। यदि उन्होंने स्पष्ट किया होता तो हम पर बोझ कम होता। कोर्ट राष्ट्रीय सुरक्षा का अतिक्रमण नहीं करेगा, लेकिन इससे न्यायालय मूकदर्शक नहीं बनेगा . विदेशी एजेंसियों के शामिल होने के आरोप हैं, जांच होनी चाहिए.
हाल के दिनों में पेगासस जासूसी कांड ने देश में विपक्षी दलों को काफी आंदोलित किया है। सर्वोच्च अदालत का फैसला सरकार के लिए झटका माना जा रहा है। आज मामले में फैसला सुनाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र को कटघरे में खड़ा किया। सर्वोच्च अदालत ने अपने फैसले में सख्त टिप्पणी की कि अदालत मूकदर्शक बनी नहीं रह सकती।
सर्वोच्च अदालत ने कहा कि देश के प्रत्येक नागरिक को उनकी निजता के अधिकार के उल्लंघन से बचाया जाना चाहिए। सर्वोच्च अदालत ने कहा कि पेगासस जासूसी का आरोप प्रकृति में बड़े प्रभाव वाला है और अदालत को सच्चाई का पता लगाना चाहिए।
आज की सुनवाई में सर्वोच्च अदालत ने केंद्र सरकार को कटघरे में खड़ा किया और कहा कि ‘राष्ट्रीय सुरक्षा चिंताओं को उठाकर सरकार को हर बार फ्री पास नहीं मिल सकता और न्यायिक समीक्षा के खिलाफ कोई सर्वव्यापी प्रतिबंध नहीं है।’