राजस्थान के सिरोही से हाल में एक दिल दहला देने वाली घटना सामने आयी थी। सिरोही से सरकारी अस्पताल में मां के पास सो रहे एक महीने के बच्चे को कुत्ता उठाकर ले गया। कुत्ता मासूम का पेट और एक हाथ नोंचकर खा गया, जिससे बच्चे की मौत हो गयी। यह घटना कोई पहली और आख़िरी नहीं है।
इस तरह की घटनाएँ केवल राजस्थान में ही नहीं हो रही हैं। पूरे देश में आवारा और पालतू कुत्तों का आतंक है। लोग कुत्तों के आतंक से परेशान हैं और ख़ौफ़ में जी रहे हैं। अगर ख़बरों पर ध्यान दें तो देश के अलग-अलग हिस्सों से रोज़ाना औसतन 3,000 से 4,000 घटनाएँ कुत्तों के काटने की सामने आ रही हैं। झारखण्ड भी इसमें पीछे नहीं है।
झारखण्ड के गिरिडीह ज़िले के तीसरी प्रखंड में (26 दिसंबर 2022) एक कुत्ते ने बच्चों समेत 26 ग्रामीणों को काटकर घायल दिया। राज्य के कोडरमा ज़िले के चंदवारा क्षेत्र में (24 फरवरी 2023) एक कुत्ते ने एक चार साल की बच्ची को गंभीर रूप से घायल कर दिया। कुत्ते ने इतनी बुरी तरह नोचा था कि उसे इलाज के लिए रांची राजधानी रिम्स रेफर करना पड़ गया। धनबाद ज़िला में (16 से 22 फरवरी 2023) के दौरान 398 लोगों को कुत्ता ने अपना शिकार बनाया। ये कुछ घटनाएँ बयाँ करती हैं कि इन दिनों राज्य में आवारा कुत्तों का कितना आतंक है। ख़ौफ़ का अंदाज़ा इससे भी लगाया जा सकता है कि पिछले दिनों झारखण्ड विधानसभा बजट सत्र के दौरान भी यह मामला उठा। सत्ता पक्ष और विपक्ष के विधायकों ने सरकार को घेरा और समाधान की माँग की। सवाल है आख़िर कुत्ते इतने उग्र क्यों हो रहे हैं? क्यों कुत्ता काटने की घटनाएँ बढ़ रही हैं? आख़िर प्रशासन क्यों नहीं क़ाबू कर पा रहा है?
एक लाख में 30 लोग शिकार
राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन (झारखण्ड) के अनुसार, राज्य में एक लाख की आबादी पर 30 लोग डॉग बाइट के शिकार होते हैं। केवल राजधानी रांची की ही बात की जाए, तो बीते चार महीने में 5,097 लोगों को कुत्ते ने काटा है। एंटी रेबीज इंजेक्शन लेने के लिए आने वालों के आँकड़ों के मुताबिक केवल रांची में हर दिन औसत 30 लोगों को कुत्ता अपना शिकार बना रहा है। हालाँकि आँकड़े बताते हैं कि राज्य में कोरोना-काल में कुत्तों का आंतक कुछ कम हुआ। राज्य में वर्ष 2015 में कुत्ता काटने के 47,717 मामले सामने आये थे। वहीं, वर्ष 2019 में यह बढक़र 71,725 हो गये। कोरोना काल में घटनाओं में कुछ कमी आयी।
सन् 2020 में 38,381 कुत्ता काटने की घटनाएँ हुईं। सन् 2021 में 31,708 घटनाएँ हुईं। वहीं सन् 2022 में फिर से बढक़र 40,000 के लगभग पहुँच गयी हैं। इस नये साल यानी वर्ष 2023 के केवल तीन महीने में राज्य में यह आँकड़ा 5,000 को पार कर चुका है। राष्ट्रीय स्तर पर भी कुत्तों के काटने का आँकड़ा भी बढ़ रहा। महाराष्ट्र में सन् 2022 में 3.46 लाख, तमिलनाडु में 3.30 लाख और आंध्र प्रदेश में 1.69 लाख, उत्तराखण्ड में 1.62 लाख कर्नाटक में 1.46 लाख, गुजरात में 1.44 लाख और बिहार में 1.18 लाख कुत्तों के काटने की घटनाएँ सामने आयीं।
विधानसभा में उठा मुद्दा
झारखण्ड विधानसभा का बजट सत्र 27 फरवरी से 23 मार्च तक चला। इस दौरान एक दिन कुत्ता काटने की घटना को लेकर भी सत्ता पक्ष और विपक्ष के विधायकों ने सरकार को घेरा। भाजपा के मुख्य सचेतक विधायक बिरंची नारायण ने इस मुद्दे को उठया। उन्होंने कहा कि अकेले रांची में हर दिन 300 से ज़्यादा लोग डॉग बाइट सेंटरों पर इलाज के लिए पहुँच रहे हैं। कोडरमा से भाजपा की विधायक नीरा यादव ने कहा कि राज्य के बाकी इलाकों की बात तो छोडि़ए, विधानसभा के कैंपस में भी आवारा कुत्तों का आतंक है।
विधानसभा आने-जाने के समय इस बात का डर रहता है कि न जाने कब कौन-सा कुत्ता हमला कर दे! सत्तारूढ़ पार्टी झामुमो के विधायक मथुरा महतो ने कहा कि अगर बोकारो में आवारा कुत्ता पकड़ा जाता है, तो उसे गाड़ी वाले धनबाद में ले जाकर छोड़ देते हैं। भाकपा माले के विधायक विनोद कुमार सिंह ने सरकार को कुत्ते के काटने से हो रही मौतों पर भी मुआवज़े का प्रावधान करने की माँग की।
पालतू कुत्ते भी ख़तरनाक
समस्या सिर्फ़ सडक़ों और गलियों के आवारा कुत्ते नहीं हैं। घरों में कुत्ते पालने वाले लोगों की लापरवाही भी डॉग बाइट की घटनाओं की एक बड़ी वजह होती है। दिल्ली, एनसीआर समेत झारखण्ड में भी इससे सम्बन्धित कई मामले सामने आये हैं। रांची की बात करें तो यहाँ लगभग 10,000 लोगों ने कुत्ते पाल रखे हैं; लेकिन सिर्फ़ 72 लोगों ने इसके लिए लाइसेंस निर्गत कराया है। हर दिन राज्य के विभिन्न सोसायटी में रहने वालों के बीच कुत्ते को लेकर विवाद सामने आता रहता है।
नसबंदी की ज़िम्मेदारी किसकी?
राज्य में नगर निगम को आवारा कुत्तों के नसबंदी की ज़िम्मेदारी दी गयी है। रांची नगर निगम की हालत यह है कि आवरा कुत्तों की संख्या कितनी है, इसकी सटीक जानकारी तक उनके पास नहीं है। निगम के अधिकारी कहते हैं कि एक अनुमान के मुताबिक, रांची शहरी क्षेत्र में 90,000 से अधिक आवारा कुत्ते हैं। निगम ने एक एजेंसी को कुत्तों की नसबंदी की ज़िम्मेदारी दी है। वह एजेंसी 11 वर्षों में 50,000 के लगभग कुत्तों का नसबंदी कर पायी है। यानी अभी भी 35,000 से 40,000 कुत्तों की नसबंदी बची है। वहीं, कुत्तों के आतंक पर विधानसभा में हंगामे पर हेमंत सरकार के मंत्री सत्यानंद भोक्ता ने जवाब दिया कि प्रतिदिन 10-15 कुत्तों का बंध्याकरण व टीकाकरण किया जा रहा है। रांची, गिरिडीह, धनबाद और देवघर नगर निगम में आवारा कुत्तों का बंध्याकरण व वैक्सिनेशन कराया जा रहा है। वहीं, जमशेदपुर, हज़ारीबाग़ और आदित्यपुर नगर निगम क्षेत्र में एजेंसी के चयन की प्रक्रिया चल रही है। उधर, स्वास्थ्य विभाग ने राज्य के 13 निकायों को आवारा कुत्तों के गणना और बंध्याकरण का निर्देश जारी किया है।
ख़तरनाक क्यों हो रहे कुत्ते?
कुत्तों को मानव का सबसे अच्छा दोस्त और सबसे वफ़ादार जानवर माना जाता है। अब कुत्तों को लेकर दहशत का माहौल है ऐसा है कि महानगरों से लेकर छोटे शहरों तक के सोसायटीज में अलग-अलग नियम बनाने की बात सामने आ रही है। आख़िर क्या कारण है कि सडक़ के आवारा कुत्ते हों या पालतू कुत्ते इनते आक्रामक हो रहे हैं? शोध बताते हैं कि कुत्तों का आक्रामक होना कई मामलों पर निर्भर करता है। जिस वजह से वे काटने लगते हैं। पयार्वरण में जो परिवर्तन हो रहा, उसका असर कुत्तों पर भी हो रहा। शोध में यह बात भी सामने आयी है कि कुत्ते अधिकतर हीट पीरियड में आक्रामक होते हैं। वह सामने वाले से डरकर भी हमला करता है। कुत्तों को भी मानसिक स्ट्रेस होता है और वो इस स्ट्रेस के कारण परेशान हो सकते हैं। ख़ासकर पालतू कुत्तों में इस तरह की चीजें देखी गयी हैं। वहीं, सडक़ पर आवारा कुत्तों में इन कारणों के अलावा भोजन की कमी भी एक बड़ा कारण बन रहा।
दरअसल आजकल, ख़ासकर शहरों में बचा भोजन लोग फेंकते नहीं हैं। कई संस्थाएँ इसे लेकर जाती हैं और ग़रीबों में बाँट देती हैं। इससे कुत्तों का पेट नहीं भर रहा। मामला जो भी हो यह एक गम्भीर विषय है। क्योंकि विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार हर साल विश्व में 55,000 लोगों की मौत रेबीज के कारण होती है। इसमें से 90 फ़ीसदी एशिया और अफ्रीका के लोग हैं।
एसोसिएशन फॉर प्रिवेंशन ऑफ रेबीज इन इंडिया के अनुसार, भारत में प्रति वर्ष लगभग 20,000 लोगों की मौत कुत्तों के काटने के बाद होने वाली बीमारी से होती है। इसलिए इस पर गम्भीरता से विचार करने और निदान तलाशने की ज़रूरत है।