पानी पर सेस!

हिमाचल सरकार की पानी से पैसा कमाने की सोच से हरियाणा और पंजाब नाराज़

प्राकृतिक सम्पदा के धनी हिमाचल प्रदेश द्वारा बिजली परियोजनाओं पर वाटर (पानी) सेस लागू करने के फ़ैसले से पड़ोसियों में रार छिड़ गयी है। हरियाणा और पंजाब बेहद नाराज़ हैं और पड़ोसी राज्य के फ़ैसले को अवैध बताया है।

हाल में हिमाचल की नवनियुक्त कांग्रेसी सरकार ने अपने संसाधनों से पैसा कमाने के लिए एक मास्टर स्ट्रोक खेला था। सरकार चाहती थी कि पहाड़ी राज्य की आर्थिक स्थिति को मज़बूत करने के लिए ठोस क़दम उठाये जाएँ। इस मंथन में सरकार की नज़रें सूबे से गुज़रने वाली नदियों पर लगी पन विद्युत परियोजनाओं पर पड़ीं। सरकार ने तुरन्त पहाड़ी राज्यों उत्तराखण्ड और जम्मू-कश्मीर को स्टडी किया और पानी से पैसा कमाने का रास्ता तलाश लिया।

सुखविंदर सिंह सुक्खू सरकार ने इसके लिए राज्य विधानसभा में बिल पास कर एक झटके में करोड़ों रुपये कमाने के लिए पन विद्युत परियोजनाओं पर वाटर सेस लगाने का फ़ैसला ले डाला। इस फ़ैसले की परिधि में 172 पन बिजली परियोजनाएँ आयीं। ये परियोजनाएँ 10,991 मेगावाट वाली हैं और इससे राज्य को हर साल क़रीब 4,000 करोड़ रुपये की आय की बात कही गयी है। हालाँकि सरकार ने यह भी दावा किया इसका असर आम जनता पर नहीं पड़ेगा। यह सेस केवल कम्पनियों को चुकाना होगा। दूसरी ओर यह फ़ैसला पड़ोसियों पंजाब और हरियाणा के कानों तक पहुँचा, तो उन्होंने भी अपनी विधानसभाओं में निंदा प्रस्ताव पारित कर फ़ैसले का विरोध किया।

हिमाचल विधानसभा में जल विद्युत उत्पादन पर जल उपकर विधेयक 2023 पेश किया गया था। उप मुख्यमंत्री मुकेश अग्निहोत्री ने सदन में यह प्रस्ताव पारित करते हुए कहा था कि यह क़ानून उत्तराखण्ड और जम्मू-कश्मीर में लगाये गये जल उप कर गहन अध्ययन करने के बाद ही लाया गया। उनका तर्क था कि उत्तराखण्ड और जम्मू-कश्मीर में कई लोग जल उपकर के ख़िलाफ़ अदालतों में गये; लेकिन वहाँ फ़ैसला सरकार के पक्ष में ही आया था। मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू के अनुसार, राज्य के पास आय के साधन बढ़ाने के सीमित संसाधन हैं। हमें आय के स्रोत बढ़ाने के लिए और संसाधन जुटाने होंगे। मौज़ूदा परिस्थितियों में यह बहुत ज़रूरी हो गया है। इस दिशा में यह पहला क़दम है। यह एक प्रयास है और भविष्य में इस तरह के और भी क़दम उठाये जाएँगे। आम आदमी पार्टी के नेतृत्व वाली पंजाब सरकार पड़ोसी के फ़ैसले से सख़्त नाराज़ है। मुख्यमंत्री भगवंत सिंह मान ने रिपेरियन सिद्धांत के मुताबिक पानी पर अपना क़ानूनी हक़ जताते हुए हिमाचल प्रदेश सरकार द्वारा हाइड्रो पॉवर प्रोजेक्ट पर वाटर सेस लगाने के फ़ैसले को अमान्य क़रार दिया।

पंजाब विधानसभा में इसके विरोध में एक प्रस्ताव लाया गया। पंजाब के जल स्रोत मंत्री गुरमीत सिंह मीत हेयर ने इसे पंजाब के हितों से बड़ा धक्का क़रार दिया। मुख्यमंत्री भगवंत सिंह मान के अनुसार सुक्खू सरकार का क़दम ग़ैर-क़ानूनी और तर्कहीन है। मान ने कहा कि नदियों के पानी पर पंजाब का क़ानूनी हक़ है और कोई भी राज्य का यह हक़ नहीं छीन सकता। उन्होंने यहाँ तक कहा कि अपनी ज़मीन के रास्ते बह रहे पानी पर पंजाब एक पैसा भी किसी को नहीं देगा। मुख्यमंत्री मान यह भी कहते हैं कि इस फ़ैसले से साफ़ हो गया है कि कांग्रेस के कई चेहरे हैं और वह हमेशा राजनीतिक सुविधा के लिए अपने इन चेहरों को इस्तेमाल करती रही है।

वहीं हरियाणा की भाजपा-जजपा गठबंधन सरकार भी हिमाचल के ख़िलाफ़ खड़ी हो गयी। मुख्यमंत्री मनोहर लाल ने भी विधानसभा में ऐसा ही प्रस्ताव रख हिमाचल सरकार के अध्यादेश का विरोध करते हुए कहा कि वाटर सेस के लिए हरियाणा को बाध्य नहीं किया जा सकता। इसलिए हिमाचल सरकार अपना फ़ैसला वापस लेना चाहिए। हरियाणा सरकार ने केंद्र से भी आग्रह किया है कि वह यह अध्यादेश वापस लेने के आदेश दे, क्योंकि यह केंद्रीय अधिनियम यानी अंतरराज्यीय जल विवाद अधिनियम-1956 का भी उल्लंघन है। मुख्यमंत्री ने यह भी तर्क रखा कि भाखड़ा ब्यास प्रबंधन बोर्ड (बीबीएमबी) से हरियाणा पहले से ही हरियाणा और पंजाब के कम्पोजिट शेयर की 7.19 प्रतिशत बिजली हिमाचल को दे रहा है। हिमाचल के उप मुख्यमंत्री मुकेश अग्निहोत्री ने दावा किया कि वाटर सेस से पंजाब और हरियाणा को इससे नुक़सान नहीं होगा। सरकार ने अपने राजस्व में बढ़ोतरी करने के लिए यह फ़ैसला लिया है। इसे लगाने के लिए राज्य क़ानूनी रूप से सक्षम है।  हिमाचल के मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह ‘सुक्खू’ इस पूरे विवाद में पंजाब व हरियाणा के तर्कों से सहमत नहीं हैं। उनका कहना है कि पड़ोसी राज्यों की सरकार की ओर से सन् 1956 की सन्धि का उल्लंघन होने की बात तर्कसंगत नहीं है। उनकी दलील है कि सेस लगाने वाला हिमाचल पहला राज्य नहीं है। उत्तराखण्ड और जम्मू-कश्मीर भी पहले ही इसी तरह वाटर सेस लगा चुके हैं। इस लिए हिमाचल सरकार किसी अन्य राज्य सरकार के अधिकारों का कोई उल्लंघन नहीं कर रही है।