संसद की गरिमा ताक पर

जिस संसद को संविधान और देश की गरिमा का प्रतीक और लोकतंत्र का मंदिर माना जाता है, जिस संसद की गतिविधियों पर पूरे देश और दुनिया की नज़र रहती है; उसी संसद भवन में सत्र सभा सजते ही हर दिन लोकतंत्र का चीर हरण होता है। इस बार जिस प्रकार से नये संसद भवन में लोकतंत्र का यह चीरहरण हुआ, वैसा चीरहरण संसद की गतिविधियों को कवर करने के मैंने अपने तीन दशक से ज़्यादा के पत्रकारिता करियर में नहीं देखा। 18 सितंबर, 2014 को जिस संसद भवन की सीढिय़ाँ चढऩे से पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने माथा टेका था, लोकतंत्र के उसी नये भवन में पहले ही विशेष सत्र में चौथे दिन गालियों की बोछार सुनायी दी।

यह अभद्रता भाजपा तीन बार के विधायक और दो बार सांसद रमेश बिधूड़ी ने बसपा सांसद दानिश अली से की। हैरानी की बात यह है कि सत्ताधारी दल के सांसद की ओए-तोए की अभद्र भाषा पर न तो अभी तक प्रधानमंत्री ने कुछ कहा है और न ही लोकसभा अध्यक्ष ने बिधूड़ी के ख़िलाफ़ कार्यवाही करते हुए विपक्षी सांसदों की तरह बाहर का रास्ता दिखाया है। बस, बिधूड़ी के अभद्र बयान को रिकॉर्ड से हटा लिया है। लोकसभा अध्यक्ष और भाजपा ने उन्हें कारण बताओ नोटिस भेज दिया है। लेकिन दूसरी ओर इनाम के रूप में बिधूड़ी को राजस्थान के टोंक की चुनावी ज़िम्मेदारी मिल गयी।

दरअसल दक्षिणी दिल्ली से भाजपा सांसद रमेश बिधूड़ी जब मोदी सरकार की तारीफ़ चंद्रयान-3 की सफलता को लेकर कर रहे थे, तभी बसपा सांसद दानिश अली ने सवाल उठा दिया। बस इसी को लेकर बिधूड़ी ने ग़ुस्से में कहा- ‘ओए-ओए उग्रवादी! ऐ उग्रवादी! बीच में मत बोलना। ये आतंकवादी-उग्रवादी है। ए कटुए। ये मुल्ला आतंकवादी है। इसकी बात नोट करते रहना। अभी बाहर देखूँगा इस मुल्ले को।’

हैरत इस बात की है कि जब रमेश बिधूड़ी संसद की गरिमा तार-तार कर रहे थे, तब उनकी पार्टी के दो सांसद डॉ. हर्षवर्धन सिंह और रविशंकर प्रसाद और कई अन्य सांसद हँस रहे थे। जब हर्षवर्धन से इस बारे में पूछा गया कि वह बिधूड़ी के बयान को सुन नहीं सके। रालोद ने डॉ. हर्षवर्धन की मुस्कुराहट को लेकर सवाल उठाये हैं। बिधूड़ी ने जिस तरह सडक़छाप भाषा का लोकसभा में इस्तेमाल किया, उसके लिए रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने खेद जताया। उन्होंने कहा कि अगर बिधूड़ी ने ऐसा कुछ कहा है, जिससे बसपा सांसद की भावनाएँ आहत हुई हैं, तो मैं इस पर खेद व्यक्त करता हूँ। लेकिन वहीं किसी भाजपा नेता या सांसद ने न तो रमेश बिधूड़ी का विरोध किया और न ही उन्हें अभद्र शब्दों का प्रयोग करते हुए रोका। जब बिधूड़ी सडक़छाप अपमानजनक भाषा का इस्तेमाल अपने ही समकक्ष के ख़िलाफ़ इस्तेमाल कर रहे थे, तब अध्यक्ष की आसंदी पर कोडिकुन्नील सुरेश बैठे थे। उन्होंने दानिश अली से बार-बार बैठने को कहा। बिधूड़ी को भी चुप रहने को कहा; लेकिन वह चुप नहीं हुए और बसपा सांसद से अभद्रता करते रहे।

मैंने संसद की सैकड़ों कार्यवाहियाँ लाइव देखी हैं; लेकिन इस तरह की भाषा पहले कभी नहीं सुनी। जो भाजपा नेता और उनके कार्यकर्ता अपनी पार्टी या अपने किसी नेता के ख़िलाफ़ किसी टिप्पणी पर ज़मीन सिर पर उठा लेते हैं, वे आज चुप हैं। जब रमेश बिधूड़ी लोकतंत्र के मंदिर के अंदर अभद्रता कर रहे थे, तो विपक्षी नेता हैरान थे कि नये संसद के पहले ही सत्र में भाजपा सांसदों की गुंडागर्दी का यह हाल है, तो फिर आगे क्या होगा?

सवाल यह भी है कि प्रधानमंत्री मोदी और अन्य भाजपा नेता जिस संसद को लोकतंत्र का मंदिर कहते हैं, उसी लोकतंत्र के मंदिर में जब रमेश बिधूड़ी एक चुने हुए सांसद को उग्रवादी कहते हैं। उसके साथ ओए-तोए की भाषा का इस्तेमाल करते हैं। उस सांसद को उसके धर्म के आधार पर अभद्र बोलते हैं और बाहर देख लेने की धमकी देते हैं; तब प्रधानमंत्री मोदी ने इस पर कुछ क्यों नहीं कहा? जबकि प्रधानमंत्री मोदी इस संसद के उद्घाटन भाषण में सभी सांसदों से अपील कर रहे थे कि सभी सदस्यगण संसद की गरिमा का ख़्याल रखें। इससे पहले भी प्रधानमंत्री मोदी विपक्ष के तीखे सवाल पूछने और हंगामा करने को लेकर कई बार संसद में बोल चुके हैं और इसे संसद और चुनी हुई सरकार की तौहीन बताकर दुहाई देते रहे हैं। लेकिन अब उन्होंने एक शब्द भी नहीं बोला।

क्या संसद की गरिमा रखने का उत्तरदायित्व केवल विपक्षी सांसदों का ही है? क्या प्रधानमंत्री को विपक्ष के सवालों और हंगामे से ही परहेज़ है? जबकि उनके सांसद हंगामा भी $खूब करते हैं और अब तो अभद्रता की हदें भी उनके सांसद रमेश बिधूड़ी ने पार कर दीं।

इसी संसद में मोदी सरकार से तीखे सवाल पूछने और उसे कई मुद्दों पर घेरने के लिए कई विपक्षी सांसदों को संसद से लोकसभा अध्यक्ष झट से बर्खास्त कर देते हैं। चाहे वो आम आदमी पार्टी के पूर्व सांसद भगवंत मान रहे हों, चाहे वर्तमान में संजय सिंह, राघव चड्ढा, कांग्रेस के राहुल गाँधी, अधीर रंजन चौधरी हों या किसी अन्य राजनीतिक दल के दूसरे सांसद हों। लेकिन अब लोकसभा अध्यक्ष को सबसे अभद्र और भद्दी भाषा इस्तेमाल करने वाले सत्ता पक्ष के सांसद बिधूड़ी के ख़िलाफ़ कार्रवाई करते नहीं बन रहा है। क्या लोकसभा अध्यक्ष ओम बिड़ला सत्ताधारी दल के दबाव में हैं? या उनकी कोई और वजह है? या लोकसभा अध्यक्ष के पद पर किसी की कृपा से विराजमान हैं? या उन पर सरकार का दबाव है कि वह सिर्फ़ और सिर्फ़ विपक्षी सांसदों के ख़िलाफ़ ही कार्रवाई करेंगे; सत्ता पक्ष के सांसदों पर नहीं?

क्या उन्हें इस बात का भी ख़याल है कि संसद के अंदर इस तरह की भाषा का देश पर क्या असर होगा? क्या वह वाक़ई संविधान की रक्षा कर रहे हैं? और जिस संविधान की मोदी सरकार हमेशा दुहाई देती है, क्या वह उस संविधान की रक्षा कर रही है? सरकार को क्यों सडक़ों पर अपने ऊपर हुए अत्याचारों के ख़िलाफ़ लड़ाई लडऩे वाले किसान और महिला पहलवान देशद्रोही नज़र आते हैं? और क्यों खुलेआम संविधान की प्रतियाँ फाडऩे और जलाने वाले देशभक्त नज़र आते हैं? सवाल यह भी है कि जब सांसदों के साथ भाजपा नेताओं का खुलेआम दुनिया के सामने में ऐसा व्यवहार है, तो देश के उन लोगों के साथ वह कैसा व्यवहार करते होंगे, जिनसे उन्हें चिढ़ है?

आज अचानक सन् 2014 में नरेंद्र मोदी के सत्ता में आने के बाद लोगों के साथ अभद्रता, अत्याचार और मारपीट की असंख्यों घटनाएँ नज़रों के सामने तैरने लगी हैं। इनमें गोरक्षा के नाम पर मॉब लिंचिंग की सैकड़ों घटनाएँ भी हैं। किसानों पर अत्याचारों की सैकड़ों घटनाएँ भी हैं। बेटियों से बलात्कार और उनकी हत्याओं की दर्ज़नों घटनाएँ अख़बारों की सुर्ख़ियाँ बनी रही हैं। दलितों पर अत्याचार की सैकड़ों घटनाएँ भी इसी प्रकार से अख़बारों में हम आये दिन पढ़ते रहते हैं। हिंसा और गृहयुद्ध जैसे हालातों का तो कहना ही क्या? मणिपुर आज भी सुलग रहा है। इन सब घटनाओं पर भाजपा नेताओं और ख़ासतौर पर प्रधानमंत्री मोदी की चुप्पी से क्या ज़ाहिर होता है? क्या यह है मान लिया जाए कि इस देश में ओहदेदार सांसद भी सुरक्षित नहीं है, तो आम लोगों की सुरक्षा की क्या उम्मीद की जा सकती है?

बहरहाल अभद्र भाषा को लेकर रमेश बिधूड़ी को संसद और देश के साथ-साथ बसपा सांसद से भी माफ़ी माँगनी चाहिए। राज्यसभा सांसद प्रियंका चतुर्वेदी ने बिधूड़ी के संबोधन का एक हिस्सा अपने ट्विटर हैंडल पर शेयर करते हुए लिखा है- ‘कोई शर्म नहीं बची है।’ असदुद्दीन ओवैसी ने भी वीडियो शेयर करते ट्वीट किया- ‘इस वीडियो में चौंकाने वाला कुछ नहीं है। भाजपा एक अथाह खाई है, इसलिए हर दिन एक नया निचला स्तर मिल जाता है। मुझे भरोसा है कि इसके ख़िलाफ़ कोई कार्रवाई नहीं होगी। सम्भावना है कि आगे इसे भाजपा दिल्ली प्रदेश अध्यक्ष बनाया जाएगा। आज भारत में मुसलमानों के साथ वैसा ही सुलूक हो रहा है, जैसा हिटलर के जर्मनी में यहूदियों के साथ किया जाता था। मेरा सुझाव है कि नरेंद्र मोदी जल्द इस वीडियो को अरबी में डब करें और अपने हबीबियों को भेजें।’ वहीं कांग्रेस नेता राहुल गाँधी इस घटना के बाद बसपा सांसद से मिलने उनके आवास पर पहुँचे। मायावती ने अपने सांसद पर इस तरह की अभद्रता को लेकर एक्‍स पर लि‍खा- ‘दिल्ली से भाजपा सांसद द्वारा बीएसपी सांसद दानिश अली के ख़िलाफ़ सदन में आपत्तिजनक टिप्पणी को हालाँकि स्पीकर ने रिकॉर्ड से हटाकर उन्हें चेतावनी भी दी है। किन्तु पार्टी द्वारा उनके (बिधूड़ी के) विरुद्ध अभी तक समुचित कार्रवाई नहीं करना दु:खद / दुर्भाग्यपूर्ण।’ पिछले कुछ सालों से आरोप लग रहे हैं कि बसपा सुप्रीमो और उत्तर प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री मायावती भाजपा के साथ ही खड़ी हैं। इतने पर भी भाजपा सांसद द्वारा बसपा सांसद की इस तरह संसद के अंदर तौहीन करने पर आश्चर्य तो होता ही है; लेकिन सबसे ज़्यादा ताज्जुब मायावती की चुप्पी पर होता है। कुछ लोग तो यह भी कहते हैं कि मायावती भाजपा से डरी हुई हैं। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या वाक़ई मायावती भाजपा के आगे सरेंडर कर चुकी हैं?

हालाँकि ऐसा नहीं है कि रमेश बिधूड़ी ने पहली बार किसी से अभद्रता की है। उनकी बदज़ुबानी के चर्चे पहले भी संसद के अंदर और बाहर दोनों जगह मशहूर रहे हैं। मसलन एक बार जब एक बच्चे की स्कूल की समस्या लेकर उसके माँ-बाप सांसद बिधूड़ी के पास पहुँचे, तो उन्होंने उनसे कहा कि बच्चे पैदा क्यों किये फिर? बहरहाल संसद में बिधूड़ी की अभद्रता को लेकर बसपा सांसद दानिश अली लोकसभा अध्यक्ष को पत्र में लिखकर रमेश बिधूड़ी के ख़िलाफ़ कार्यवाही की माँग की है। साथ ही यह भी कहा है कि अगर रमेश बिधूड़ी के ख़िलाफ़ कार्यवाही नहीं होती है, तो वह खुद ही सदस्यता छोड़ देंगे। बसपा सांसद ने कहा कि वह लोकसभा में प्रक्रिया और कामकाज के संचालन के नियमों की धाराओं के तहत यह नोटिस देना चाहते हैं और रमेश बिधूड़ी के ख़िलाफ़ लोकसभा अध्यक्ष से कार्यवाही का अनुरोध करते हैं। लेकिन अगर लोकसभा स्पीकर इस गम्भीर मामले पर संज्ञान न लेते हुए कार्रवाई नहीं करेंगे, तो आगामी लोकसभा चुनावों में सत्ताधारी दल को मुस्लिम वोटरों के ग़ुस्से का सामना करना पड़ सकता है। खैर, भाजपा सांसद रमेश बिधूड़ी द्वारा लोकसभा में दिये गये बयान से आम जनमानस में बहुत-ही ख़राब संदेश गया है, जिससे देश की गरिमा के साथ-साथ लोगों को पीड़ा पहुँची है। सत्ताधारी दल के सांसद की निचले स्तर की अभद्र भाषा दुर्भाग्यपूर्ण है कि यह घटना लोकतंत्र के मंदिर की सबसे शर्मनाक घटना है। इस तरह की भाषा का इस्तेमाल संसदीय सदस्य के ख़िलाफ़ किया गया है, फिर आम लोगों की सत्ता के नशे में चूर इन लोगों की नज़र में क्या इज़्ज़त होगी?

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं राजनीतिक विश्लेषक हैं।)