सबके सम्मान में ही सुरक्षा

धर्म एक-दूसरे के सम्मान, सहभागिता और सद्भाव से ही चल सकते हैं। ईष्र्या, बैर, भेदभाव, बहस और कलह से तो अलग-अलग धर्मों के ही नहीं, एक ही धर्म के लोग भी लडक़र मर जाएँगे। चाहे दो धर्मों के मानने वालों के बीच का मामला हो या किसी एक ही धर्म के मानने वालों के बीच का, एक-दूसरे का, एक-दूसरे के धर्म का सम्मान करके, आपसी सौहार्द और प्रेम से मिलकर रहकर ही सब कुशल-मंगल रह सकते हैं। ईष्र्या और बैर से तो एक परिवार के लोग भी सुख-शान्ति से नहीं रह सकते, धर्मों का मसला तो फिर भी बहुत दूर की बात है।

कहने का अर्थ यह है कि दुनिया के हर व्यक्ति को सभी धर्मों के लोगों का सम्मान करना चाहिए। केवल इस बात से किसी को अपना दुश्मन समझ लेना कि वह दूसरे धर्म या दूसरी जाति का व्यक्ति है; अधर्म के सिवाय कुछ और नहीं है। कई बार देखा गया है कि कुछ देशों में दूसरे धर्म के लोगों के धर्मस्थलों को तोड़ दिया जाता है। इससे अशान्ति ही फैलती है। लेकिन कई देश ऐसे भी हैं, जहाँ दूसरे धर्मों के स्थल सदियों से सुरक्षित हैं। इतिहास गवाह है कि धार्मिक स्थलों को लेकर असंख्यों युद्ध हुए हैं। विचार किया जाना चाहिए कि वो धर्म ही कैसे, जिनके लिए तबाही करनी पड़े? धर्म तो केवल ईश्वर की ओर अग्रसर करने का साधन हैं। लेकिन इन्हीं धर्मों को मानने वालों को आज तक यह बात समझ नहीं आयी कि जिन धर्मों के पालन से मन शान्त और सहनशील हो जाना चाहिए, अहंकार नष्ट हो जाना चाहिए, विनम्रता बढ़ जानी चाहिए, उन्हीं धर्मों को मानने वाले लोग आपस में लडक़र मरने पर आमादा क्यों हो जाते हैं? दरअसल ये बिना धर्मों को समझे, सिर्फ़ उनके अंधानुकरण का परिणाम है। यह एक बड़ा सच है कि अंधानुकरण करने वाला कितना भी पड़ा-लिखा और समझदार क्यों न हो, उसे धर्म के नाम पर अनपढ़ भी बड़ी आसानी से मूर्ख बना सकता है। उसे किसी से झगड़ा करने, यहाँ तक कि किसी की हत्या करने के लिए उकसा सकता है। दुनिया भर में अलग-अलग धर्मों को मानने वालों की ऐसे ही अंधानुकरण करने वालों की भीड़ को ऐसा करते कई बार देखा जाता है। यह भीड़ कभी मूर्तियाँ तोड़ती है, कभी कोई धार्मिक स्थल तोड़ती है, तो कभी दूसरे धर्मों के लोगों पर हमला करती है।

अगर धर्म के नाम पर भीड़ बनकर हमला करने वाले इन धर्मांध लोगों को कोई रोक सकता है, तो वो धार्मिक नेता, देशों-राज्यों की सरकारें और ताक़तवर लोग हैं। लेकिन अब देखने में आता है कि सरकारें, ताक़तवर लोग और धार्मिक नेता ही अपने फ़यदे के लिए धर्मों में विघटन डालकर रखते हैं। आज तक दुनिया में कोई भी ऐसा धार्मिक विवाद नहीं हुआ, जिसके पीछे इनमें से कोई-न-कोई न हो। वैसे तो धर्म-स्थल किसी भी धर्म के हों, सिवाय झगड़े की जड़ के कुछ नहीं हैं। लेकिन नहीं भूलना चाहिए कि यही धर्म-स्थल लोगों की आस्था का केंद्र भी हैं। ऐसे में विभिन्न धर्मों को मानने वालों के ये आस्था के केंद्र तभी सुरक्षित रह सकेंगे, जब हर धर्म के लोग दूसरे धर्मों के धार्मिक स्थलों को क्षति नहीं पहुँचाएँगे और उनका सम्मान करेंगे।

बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख़ हसीना ने बांग्लादेश के ढाका शहर में 51 सतीपीठों में से एक 12वीं शताब्दी का एक ढाकेश्वरी जातीय काली मन्दिर का जीर्णोद्धार कराकर यही सन्देश दिया है। इस ढाकेश्वरी मन्दिर को ढाकेश्वरी राष्ट्रीय काली मन्दिर भी कहते हैं। इस मन्दिर में सनातनी लोगों के अलावा मुस्लिम महिला-पुरुष भी पूजा करते हैं। बांग्लादेश सरकार की ओर से ढाकेश्वरी राष्ट्रीय काली मन्दिर को वहाँ की राष्ट्रीय मर्यादा माना जाता है और सरकारी बजट से इस मन्दिर की देख-रेख होती है। इस मन्दिर के चार शिव मन्दिर हैं, जो एक पंक्ति में स्थित हैं। ये चारों शिव मन्दिर ढाकेश्वरी मन्दिर में प्रवेश करते ही दिखते हैं। इस मन्दिर में साड़ी चढ़ाने की प्रथा है, जो मुस्लिम लोग भी उसी श्रद्धा से चढ़ाते हैं, जिस श्रद्धा से सनातनधर्मी चढ़ाते हैं। ढाका के नेता (सनातनी और मुस्लिम दोनों) चुनावों के दौरान इस ढाकेश्वरी मन्दिर में साड़ी और रत्न चढ़ाकर चुनावी प्रचार शुरू करते हैं। सन् 1971 के युद्ध मे पाकिस्तान ने इस मन्दिर को तबाह कर दिया था; लेकिन बांग्लादेश सरकार ने इसका पुन: निर्माण कराया। सन् 2018 में बांग्लादेश की मौज़ूदा प्रधानमंत्री शेख़ हसीना ने इस मन्दिर को और विस्तार देने के लिए 1.5 बीघा ज़मीन दान की थी। अगर इस मन्दिर में वहाँ के मुस्लिमों की आस्था नहीं होती, तो सम्भव है कि बांग्लादेश की प्रधानमंत्री भी इस मन्दिर को और भव्य नहीं बनवातीं। इस मन्दिर को सुरक्षित रखने में वहाँ के इस्लाम धर्म के लोगों की भी सराहना की जानी चाहिए। भारत में भी ऐसे कई धार्मिक स्थल हैं, जिनकी सुरक्षा दूसरे धर्म के लोगों द्वारा की जाती है। ऐसे धार्मिक स्थल हर धर्म के हैं। यह व्यावहारिक है कि अपना घर सुरक्षित रखने के लिए दूसरे के घर पर पत्थर नहीं मारना चाहिए, अन्यथा कभी-न-कभी अपने घर पर भी पत्थर बरसेंगे-ही-बरसेंगे।